छत्तीसगढ़ के छत्तीस ले जादा गारी मिलही ये रचना मा।
*विधा -जयकारी छंद*
*गारी*
पउवा बोतल आवय रास।घर ले निकलय ले सन्यास।।
बइहा भुतहा कस भकवाय।मद मउँहा मा रहै सनाय।।
निच्चट सिधवा हे माँ बाप। पुत बनगे हे अउ अभिशाप।।
हरहा कस घूमे दिन रात। लागय नइ गा बानी बात।।
नकटा कुटहा सुटहा चोर। झाँकत रहिथे अँगना खोर।।
हवय बेशरम निचट अलाल।घर के कर दिस बारा हाल।।
झूठ-लबारी दिन भर मार। ननजतिया के संगत झार।।
छल परपंची येकर चाल। लंपट ले भकला बेहाल।।
खोरगिंजरा नाँव धराय। भड़वा कतका गारी खाय।।
लोभी लुच्चा तको कहाय। भइसा जइसे गा पगुराय।।
गड़ऊना के सत्यानाश।किरहा गर मा लेलय फाँश।।
महतारी के गारी मार। चुतिया के नइ जाय विकार।।
जकला बेर्रा मुँह ला फार। खाये बोजे बर तैयार।।
जुटहा पर के पतरी चाट। कुकुर बने हे चारण भाट।।
दुब्बर बर दू हवय असाढ़। जीव रखे बर पींयत माढ़।।
सुसवा अनसुरहा चंडाल।काय फरक हे पड़े अकाल।।
महतारी के मरना ताय। लाज शरम पुत बेचे खाय।।
अड़हा अड़हिन खुदे कहाय। गदहा ला तो रिहिस पढ़ाय।।
बबा कहै गा हरामखोर।अरे भोकवा साले चोर।।
धरे मंदहा मन के संग।मरहा के रंगत मा रंग।।
हिजड़ा तँय हर चाल सुधार।जकला बन झन समे गुजार।।
मानुष तन के महिमा जान।लबरा कर सबके सम्मान।।
हवस करमछड़हा बइमान।जग जाहिर हे तँय अब जान।।
उल्लू कस गा जागे रात।लतखोर रोज खाथस लात।।
धुर्त रोगहा कर कुछ काज। लगे थोरको नइ गा लाज।।
छोड़ दोगला मन के साथ। काम-बुता मा दे अब हाथ।।
विजेन्द्र कुमार वर्मा
नगरगाँव (धरसीवाँ)
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