मया अउ आस्था निराकार ला साकार कर देथे। काली कबीरधाम मा "छन्द के छ" के स्थापना दिवस अउ मातृ दिवस के शुभ घड़ी मा "छत्तीसगढ़ी भाखा महतारी" के मोर परिकल्पना ला छन्द के छ के साधक "ईश्वर साहू बंधी" जी कागज मा रेखांकित करके सजीव करिन। आयोजन के शुरुवात मा आमंत्रित पहुना मन "छत्तीसगढ़ी भाखा महतारी" के मातृ स्वरूप के लोकार्पण करिन। इही मातृ रूप के आघू दीप प्रज्ज्वलित करके कार्यक्रम के उद्घाटन होइस।
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Monday, May 13, 2019
Saturday, May 11, 2019
चौपाई छन्द - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
चप्पल(दोहा चौपाई)
*बिन चप्पल के अब कहाँ,मनखे कहुँती जाय।*
*रंग रंग के आज तो,चप्पल पाँव सुहाय।*
खेत खार अउ बखरी बारी,चप्पल पहिर घुमै नर नारी।
कोनो मँहगा कोनो सस्ता,पहिरे लाँघय सरपट रस्ता।
चमड़ा प्लास्टिक फोम रबड़ के,पहिरै चप्पल सबे रगड़ के।
काँटा खूँटी काँच गड़े ना,बिन चप्पल के शान बढ़े ना।
फेरी वाले बेरी वाले,जौनी वाले डेरी वाले।
पहिरे चप्पल काम करें सब,रहै कोन बिन चप्पल के अब।
साहब बाबू चोर उचक्का,बिन चप्पल सब हक्का बक्का।
ठलहा हो या काम करैया,सबला चाही चप्पल भैया।
चप्पल पहुँचे घर के भीतर,देख दंग होवत हे पीतर।
चप्पल मंदिर मा नइ जाये,घर अब मंदिर कहाँ कहाये।
चले नहीं चिखला मा चप्पल,घाम घरी चाही जी सब पल।
चप्पल चाही सबे महीना,बिन चप्पल मुश्किल हे जीना।
पाँव छुये बर धरती तरसे,कखरो मूड़ म चप्पल बरसे।
चप्पल के डर गजब सताये,पड़े मार निंदिया नइ आये।
कखरो चप्पल कहूँ गँवाये,रात रात भर सो नइ पाये।
चप्पल वाले ताव दिखाये,बिन चप्पल मनखे का आये।
चप्पल मारे भूत भगाये, दूसर बिरथा एक गँवाये।
चप्पल बर रखवार रथे जी,चप्पल चप्पल सबे कथे जी।
चप्पल चोर मिले सब कोती,जइसे चप्पल हीरा मोती।
चप्पल बिना काम ना होवै,बिन चप्पल के नाम ना हौवै।
जनम लेत पग चप्पल चिपके,चोर ह ताके चप्पल छिपके।
घिंस चप्पल कोनो दुख पाथे,कोनो चप्पल ला चमकाथे।
सुन्ना लगथे देखव चल के,हाट बजार ह बिन चप्पल के।
चप्पल के होवै बड़ चरचा,करे लेय बर सब झन खरचा।
*चप्पल पहिरे पाँव मा,चलव न आँखी मूँद।*
*रहिथे कतको जीव जी,हो मतंग झन खूँद।*
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को (कोरबा)
*बिन चप्पल के अब कहाँ,मनखे कहुँती जाय।*
*रंग रंग के आज तो,चप्पल पाँव सुहाय।*
खेत खार अउ बखरी बारी,चप्पल पहिर घुमै नर नारी।
कोनो मँहगा कोनो सस्ता,पहिरे लाँघय सरपट रस्ता।
चमड़ा प्लास्टिक फोम रबड़ के,पहिरै चप्पल सबे रगड़ के।
काँटा खूँटी काँच गड़े ना,बिन चप्पल के शान बढ़े ना।
फेरी वाले बेरी वाले,जौनी वाले डेरी वाले।
पहिरे चप्पल काम करें सब,रहै कोन बिन चप्पल के अब।
साहब बाबू चोर उचक्का,बिन चप्पल सब हक्का बक्का।
ठलहा हो या काम करैया,सबला चाही चप्पल भैया।
चप्पल पहुँचे घर के भीतर,देख दंग होवत हे पीतर।
चप्पल मंदिर मा नइ जाये,घर अब मंदिर कहाँ कहाये।
चले नहीं चिखला मा चप्पल,घाम घरी चाही जी सब पल।
चप्पल चाही सबे महीना,बिन चप्पल मुश्किल हे जीना।
पाँव छुये बर धरती तरसे,कखरो मूड़ म चप्पल बरसे।
चप्पल के डर गजब सताये,पड़े मार निंदिया नइ आये।
कखरो चप्पल कहूँ गँवाये,रात रात भर सो नइ पाये।
चप्पल वाले ताव दिखाये,बिन चप्पल मनखे का आये।
चप्पल मारे भूत भगाये, दूसर बिरथा एक गँवाये।
चप्पल बर रखवार रथे जी,चप्पल चप्पल सबे कथे जी।
चप्पल चोर मिले सब कोती,जइसे चप्पल हीरा मोती।
चप्पल बिना काम ना होवै,बिन चप्पल के नाम ना हौवै।
जनम लेत पग चप्पल चिपके,चोर ह ताके चप्पल छिपके।
घिंस चप्पल कोनो दुख पाथे,कोनो चप्पल ला चमकाथे।
सुन्ना लगथे देखव चल के,हाट बजार ह बिन चप्पल के।
चप्पल के होवै बड़ चरचा,करे लेय बर सब झन खरचा।
*चप्पल पहिरे पाँव मा,चलव न आँखी मूँद।*
*रहिथे कतको जीव जी,हो मतंग झन खूँद।*
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को (कोरबा)
Tuesday, May 7, 2019
चौपाई छन्द - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
हिजगा-पारी(दोहा-चौपाई)
*हिजगा पारी के कथा,कहत हवँव मैं आज।*
*कहत कहत मोला घलो,आवत हे बड़ लाज।*
एक ददा के दू हे टूरा,दोनों झन बड़ धरहा छूरा।
पटे नही दोनों के तारी,करें एक दूसर के चारी।।
एक मंगलू एक छगन हे,अपन अपन मा दुनों मगन हे
एके हे घर बखरी बारी,करे काम बस हिजगा पारी।।
फ्रीज रेडियो मोटर गाड़ी,लेवय दोनों हिजगा पारी।
जइसन करनी करे एक झन,तइसन होवै दूसर के मन।
उँखर समझ आये ना चक्कर,दोनों मा काँटा के टक्कर।
करे गरब धन हाड़ मास मा,होय फभित्ता आस पास मा।
बर बिहाव का मरनी हरनी,एके रहै दुनों के करनी।
ओढ़े देखावा के चोला,लेवय तम बम बारुद गोला।
देखावा मा पइसा फेके, लड़े भिड़े बर रोजे टेके।
मान गौन सँग धन अउ दउलत,हिजगा पारी मा हे पउलत।
मन मा रखके हिजगा पारी,देय एक दूसर ला गारी।
ददा धरे सिर दुखी मनाये, कोन दुनों झन ला समझाये।
तड़फै कभू ददा पसिया बर,कभू खाय रँगरँग टठिया भर।
कभू झुलावै दुनों हिंडोला,कभू गिरावय दुख के गोला।
हरहर कटकट रोजे ताये,देख ददा दुख प्राण गँवाये।
तभो दुनों ना हिजगा छोड़े,कुवाँ एक दूसर बर कोड़े।
*परलोकी दाई ददा,रिस्ता नत्ता तोड़।*
*हिजगा पारी मा तिरै, भाई भाई गोड़।*
धन अउ धान सबे झट उरके,दुनों एक दूसर ले कुड़के।
लड़े भिड़े जादा अउ खुल के,बोरों दोनों नाँव ल कुल के।
लइका मन मा अवगुण आये,देख दुनों झन दुखी मनाये।
खुदे बार डारिस हे घर ला,का बद्दी दे पाही पर ला।
लइका मन हा बनगे लावा,अब का चिंता अउ पछतावा।
करे काम ला मातु पिता के,जोरे लकड़ी उँखर चिता के।
हिजगा पारी काय काम के,घर बन बारे द्वेष थाम के।
सुख ले जिनगी जीना चाही,मया पिरित सत पीना चाही।
हिजगा पारी के बीमारी,अच्छा नोहे जी सँगवारी।
छोडों झगड़ा झंझट चारी,दया मया धर बध लौ यारी।
छगन मंगलू झन होवव जी,इरसा द्वेष म झन खोवव जी।
चारी चुगली द्वेष लबारी,छोड़व भैया हिजगा पारी।
*हिजगा पारी ला धरे,जेन जेन मेछराय।*
*तेखर नइया एक दिन,बीच धार बुड़ जाय।*
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795
*हिजगा पारी के कथा,कहत हवँव मैं आज।*
*कहत कहत मोला घलो,आवत हे बड़ लाज।*
एक ददा के दू हे टूरा,दोनों झन बड़ धरहा छूरा।
पटे नही दोनों के तारी,करें एक दूसर के चारी।।
एक मंगलू एक छगन हे,अपन अपन मा दुनों मगन हे
एके हे घर बखरी बारी,करे काम बस हिजगा पारी।।
फ्रीज रेडियो मोटर गाड़ी,लेवय दोनों हिजगा पारी।
जइसन करनी करे एक झन,तइसन होवै दूसर के मन।
उँखर समझ आये ना चक्कर,दोनों मा काँटा के टक्कर।
करे गरब धन हाड़ मास मा,होय फभित्ता आस पास मा।
बर बिहाव का मरनी हरनी,एके रहै दुनों के करनी।
ओढ़े देखावा के चोला,लेवय तम बम बारुद गोला।
देखावा मा पइसा फेके, लड़े भिड़े बर रोजे टेके।
मान गौन सँग धन अउ दउलत,हिजगा पारी मा हे पउलत।
मन मा रखके हिजगा पारी,देय एक दूसर ला गारी।
ददा धरे सिर दुखी मनाये, कोन दुनों झन ला समझाये।
तड़फै कभू ददा पसिया बर,कभू खाय रँगरँग टठिया भर।
कभू झुलावै दुनों हिंडोला,कभू गिरावय दुख के गोला।
हरहर कटकट रोजे ताये,देख ददा दुख प्राण गँवाये।
तभो दुनों ना हिजगा छोड़े,कुवाँ एक दूसर बर कोड़े।
*परलोकी दाई ददा,रिस्ता नत्ता तोड़।*
*हिजगा पारी मा तिरै, भाई भाई गोड़।*
धन अउ धान सबे झट उरके,दुनों एक दूसर ले कुड़के।
लड़े भिड़े जादा अउ खुल के,बोरों दोनों नाँव ल कुल के।
लइका मन मा अवगुण आये,देख दुनों झन दुखी मनाये।
खुदे बार डारिस हे घर ला,का बद्दी दे पाही पर ला।
लइका मन हा बनगे लावा,अब का चिंता अउ पछतावा।
करे काम ला मातु पिता के,जोरे लकड़ी उँखर चिता के।
हिजगा पारी काय काम के,घर बन बारे द्वेष थाम के।
सुख ले जिनगी जीना चाही,मया पिरित सत पीना चाही।
हिजगा पारी के बीमारी,अच्छा नोहे जी सँगवारी।
छोडों झगड़ा झंझट चारी,दया मया धर बध लौ यारी।
छगन मंगलू झन होवव जी,इरसा द्वेष म झन खोवव जी।
चारी चुगली द्वेष लबारी,छोड़व भैया हिजगा पारी।
*हिजगा पारी ला धरे,जेन जेन मेछराय।*
*तेखर नइया एक दिन,बीच धार बुड़ जाय।*
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795
Wednesday, May 1, 2019
मजदूर दिवस विशेषांक (01 मई 2019)
(1)
आल्हा छन्द - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
गरमी घरी मजदूर किसान
मूड़ म ललहूँ पागा बाँधे,करे काम मजदूर किसान।
हाथ मले बैसाख जेठ हा,कोन रतन के ओखर जान।
जरे घाम आगी कस तबले,करे काम नइ माने हार।
भले पछीना तरतर चूँहय,तन ले बनके गंगा धार।
करिया काया कठवा कस हे,खपे खूब जी कहाँ खियाय।
धन धन हे वो महतारी ला,जेन कमइया पूत बियाय।
धूका गर्रा डर के भागे , का आगी पानी का घाम।
जब्बर छाती रहै जोश मा,कवच करण कस हावै चाम।
का मँझनी का बिहना रतिहा,एके सुर मा बाजय काम।
नेंव तरी के पथरा जइसे, माँगे मान न माँगे नाम।
धरे कुदारी रापा गैतीं, चले काम बर सीना तान।
गढ़े महल पुल नँदिया नरवा,खेती कर उपजाये धान।
हाथ परे हे फोरा भारी,तन मा उबके हावय लोर।
जाँगर कभू खियाय नही जी,मारे कोनो कतको जोर।
देव दनुज जेखर ले हारे,हारे धरती अउ आकास।
कमर कँसे हे करम करे बर,महिनत हावै ओखर आस।
उड़े बँरोड़ा जरे भोंभरा,भागे तब मनखे सुखियार।
तौन बेर मा छाती ताने,करे काम बूता बनिहार।
माटी महतारी के खातिर,खड़े पूत मजदूर किसान।
महल अटारी दुनिया दारी,सबे चीज मा फूँकय जान।
मरे रूख राई अइलाके,मरे घाम मा कतको जान।
तभो करे माटी के सेवा,माटी ला महतारी मान।
जगत चले जाँगर ले जेखर,जले सेठ अउ साहूकार।
बनके बइरी चले पैतरा,मानिस नहीं तभो वो हार।
धरती मा जीवन जबतक हे,तबतक चलही ओखर नाँव।
अइसन कमियाँ बेटा मनके, परे खैरझिटिया हा पाँव।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
(2)
रूपमाला छन्द- बोधन राम निषाद राज
हाँव मँय मजदूर संगी,काम करथौं जोर।
पेट पालत दिन पहावँव,देश हित अउ मोर।
कर गुजारा रात दिन मँय,मेहनत कर आँव।।
रातकुन के पेज पसिया,खाय माथ नवाँव।।
दिन बितावौं मँय कमावँव,फोर पथरा खाँव।
मेहनत के आड़ संगी, देश ला सिरजाँव।।
चाँद में पहुँचे ग भइया,देख सब जर जाय।
कोन हिम्मत अब ग करही,आँख कोन उठाय।।
अब पसीना हा चुहत हे,टोर जाँगर देख।
भाग हा अब झूकही जी,ए बिधाता लेख।।
मेहनत मा आज देखौ, स्वर्ग बनगे खार।
ईंट से जी ईंट बजगे, देख लव संसार।।
काम पूजा मोर हावै, काम हे भगवान।
काम करलौ आव भाई, काम हे ईमान।।
पार नइहे दुःख के जी,धीर बाँधव आव।
एक दिन सुख आय संगी,दुःख जाय कमाव।।
रचनाकार:-
बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहारा
जिला - कबीरधाम (छ.ग.)
(3)
हरिगीतिका छंद - जगदीश "हीरा" साहू
मजदूर अब मजबूर हे, मजधार मा जिनगी लगय।
बड़ दुःख मा परिवार हे, घर छोड़ दूसर मन ठगय।।
अब मान नइहे काम के, कोनो बतावव राह जी।
दे दाम बड़ अहसान कर, लेथे अमीरी आह जी।।1।।
कतको बनाये घर तभो, खुद झोपड़ी मा रहि जथे।
वो घाम पानी जाड़ सब, बाहिर सबो ला सहि जथे।।
जानव अपन कस आज ले, हे आस अब सम्मान दव।।
झन छोड़ पिछवाये डगर, अब संग अपने जान दव।।2।।
जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
छत्तीसगढ़
(4)
मंदारमाला सवैया - बोधन राम निषादराज
मजदूर -
देखौ जमाना कहाँ आज हावै नहीं कोन हे जी चिन्हारी इहाँ।
खाये पिये के हवै जी लचारी गरीबी बढ़े दाम भारी इहाँ।।
दू जून रोटी कमाके ग खावौं फटे हाल हावै अटारी इहाँ।
बाँचे नहीं जी अधेला घलो आज होगेंव महूँ हा भिखारी इहाँ।।
रचना:-
बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम (छ.ग.)
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