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Friday, November 7, 2025

दिव्यांग/विकलांग-विशेष

 दिव्यांग- दोहा छंद 


तन ले जे विकलांग हे, वोमन हावय खासI 

कर्मशील बनके इहाँ, रचिस नवा इतिहासII 


सूरदास बिन आँख के, रचिस भ्रमर के गीतI 

कृष्ण भक्ति मा डूबके, लेइस जग ला जीतII 


बिना पाँव के अरुणिमा, चढ़गे शिखर पहाड़I

मन मा साहस ज्ञान भर, जग मा करिस दहाड़II 


सुर सरिता के धार मा, डूबिन रविन्द्र जैनI 

मनभावन संगीत ला, सुनके आथे चैनII 


कृष्णमूर्ति वो मालती, पदक तीन सौ जीतI 

रचिस नवा इतिहास ला, बदलिस जग के रीतII 


सुधा मयूरी बन इहाँ, सबके मन मा छायI 

एक पाँव मा नाच के, प्रतिभा अपन दिखायII 


रामाकृष्णन पाँव ले, रिहिस भले विकलांगI 

जर्नलिस्ट मा नाम हे, उन ला हे साष्टांगII 


प्रशासनिक पद मा इरा, पहिली महिला आयI 

हावय वो दिव्यांग गा, तब ले नाम कमायII


विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव (धरसीवांँ)

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[10 बनसांकरा: *दिव्यांग--रोला छंद* 

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कहाँ दया के पात्र,आज दिव्यांग आदमी।

दय हौसला समाज,बनयँ ताकत सबो कमी।।

प्रतिभा जइसन काम,मिलय बस अवसर सरलग।

ए मन बर हिनमान,नजरिया बदलय अब जग।।


कोनो भी दिव्यांग,कभू होवय हताश झन।

देह भले नइ पोठ,रखय मजबूत अपन मन।।

कमजोरी ला जीत,कहूँ जब कदम उठाही।

मन के बल के जोर,लगा के मंजिल पाही।।


दीपक निषाद--लाटा- बेमेतरा

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Jaleshwar Das Manikpuri 21: दिव्यांग    जलेश कुंडलिया ,

जे मनखे दिव्यांग हे,उँखरो  गजब कमाल।

गीत कला संगीत मा,करथे खूब धमाल।।

करथे खूब धमाल,नाम जी बिकट कमाथे।

पाथे मया दुलार,अबड़ के पैसा पाथे 

कहिथे दास जलेश,रहव भ इ सुग्घर बनके।

करन सदा सम्मान, भाइ रे!अइसन मन के।।

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 *दिव्यांग--रोला छंद* 

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नइ कोनो दिव्यांग,दया करुणा अब चाहय।

दय हौसला समाज,आस बस अतके राहय।।

हुनर मुताबिक काम,मिलय अवसर हा सरलग।

ए मन बर हिनमान,नजरिया बदलय अब जग।।


एकर मन के जोश,बढ़ाना चाही हरदम।

देह भले कमजोर,आत्मबल झन होवय कम।।

छोड़ अपँगहा सोच,कहूँ जब कदम उठाही।

मन के बल के जोर,लगा के मंजिल पाही।।


दीपक निषाद--लाटा- बेमेतरा

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 डमरू बलौदा बाजार 15: *दिव्यांग*

*दोहा छंद*

 हाथ गोड़ मुँह कान अउ, आँखी हे कमजोर।

कहलाथें दिव्यांग उन, ये विचार हे मोर।।१।।


 जन्मजात होथें कहूँ, कहूँ जनम के बाद।

कोनो लापरवाह हो, चिखथें एखर स्वाद।।२।।


जानव झन विकलांग ला, मनखे अलग विचित्र।

भेदभाव ला झन करव, रखव बनाके मित्र।।३।।


उदाहरण कतको हवै, सुनलव देवन ध्यान।

सूरदास अरु अरुणिमा , जग मा हवैं महान।।४।।


स्टीफन आइंस्टीन अउ, केलर अष्टावक्र।

जौन ज्ञान विज्ञान मा, बदलिस गति के चक्र।।५।।


जानव ये विकलांगता, नोहय जी अभिशाप।

मानौ झन फल करम गति, अउ नइ कोनो पाप।।६।।


दुख पहुँचय मन मा उँखर, अइसन मत लौ नाम।

हँसी उड़ावव झन कभू, संग रखव निज वाम ।।७।।


गिने चुने जग मा हवैं, तन ले जी दिव्यांग।

लेकिन अब मिलथें बहुत, आज रचत जन स्वांग।।८।।


भागवत प्रसाद चन्द्राकर

०९-१०-२०२५

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दोहा छंद ।।दिव्यांग।।


कमी अंग के देह मा, कहलाथें दिव्यांग।

आँख कान मुँह हाथ या, होय अधूरा टांग।।1


जनम जात विकलांगता, कतको झन हा पाँय।

जनम बाद कतको झने, रोग ग्रस्त हो जाँय।।2


कहलाथें दिव्यांग जे, होथें बड़ जी खास।

रहिथें उन ला देह मा, अपन आत्मविश्वास।।3


हे अपंग तन ले भले, रहिथें मन मजबूत।

संग जमाना के चलै, करम करैं अद्भूत।।4


कमी अंग मा जान के, नइ मानय उन हार।

कमजोरी ताकत बना, नइ लेवय उपकार।।5


हावय कतको क्षेत्र मा, आज इँखर बड़ नाम।

बड़े-बड़े कर काम ला, पायें हवय मुकाम।।6


कमजोरी के काकरो, झन करहू उपहास।

आगु बढ़ै दव प्रेरणा, सदा बँधावव आस।।7


- गुमान प्रसाद साहू 

- समोदा (महानदी)

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*कुण्डलिया*


 तन ले कहूँ अपंग हे, नोहय कोनो रोग।

भेद उँखर ले झन करौ, सम जानव जस लोग।।

सम जानव जस लोग, मान नित उनला देवव।

सुख - दुख लेवव बाँट, शोर उँखरो नित लेवव।।

नोहय जी अभिशाप, मान राखव सब मन ले।

कतको बनिन महान, हवै  कमजोरी तन ले।।


देखव सब इतिहास ला, अमर कई दिव्यांग।

नाच-गान संगीत अउ, ज्ञान शोध हे मांग।।

ज्ञान शोध हे मांग, पंगु परबत मा चढ़गें।

 मुक बधीर अउ सूर, सार गीता के पढ़गें।।

धरती अउ आगास, सबो जग आज सरेखव।

पाछू नइ हें आज, कहूँ इन जा के देखव।।



भागवत प्रसाद चन्द्राकर

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: विकलांग - कुन्डलिया 


क्षमता कतका हे भरे, हवय भले विकलांग।

कहिके लुलवा खोरवा, खींचव झन गा टांँग।

खींचव झन गा टांँग, देव झन उन ला गारी।

हवय चुनौती रोज, हौसला रखथे भारी।

जिनगी लगे पहाड़, तभो नइ गीना गनता।

हवय भले विकलांग, गजब के हावय क्षमता।।


संगीता वर्मा 

भिलाई

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: दिव्यांगता*

विधा- दोहा गीत

~~~~~~~~~~~~~~~~~

भुइयाँ मा भगवान के, अलग उँकर हे छाप।

मनखे बर दिव्यांगता, नोहय जी अभिशाप।।


दिव्य अंग ला देख के, होवव नहीं उदास।

होथे जी दिव्यांगजन, प्रभु के रचना खास।।

शक्ति अपन पहिचान के, देवव सुख के थाप।

मनखे बर दिव्यांगता, नोहय जी अभिशाप।।


आत्म शक्ति जब जागथे, होथे अंतस ज्ञान।

कमजोरी तब अंग के, बन जाथे वरदान।।

सिद्ध काम होथे सबो, मिट जाथे संताप।

मनखे बर दिव्यांगता, नोहय जी अभिशाप।।


काया के निःशक्तता, रोक सकय नइ चाह।

मन के दृढ़ संकल्प ले, मनखे पाथे राह।।

कलम करम के धर लिखव, सुखद कहानी आप।

मनखे बर दिव्यांगता, नोहय जी अभिशाप।।


दुनिया मा दिव्यांग के, करथे जे अपमान।।

ओकर जिनगी हा घलो, बनथे दुख के खान।

दुख देवइ मन ला उँकर, "साँची" हे बड़ पाप।

मनखे बर दिव्यांगता, नोहय जी अभिशाप।।


      *डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"*

        भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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: *दिव्यांगता*

*चौपाई*


 *मानौ झन मन ले कभू, ए तन ला कमजोर।*

*राखव मन मा हौशला, नाम उड़ावव शोर।।*


 कुंठित झन होवव सँगवारी।

नोहय दिव्यांंगता बिमारी।।

आही जब मन मा बल भारी।

दूर सबो होही लाचारी।।


पूर्व जनम के फल झन मानौ।

 शारीरिक कमजोरी जानौ।।

कभू कहूँ मन ले झन हारौ।

महिनत करव अमृत रस झारौ।।


 पढ़व-लिखव सब आगू आवव।

 बाधा टोरत नाम कमावव।।

सूरदास जी बिन आँखी के।

दर्शन पाइन मोहन जी के।।


जब रवीन्द्र जी गीत सुनावै।

  नाच सुधा चन्द्रन दिखलावै।।

ज्योति आमगे  जानव स्टीफन।

नाम कमाइन जग मा एमन।।


अइसन कतको नाम अमर हें।

बना डरिन जन मन मा घर हें।।

मन मा मजबूती अब लानव।

तन कमजोर कभू झन जानव।।


*जीवन मा दिव्यांगता, बाधक नइ हे आज।*

*नाम अमर जग मा रहै, करलौ अइसन काज।।*


भागवत प्रसाद चन्द्राकर

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12-10-25

: कुण्डलिया छन्द  - विकलांग 


राशन सब ला मुफ्त के, करत हवय विकलांग।

चाउँर कतको बेच के, पीथे दारू भाँग।।

पीथे दारू भाँग, अपाहिज जइसे रहिथे।

काम करे नइ जाय, लोग लइका दुख सहिथे।।

मिले सबो ला काम, करे कुछ अइसे शासन।

गहूँ चना अउ दाल, मुफ्त झन देवय राशन।।


जगन्नाथ ध्रुव घुँचापाली

बागबाहरा


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: कुंडलिया छंद - विकलांग दिव्यांग


कनवा लुलवा लंगड़ा, ये होथे दिव्यांग।

कोन्हो मन भैरा घलो, कहलाथे विकलांग।।

कहलाथे विकलांग, मानसिक रोगी कतको।

ये समाज के अंग, रखो आदर उन वतको।।

करव झनी हिनमान, साफ रहिथे इन मनवा।

बड़का करथे काम, कला साहित मा कनवा।।


नंदकिशोर साव 

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: आल्हा छन्द - विकलांग (११/१०/२०२५)


सुन लेवव विकलांग मनुज मन, झन समझव खुद ला कमजोर ।

तुॅंहरे जइसे कतको झन के, जग मा होवत हावय शोर ।।


सूरदास मा सूर समाये, कृष्ण भक्ति मा होगे लीन ।

दुनिया जेकर गुन ला गावॅंय, रचना खास रचे हें तीन ।।


हरिशंकर परसाई देखव, व्यंग्यकार अउ लेखक खास । 

राजनीति अउ धरम करम बर, लिखिस व्यंग्य बनगे इतिहास ।।


नृत्य सुधा चंद्रन के सुग्घर, मन ला मोहत हावय आज ।

टीवी धारावाहिक मन मा, देख सकत हव ओकर काज ।।


उदाहरण कतको मिल जाही, कतका के मॅंय करॅंव बखान ।

करम करे ले फल हा मिलथे, होथे असली के पहिचान ।।


मन मा थोकन धीर धरव जी, झन छोड़व आशा विश्वास ।

ज्ञानी अउ ध्यानी बन जाहू, कर लव मिहनत अउ अभ्यास ।।


जन्मजात या अर्जित कारण, तन मन ला करथे नुकसान । 

खानपान अउ देखभाल ले, रोकथाम होथे लव जान ।।


नशापान अउ धूम्रपान हा, ये जिनगी बर हावय घात ।

दुर्घटना ला लाथे घर मा, सोंच समझ लव धर लव बात ।।


ऑंख कान मुॅंह हाथ गोड़ के, दुर्बलता ला कर लव दूर ।

नवा-नवा तकनीक तरीका, योगदान मिलही भरपूर ।।


ओम प्रकाश पात्रे 'ओम '

बोरिया बेमेतरा छत्तीसगढ़


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दोहा छंद ।।दिव्यांग।।


कमी अंग के देह मा, कहलाथें दिव्यांग।

आँख कान मुँह हाथ या, होय अधूरा टांग।।1


जनम जात विकलांगता, कतको झन हा पाँय।

जनम बाद कतको झने, रोग ग्रस्त हो जाँय।।2


कहलाथें दिव्यांग जे, होथें बड़ जी खास।

रहिथें उन ला देह मा, अपन आत्मविश्वास।।3


हे अपंग तन ले भले, रहिथें मन मजबूत।

संग जमाना के चलै, करम करैं अद्भूत।।4


कमी अंग मा जान के, नइ मानय उन हार।

कमजोरी ताकत बना, नइ लेवय उपकार।।5


हावय कतको क्षेत्र मा, आज इँखर बड़ नाम।

बड़े-बड़े कर काम ला, पायें हवय मुकाम।।6


कमजोरी के काकरो, झन करहू उपहास।

आगु बढ़ै दव प्रेरणा, सदा बँधावव आस।।7


- गुमान प्रसाद साहू 

- समोदा (महानदी)

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विधा- दोहा गीत

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भुइयाँ मा भगवान के, अलग उँकर हे छाप।

मनखे बर दिव्यांगता, नोहय जी अभिशाप।।


दिव्य अंग ला देख के, होवव नहीं उदास।

होथे जी दिव्यांगजन, प्रभु के रचना खास।।

शक्ति अपन पहिचान के, देवव सुख के थाप।

मनखे बर दिव्यांगता, नोहय जी अभिशाप।।


आत्म शक्ति जब जागथे, होथे अंतस ज्ञान।

कमजोरी तब अंग के, बन जाथे वरदान।।

सिद्ध काम होथे सबो, मिट जाथे संताप।

मनखे बर दिव्यांगता, नोहय जी अभिशाप।।


काया के निःशक्तता, रोक सकय नइ चाह।

मन के दृढ़ संकल्प ले, मनखे पाथे राह।।

कलम करम के धर लिखव, सुखद कहानी आप।

मनखे बर दिव्यांगता, नोहय जी अभिशाप।।


दुनिया मा दिव्यांग के, करथे जे अपमान।।

ओकर जिनगी हा घलो, बनथे दुख के खान।

दुख देवइ मन ला उँकर, "साँची" हे बड़ पाप।

मनखे बर दिव्यांगता, नोहय जी अभिशाप।।


      *डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"*

        भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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 चौपाई छ्न्द  - दिव्यांग / विकलांग 


हे विकलांग सजा दुख भारी। चढ़ नइ पावय ऊँच अटारी।।

सेवा करें बाप महतारी। इन कर  हिरदय लगे कटारी।।


ये कइसन जिनगी हे देवा।  बजातेन हम जिनकर सेवा।।

खवातेन मिसरी अउ मेवा। चार चिरौंजी डार कलेवा ।।


हाथ पाँव अउ नइ ये आँखी।  जिनगी जस चिरई बिन पाँखी।।

बहिनी कामा बाँधय राखी। चल नइ पावय बिन बैसाखी।।


कनो होय विकलांग जनम ले। कनो होय गुन दोष करम ले।।

कनो होय हे भरे जवानी। कनो होय हे जी नादानी।।


सूरदास के दोहा कविता। चमकय जस अगास म सविता।।

अष्टावक्र भये बड़ ज्ञानी। करय दूध ले अलगे पानी।।


इन कर भीतर दिव्य खजाना। साध अगर ले कहे जमाना।।

वाह वाह हे सुरमय गाना। वाह वाह हे ताल बजाना।।


वाह वाह हे तुँहरे रचना।  वाह वाह हे लिखना पढ़ना।।

वाह वाह परबत मा चढ़ना। चित्रकला अउ मूरत गढ़ना।।


     तातु राम धीवर

भैसबोड़ जिला धमतरी

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दोहा छंद-- दिव्यांग/विकलांग 


तर्क लगाके देख लौ, थोरिक अपने आप।

जन्मजात विकलांगता, नोहय कोनो श्राप।।


ककरो आधा हाथ अउ, ककरो आधा टांग।

उन शारीरिक रूप ले, होथें जी विकलांग।।


अनुवांशिक गुण के कमी, करै अपंग शरीर।

अइसन पा के जन्म ला, मिले सदा हे पीर।।


कोन कथे दिव्यांग मन, होथें जी कमजोर।

शिक्षा अउ साहित्य मा, हे उँखरो बड़ शोर।।


अनुवांशिकता दोष ले, आथे देह विकार।

अँधवा कँनवा रूप पा, नइ मानँय उन हार।।


भेदभाव ला छोड़ के, दव समाज मा स्थान।

तभे बरोबर आज गा, मिल पाही सम्मान।।


मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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*विषय - दिव्यांगता* 

                 *सार छंद*


विश्व पटल मा अपन कला ले,हवयँ बटोरत ताली।

दिव्य अंग वाले मन भी गा,होथें प्रतिभाशाली।


कोनो पढ़ई लिखई मा जी,अड़बड़ नाम कमाथे।

ता कोनो हा खेलकूद मा, बड़ परचम लहराथे।

हमर देश के बाँटा कोनो ,पदक जाय ना खाली।

दिव्य अंग वाले मन भी गा,होथें प्रतिभाशाली।


होंय धनी अद्भुत प्रतिभा के, झन समझौ बेचारा।

कमजोरी ला शक्ति बनाके,करत जगत उजियारा।

अगर ठान लिन कोनो येमन,घर लाथें खुशहाली।

दिव्य अंग वाले मन भी गा,होथें प्रतिभाशाली।


इँकर उपर झन हाँसहु कोनो ,झन करहू जी चारी।

बितथे इँकरो जिनगी ले दे, कष्ट झेलथें भारी।

दुख पीरा संगे चलथे जी, झेलयँ बड़ बदहाली।

दिव्य अंग वाले मन भी गा,होथें प्रतिभाशाली।


करयँ गुजारा भीख माँग के,अइसन नर अउ नारी।

ता कतको अइसन मनखे मन,हवय बड़े अधिकारी।

करौ विनय भगवान ले इँकर,बने रहय खुशहाली।

दिव्य अंग वाले मन भी गा,होथें प्रतिभाशाली।

   

      अमृत दास साहू 

        राजनांदगांव



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