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Friday, November 1, 2024

मनखे तोरो मेल नहीं

 मनखे तोरो मेल नहीं


दीया हे ता बाती नइये, बाती हे ता तेल नही।

धन हस तैं धन तोर दिवारी, मनखे तोरो मेल नही।


आज निवाई के थोरे हे, निशि-दिन आरी-पारी हे।

बारह घण्टा दिन उजियारा, वतके निशि अँधियारी हे।


पन्द्रह दिन के पाख अँजोरी, पन्द्रह के अँधियारी हे।

एक दिवस पुन्नी हे वोमा, एक अमावस कारी हे।


कण्डिल छोड़े टार्च बिसाये, उहू टार्च मा सेल नहीं।

धन हस तैं धन तोर दिवारी, मनखे तोरो मेल नही।


बाती के बलिदान न जाने, दीया बारत जुग भइगे।

सुरुज नरायण ला ऊ-ऊ के, आँख उघारत जुग भइगे।


आने तैं उजियार डहर हस, आने तैं अँधियार डहर।

काम परे मा लोटा धरके, टरक जथस तैं खार डहर।


जतका कन मन तोर दउँड़थे, दउँड़य बस अउ रेल नहीं।

धन हस तैं धन तोर दिवारी, मनखे तोरो मेल नहीं।


रथे जरूरत महिनत के तब, मन हर जाथे ढेर डहर।

घर-अँगना मा दिवा जला के, होथस खड़ा गरेर डहर।


सउँहे श्रम के सोन चमकही, देख खेत खलिहान डहर।

आन डहर झन देख निटोरे, देख सोनहा धान डहर।


पोथी-पत्र घलो हा कहिथे, मनखे अम्मरबेल नहीं।

धन हस तैं धन तोर दिवारी, मनखे तोरो मेल नही।


कातिक के अँधियार अमावस, सीमा ए अँधियारी के।

ओधे सकय नहीं दीया तिर, मर्म इही देवारी के।


माटी के दीया सन बरथे, आँटा के दीया जगमग।

देवारी मा होथे सबके, बाँटा के दीया जगमग।


दीया बार मढ़ा ड्यौढ़ी मा, अब तैं हाथ सकेल नहीं।

धन हस तैं धन तोर दिवारी, मनखे तोरो मेल नही।


-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर 'सौमित्र'

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़