घनाक्षरी
सब ला जय जोहार,आय हावय तिहार।
नवा राज के बने ले,मन मुसकात हे।
हमर राज के शान,गुरतुर बोली जान।
हवै अबड़ मिठास,मया ला बढ़ात हे।
संस्कृति अउ संस्कार, बोहावत मया धार।
ए माटी ला सब झन,तिलक लगात हे।
हरे धान के कटोरा,मोर भुइयाँ के कोरा।
लोहा कोइला हीरा हा,भाग चमकात हे।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
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डी पी लहरे: सार छन्द गीत
हमर राज के भुँइयाँ संगी,सरग बरोबर लागे।
जनम पाय हन ए माटी मा,भाग सबो के जागे।।
हमर राज के बोली भाखा,अंतस मा बड़ पोहय।
पंथी करमा सुवा ददरिया,सबके मन ला मोहय।।
छत्तीसगढ़ी संस्कृति हा,सउँहे जग मा छागे।
हमर राज के भुँइयाँ संगी,सरग बरोबर लागे।।
चटनी बासी खाके संगी,जाँगर टोर कमाथन।
धान कटोरो तभे कहाथे,धान बिकट उपजाथन।।
बंपर उत्पादन ले अब तो,तन मन हा हरियागे।
हमर राज के भुँइयाँ संगी,सरग बरोबर लागे।।
आनी-बानी इहाँ परब ला,जुरमिल बने मनाथन।
भेद-भाव मन मा नइ राखन,दया मया बरसाथन।।
आगर झलके दया-मया ले,बैर- भाव दुरिहागे।।
हमर राज के भुँइयाँ संगी,सरग बरोबर लागे।।
जंगल झाड़ी नदी पहाड़ी,मन भावन फुलवारी।
किसम किसम के माल खजाना,उत्पादन हे भारी।
होवत हे बड़ इहाँ तरक्की,नवा सुरुज हा आगे।
हमर राज के भुँइयाँ संगी,सरग बरोबर लागे।।
डी.पी.लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
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: मनहरण घनाक्षरी - बोधन राम निषादराज
*छत्तीसगढ़ महतारी*
हरियर खेती खार, बने डोंगरी पहाड़,
दुलहिन कस दिखै, दाई के सिंगार हा।
सोना चाँदी हीरा मोती,जेती देखौ तेने कोती,
अन्न धन सबो इहाँ, भरे हे भंडार हा।।
इहाँ छत्तीसगढ़िया, दुनिया ले हे बढ़िया,
मानत हे लोहा देखौ, जम्मों संसार हा।
बाँधा बने बड़े बड़े,बिजली के खम्भा गड़े,
जगमग गली - खोर, चमकै दुवार हा।।
बोधन राम निषादराज🙏
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छत्तीसगढ़ महतारी
(लावणी छंद)
झलकत हे इक्कीस बरस के, तोर तेज हा मुखड़ा मा।
माथ मटुकिया रुपिया सूँता, बहुँटा अउ हाथ कड़ा मा।
अरपा पैरी महानदी के, निरमल पानी गुन गाथे।
बस्तर के घन छँइहा बइठे, सुख हा सिरतो सुख पाथे।
राजिम सिरपुर अउ गिरौद मा, महिमा के चिनहा भारी।
चंद्रखुरी के रहिस दुलौरिन, रामचंद्र के महतारी।
माँ गंगा झलमला बिराजे,धाम रतनपुर महमाई।
राँवाभाँठा के बंजारी,डोंगरगढ़ के बमलाई।
हे खदान करिया सोना के, भंडार भरे लोहा के।
जगा जगा सिरमिट के पथरा, मिल हे उसना पोहा के।
छलकत रइथे धान कटोरा, भरे भरे कोठी रहिथे।
भाईचारा अउ सुन्ता के,फुरहुर पुरवइया बहिथे।
करमा सीख करम के देथे, दरद ददरिया हा हरथे।
राउत नाँच सुआ पंथी हा, अंग अंग मा रस भरथे।
रीत रिवाज सबे हे सुंदर, मँदरस कस मीठा बोली।
तीजा पोरा परब हरेली,देवारी झमकत होली।
निसदिन जाँगर पेर कमइया, हे सपूत सरु हलधरिया।
मन के उज्जर सच के संगी, भले हवै तन हा करिया।
तोर पाँव मा माथ नवावँव,मोर छत्तीसगढ़ महतारी।
अबड़ फबे धाने के बाली, देवी तैं हँसिया धारी।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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सार छन्द - श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
राज्योत्सव गीत
छत्तीसगढ़ के महिमा गौरव, पढ़व-लिखव अउ गावव।
आ गय एक नवम्बर उत्सव, परब तिहार मनावव।
छत्तीसगढ़ पावन माटी मा, होइन ज्ञानी ध्यानी।
साधू संत समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी।
पॅंउरी मा उनकर श्रद्धा के, आरुग फूल चढ़ावव।
आ गय एक नवम्बर उत्सव, परब तिहार मनावव।
महिनत के ममहावत माटी, धुर्रा लागय चंदन।
सुमता के सुखसागर एला, हावय सौ-सौ बंदन।
धन हे धान कटोरा जस ला, दुनिया मा बगरावव।
आ गय एक नवम्बर उत्सव, परब तिहार मनावव।
परब हरेली तीजा पोरा, सुरहुत्ती देवारी।
गुरू जयन्ती मानौ जे छत्तीसगढ़ राज-चिन्हारी।
खुरमी चवसेला गुड़ चीला, फरा ठेठरी खावव।
आ गय एक नवम्बर उत्सव परब तिहार मनावव।
नॉंगर बइला साजौ बॉंधौ, ये नवनसिया ट्रैक्टर।
दउरी बेलन फॉंदौ नइते, ले लानव हार्वेस्टर।
करही मदद मशीन महाबल, खुश हो मजा उड़ावव।
आ गय एक नवम्बर उत्सव, परब तिहार मनावव।
धरम-करम के उज्जर कारज, होवय गॉंव-गली मा।
जिनगानी सद्भाव सुमत धर, गुजरय हली-भली मा।
सुवा-गीत करमा पंथी गा, नाच भुजा मटकावव।
आ गय एक नवम्बर उत्सव, परब तिहार मनावव।
छत्तीसगढ़ मइयॉं के पइयॉं, इंद्रावती पखारय।
अरपा पैरी महानदी मन ॲंजुरी मा जल ढारॅंय।
हाथ बढ़ा के भक्ति चढ़ा के, चरणामृत ला पावव।
आ गय एक नवम्बर उत्सव,परब तिहार मनावव।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस के बहुत बहुत बधाई।।
छत्तीसगढ़ी बानी(लावणी छंद)- जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।
पी के नरी जुड़ा लौ सबझन, सबके मिही निशानी अँव।
महानदी के मैं लहरा अँव, गंगरेल के दहरा अँव।
मैं बन झाड़ी ऊँच डोंगरी, ठिहा ठौर के पहरा अँव।
दया मया सुख शांति खुशी बर, हरियर धरती धानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।।।।।
बनके सुवा ददरिया कर्मा, माँदर के सँग मा नाचौं।
नाचा गम्मत पंथी मा बस, द्वेष दरद दुख ला काचौं।
बरा सुँहारी फरा अँगाकर, बिही कलिंदर चानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।
फुलवा के रस चुँहकत भौंरा, मोरे सँग भिनभिन गाथे।
तीतुर मैना सुवा परेवना, बोली ला मोर सुनाथे।
परसा पीपर नीम नँचइया, मैं पुरवइया रानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।
मैं गेंड़ी के रुचरुच आवौं, लोरी सेवा जस गाना।
झाँझ मँजीरा माँदर बँसुरी, छेड़े नित मोर तराना।
रास रमायण रामधुनी अउ, मैं अक्ती अगवानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।
ग्रंथ दानलीला ला पढ़लौ, गोठ सियानी धरलौ जी।
संत गुणी कवि ज्ञानी मनके, अंतस बयना भरलौ जी।
मिही अमीर गरीब सबे के, महतारी अभिमानी अँव।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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लावणी छंद गीत- दिलीप कुमार वर्मा
पुरखा मन के सपना दाई, आवत बेरा लागिस ओ
एक नवम्बर दो हजार के, भाग हमर हर जागिस ओ।
छत्तीसगढ़ हे नाम ह दाई, छत्तीसगढ़ही बोली हे।
तोर अंग मा पर्वत जंगल, धनहा भाठा डोली हे।
छत्तीसगढ़िया के मिहनत ले, घोर अँधेरा भागिस ओ।
हरियर लुगरा तन मा पहिरे, अछरा हर लहरावत हे।
सुआ ददरिया कर्मा पंथी, पडकी मैना गावत हे।
नाचत कूदत जिनगी लागे, अब सुराज हर आगिस ओ।
तोर सवाँगा खातिर दाई, गाँव सड़क चमकावत हन।
तोर प्यास बर पानी खातिर, नदिया बांध बनावत हन।
तोर दिए हीरा लोहा ले, कोठी हमर भरागिस ओ।
कोना-कोना के विकास बर, जिला बने बत्तीस हवय।
पर बस्तर अबतक नइ सुधरे, तेखर हमला टीस हवय।
अपने भाई बहिनी ऊपर, गोला काबर दागिस ओ।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार
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.हेम के कुकुम्भ छंद
जय छत्तीसगढ़ मोर माटी, जग बर हावच वरदानी।
सबले बढ़िया तोला कहिथे, तोरो हे गजब कहानी।।
सब दुख पीरा तही हरैया, तोला सब माथ लगाथे।
तोर शरण मा रहिके दाई, सुघ्घर जिनगी ल पहाथे।।
तोर हवे ये भुइँया पावन, बसे देवता अउ धामी।
गाँव गाँव माहामाया अउ, बसे राम अन्तर्यामी।।
घर घर रामायण बाचत हे, बहे ज्ञान गंगा गीता।
पावन हवे इहाँ के नारी, पूजे जस लक्ष्मी सीता।।
बगरे हावय खनिज सम्पदा, देख इहाँ कोना कोना।
हीरा मोती के खदान हे, भरे पड़े चाँदी अउ सोना।।
कतको हावय बड़का बड़का, देखव इहाँ कारखाना।
काम करे बाहर ले आवय, इहाँ बनावय ग ठिकाना।।
देख कला संस्कृति ला सँजोय, पावन हवे तोर माटी।
तोरच कोरा मा लइका मन, खेलय भँवरा अउ बाँटी।।
रंग बिरंगी चिरई चिरगुन, जिनकर गुरतुर हे बोली।
आनी बानी के जीव जन्तु, पाबे तँय टोली टोली।।
नाचा गम्मत लोगन मनके, देख खूब मन ला भावे।
सुवा ददरिया करमा पंथी, राग भरथरी जब गावे।।
मातर मड़ई मेला बर जी, गाँव गाँव राउत जागे।
नाच नाच के पारे दोहा, कतका सबला निक लागे।।
धान चना गेहूँ उपजाथस, अउ उपजाथस उँनहारी।
जय छत्तीसगढ़ मोर माटी, महिमा हवे तोर भारी।।
सबले बढ़िया तोला कहिथे, तोरो हे गजब कहानी।।
जय छत्तीसगढ़ मोर माटी, जग बर हावच वरदानी
-हेमलाल साहू
छंद साधक सत्र -1
ग्राम-गिधवा, पोस्ट नगधा
जिला बेमेतरा (छ. ग.)
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छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के गाड़ा गाड़ा बधाई।
दया मया के बँधना बाँधव,मँदरस कस रस घोरव।
मत हिचकौ अब तुमन भइया,छत्तीसगढ़ी मा बोलव।
राज आय हे काज होवय जी,मिलै नवा पहिचान।
बोली भाखा हमर राज के,पावय सुग्घर मान।
आखर आखर जोड़ जोड़ के,भाखा करिन सजोर।
साहित के दुनिया मा बगरै,छत्तीसगढ़ी भाखा के शोर।
मान बढ़ाथे महतारी के,हमर छत्तीसगढ़ी बोल।
अंतस मा अब रचे बसे हे,कखरो से झन तोल।
पढ़े लिखे हन इही माटी मा,बघारव झन गा अब सेखी।
इहें तुँहर गड़े हे नेरवा,करव झन गा अनदेखी।
जेकर कोरा मा बइठे हे,धरती के भगवान।
ओ भुइँया ला माथ नवाथन,जम्मो येकर संतान।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
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*हमर छतीसगढ़ी महतारी के नवा रूप के कुकुभ छंद में कल्पना*
नवा सँवागा मा निखरत हे,छतीसगढ़ी महतारी ।
रूप देख के तोरे दाई,मँय जावँव ओ बलिहारी ।1
एक हाथ मा ज्ञान धरे हे,एक हाथ मा बाली हे।
धान कटोरा भरे लबालब,सबो डहर खुशहाली हे।2
कलम सियाही धरके दाई,तहुँ हर वेद रचाए ओ।
आखर आखर मंत्र बनत हे,सबके मन ला भाए ओ।3
तँय हिंदी के राज दुलौरिन ,राज तिलक होवत हावै।
बड़े बड़े ज्ञानी पंडित मन, महिमा तोर लिखत हावैं। 4
अमरित तोरे जिभिया भीतर,कंठ कोयली के बानी।
मस्तुरिया के गीत गोठ मा ,तोरे ओ अमर कहानी।5
कब तक चुप रहिबे वो दाई,मंत्र ज्ञान हे कोरा मा।
जागत हे तोरे बेटा मन,भरही सुख अब बोरा मा।6
मुकुट पहिनबे हीरा के वो,सँथरा मा राजा थारी।
महर महर अँगना ममहाही ,गहदत हे अब फुलवारी।7
आशा देशमुख
एनटीपीसी कोरबा
छतीसगढ़
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बहुते सुघ्घर गाड़ा गाड़ा बधाई
ReplyDeleteबड़ सुग्घर संकलन 🌷🌷🌷🙏
ReplyDeleteजय हो छत्तीसगढ़ महतारी
ReplyDeleteएक से बढ़कर सृजन,हार्दिक बधाई
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