Followers

Wednesday, September 18, 2024

त्रिभंगी छंद स्तुति-हर-हर महादेव

 त्रिभंगी छंद

स्तुति-हर-हर महादेव 


हे महादेव शिव,शंकर भोले,घट-घट वासी,देव तहीं।

सुशरण अविनाशी,नीलकंठ तँय,देव दनुज के,नेंव तहीं। 

हे मन बलिहारी,महाकाल तँय,सबके दुख के,काट तहीं। 

वय गुणग्राही अणु,आदि अनंता,भूप उमापति,भाट तहीं।। 


हे तांडव रनता,मुक्तिमाल प्रभु,अंग लपेटे,खाल पटा। 

विश्वेश्वर गिरिवर,डमरू धारी,तोर मूड़ भर,जाल जटा।

हे देवेश्वर प्रभु,जय हो जय हो,अजर-अटल तँय,कल्प महा। 

औघड़ अवदूता,सर्वेश्वर तँय,तोर कृपा ले,दुष्ट ढहा। 


हे धुनी रमइया,ज्ञान गम्य निधि,चन्द्र भाल मा,गजब फभे। 

मिलथे वरदानी,करंताल के,हर-हर के कर,जाप तभे। 

हे भुजंग भूषण,हिरण्यरेता,हवि गिरिश्वर,महाबला। 

अज सोम सदाशिव,तोर कृपा ले,कतको संकट,जाय टला।। 


हे व्योमकेश मृड,खण्डपरशु हवि,त्रयीमूर्ति प्रभु,नाथ तहीं। 

शाश्वत सात्विक तँय,पशुपति देवा,देथस सब ला,साथ तहीं। 

हे अनंत तारक,परमेश्वर भव,मृत्युंजय के,जाप तहीं। 

जग शंभु जगत गुरु,हे शशि शेखर,दुष्टन मन बर,श्राप तहीं।। 


हे शर्व दिगंबर,महासेन तँय,दया-मया के,छाँव तहीं। 

कवची मृगपाणी,ललाटाक्ष अउ,पाशविमोचन,नाँव तहीं। 

हे त्रिलोकेश तँय,भक्तवत्सला,उग्र शिवा प्रिय,रूप धरे। 

सुरसूदन गृहपति,सहस्रपाद तँय,अंतस के दुख,ताप हरे।। 


हे वीरभद्र प्रभु,सुभग अनीश्वर,कष्ट भक्त के,खुदे सहे

जे दक्षाध्वरहर, सहस्रसाक्ष हरि,परमात्मा के,नाम कहे। 

हे भीम कृपा निधि,दक्ष महेश्वर,शेषनाग गर,धार करे। 

गिरिप्रिय गिरिधन्वा,पुराराति नित,जीव जगत के,ध्यान धरे।।


हे विरूपाक्ष सम,हे कामारी,सबके सुनथस,इहाँ व्यथा। 

तँय नाथ अंबिका,स्वामी बनके,सुघर सुनाये,राम कथा। 

हे गंगाधर गिरि,गोचराय पटु,भूत प्रेत सब,तोर बला। 

भोले खटवांगी,जग के हितवा,बड़ निरमोही,आय भला।। 


हे श्मशान वासी,तँय समदर्शी,साथ शक्ति हे,पारबती। 

तँय पुष्कर लोचन,गौरीभर्ता,ईश पिनाकी,मदन मती। 

हे विमल निरंजन,हे दुख भंजन,सबके पालन,हार हरौ। 

हे विश्वरूप रवि,विषवाहन धव,अचल विरोचन,सार हरौ।। 


हे नन्दीश्वर शुचि,सुखी सोमरत,गति ज्योतिर्मय,हाथ तहीं। 

जय सुरेश भूशय,एक बंधु ध्वनि,महाकोश ध्वनि,नाथ तहीं। 

हे महेश भूपति,भूतपाल विभु,महाचाप खग,शान्त तहीं। 

वरगुण सहयोगी,नित्य सुलोचन,महाकोप अउ,कान्त तहीं।। 

विजेंद्र कुमार वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

छत्तीसगढ़ के छत्तीस ले जादा गारी मिलही ये रचना मा। *विधा -जयकारी छंद* *गारी*

 छत्तीसगढ़ के छत्तीस ले जादा गारी मिलही ये रचना मा।

*विधा -जयकारी छंद*

*गारी*

पउवा बोतल आवय रास।घर ले निकलय ले सन्यास।।

बइहा भुतहा कस भकवाय।मद मउँहा मा रहै सनाय।।


निच्चट सिधवा हे माँ बाप। पुत बनगे हे अउ अभिशाप।।

हरहा कस घूमे दिन रात। लागय नइ गा बानी बात।।


नकटा कुटहा सुटहा चोर। झाँकत रहिथे अँगना खोर।।

हवय बेशरम निचट अलाल।घर के कर दिस बारा हाल।।


झूठ-लबारी दिन भर मार। ननजतिया के संगत झार।।

छल परपंची येकर चाल। लंपट ले भकला बेहाल।।


खोरगिंजरा नाँव धराय। भड़वा कतका गारी खाय।।

लोभी लुच्चा तको कहाय। भइसा जइसे गा पगुराय।।


गड़ऊना के सत्यानाश।किरहा गर मा लेलय फाँश।।

महतारी के गारी मार। चुतिया के नइ जाय विकार।।


जकला बेर्रा मुँह ला फार। खाये बोजे बर तैयार।।

जुटहा पर के पतरी चाट। कुकुर बने हे चारण भाट।।


दुब्बर बर दू हवय असाढ़। जीव रखे बर पींयत माढ़।।

सुसवा अनसुरहा चंडाल।काय फरक हे पड़े अकाल।।


महतारी के मरना ताय। लाज शरम पुत बेचे खाय।।

अड़हा अड़हिन खुदे कहाय। गदहा ला तो रिहिस पढ़ाय।।


बबा कहै गा हरामखोर।अरे भोकवा साले चोर।।

धरे मंदहा मन के संग।मरहा के रंगत मा रंग।।


हिजड़ा तँय हर चाल सुधार।जकला बन झन समे गुजार।।

मानुष तन के महिमा जान।लबरा कर सबके सम्मान।।


हवस करमछड़हा बइमान।जग जाहिर हे तँय अब जान।।

उल्लू कस गा जागे रात।लतखोर रोज खाथस लात।।


धुर्त रोगहा कर कुछ काज। लगे थोरको नइ गा लाज।।

छोड़ दोगला मन के साथ। काम-बुता मा दे अब हाथ।।

विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव (धरसीवाँ)

जय श्री गणेश -जयकारी

 जय श्री गणेश -जयकारी 

हे गणनायक हे गणराज।मोर बना दव बिगड़े काज।।

हाथ जोर के करँव गुहार। भवसागर ले तहीं उबार।।


मंगलकारी पालनहार।तोरे जय हो जय-जय कार।।

जेन शरण मा आवय तोर।उँकर भाग हा होय अँजोर।।


ज्ञान बुद्धि बल जन के देव।तोरे ले जिंनगी के नेंव।।

हरहू मोरो मन के क्लेश।शिव गौरी के पुत्र गणेश।।


प्रथम पुज्य बड़का तँय देव।मोरो अरजी ला सुन लेव।।

अइसे मोला दव वरदान। दुनिया मा बाढ़य गा शान।।


सुखी रहय सब घर परिवार।इही अरज गा हवय हमार।।

भक्ति भाव ले करँव पुकार।कभू फसँव झन मँय मझधार।।

विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव (धरसीवाँ)

फूल के नाम -जयकारी छंद

 फूल के नाम -जयकारी छंद 

चंपा गुड़हल सदाबहार।गेंदा के बनथे गा हार।।

नर्गिस नारंगी मन भाय।लिली माधवी बड़ मुसकाय।।


अगस्त्य अर्जुन फूल गुलाब।नीलकमल खिलथे तालाब।।

कामलता बनफूल कनेर। सूर्यमुखी हा आँख तरेर।।


राई मुनिया हरसिंगार।सुघर कामिनी मन मतवार।।

रजनी गंधा अउ कचनार।देवकली के रूप निहार।।


फूल सावनी मुच-मुच हाँस।तारक बचनाग अमलतास।।

रक्त केतकी जूही फूल। सत्यानाशी शूल अकूल।।


ब्रम्ह कमल अउ बूगनबेल।माथ चमेली के मल तेल।।

असोनिया अउ सफेद आक। चन्द्र मोगरा शोबी ढाक।।


नील गुलैंची मुसली फूल।खिल-खिल हाँसत हावय झूल।।

छुईमुई हर लाज लजाय।मूंग मालती मया जगाय।।


हे गुलमोहर के बड़ नाम।फूल चाँदनी नोहय आम।।

गुलेतुरा लेवेंडर कोन।कुकरोधा केसर हे सोन।।


चील आँकुरी द्रोप सिरोय।झुमका मौली मा मन खोय।।

अपराजिता बसंती कुंद।मून महकनी अउ मुचकुंद।।


गुलखैरा होथे गा खास।फूल केवड़ा बाँधय आस।।

डहेलिया बागों मा शान।कौआ कानी ला पहचान।।


सेवंती हे रंग बिरंग।महिमा मन मा भरे उमंग।।

सीता अशोक मुर्गा लाल।जुनबेरी ला देख निहार।।


आर्किड अमला कुकु ब्लूस्टार।सुघर अबोली के परिवार।।

फूल धतूरा शिव ला भाय।सुघर रातरानी ममहाय।।


ऐस बकाइन घंटी फूल।बजय नहीं झन देवव तूल।।

तितली कोरल क्रोकस कान।सिला केरिया खसखस जान।।


मंकी फ्लावर गार्डन गेट।बर- बिहाव मा होथे भेंट।।

गुब्बारा बाटल ब्रस जान।नाव तको अइसन हे मान।।

विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव (धरसीवाँ)