: दोहा गीत-सम्मान
बँटे रेवड़ी के असन, जघा जघा सम्मान।
आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।
देवइया भरमार हें, लेवइया भरमार।
खुश हें नाम ल देख के,सगा सहोदर यार।
नाम गाँव फोटू छपा, अपने करयँ बखान।
आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।
साहित के संसार मा, चलत हवै ये होड़।
मुँह ताके सम्मान के, लिखना पढ़ना छोड़।
कागज पाथर झोंक के, बनगे हवैं महान।
आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।
धरहा धरहा लेखनी, सरहा होगे आज।
चाटुकार के शब्द हा, पहिनत हावै ताज।
हवै पुछारी ओखरे, जेखर हें पहिचान।
आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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सरसी छंद
विषय-सम्मान
अपन मान ला बेचत हावँय, थोरिक नइ हे लाज।
होड़ मचे हे मान पाय बर, सब्बो कोती आज।।
मान खरीदे बर पैसा मा, जावत हें बाजार।
होशियार सब बनत हवें गा, देखत हे संसार।।
कतको मन बढ़ा चढ़ा के, अपन बतावत काज।।
होड़ मचे हे मान पाय बर, सब्बो कोती आज।।
काम-धाम मा रंग-ढंग नइ, पावत हें सम्मान।
बने कला के इज्जत नइ अब, इँखर जात हें जान।।
नवसेखीया मन के मुड़ मा, सजत हवय अब ताज।।
होड़ मचे हे मान पाय बर, सब्बो कोती आज।।
अनुज छत्तीसगढ़िया
पाली जिला-कोरबा
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विषय - सम्मान
दोहा छ्न्द -
संझा हो या रात हो, चाहे हो दिनमान।
गदगद होवय मन बड़ा, पाये जब सम्मान।।
खेल कूद या दौंड़ हो, सद्गुण राखे ध्यान।
मिहनत कर आगू बढ़े, उही पात सम्मान।।
पाये बर सम्मान के, होवय भारी जंग।
ओन्हा फेंकय देंह ले, पहिरय कपड़ा तंग।
लबरा मन के राज हे, झूठ कपट के ताज।
पाये बर सम्मान के, बेंच डरिन इन लाज।।
कथनी करनी के इहाँ, दिखय नहीं जी मेल।
मान अउर सम्मान हे, अब पइसा के खेल।।
एक हाप हे चाय मा, बेँचत हे ईमान।
पइसा जेकर पास मा, ओकर हे सम्मान।।
देख आज परिवार मा, घटे पिता के मान।
आँखी लाली हे दिखा, लेवत हावय जान।।
मातु पिता के डांँट हा, लगय घोर अपमान।
पर के गारी मार हा, लगय बड़ा सम्मान।।
फँसे मान अपमान मा, कलजुग के इन्सान।
भूल गये बिधि राम के, खोजत हे सम्मान।।
तातू राम धीवर
भैंसबोड़ जिला धमतरी
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सम्मान
जिहाँ मान राहय नहीं, जा झन कखरों द्वार।
चटनी बासी खा लिहौ, संग रहौ
परिवार।।
दई ददा के मान मा, कभू कमी झन राख।
ईश्वर अइसन जान के, करलौ सेवा लाख।।
नारी घर के लाज हे, करौ झीन अपमान।
नारी बिन घर सून हे,उही बढ़ाथे शान।।
लिखौ सबों मन भाव ला, पाय कलम सम्मान।
सुनौ गोठ गुरु के सदा,पावव जग पहिचान ।।
धनेश्वरी सोनी 'गुल'✍️
बिलासपुर
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[11/24, 7:04 PM] डी पी लहरे: दोहा गीत
विषय-सम्मान
चाटुकार कवि मन कका, पाथें बड़ सम्मान।
सबो जघा के मंच मा, इँखरे सेखी-शान।।
जोक्कड़ जइसे मंच मा, फुदकत रहिथें रोज।
फूहड़ सदा परोसथें, माइक मुँह मा बोज।
साहित बिना समाज ला, नइ दे पावँय ज्ञान।
चाटुकार कवि मन कका,पाथें बड़ सम्मान।
बड़का अपने आप ला, कहिथें साहितकार।
इँखरे रचना देख ले , नइ राहय दमदार।
भूँखा इन सम्मान के, बस अतके हे ध्यान।
चाटुकार कवि मन कका, पाथें बड़ सम्मान।।
डी.पी.लहरे'मौज'
कवर्धा छत्तीसगढ़
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[11/26, 5:18 PM] Sumitra कामड़िया 15: *दोहा-*
*काकर मन खाली हवै, छलके काकर ज्ञान ।*
*कोन- कोन बुधियार हे, कोन खड़े सग्यान।।*
*मान इहाँ मिलथे कहाँ, जेकर हे अधिकार।*
*बेंच डरिन सम्मान ला, कइसे ये सतकार।।*
*सुमित्रा शिशिर*
[11/26, 7:23 PM] राज निषाद: *दोहा*
*विषय-सम्मान*
देखौ कइसे काज हे, बाँटत हें सम्मान।
भीड़ लगे हे पाय बर, बनगे सबो सुजान।।
रचना अइसन तुम करव, सुग्घर अउ जी पोठ।
पढ़ैं छंद अउ गीत ला, करँय बड़ाई गोठ।।
असली ये सम्मान हे, बाँकी सब बेकार।
मान उही ला जी मिलै, जिंकर हे अधिकार।।
राजकुमार निषाद'राज'
बिरोदा,धमधा, जिला-दुर्ग
[11/26, 8:01 PM] मीता अग्रवाल: घनाक्षरी
*सम्मान*
बेरा-बेरा बने गोठ,करय बुद्धि ल पोठ,
साहित समाज बर,होय बने संस्कार।
सुघ्घर बानी लिखव, सोच समझ सीखव,
आनी-बानी विषय के,
गद्य-पद्य भंडार।
गुरु बिन ज्ञान नहीं,गुरु हे सम्मान सही,
गुरु छंद ज्ञान चंद्र,सीतल नीक बयार।
देथे शिक्षा गुरु मन, साधना साधक जन
सम्मान के हकदार,
छंद छ परिवार।
दान-मान मया मिले, काज जब सही करें,
जाने-माने लोक जन,बने बिश्वास-द्वार।
बाढ़य मन-विश्वास सफलता जागेआस,
रद्दा फेर खुल जथे,अवसर आधार।
हर रद्दा बने चल,बिछे कांटा पांव धर,
फल चिंता झिन कर पाबे मान सत्कार।
सांच-आंच तपे तभे,चम चम लाली फभे,
होवय मान सम्मान, सम्मान अधिकार।।
डॉ मीता अग्रवाल मधुर
[11/26, 9:47 PM] दीपक निषाद, बनसांकरा: *सम्मान (रोला छंद)*
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पाए बर सम्मान,उदिम अड़बड़ सब करथें।
तीन-पाँच के राह,घलो लोगन मन धरथें।।
हरय असल सनमान,मिलय जे साँच करम ले।
परे रहय जे द्वेष ,दिखावा अउ तिकड़म ले।।
दीपक निषाद--लाटा (बेमेतरा)
[11/26, 10:19 PM] +91 82518 53898: *सम्मान*
*विधा- प्रदीप छंद गीत*
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सुग्घर करम करे ले बनथे, मनखे के पहिचान हे।
नइ बिसाय ले मिलय कभू जी, बड़ मँहगा सम्मान हे।।
धन दौलत अउ सोना चाँदी, सब रुपया के मोल हे।
दिखथे ढोल सही बाहिर ले, फेर तरी मा पोल हे।
काम न आवय महल अटारी, कहिथे संत सुजान हे।
नइ बिसाय ले मिलय कभू जी, बड़ मँहगा सम्मान हे।।
स्वारथ ले जब ऊपर उठके, करथे कोनो काज जी।
वो मनखे हा करथे जग मा, सबके मन मा राज जी।
करके मिहनत नाँव कमाथे, मनखे उही महान हे।
नइ बिसाय ले मिलय कभू जी, बड़ मँहगा सम्मान हे।।
माटी मा मिल जाही माटी, ये जिनगी दिन चार हे।
सोला आना बात समझथे, "साँची" जे बुधियार हे।
रहि जाथे सम्मान अमर जी, छुटथे भले परान हे।
नइ बिसाय ले मिलय कभू जी, बड़ मँहगा सम्मान हे।।
*डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"*
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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[11/27, 7:12 AM] पात्रे जी: प्रदीप छंद- *सम्मान*
चना रेवड़ी कस बाँटत हें, मंच सजा सम्मान ला।
लोग भुलागे हाँवय देखव, सच करनी पहिचान ला।।
देवव जी सम्मान उही ला, जो असली हकदार हे।
चाँटत हें हक के सथरा ला, चाटुकार भरमार हे।।
राग धरे उन दरबारी अब, गावत हें गुनगान ला।।
चना रेवड़ी कस बाँटत हें, मंच सजा सम्मान ला।।
बड़े-बड़े सम्मान बिकत हे, पइसा के अब जोर मा।
पर असली सम्मान खड़े हे, आँसू पोछत खोर मा।।
ज्ञानी ध्यानी लोग सुजानिक, थोरिक करौ गुनान ला।
चना रेवड़ी कस बाँटत हें, मंच सजा सम्मान ला।।
बंजर परिया कस कब्जा अब, होवत हे सम्मान हा।
चील गिद्ध कस गड़े रथे जी, लोगन मन के ध्यान हा।।
गजानंद जी का समझावँव, बउराये इंसान ला।
चना रेवड़ी कस बाँटत हें, मंच सजा सम्मान ला।।
✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 27/11/2025
[11/27, 10:24 AM] Dhaneshwari Soni Gull 📚📖✒️: बिषय_____सम्मान
अड़बड़ मिहनत करथे जेनें, ओखर बाढ़त जाथे शान ।
बुता करें बर परथे अड़बड़, तभ्भे मिलथे कछु सम्मान।।
आलस के पलथी मारे ले, कइसे होही बड़का काम।
दिन-रात खटे ला परथे जी,मिलय न एको छिन आराम।।
बिषय बाच के माहिर होथे,पाथे ओही मनखे ज्ञान।
बुता करें बर परथे अड़बड़, तभ्भे मिलथे कछु सम्मान।।
समझ सकै जौने मनखे मन, सम्मान अबड़ हे अनमोल।
कोन खरीदें सकही एला, कोने सकहीं तोले तोल।।
कोनें धंधा पानी करही, गिरही काखर कनि ईमान।
बुता करें बर परथे अड़बड़, तभ्भे मिलथे कछु सम्मान।।
सोना चांदी हीरा मोती,छाए हावय गा संसार।
अहंकार के मारे मनखे, इतरावत रहिथे भरमार।।
अमर होय बर मान बिना फुन, छूटत रहिथे तभे परान।।
बुता करें बर परथे अड़बड़, तभ्भे मिलथे कछु सम्मान।।
धनेश्वरी सोनी 'गुल' ✍️
बिलासपुर
[11/27, 10:50 AM] +91 99265 58239: आल्हा छंद - सम्मान
आज नवा युग मा सब देखव, सबके होवत हे सम्मान ।
चाहे साफ सफाई कर्मी, चाहे इसरो के विज्ञान।।
किसम किसम के हाबय मनखे, किसम किसम के होवत शोर।
काम बने सब करके देखव , बनके देखव बने सजोर।।
चुक - चुक ले ॲंगना मा आही, उज्जर चंदा सही ॲंजोर।
शोर घलो जमके होही अउ , मया मातही चारों ओर ।।
जग में बढ़िया नाव कमाबे, अलगे बनही जी पहिचान ।
आज नवा युग मा सब देखव, सबके होवत हे सम्मान ।।
सादर समीक्षार्थ
संजय देवांगन सिमगा ✍🏻
[12/4, 6:54 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: सम्मान-हरिगीतिका छन्द
सम्मान बर सम्मान ला गिरवी धरौ जी झन कभू।
कागत धरे पाथर धरे रेंगव अकड़ जड़ बन कभू।।
माँगे मिले ता का बता वो लेखनी के शान हे।
जब बस जबे सबके जिया मा ता असल सम्मान हे।।
जूता घिंसे बूता करत तब ले कई पिछुवात हें।
ता चाँट जूता एक दल सम्मान पा अँटियात हें।।
पइसा पहुँच मा नाम पागे काम के नइहे पता।
जेहर असल हकदार हे थकहार घूमत हे बता।।
तुलसी कबीरा सूर मीरा का भला पाये हवै।
लालच जबर बन जर बड़े नव बेर मा छाये हवै।।
ये आज के सम्मान मा छोटे बड़े सब हें रमे।
नभ मा उड़त हावैं कई कोई धरा मा हें जमे।।
साहित्य साहस खेल सेवा खोज होवै या कला।
विद्वान के होवै परख मेडल फभे उँखरें गला।।
जे योग्य हें ते पाय ता सम्मान के सम्मान हे।
पइसा पहुँच बल मा मिले सम्मान ता अपमान हे।।
उपजे सुजानिक देख के सम्मान अइसन भाव ए।
अकड़े जुटा सम्मान पाती फोकटे वो ताव ए।।
सम्मान नोहे सील्ड मेडल धन रतन ईनाम ए।
बूता बताये एक हा ता एक साधे काम ए।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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