छत्तीसगढ़ के लोकगीत
आल्हा
पंथी करमा सुआ दरदिया,बाजत हे मादर के थाप ।
जस जेवाँरा लोरिक चंदा,आल्हा लेवय सबला खाप॥
सावन के लगती सवनाही,डंडा नाचा गजब सुहाय।
भरथरी पंडवानी सुन ले,संग तमूरा अउ कड़ताल।.
ढोला मारु बाँस गीत अउ,गोड़वानी के अलगे चाल॥
चिहरचिहर सब झूलझूल गावै,निक लागे फागुन के राग
ढ़ोल नगारा टिमकी बाजय , झुमय मनखे सुनके फाग॥
छत्तीसगढी लोक गीत हा सुन संगी जन जन ला भाय ।
नइ सुनपाइस लोकगीत ला, करम अभागा के फट जाय॥
जुगेश कुमार बंजारे
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सूर्यकांत गुप्ता घनाक्षरी
भाखा मोर गुरतुर, भाव मढ़े तुरतुर,
गीत मया दया सुख, दुख के लिखाथे जी।
सुआ ला सुनाथें कोनों, नॉंगर जोतत गाथें,
अपन बोली म गाए, सब ला सुहाथे जी।।
करमा ददरिया बिहाव सुआ गीत अउ,
सोहर ए नाव लोक, गीत तो कहाथे जी।
बटकी मा बासी चुटकी मा नून के तो इहाॅं,
सुरता ददरिया के रहि रहि आथे जी।।
सूर्यकांत गुप्ता, जुनवानी भिलाई (छत्तीसगढ़)
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मनहरण घनाक्षरी लोकगीत
लोकगीत लोकलाज, छोड़ के लोगन मन, मिलके लोक हित मा सब झन गाव जी।
लोक भाखा गाॅंव गली, देश अउ विदेश मा, लोकसभा मा सांसद सब गोठियाव जी।
मीठ मीठ मया घोरे, हाॅंसी अउ ठिठोली मा, लोग ला बताव अउ मया बगराव जी।
लोकगीत ददरिया, सुआ कर्मा पंथी नाच, लोगन के मन मा जमके बइठाव जी।।
सादर समीक्षार्थ
संजय देवांगन सिमगा
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सरसी छंद "" लोकगीत ""
छत्तीसगढ़ी लोक गीत हा, अड़बड़ भाथे मीत ।
किसम किसम के गीत बने हे, मन ला लेथे जीत।।
सुआ ददरिया पंथी कर्मा, लोक गीत के तान ।
जउन राग ला धरके गावय, तेला गायक मान।।
रखे चीर के छाती ला वो, सुर मा रहिथे जान ।
ध्यान लगा के सुन लौ भइया, दुनो टेर के कान ।।
निक निक लागय बड़ मन भावय, देखव पचरा गीत ।
किसम किसम के गीत बने हे, मन ला लेथे जीत ।।
राउत नाचा बाॅंस गीत हा, देख नदावॅंत जाय ।
मिलय नहीं जी सुआ नचइयाॅं, गाॅंव गली ललचाय ।।
चलथे अब जी फिल्मी गाना, सुनके मन भरमाय ।
दाई बाबू भाई भउजी, कइसे मजा उडा़य ।।
चांद सुरुज तो उही हरे जी, बदलत हे बस रीत ।
किसम किसम के गीत बने हे, मन ला लेथे जीत ।।
संजय देवांगन सिमगा
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अमृतदास साहू,सार छंद लोकगीत
छत्तीसगढ़ी लोकगीत मन, अड़बड़ धूम मचाथे।
सुआ ददरिया करमा सोहर, सबके मन ला भाथे।
पंचराम कुलवंतिन बैतल,सुर के धनी कहावैं।
घुरुवा दुखिया ममता कविता,गीत मया के गावैं।
इँकर गीत के धुन सुन लोगन, दुख पीरा बिसराथे।
सुआ ददरिया करमा सोहर, सबके मन ला भाथे।
हेड़ाऊ केदार फिदा जस,सुर कोनो नइ पावैं।
थिरकन लागयँ लोगन मन सब,जब इन गाना गावैं।
इँकर ददरिया सुनके प्रेमी,मन ला अपन मढ़ाथें।
सुआ ददरिया करमा सोहर, सबके मन ला भाथे।
नवल कुलेश्वर मदन लता के,गाना खूब सुहावै।
छत्तीसगढ़ी परम्परा के, महक सुघर ममहावै।
कोनो मार्मिक कोनो धार्मिक, गाके नाम कमाथे।
सुआ ददरिया करमा सोहर, सबके मन ला भाथे।
अनुराग अनुपमा चम्पा ला,भाये नवा जमाना।
अलका अउ सुनील के संगी, दुनिया हे दीवाना।
कंचन छाया ज्योति घलो तो,गीत गजब के गाथें।
सुआ ददरिया करमा सोहर, सबके मन ला भाथे।
दरद ददरिया हा भरथें जी,सोहर हा सुख देथे।
करमा कर्म एकता अउ जस,सुआ बलइंँया लेथे।
बर बिहाव के गाना सुग्घर,हिय उत्साह बढ़ाथे।
सुआ ददरिया करमा सोहर, सबके मन ला भाथे।
अमृत दास साहू
ग्राम कलकसा, डोंगरगढ़
जिला राजनांदगांव (छ.ग.)
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तातुराम धीवर ।। आल्हा छ्न्द ।।
।। छत्तीसगढ़ी लोक गीत ।।
छत्तीसगढ़ी लोक गीत के, हावय जग मा बहुते मान।
सुवा ददरिया पंथी नाचा, आल्हा पँडवानी के गान।।
चैत क्वाँर के नव दिन रतिया, जस पचरा सब के मन भाय।
झूम झूम के सेउक मन हा, माँदर ढोलक झाँझ बजाय।।
गीत बिहा बड़ सुग्घर लागे, गड़वा बाजा बाजय हाथ।
तेल भड़ौनी अउ चुलमाटी, गावँय मायन मिलके साथ।।
छठ्ठी सोहर गावँय भारी, नान्हे पहुना घर हे आय।
महतारी मन गावँय लोरी, पलना ललना सखी झुलाय।।
आय महीना फागुन के तब, सररर फाग गीत सरराय।
राधा किसना के निक जोड़ी, अमर प्रेम के रास रचाय।।
बाँस भरथरी लोरिक चंदा, डंडा रिलो गीत देवार।
ढोला मारू बिदा पठौनी, पोठ गीत सब हावय सार।।
लोक गीत जब बाजय धुन मा, देवी देवन हे रिझ जाय।
गउरी गउरा गीत भोजली, माता सेवा जीव जुड़ाय।।
मंगल चौंका अउ बसदेवा, राउत फुगड़ी गम्मत गीत।
छत्तीसगढ़ी लोक गीत हा, सबके मन ला लेथे जीत।।
तातु राम धीवर
भैंसबोड़ जिला धमतरी
मो.
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ओम प्रकाश अंकुर सरसी छंद ()
चंदैनी गोंदा के कलाकार
रामचंद के बढ़िया कारज, रिहिस कला के खान।
सुघर सोर चंदैनी गोंदा, बगराईस खुमान।।
संगीता सुर मधुरस घोरय , मस्तुरिया दें तान।
गाके गाना मया पिरित के, मारे नैना बान।।
जादूगर गायन अभिनय के, राहय भैया लाल।
हंसी के फव्वारा दीपक, अब्बड़ करै कमाल।।
बजय गीत मन गीतकार के, लिखैं दलित परमार।
शुक्ल विप्र लक्ष्मण मुकुंद के, रहय गीत भरमार।।
करमा सुवा ददरिया गावय, धन धन इंकर भाग।
लोकगीत के सोर बिखेरिस,कविता अउ अनुराग।।
बैंजो गिरिजा बने बजावय, ढोलक ला केदार।
शेख सुनावय गजब ददरिया, झांझी के झंकार।।
तबला मांदर महेश ठाकुर, मदन रहय जी सार।
चांद सुमन गिरजा बुधियारिन, ये बाल कलाकार।।
चंदैनी गोंदा के पुस्तक, अब्बड़ हावय खास।
मिहनत करके डाॅक्टर सुरेश, लिखिस सुघर इतिहास।।
ओमप्रकाश साहू "अंकुर "
सुरगी, राजनांदगांव
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कमलेश प्रसाद शरमाबाबू छत्तीसगढ़ के लोक गीत रचनाकार अउ गायकगायिका
*
रोला छंद
!!!!!!!!!!!!
रचना कमलेश प्रसाद शर्माबाबू
रामचंद जी नाम, सुनव सब छत्तिसगढ़िया।
लोक मंच हे देन, चँदैनी गोंदा बढ़िया।।
राहय साव खुमान, धरै संगीत ल सुर मा।
जम जावय सुर ताल, धूम मातै रइपुर मा।।
जनकवि कोदू राम, रचै माटी के गाना।
सुन के लागय गाँव, हवै जी कतिक सुहाना।।
मस्तुरिया के गीत, जीत लेथँय जनमन ला।
करथें भाव विभोर, सुहाथे जी जनजन ला।।
पीसीलाल मुकुंद, लिखैं बड़ रचना सुघ्घर।
दानेश्वर जी गीत, रचैं बड़ उज्जरउज्जर।।
चंद्राकर जी प्रेम, गिरीवर लिखथें गाना।
छत्तिसगढ़ के सोंध, रिथे सब
तानाबाना।।
नारायन परमार, लिखै जीवन यदु रचना।
धनहा खेतीखार, पेड़ अउ माटी पखना।।
रामेश्वर के लेख, सुहाथे सब ला भारी।
बद्री लाल विशाल, नरेन्द सबो सँगवारी।
गायक जब केदार, उठै सब के मन मोहय।
जबजब गावय गीत, कंठ मा मदरस पोहय।।
परस जवाहर लाल, पवन अउ नवल ह गावँय।
लगय कृष्ण ब्रजधाम, बांँसुरी मधुर बजावँय।
पंचराम के गान, संग मा जनता बाँचैं।
बैतल थिरके मंच, झूम के लोगन नाचैं।।
गजानंद अनुराग, तान मा सुघ्घर गाथें।
बिंदु खुशी दास, गजब के लय लहराथें।।
दुखिया धुरवा राम, बटोरँय कसके ताली।
ममता जबजब गाँय, मंच नइ राहय खाली।।
बासंती देवार, कंठ सरसती बिराजै।
गावय पुनम विराट, आँख मा आँसू साजै।।
गायक गौतम चंद, कान मा मदरस घोलय।
कविता के आवाज, खनक जस मयना बोलय।
लता खपर्डे गाँय, लगै कोयल के बानी।
सफरी गीत सुनाय, करेजा होवय चानी।।
आवय भैया लाल, मंच मा गदर मचावँय।
हेड़ाऊ जी और, कहत जनता चिल्लावँय।।
हिरवानी महदेव, बाँध के सुर ला साजँय।
गोरे बर्मन गाँय, सुनत जनता पगलावँय।।
प्रीतम झल्लू राम, द्वारिका गावँव बढ़िया।
लागय सुघ्घर नीक, मदन जी छत्तिसगढ़िया।।
मंसूरी संतोष, कुलेश्वर हा जब गावँय।
सुन लेवन इक बार, कान मा उही सुनावँय।।
गावय शेख हुसैन, बढ़ै दिल के बड़ धड़कन।
सुनन भगत के गीत, दही बासी हम झड़कन।।
माधव जी जब गाँय, गाँव के दरशन होवय।
ललिता गीत सुनाय, प्रेमिका मनमन रोवय।।
आशा येलिस जान, साधना संग जयंती।
गावय गंगा दास,अनचुरी अउ कुलवंती।।
अलका कंचन गाँय, निर्मला कंठ सुहावय।
चतुर कांति के गीत, शैल छाया मन भावय।।
ज्योती सुघ्घर मीठ, सरसती गावय करमा।
सीमा गावय गीत, गुँजै सबके घरघर मा।।
रेखा रजनी संग, सुमित्रा गुरुतुर बोली।
साध राम के शोर, कुँवारा लागय भोली।।
सुर मा राजकुमार, रामनारायण बानी।
गया राज के बोल, आँख मा लावय पानी।।
दुकालु जस सम्राट, कारतिक के जस गाना।
चढ़ैं देवता लोग, मनावँय नरियर बाना।।
तीजन झाडू राम, पंडवानी के नायक।
सुरुज उषा प्रहलाद, रीतु पूना बड़ गायक।।
मानदास के गीत, फिदा बाई मन मोहय।
देवदास इक नाम, नचावत पंथी सोहय।।
मुरली जी मन भाय, कुसुम ठाकुर अउ बरसन।
महासिंग के बोल, सुने बर हम सब तरसन।।
ननकी अउ मिथलेश, झुमुक झमकावय गाना।
अउ किस्मत देवार, छेड़ दय नवा तराना।।
चिन्ता गंगाराम, नायडू सुर बड़ भाँजय।
भुलुवा न्यायिक दास, गीत ला झांझी माँजय।।
सुशील सीताराम, कलम के गजब सिपाही।
हरि ठाकुर के गीत, सबो के मन ला भाही।।
चम्पा मोना सेन, अनुपमा गावँय जमके।
आरू साहू आज, नवा तारा कस चमके।।
देखव शिव राकेश, अनुज के जादू भारी।
धूम मचावँय खूब, आय जब उँखरों पारी।।
राहय बढ़िया दिन, रेडियो घरघर बाजय।
नवा बहुरिया रोज, सुनत पैरी ला मांँजय।।
भक्ति गीत के संग, सबेरा सब के होवय।
जागँय वोखर संग, वोखरे संग म सोवँय।।
बाबू के चौपाल, दाइ के हे घर आँगन।
लइका किसलय बाल, सुनय जे हे मनभावन।।
बहिनी बिंदिया भाय, कहानी सुनथे बाई।
जोहत रहिथे राह, फोन फरमाइश भाई।
युववाणी के गोठ, हमू मन उही म आथन।।
आथे भुइँया गोठ, सुने बर हम डट जाथन।।
कवि लेखक के बात, सुने बर बढ़िया मिलथे।
सुघ्घरसुघ्घर गोठ, कमल तरिया जस खिलथे।।
आजकाल के गीत, लजावँय लोगन सुन के।
फूहड़ता भरमार, भरे हे जी चुनचुन के।।
मिट जाही संस्कार, बनाहीं अइसन गाना।
"बाबू" के गोहार, आँख हो झन बन काना।।
कमलेश प्रसाद शर्माबाबू
कटंगीगंडई जिला केसीजी
छत्तीसगढ़
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सुखदेव पंथी सार
ताल मिलाके पाँव थिरकथे, भुइँया ठाँव थिरकथे।
पंथी धुन मा पाँव उचा के, पूरा गाँव थिरकथे।
पंथी ए सतनाम सुमरनी, हुत अहवान घलो ए।
करनीभरनी ला अलखावत, दर्शनज्ञान घलो ए।
पंथी जोड़ा जैतखाम के, जस जयगान घलो ए।
पंथी लहरत सेतधजा के, महिमा शान घलो ए।
जप तप पूजा पाठ प्रार्थना, योगा ध्यान घलो ए।
पंथी तन मन के सेहत बर, सुख वरदान घलो ए।
चिरई के चिंवचाँव थिरकथे, कौंवा काँव थिरकथे।
पंथी धुन मा पाँव उचा के, पूरा गाँव थिरकथे।
पंथी मा सन्ना के मतलब, सृष्टिकार पालक ए।
पंथी मा नन्ना के मतलब, ननहउरा बालक ए ।
सन्ना नन्ना ज्ञान सीख ए, सत आचरण सिखोना।
सब कुछ वोकर हाथबात हे, वोकर बिन का होना।
जतका जल्दी हो माटी मा, सत के बीजा बोना।
अइसे झन हो बखत बुलक जै, पाछू परजै रोना।
पुरखा के सहिनाँव संग पुरखा के नाँव थिरकथे।
पंथी धुन मा पाँव उचा के, पूरा गाँव थिरकथे।
पंथी दल मा पंथी नर्तक, आठ रहँय के अस्सी।
सबके एके धोती कपड़ा, धागा फीता रस्सी।
सबके गर मा कण्ठी माला, सबके खाँध जनेवा।
माथा फभे सेत चंदन ले, वाणी मुख सुखदेवा।
जुग जोड़ी मा रथें नचइया, होथे एक गवइया।
कोरस राग मिलाथें सब झन, कहलाथें झोंकइया।
पंथी बीच खड़ैत अखाड़ा, करतब दाँव थिरकथे।
पंथी धुन मा पाँव उचा के, पूरा गाँव थिरकथे।
माँदर झुमका धुन मा बजथे, झाँझ रथे सहरागी।
पंथी दल के हर सदस्य के, सधे पाँव अउ पागी।
पाँव पटक अउ बाँह मटक के, लयधुन दिल कस धड़कन।
गुरू परब मा पंथी नाचत, दल देखे हन बड़कन।
सताचरण मा नाँव कमा के, नाँव मिलिस सतनामी।
सतगुरु घासीदास बबा ए, गुरू देवता धामी।
नस मा रक्त बहाव थिरकथे, ताकत ताव थिरकथे।
पंथी धुन मा पाँव उचा के, पूरा गाँव थिरकथे।
रचना सुखदेव सिंह "अहिलेश्वर"
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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+ सरसी छंदलोकगीत(सरसी छंद)
चल गाबो गीत ददरिया ला, करबो मया बखान।
लोकगीत के राजा होथे, हमर ददरिया शान।।
दुख ला गाबो बाँस गीत मा, धरे मोहरी हाथ।
झन छूटय सँगवारी मन के, जिनगी भर ये साथ।।
जुर मिल गाबो देवार गीत, घूमघूम के गाँव।
भाखा सुनके मनखे आही, दउड़त पीपर छाँव।।
आहो गंगा कहिके गाबो, बने भोजली गीत।
धर के खोचबो कान ऊपर, जेनजेन से मीत।।
सुआ गीत के हे का कहना, नारी मन के गीत।
जनजन ऐला सुग्घर भाथे, मन ला लेथे जीत।।
चुलमाटी के बेरा आथे, रहिथे जी मुस्कात।
माटी कोड़े ला नइ आवै, रहिथे नारी गात।।
मायन अउ तेल चढ़ी होथे, भरथे मन आनंद।
गावत रहिथे सब्बो नारी, मुचमुच हाँसत मंद।।
गीत भड़ौनी परघौनी के,गीत बने बारात।
भाँवर रहै टिकावन कोनो,गाथे नारी जात।।
सोहर,लोरी गीत सधौरी, सबके हे पहिचान।
लोकगीत के राजा होथे, हमर ददरिया शान।।
पंथी गीत अमर धरती मा,गुरुघासी के मान।
लोकगीत के राजा होथे, हमर ददरिया शान।।
राजकिशोर धिरही
तिलई,जाँजगीर
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ज्ञानू लोकगीत विष्णुप्रद छंद
हमर गाँव अउ देशराज के, ये पहिचान हरे|
लोकगीत हा दुख सुख के तो, हमर मितान हरे||
बाँस गीत का सोहर मंगल, अउ सुआ ददरिया|
झूम झूम के नाचँय गावँय, बड़ संग जहुँरिया||
भरथरी, पंडवानी, पंथी, साल्हो अउ करमा|
देवी जस पचरंगा सुन के, काँप जवँन डर मा||
गीत भोजली लहर तुरंगा, फागुन मा फगुवा|
बूढ़ी दाई बर बिहाव, गाँये बर अगुवा||
लोकगीत मा माटी के तो, खुशबू बगरय जी|
दया मया के छइहाँ ले सब, दुख ले उबरय जी||
हमर संस्कृति अउ संस्कार के, ये रखवार हरे|
लोकगीत हा रीति नीति के, तो बढ़वार हरे||
ज्ञानु
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+ मनहरण घनाक्षरी🙏🙏 लोकगीत
लोकगीत लोकलाज, छोड़ के लोगन मन, मिलके लोक हित मा, सब झन गाव जी।
लोक भाखा गाॅंव गली, देश अउ विदेश मा, लोकसभा मा घलो जी, सब गोठियाव जी।
मीठ मीठ मया घोरे, हाॅंसी अउ ठिठोली मा, लोग ला बताव अउ, मया बगराव जी।
लोकगीत ददरिया, सुआ कर्मा पंथी नाच, जमके लोगन मन, मन मा बिठाव जी।।
संजय देवांगन सिमगा
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नारायण वर्मा बेमेतरा सरसी छंदलोकगीत
सोंध अपन माटी के जेमा, झलकय अलग सुजान।
सहज भावना ले लोगन के,जुड़े रथे पहिचान।।
लोकरीति हा लोकनीति बन, करथे जन कल्यान।
आँसू हर मरहम बन जाथे, पीरा बने मितान।।
लोकगीत कहिथे ओला तब, लोग करय गुनगान।
सोंध अपन माटी के जेमा, झलकय अलग सुजान।।
छत्तीसगढ़ हमर महतारी, हाबय पोठ महान।
लोकगीत मा रचे बसे हे, छत्तीसगढ़ी शान।।
तीज तिहार उछाव भरे मन, गौरा गौरी गान।
सुआ भोजली फाग जँवारा, मँदरस घोरय कान।।
गायन भरथरी पंडवानी, सुन तमुरा के तान।
सोंध अपन माटी के जेमा, झलकय अलग सुजान।।
लोकगीत लोरी कस लागय, माँ के मीठ जबान।
पेड़ तरी मा गावत गुनगुन, ठलहा बइठ किसान।।
उसरे काम बुता ले मनखे, आय सजन के ध्यान।
सुरता उँखर सोरियावत मन, नयना मारे बान।।
अंतस के आवाज बने ये, कतका करँव बखान।
सोंध अपन माटी के जेमा, झलकय अलग सुजान।।
झाँझ मँजीरा माँदर के धुन, नाचँय झूम जवान।
जस पचरा मनभावन लागे, नोहर सोहर जान।।
धर कमर मोटियारी मटके, पहिर नवाँ परिधान।
बाँस ददरिया करमा डंडा, गम्मत भाव प्रधान।।
जीये के ओखी मिल जाथे, आथे नवाँ बिहान।
सोंध अपन माटी के जेमा, झलकय अलग सुजान।।
आज जमाना फिल्मी आगे, बाढ़त बड़ उदियान।
कलमकार मन कलंक बनगे, गावत फूहड़ गान।।
दूअर्थी लिखत गीत कविता, करत देख अपमान।
लघियात मिलय प्रसिद्धि कहिके, बने मूर्ख नादान।।
अपन सभ्यता संस्कृति के तुम, सदा करव सम्मान।
सोंध अपन माटी के जेमा, झलकय अलग सुजान।।
🙏🙏🙏🙏
नारायण प्रसाद वर्मा
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अनिल सलाम, कांकेर सार छंद (लोकगीत)
लोक गीत माने होथे गा, जे उपजे जन जन ले।
रथे प्रकृति के सुग्घर चित्रण, नइ उतरे ये मन ले।
सुआ ददरिया पंथी रेला, सुग्घर मन ला भाथे।
तन मन हा गदगद हो जाथे, जब कोनो हा गाथे।।
खेत खार आमा अमरइया, सुआ कोयली भाखा।
नत्ता गोत्ता पुरखौती के, लोकगीत हे राखा।।
नदिया नरवा गाय गरू के, बरदी अउ चरवाहा।
लोकगीत मा सबके बरनन, पीले थोकिन चाहा।।
लोक गीत मा जन जीवन के, सुग्घर चित्रण होथे।
हँसी ठिठोली करके हाँसे, नइते कोनो रोथे।
नँदा जही का हमर चिन्हारी, होथे चिंता भारी।
रखव बचाके लोकगीत ला, जुरमिल सब सँगवारी।
अनिल सलाम
उरैया नरहरपुर कांकेर छत्तीसगढ़
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प्रिया सुआ– रोला छंद
आथे कातिक मास, सबो तिरिया सकलाथें।
घूमघूम हर गाँव, मया के गोठ सुनाथें।।
सखी–सहेली संग, रखैं बड़ सुग्घर टोली।
देवैं ताली थाप, मीठ लागय जी बोली।।
कर सोलह सिंगार, माँग मोती हर साजै।
पहुँची बाजूबंद, घुंघरू पैरी बाजै।।
सूॅंता पुतरी ढार, नाक मा नथनी सोहै।
चूरी बिंदी माथ, फूल गजरा मन मोहै।।
बोहैं टुकनी रोज, सुआ ला बीच मढ़ावैं।
दया–मया के सार, सबो अंतस ले गावैं।।
चावल पइसा धान, संग दीया ला बारैं।
तरी हरी के बोल, हिलोरा हिय मा मारैं।।
लोक गीत के साख, बचाथें हर घर जा के।
छत्तीसगढ़ी रीत, खुशी देथें सब गा के।।
विनती हावय मोर, कभू तुम झन बिसराहू।
सुघर लगे जस गान, सदा सम्मान बढ़ाहू।।
प्रिया देवांगन प्रियू
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मुकेश दोहा छंद लोक गीत
गावँय माँदर थाप मा, करमा पंथी गीत।
पुरखौती पहिचान ये, हमर राज के रीत।।
गीत भड़ौनी ला बने, बर बिहाव मा गाँय।
हँसी ठिठोली मा सबो, सराबोर हो जाँय।।
सुनके आवय बड़ मजा, सुआ ददरिया फाग।
लोक गीत मन मा बसे, छेड़ँय सुग्घर राग।।
छट्ठी बरही मा सबो, गावँय सोहर गीत।
बाँस गीत के धुन घलो, मन ला लेवय जीत।।
जोत जँवारा आय जब, सेउक महिमा गाँय।
जस पचरा अउ भोजली, दया मया बगराँय।।
लोक गीत मन के महूँ, कतका करँव बखान।
हवय इँकर ले आज गा, दुनिया मा पहिचान।।
मुकेश उइके "मयारू"
ग्राम चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)
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तुषार वत्स 🥰🌹 रहस नाच
रोला छंद
गोपग्वाल के भेष, धरे जब आवय टोली।
मातय फागुन राग, लगै अब आगे होली।।
राधाकिसना रूप, देख के लागय पावन।
बजै नगाड़ा थाप, जनावय बड़ मनभावन।।
डंडा धरके हाथ, संग सब नाचैं गावैं।
गलीखोर मा लोग, भाव ले भेंट चघावैं।।
रहस नाच ला आज, भुलावत मनखे मन हा।
नॅंदा जाय झन फाग, रीत के नीक चलन हा।।
तुषार शर्मा "नादान
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सरसी छंद "" लोकगीत ""
छत्तीसगढ़ी लोक गीत हा, अड़बड़ भाथे मीत ।
किसम किसम के गीत बने हे, मन ला लेथे जीत।।
सुआ ददरिया पंथी कर्मा, लोक गीत के तान ।
जउन राग ला धरके गावय, तेला गायक मान।।
रखे चीर के छाती ला वो, सुर मा रहिथे जान ।
ध्यान लगा के सुन लौ भइया, दुनो टेर के कान ।।
निक निक लागय बड़ मन भावय, देखव पचरा गीत ।
किसम किसम के गीत बने हे, मन ला लेथे जीत ।।
राउत नाचा बाॅंस गीत हा, देख नदावॅंत जाय ।
मिलय नहीं जी सुआ नचइयाॅं, गाॅंव गली ललचाय ।।
फिलिम बने अश्लील गीत अब, सुनके कान पिराय।
शरम आय परिवार संग मा, जे देखे नइ जाय।।
चांद सुरुज तो उही हरे जी, बदलत हे बस रीत ।
किसम किसम के गीत बने हे, मन ला लेथे जीत ।।
संजय देवांगन सिमगा🙏
सूर्यकांत गुप्ता सर घनाक्षरी म छंद खजाना बर
भाखा मोर गुरतुर, भाव मढ़े तुरतुर,
गीत दया मया सुख, दुख के लिखाथे जी।
सुआ ला सुनाथें कोनों, नॉंगर जोतत गाथें,
अपन बोली म गाए, सब ला सुहाथे जी।।
करमा ददरिया गा, सोहर बिहाव गीत,
सुआ संग इही लोक, गीत तो कहाथे जी।
बटकी मा बासी अउ, चुटकी मा नून के तो,
सुरता ददरिया के, रहि रहि आथे जी।।
सूर्यकांत गुप्ता, जुनवानी भिलाई (छत्तीसगढ़)
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भोजली
सावन के हवय मास, पाख हे अँजोरी।
सवनाही के तिहार, संस्कृति के डोरी।
टुकनी ला नाननान, बाँस के मँगाबो।
गँहूँ प्रकृति के प्रतीक, भोजली उगाबो।।
देवी के रूप धरे, भोजलिन कुँवारी।
गावत तैं सुवा गीत, हमर वो दुवारी।
सोला करे सिंगार, आबे महतारी।
देबे सबला अशीष, सुख के फुलवारी।।
बाजा बजावत ढोल, गीत सबो गाबों।
पुन्नी के तोर बिदा, भक्त मन कराबों।
लहरा ले लहर गंग, पाय तोर सेवा।
खोंचे भोजली कान, ले प्रसाद मेवा।।
रचनाकार
डॉ पद्मा साहू पर्वणी खैरागढ़
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नीलम जायसवाल छन्न पकैयाछन्द
लोकगीत करमा
छन्न पकैयाछन्न पकैया, लोकगीत हे करमा।
गोड़ आदिवासी समाज के, बगरे हे घर घर मा।।
छन्न पकैयाछन्न पकैया,करमा के हे कहिनी।
सुनव 'करम सेनी' ला पूजय, जम्मो भइया बहिनी।।
छन्न पकैयाछन्न पकैया,करिस मनौती राजा।
राजा कर्म ह दुख ले छूटिस,नाचिस मांदर बाजा।।
छन्न पकैयाछन्न पकैया, करमा डारा लानैं।
फेर 'करम सेनी' ला पूजय, उही ल करमा मानैं।।
छन्न पकैयाछन्न पकैया,संग म नाचैगावै।
हाथ अऊ कनिहा ला धर के, सुघ्घर गोल बनावै।।
छन्न पकैयाछन्न पकैया, मंजुरझाल लगाथे।
पगड़ी कलँगी दरपन साजै, गीत पुरुष दल गाथे।।
छन्न पकैयाछन्न पकैया, माई लोगन सजथे।
रुपिया ,सूता,करधन पहिने, गोड़ म चूखा बजथे।।
छन्न पकैयाछन्न पकैया, लोकगीत झन जानौ।
करमा लोक परब हे भइया,प्रेम चिन्हारी मानौ।।
छन्न पकैयाछन्न पकैया,चार घाँव ये आथे।
भादों ले कातिक तक एला,जुर मिल लोग मनाथे।।
नीलम जायसवाल, भिलाई, छत्तीसगढ़
राजेश निषाद ।। आल्हा छंद लोक गायक केदार यादव।।
लोकगीत के गायक संगी , नाम हवय जेकर केदार।
दुरुग जिला मा जनम धरिन हे, लोककला ला दिस आकार।।
झुमुकलाल गा नाम पिता के, कलाकार नाचा के आय।
दादा गावय बाँस गीत ला, बचपन ले जे ओला सिखाय।।
ढोलक अउ तबला वादन मा, अलग हवै जेकर पहिचान।
कवि मुकुंद कौशल के संगे, मंच बनायिन नवा बिहान।।
चंदैनी गोंदा ले जेहर, करिन सफलता के शुरुवात।
नाम अमर होगे दुनिया मा, छत्तीसगढ़ी गाना गात।।
तै बिलासपुरहिन हस गाना, हवै मया लाटा लपटाय।
तै अगोर लेबे रे संगी,प्रेम गीत हा सब ला भाय।।
गाँवगाँव मा बाजत रहिथे, सुनथन सुग्घर जेकर गीत।
गायक अउ संगीतकार जे, लेवय लोगन के दिल जीत।।
राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद
रायपुर (छ. ग.)
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कुकुभ छंद ।।छत्तीसगढ़ी लोक गीत।।
रिकिमरिकिम के लोकगीत जी, छत्तीसगढ़ी मा हावै।
अलगअलग बेरा मा जेला, लोग इहाँ के सब गावै।।
आथे चैत कुँवार मास जब, मात जँवारा बोंवाथे।
माता सेवा बर मिलके जी, सब जस पचरा ला गाथें।।
फाग गीत मा फागुन महिना, जगाजगा माते होली।
बर बिहाव मा गीत भड़ौनी, करथे बड़ हँसी ठिठोली।।
करम पर्व मा भादो महिना, उत्सव जब लोग मनाथें।
करम देव के करथें पूजा,सुग्घर करमा सब गाथें।।
सोहर गावै छट्ठी घर मा, लइका सोवावय लोरी।
काम बुता मा गीत ददरिया, सुन के मोहावय गोरी।।
गाना भरथरी पंडवानी, हरे लोकगाथा धारी।
पंथी डण्डा सुआ गीत मा, लोग नाचथें जी भारी।।
बाँस भोजली बिहा पठौनी, फुगड़ी गौरा सँवनाही।
छत्तीसगढ़ी लोकगीत ये,सदा सबो ला जी भाही।।
गुमान प्रसाद साहू
समोदा (महानदी)
पात्रे जी छंद खजाना बर
सरसी छंद पंथी
लोक गीत मा पंथी गाना, देथे सुख के छाँव।
झाँझ मँजीरा माँदर बाजे, थिरके सबके पाँव।।
गुरु तपसी पंथी ले पाइस, योग साधना ध्यान।
पंथी नृत्य हरत तन व्याधा, देवय मुख मुस्कान।।
ताल मिलाके पाँव उचाके, घुँघरू छेड़य तान।
रागी पारय साखी बढ़िया, गायक गावय गान।।
पंथी पंथ हरय सत के अउ, सत के सच्चा ठाँव।
लोक गीत मा पंथी गाना, देथे सुख के छाँव।।
पंथी के जस ला बगराइस, जग मा देवादास।
बेधुन पंथी धुन मा नाचय, मन ला करत उजास।।
देश विदेश बजाइस डंका, बगरे सत्य प्रकाश।
बनके सच्चा अनुयायी जे, सतगुरु घासीदास।।
पंथी महिमा गावँय जनजन, आज शहर अउ गाँव।
लोक गीत मा पंथी गाना, देथे सुख के छाँव।।
पंथी के ग्रन्थी मन बोलय, पंथी सत के राह।
पंथी मा सुख सार समाहित, सागर ज्ञान अथाह।।
सत्य अहिंसा प्रेम भरे ये, मन मा शांति उछाह।
शुद्ध आचरण पावन कर दै, सदा दिसंबर माह।।
पंथी के महिमा बरनन कर, भाग अपन सहराँव।
लोक गीत मा पंथी गाना, देथे सुख के छाँव।।
✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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दीपक निषाद, बनसांकरा छंद खजाना बर
सरसी छंद गीत (लोकगीतकरमा )
जेमा महक भरे माटी के,सुमता मया पिरीत।
लागय बड़ रोचक मनमोहक,गुरतुर करमा गीत।।
करम देवता के पूजा बर,जम्मो झन सकलायँ।
नाचगान के संग भगत मन,अरजी अपन सुनायँ।।
माँदर ढोल मजीरा बाजयँ,छलकयँ सुरसंगीत।
लागय
करमसेन राजा के कहिनी,सब झन करथें याद।
कइसे ओकर नाच गान ले,देव सुनिस फरियाद।।
राजा के बिपदा दुरिहाइस,साँच भगति गिस जीत।
लागय
मोरपाँख पागा मा कलगी,सजेधजे नचकार।
नचकारिन मन गहनागुरिया,सुघ्घर करें सिंगार।।
करमा हा नवरस बरसावय,बन जावयँ सब मीत।
लागय
दीपक निषादलाटा (बेमेतरा)
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दोहा छंद(लोकगीत)
उपजे गँवई गांव ले, लोकगीत अनमोल।
जन के मन ला मोहके, देथय मँदरस घोल ।।
अनपढ़ संग पढ़े लिखे, लोकगीत ला भाय।
गांव शहर के आदमी, सबला गजब सुहाय।।
लोकगीत के बाज मा, मनखे झूमर जाय।
जस आमा के पेड़ मा, गाना सुवा सुनाय।।
सुवा ददरिया अउ रहस, लोकगीत के नाम।
सबला गजब सुहाय हे, जस अगहन के घाम।।
लोकगीत मा हे बसे, संस्कृति अउ पहिचान।
पाथे देश विदेश मा, गीत गवइया मान।।
जनम मरन तक गाँत हे, सोहर बिरहा गीत।
सुवा भड़ौनी भोजली, छत्तीसगढ़ी रीत।।
गउरा फगुवा के बिना, मनय न हमर तिहार।
राउत दोहा संग मा, नाचय डँगनी चार।।
हीरालाल साहू "समय"
छुरा, जिलागरियाबंद
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संगीता वर्मा,
लोकगीत कुण्डलिया
करमा पंथी अउ सुआ, हमर राज के शान I
सरग निसैनी ला चढ़य, सुघर बढ़ावय मान I
सुघर बढ़ावय मान, राज के आय चिन्हारी I
रचय नवा इतिहास, देश दुनिया मा भारी I
येकर अमरित धार, समावय सबके गर मा I
मिहनत के जस गीत, सुआ अउ पंथी करमा II
संगीता वर्मा
भिलाई
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डी पी लहरे प्रदीप छन्द गीत
दर्शनीय स्थल गिरौदपुरी धाम
जन्म स्थली गुरु घासी के, पावन गिरौद धाम हे।
संत सिरोमणि गुरु बाबा के, जग मा ऊँचा नाम हे।
करे तपस्या घासी बाबा, छाता सहीं पहाड़ मा।
धुनी रमा के बइठे राहय, गुरु बघवा के माड़ मा।
इही जघा मा पाये हावय, सतगुरु हा सतज्ञान जी।
चलौ दरश कर आबो संतो, हो जाही कल्यान जी।
गूँजत संगी गुरुद्वारा मा, पंथी आठोयाम हे।
जन्म स्थली गुरु घासी के, पावन गिरौद धाम हे।।
जैत खाम हा ऊँचा हावय, दिल्ली कुतुबमीनार ले।
बोहत हावय अमरित भैया, पँच कुण्डी के धार ले।
चरण कुण्ड अउ जोक नदी के, पानी काटै ताप ला।
सत्य नाम के जुरमिल संगी, कर लेबो हम जाप ला।
सत्य संदेशा भाईचारा, के सुघ्घर पैगाम हे।
जन्म स्थली गुरु घासी के, पावन गिरौद धाम हे।।
डी.पी.लहरे'मौज'
कवर्धा छत्तीसगढ़
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कुकुभ छंद
भोजली
परुवा अँधियारी के भादो , परब भोजली हर आथे।
पींयरपींयर सुघर भोजली, सब झन ला बने सुहाथे।।
देवी गंगा देवी गंगा, लहर तुरंगा सब गाथें।
सजधज के दीदीबहिनी मन, करे विसर्जन बर जाथें ।।
बदथें संगी सबो भोजली, जिनगी भर मया बँधाथें।
दयामया के डोर लमाके, हिरदे ले नता निभाथें।।
आज नँदावत हवे भोजली, मिलके हम सबो बचाबो।
नही भुलाना हे संस्कृति ला, संगी मन परब मनाबो।।
अनुज छत्तीसगढ़िया
पाली जिलाकोरबा
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सार छंद
छाँव माँघ के जबले लगथे, मँगनी जचनी चलथें।
फागुन ले बैशाख महीना, बर बिहाव सब करथें।।
चुलमाटी मड़वा गड़ियाथें, हरदी तेल चढ़ाथें।
गीत भड़ौनी गावत ढेढ़िन, ढेढ़ा मान बढ़ाथें।।
चइत महीना नव दिन राती, माता के जस गाथें।
भक्ति भाव ले बोंत जँवारा ,भक्तन जोत जलाथें।।
सावनभादो गीत भोजली, गावत मन ला भाथे।
शुभ कुँवार के पीतर झरती, जस पचरा मन भाथे।।
कर्तिक पावन दिन देवारी, गौरी गौरा साजे।
राउत मन के गुड़दुम बाजा, दोहा पारत बाजे।
सुआ गीत के सुघ्घर लय सुर, नोनी मन सब गाथें।
तारी देवत बइँहा जोरे, सबो दुवारी जाथें।।
अग्घन पूस मड़ाई मेला, कतको जगा भराथे।
गीत ददरिया गावत जम्मो, देखत मन ला भाथे।।
छत्तीसगढ़ी आनीबानी, लोक गीत शुभ जानौ।
करमा पंथी सुआ ददरिया, मान बढ़ाथे मानौ।।
भागवत प्रसाद चन्द्राकर
डमरू बलौदाबाजार
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नीलम जायसवाल छन्न पकैयाछन्द
लोकगीत करमा
छन्न पकैयाछन्न पकैया, लोकगीत हे करमा।
गोंड़ आदिवासी समाज के, बगरे हे घरघर मा।।
छन्न पकैयाछन्न पकैया, करमा के हे कहिनी।
सुनव 'करम सेनी' ला पूजय, जम्मो भइया बहिनी।।
छन्न पकैयाछन्न पकैया, करिस मनौती राजा।
राजा कर्म ह दुख ले छूटिस, नाचिस मांदर बाजा।।
छन्न पकैयाछन्न पकैया, करमा डारा लानैं।
फेर 'करम सेनी' ला पूजय, उही ल करमा मानैं।।
छन्न पकैयाछन्न पकैया, संग म नाचैगावै।
हाथ अऊ कनिहा ला धर के, सुघ्घर गोल बनावै।।
छन्न पकैयाछन्न पकैया, मंजुरझाल लगाथे।
पगड़ी कलँगी दरपन साजै, गीत पुरुष दल गाथे।।
छन्न पकैयाछन्न पकैया, माई लोगन सजथे।
रुपिया ,सूता,करधन पहिने, गोड़ म चूखा बजथे।।
छन्न पकैयाछन्न पकैया, लोकगीत झन जानौ।
करमा लोक परब हे भइया, प्रेम चिन्हारी मानौ।।
छन्न पकैयाछन्न पकैया, चार घाँव ये आथे।
भादों ले कातिक तक एला, जुर मिल लोग मनाथे।।
नीलम जायसवाल, भिलाई, छत्तीसगढ़
जगन्नाथ सिंह ध्रुव कुकुभ छन्द लोकगीत
बेटी बहिनी घर घर जाके, सुआ गीत सुग्घर गाये।
गुरतुर गुरतुर ऊँखर बानी, सबके मन ला बड़ भाये।।
अँगना घेरा गोल बनाये, अउ ताली थाप लगाये।
सुआ गीत के परम्परा ला, गाँवगाँव मा पहुचाये।।
परम्परा बगराये खातिर, घर घर मा जाके नाचे।
इँखरे सेतिन आज इहाँ जी, सुआ गीत हावय बाँचे।।
बेटी मन संस्कार सबो के, ये जग मा जननी होथे।
लोक गीत अउ परम्परा सँग, बीज मया के सब बोथे।।
सुआ गीत गाये नाचे बर, जिहाँजिहाँ एमन जाये।
अन धन सँग सम्मान घलो जी, सबो घरोंघर ले पाये।।
जगन्नाथ ध्रुव
घुँचापाली बागबाहरा
लोकगीत-सरसी छंद गीत
लोकगीत आये हम सबके, अंतस के आवाज।
सुआ ददरिया कर्मा पंथी, करे जिया मा राज।।
बोह भोजली बेटी माई, लहर तुरंगा गाँय।
थपड़ी पिट पिट सुआ नाचके, सबके जिया लुभाँय।।
बर बिहाव अउ पंथी जस के, मनभावन अंदाज।
लोकगीत आये हम सबके, अंतस के आवाज।।
दरद भुलाके छेड़ ददरिया, बूता करें किसान।
नाचें कर्मा ताल मा झुमके, लइका संग सियान।।
सवनाही साल्हो अउ डंडा, जतरा धनकुल साज।
लोकगीत आये हम सबके, अंतस के आवाज।।
बाँस पंडवानी दोहा मा, कथा कथन भरमार।
ढोलामारू लोरिक चंदा, फागुन फाग बहार।।
नगमत गौरा खेल गीत मा, झूमें सरी समाज।
लोकगीत आये हम सबके, अंतस के आवाज।।
सोहर लोरी भजन भर्थरी, आल्हा मन ले जीत।
जनम बिहाव परब अउ ऋतु के, अबड़ अकन हे गीत।।
गायें गाना छत्तीसगढ़िया, करत अपन सब काज।
लोकगीत आये हम सबके, अंतस के आवाज।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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शानदार संकलन
ReplyDeleteहमर संस्कृति के धरोहर संकलन
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