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Wednesday, May 1, 2019

मजदूर दिवस विशेषांक (01 मई 2019)


(1)

आल्हा छन्द - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

गरमी घरी मजदूर किसान

मूड़  म  ललहूँ पागा बाँधे,करे  काम मजदूर किसान।
हाथ मले बैसाख जेठ हा,कोन रतन के ओखर जान।

जरे घाम आगी कस तबले,करे काम नइ माने हार।
भले  पछीना  तरतर चूँहय,तन ले बनके गंगा धार।

करिया काया कठवा कस हे,खपे खूब जी कहाँ खियाय।
धन  धन  हे  वो महतारी ला,जेन  कमइया  पूत  बियाय।

धूका  गर्रा  डर  के  भागे , का  आगी  पानी  का  घाम।
जब्बर छाती रहै जोश मा,कवच करण कस हावै चाम।

का मँझनी का बिहना रतिहा,एके सुर मा बाजय काम।
नेंव   तरी   के  पथरा  जइसे, माँगे  मान  न माँगे नाम।

धरे  कुदारी  रापा  गैतीं, चले  काम  बर  सीना तान।
गढ़े महल पुल नँदिया नरवा,खेती कर उपजाये धान।

हाथ  परे  हे  फोरा  भारी,तन  मा  उबके हावय लोर।
जाँगर कभू खियाय नही जी,मारे कोनो कतको जोर।

देव  दनुज  जेखर  ले  हारे,हारे  धरती  अउ  आकास।
कमर कँसे हे करम करे बर,महिनत हावै ओखर आस।

उड़े बँरोड़ा जरे भोंभरा,भागे तब मनखे सुखियार।
तौन  बेर  मा  छाती  ताने,करे काम बूता बनिहार।

माटी  महतारी  के खातिर,खड़े पूत मजदूर किसान।
महल अटारी दुनिया दारी,सबे चीज मा फूँकय जान।

मरे रूख राई अइलाके,मरे घाम मा कतको जान।
तभो  करे माटी के सेवा,माटी  ला  महतारी मान।

जगत चले जाँगर ले जेखर,जले सेठ अउ साहूकार।
बनके  बइरी  चले पैतरा,मानिस नहीं तभो वो हार।

धरती मा जीवन जबतक हे,तबतक चलही ओखर नाँव।
अइसन  कमियाँ  बेटा  मनके, परे  खैरझिटिया हा पाँव।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

(2)

रूपमाला छन्द- बोधन राम निषाद राज

हाँव मँय  मजदूर संगी,काम  करथौं  जोर।
पेट पालत दिन पहावँव,देश हित अउ मोर।
कर गुजारा रात दिन मँय,मेहनत कर आँव।।
रातकुन के पेज पसिया,खाय माथ नवाँव।।

दिन बितावौं मँय कमावँव,फोर पथरा खाँव।
मेहनत के  आड़ संगी, देश  ला  सिरजाँव।।
चाँद में पहुँचे ग भइया,देख सब जर जाय।
कोन हिम्मत अब ग करही,आँख कोन उठाय।।

अब पसीना हा  चुहत हे,टोर  जाँगर  देख।
भाग हा अब झूकही जी,ए बिधाता लेख।।
मेहनत मा आज देखौ, स्वर्ग  बनगे  खार।
ईंट  से  जी  ईंट  बजगे, देख लव संसार।।

काम  पूजा  मोर  हावै, काम  हे  भगवान।
काम करलौ  आव भाई, काम  हे  ईमान।।
पार नइहे दुःख  के जी,धीर  बाँधव  आव।
एक दिन सुख आय संगी,दुःख जाय कमाव।।

रचनाकार:-
बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहारा
जिला - कबीरधाम (छ.ग.)

(3)

हरिगीतिका छंद - जगदीश "हीरा" साहू

मजदूर अब मजबूर हे, मजधार मा जिनगी लगय।
बड़ दुःख मा परिवार हे, घर छोड़ दूसर मन ठगय।।
अब मान नइहे काम के, कोनो बतावव राह जी।
दे दाम बड़ अहसान कर, लेथे अमीरी आह जी।।1।।

कतको बनाये घर तभो, खुद झोपड़ी मा रहि जथे।
वो घाम पानी जाड़ सब, बाहिर सबो ला सहि जथे।।
जानव अपन कस आज ले, हे आस अब सम्मान दव।।
झन छोड़ पिछवाये डगर, अब संग अपने जान दव।।2।।

जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
छत्तीसगढ़

(4)

मंदारमाला सवैया - बोधन राम निषादराज
मजदूर -

देखौ जमाना कहाँ आज हावै नहीं कोन हे जी चिन्हारी इहाँ।
खाये पिये के हवै जी लचारी गरीबी बढ़े दाम भारी इहाँ।।
दू जून रोटी कमाके ग खावौं फटे हाल हावै अटारी इहाँ।
बाँचे नहीं जी अधेला घलो आज होगेंव महूँ हा भिखारी इहाँ।।

रचना:-
बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम (छ.ग.)

5 comments:

  1. बहुत बहुत बधाई हो
    भाई मन ला

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  2. ।मजदूर दिवस मा अति सुग्घर छंद रचना ।हार्दिक बधाई अउ शुभकामना ।

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  3. बहुत सुन्दर गुरुदेव जी सादर नमन

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  4. वाह्ह वाह शानदार मंदारमाला सवैया भइया जी 🙏🙏

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