देवारी परब विशेष छंदबद्ध कविता
*सरसी छंंद*
अनुज छत्तीसगढिया
*(१)*
जगमग दीया के देवारी, आथे बने तिहार।
लीप-पोत के फूल सजाथें, घर अँगना अउ द्वार।।
सबो जलाथें देवारी मा, दीया ओरी-ओर।
गली-खोर दिखथे चकचक ले, चारों मुड़ा अँजोर।।
लक्ष्मी दाई के पूजा कर, करथें सब गुणगान।
नरियर अउ फल-फूल चढ़ाके, लेथें धन वरदान।।
*(२)*
करौ दिखावा झन तुम संगी, देवारी के नाम।
चीज अगरहा अब झन लेवव , जेकर नइ हे काम।।
मया बाँट के देवारी मा, भेदभाव लौ टार।
बारौ दीया ओखर घर मा, जेन हवय लाचार।।
झन फोड़व गा तुमन फटाका, पर्यावरण बचाव।
सबो सादगी ले देवारी, मिलके बने मनाव।।
*अनुज छत्तीसगढ़िया*
पाली जिला कोरबा
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सरसी छंद-संगीता वर्मा
देवारी
धन तेरस मा यम के दियना,जुरमिल सुघर जलाव।
चौदस मा सब बड़े बिहनिया,उबटन सबो लगाव।।
माँ लक्ष्मी के कृपा बरसही,मिलही तब धन-धान।
दीप जलावव मानवता के,पाहू बड़ सम्मान।।
साफ सफाई कचरा कोरा,मनखे मन ले झार।
माँ लक्ष्मी हा तभे विराजे,दिखे साफ घर द्वार।।
गली खोर अउ धनहा डोली,दिखही बने उजास।
जगमग जगमग दीप जलाहू,होही पूरी आस।।
हवय बधाई देवारी मा,देवव मया दुलार।
सबे खूँट दियना जगमग हो, होवय जग उजियार।।
आगे हावय देवारी अब,सजगे हे बाजार।
किसिम-किसिम के जिनिस हवय जी,अउ लक्ष्मी के हार।।
चंदैनी कस रिगबिग रिगबिग,दियना के भरमार।
रंग-रंग के रंगोली मा,सजत हवय घर द्वार।।
संगीता वर्मा
अवधपुरी भिलाई
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दुर्मिल सवैया- गुमान प्रसाद साहू
।।राम घर आगमन।।
सजगे अँगना घर खोर गली सब मंगल दीप जलावत हे।
बनवास बिता रघुनन्दन राम सिया अउ लक्ष्मण आवत हे।
खुश हे जनता नगरी भर के प्रभु के जयकार लगावत हे।
सब देव घलो मन फूल धरे प्रभु के पथ मा बरसावत हे।।
साधक सत्र- 6
गुमान प्रसाद साहू
ग्राम- समोदा (महानदी),रायपुर
छत्तीसगढ़
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विजेन्द्र: घनाक्षरी
सब ला जय जोहार,आय हावय तिहार।
नवा राज के बने ले,मन मुसकात हे।
हमर राज के शान,गुरतुर बोली जान।
हवै अबड़ मिठास,मया ला बढ़ात हे।
संस्कृति अउ संस्कार, बोहावत मया धार।
ए माटी ला सब झन,तिलक लगात हे।
हरे धान के कटोरा,मोर भुइयाँ के कोरा।
लोहा कोइला हीरा हा,भाग चमकात हे।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
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विजेन्द्र: सरसी छंद
परब आय हे सुघर देवारी,बाँटव सब ला प्यार।
परहित सेवा मा अरपन हो,जिनगी के दिन चार।।
जले ज्ञान के दीप सुघर जी,होय जगत उजियार।
येकर लौ मा सबो जघा ले,भागय द्वेष विकार।।
काम क्रोध मद लोभ मोह मा,डूबव झन तो आज।
बना मुक्ति के मारग अपने,करके जन हित काज।।
नदियाँ नरवा कस छलकय बड़,मया पिरित के धार।
लहर लहर लहरावय जइसे,हरियर खेती खार।।
धन्य धन्य हो जावयँ भुइयाँ, भाई चारा देख।
लामे राहय सुमता डोरी,गढ़व अइसन लेख।।
मानुष तन भागी ला मिलथे,मत बन तँय अनजान।
सत के रसता धरे चलव अउ,दीप जलावव ज्ञान।।
नाँव इहाँ दियना के होथे,बाती हा जलथे हर बार।
नमन करत अउ जलय तेल हा,दियना के जयकार।।
अपन अपन किस्मत हावय जी,मिलके करव अँजोर।
जउँने महिनत करथे जग मा,होथे वोकर शोर।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव (धरसीवाँ)
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घनाक्षरी- जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
कातिक के अँधियारी, चमकत हवै भारी।
मन मोहे सुघराई, घर गली द्वार के।।
आतुर हे आय बर, कोठी मा समाय बर।
सोनहा सिंगार करे, धान खेत खार के।।
सुखी रहे सबे दिन, मया मिले छिन छिन।
डर जर दुख दर्द, भागे दूर हार के।।
मन मा उजास भरे, सुख सत फुले फरे।
गाड़ा गाड़ा हे बधाई, देवारी तिहार के।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
देवारी त्यौहार के, होवत हावै शोर।
मनखे सँग मुस्कात हे, गाँव गली घर खोर।
गाँव गली घर खोर, करत हे जगमग जगमग।
करके पूजा पाठ, परे सब माँ लक्ष्मी पग।
लइका लोग सियान, सबे झन खुश हे भारी।
दया मया के बीज, बोत हावय देवारी।
भागे जर डर दुःख हा, छाये खुशी अपार।
देवारी त्यौहार मा, बाढ़े मया दुलार।।
बाढ़े मया दुलार, धान धन बरसे सब घर।
आये नवा अँजोर, होय तन मन सब उज्जर।
बाढ़े ममता मीत, सरग कस धरती लागे।
देवारी के दीप, जले सब आफत भागे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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कुंडलिया (सुरहुत्ती)
सुरहुत्ती मा सुर मिलय, मिलय सबो के राग।
चिटिक कनो छरियाय झन, रहय मया के पाग।
रहय मया के पाग,करी के लाड़ू जइसन।
मिलय खुशी भरमार,नँगत उत्साह भरे मन।
लक्ष्मी आय दुवार, सुरुज सुख लावय उत्ती
धन दौलत शुभ लाभ,दून देवय सुरहुत्ती।
आप सब ला सुरहुत्ती (लक्षमी पूजा) के नँगत नँगत बधाई।
-मनीराम साहू 'मितान'
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बहुत सुग्घर देवारी छन्द संकलन
ReplyDeleteसुग्घर संकलन
ReplyDeleteबहुत बढ़िया छंद Firstgyan
ReplyDeleteगजब सुघ्घर, देवारी तिहार के आनी बानी के छंद खजना।
ReplyDeletehttps://chahalkadami.blogspot.com/2021/11/cg-fes.html