बसंत पंचमी विशेषांक-छंद के छ परिवार
बसंत रितु सरसी छंद गीत
द्वारिका प्रसाद लहरे
रितु बसंत दे बर आये हे,जन जन ला उपहार।
हँसी खुशी मा दिन कटही अब,सुख पाही संसार।।
मन भावन मौसम लाये हे,रितु बसंत हा आज।
धरती लागय दुलहिन जइसे,बिकट करे हे साज।।
रंग बिरंगा फूल फुले हे,महकय खेती खार।
रितु बसंत दे बर आये हे,जन जन ला उपहार।।
देख कोइली कुहक कुहक के,गावय सुघ्घर गीत।
मन हर्षावय गुत्तुर बोली,तन मन लेवय जीत।।
पिंवरा पिंवरा आमा मउरे,लहकय झूमय डार।
रितु बसंत दे बर आये हे,जन जन ला उपहार।।
रितु बसंत राजा हा भरथे,तन मन मा उल्लास।
सदा बनाथे जीव जंतु बर,दिन बादर ला खास।।
फागुन हा आये बर अब तो,खड़े हवय तइयार।
रितु बसंत दे बर आये हे,जन जन ला उपहार।।
छंदकार-
द्वारिका प्रसाद लहरे
कवर्धा छत्तीसगढ़
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: बसंत ऋतु - बोधन राम निषादराज
रोला छंद -
देखौ छाय बहार, आय हे गावत गाना।
मन होगे खुश आज,देख के परसा पाना।।
फूले परसा लाल, कोयली बोलय बानी।
गुरतुर लागे बोल,करौं का मँय अब रानी।।
त्रिभंगी छंद -
परसा हा फुलगे,सेम्हर झुलगे,पवन बसंती,आय हवै।
आमा मउरागे,मन हरियागे,सरसो पिँवरी,छाय हवै।।
भुइयाँ बड़ सुग्घर,लागै उज्जर,खींचत मन के,डोर हवै।
करिया कस बादर,आँखी काजर,बाँध मया के,लोर हवै।।
ऋतु बड़ मनभावन,सुघर सुहावन,मन हर्षित चहुँ,ओर लगै।
पाना हरियावत,खार लुभावत,सबो डोंगरी,छोर लगै।।
परसा के लाली,गेहूँ बाली,अरसी सरसो,फूल फभे।
अमुआ के डारा,लहसे झारा,मउर आम के,झूल फभे।।
कोयल के बोली,हँसी ठिठोली,गुरतुर सुग्घर,बास करै।
भँवरा मँडरावय,तितली गावय,फूल-फूल मा,रास करै।।
नदिया के पानी,कहै कहानी,कल-कल-कल-कल,धार बहै।
भुइयाँ हरियाली,मन खुशहाली,मया पिरित के,लार बहै।।
अमृतध्वनि छंद -
हरियाली चारों डहर, आथे माघ बसंत।
सुघर मनाथे पंचमी, होय जूड़ के अंत।।
होय जूड़ के , अंत तहाँ ले, घाम जनाथे।
मातु शारदा,जनम परब ला,सबो मनाथे।।
लइका होली, डाँड़ गड़ा के, बड़ खुशहाली।
दिखथे भुइयाँ,सरग बरोबर,औ हरियाली।।
छप्पय छंद -
देखौ आमा डार, लोर गे हरियर पाना।
झूम-झूम के देख, कोयली गावय गाना।।
आमा मउरे भाय, सबो के मन ललचावै।
देखत जिवरा मोर,खुशी मा नाचय गावै।।
लदलद ले हे मउर हा,भँवरा झूलय डार मा।
आय बसंती देख तो,नाचत हावय खार मा।
कुण्डलिया छंद -
मन हा नाचय झूम के,बढ़िया चलय बयार।
डारा लहसे जात हे,देखौ छाय बहार।।
देखव छाय बहार, आय हे गावत गाना।
मन होगे खुश आज,देख के परसा पाना।।
मैना मारय जोर, कोयली कुहु कुहु बाचय।
महर महर ममहाय,झूम के मन हा नाचय।।
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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: बसंत
अरविंद सवैया- विजेन्द्र वर्मा
अब गावत गीत बसंत इहाँ,अउ नाचत हे मँउहा मतवार।
सब झूमत हे सुन गीत बने,खुशियाँ बरसावत रोज अपार।
खनके सरसों अरसी तिँवरा,मउँरे अमुवा दिखथे मनहार।
पिँवरा पिँवरा तब पात झरे,पुरवा झकझोर करे ललकार।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
जिला- रायपुर
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: बसंत (रोला छ्न्द) - अजय अमृतांशु
आ गे हवय बसंत, देख झूमत हे पाना।
कोयल मारै कूक, मगन हो गावय गाना।।
पींयर सरसो फूल,सबो के मन ला भावय।
अमली ला इतरात, देख आमा बउरावय।।
बेंदरा करय कमाल, कूद के डारा डारा।
भौंरा गीत सुनाय, घूम के आरा-पारा।।
मुच् मुच् मुच् मुस्काय,गहूँ के सुग्घर बाली।
परसा आग लगाय,दिखत हे लाली लाली।।
आवत देख बसंत, फूल सेम्हर के फ़ूलय।
कपसा हा बिजराय,डार मा मुनगा झूलय।।
तिंवरा बटर मसूर, हाँस के करयँ ठिठोली।
झमकत हे राहेर,चना के खन खन बोली।।
अजय अमृतांशु
भाटापारा ( छत्तीसगढ़ )
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वर दे माँ शारदे (सरसी छन्द)
दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।
गुण गियान यश जश बढ़ जावय,बाढ़ै झन अभिमान।
तोर कृपा नित होवत राहय, होय कलम अउ धार।
बने बात ला पढ़ लिख के मैं, बढ़ा सकौं संस्कार।
मरहम बने कलम हा मोरे, बने कभू झन बान।
दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।
जेन बुराई ला लिख देवँव, ते हो जावय दूर।
नाम निशान रहे झन दुख के, सुख छाये भरपूर।
आशा अउ विस्वास जगावँव, छेड़ँव गुरतुर तान।
दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।
मोर लेखनी मया बढ़ावै, पीरा के गल रेत।
झगड़ा झंझट अधम करइया, पढ़के होय सचेत।
कलम चले निर्माण करे बर, लाये नवा बिहान।
दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।
अपन लेखनी के दम मा मैं, जोड़ सकौं संसार।
इरखा द्वेष दरद दुरिहाके, टार सकौं अँधियार।
जिया लमाके पढ़ै सबो झन, सुनै लगाके कान।
दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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*बसंत ऋतू हा आगे (घनाक्षरी छंद)*
हरियर खेती खार , छाये हावै जी बहार ।
देख तो बसंत राजा , आज मुसकात हे ।।
आमा हा मउँर धरे , सरसो उमंग भरे ।
फूल मन फुले भारी , बड़ ममहात हे ।।
परसा हा पोठ फुले , देख आँखी आँखी झूले ।
कोयली के संग आज , भौरा परघात हे ।।
कुहूँ कुहूँ कुहकत , कोयली हा डारा डारा ।
बसंत हा आगे कहि , सबला बतात हे ।।
बसंत बहार आगे , धरती हा हरियागे ।
धान गहूँ सरसो हा , पोठ लहरात हे ।।
हरियर रुखराई , नवा नवा पाना धरे ।
धरती दाई के देख , शोभा ला बढ़ात हे ।।
मनके मंजूर नाचे , आज संगी झूम झूम ।
बसंत ऋतू हा आगे , सबो ला सुहात हे ।।
राजा रानी बन आज , परसा आमा हा माते ।
देख देख शोभा ला जी , बड़ मन भात हे ।।
*मयारू मोहन कुमार निषाद*
*गाँव - लमती , भाटापारा ,*
*जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)*
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बसन्त ऋतु-घनाक्षरी
अमरइया मा जाबों,कोयली के संग गाबो
चले सर सर सर,पुरवइया राग मा।।
अरसी हे घमाघम,चना गहूँ चमाचम
सरसो मँसूर धरे,मया ताग ताग मा।
अमली झूलत हवै,अमुवा फुलत हवै,
अरझ जावत हवै,जिवरा ह बाग मा।
रौंनिया म माड़ी मोड़,पापड़ चना ल फोड़
खाबों तीन परोसा गा,सेमी गोभी साग मा।
जब ले बसंत लगे,बगुला ह संत लगे
मछरी ल बिनत हे, कलेचुप धार मा।।
कोयली के कूक भाये, पुरवा जिया लुभाये
लाली रंग रंगत हे, परसा ह खार मा।।
खेत खार घर बन,लागे जैसे मधुबन
तरिया मा मुँह देखे,बर खड़े पार मा।।
बसंत सिंगार करे,खुशी दू ले चार करे
लइका कस धरती ह,हाँसे जीत हार मा।।
दोहा-
परसा सेम्हर फूल हा,अँगरा कस हे लाल।
आमा बाँधे मौर ला,माते मउहा डाल।1।
पुर्वाही सरसर चले,डोले पीपर पात।
बर पाना बर्रात हे,रोजे दिन अउ रात।2।
खिनवा पहिरे सोनहा,लुगरा हरियर पान।
चाँदी के पइरी सजा,बम्हरी छेड़े तान।3।
चना गहूँ माते हवै,नाचे सरसो खेत।
अरसी राहर लाखड़ी,हर लेथे सुध चेत।4।
नाचत गावत माँघ मा,आथे देख बसन्त।
दुल्हिन कस लगथे धरा,छाथे खुशी अनन्त।5।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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छंदकार-शोभामोहन श्रीवास्तव
छंद-हरिगीतिका
सरस्वती दाई के सुमरनी
१/
बीना धरे हस हाथ मा,साजे मुकुट अउ माथ मा ।
गनपति बिराजत छेंव कर,अउ माँझ लक्ष्मी साथ मा ।
तैं हाथ मा पुस्तक धरे,बइठे कमल के फूल मा,
करधन सजे पैजन बजे, मोती जड़े हे झूल मा ।
२/
नथली फभत हे सोनहा, मुंँदरी सुघर अँगरी लगत,
गर हार दुलरी तीलरी, चूरी रगड़र कंगन बजत ।
अँधियार मनके टारथस,गुन ग्यान दियना बारथस।
संसार के दुख मेट के, मन कुंदरा ला झारथस।
३/
सुर ला सजा धुन ला बजा, संगीत सिरजाथस तहीं,
भव पार बर पतवार बन,जग नाच नचवाथस तहीं।
मन नाद अनहत ला बजा,साधक सुजन ला तारथस,
बस मध्यमा अउ वैखरी, दुख ताप संकट टारथस ।।
शोभामोहन श्रीवास्तव
१६/०२/२०१९
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*बागेश्वरी सवैया*
*शारदा माई*
फभे रंग सादा धरे हाथ वीणा विराजे सदा श्वेत हंसा रहे।
सजे राग छेड़े हवे तार झंकार संसार मा ज्ञान गंगा बहे।
बने मूढ़ ज्ञानी भरे ज्ञान भंडार जेहा दुवारी म आके गहे।
दिये कंठ कोंदा उबारे तही शारदा माँ इही वेद ज्ञानी कहे।
चित्रा श्रीवास
बिलासपुर छत्तीसगढ़
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छबि छन्द - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
"आ गे बसंत"
आ गे बसंत।
छा गे बसंत।
कहिदिन तुरंत।
कवि साधु संत।
ऋतुराज यार।
तैं सुख दुवार।
रस के फुहार।
मन के तिहार।
रसराज मोर।
तैं अस निपोर।
चोला ल मोर।
रस मा चिभोर।
गमकाय मोर।
सुनसान खोर।
डोंगर पहार।
घर खेत खार।
जम्मो जुगाड़।
भइगिस कबाड़।
सुनके दहाड़।
बिलमिस न जाड़।
स्वागत म तोर।
ऋतुराज मोर।
नाचय सनान।
सरसों जवान।
हे आस मोर।
परियास मोर।
झूलॅंव ग तोर।
बइहॉं म लोर।
सुनलव हुजूर।
आहव जरूर।
बटकर मसूर।
होही ग चूर।
अब गॉंव गॉंव।
होही बिहाव।
आही बरात।
दिन सॉंझ रात।
पगरइत मोठ।
ओसात गोठ।
धरही सहेज।
पचहर दहेज।
माथा म काल।
परसा गुलाल।
देही ग सार।
होगे तिहार।
-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
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गजब सुग्घर संग्रह
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