घनाक्षरी - श्री कन्हैया साहू "अमित"
पितर पाख -
बेटा-बहू बड़ तपे, आगी खा अँगरा खपे, रोज के मरना जपे, मोला तरसाय हें।
राखे रहैं पोरा नाँदी, रोज खाँय बफे माँदी, मोर बर सुक्खा काँदी, पसिया पियाय हें।
उछरँय करू करू, होगे रहँव मैं गरू, पानी कहाँ एक चरू, भारी मेछराय हें।
जीयत मा मारे डंडा, मरे के बाद म गंगा, राँधे हावै सतरंगा, पितर मिलाय हें।
छन्दकार -श्री कन्हैया साहू "अमित"
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पीतर(किरीट सवैया) - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
(1)
काखर पेट भरे नइ जानँव पीतर भात बने घर हावय।
पास परोस सगा अउ सोदर ऊसर पूसर के बड़ खावय।
रोज बने ग बरा भजिया सँग खीर पुड़ी बड़ गा मन भावय।
खेवन खेवन जेवन झेलय लोग सबे झन आवय जावय।
(2)
आय हवे घर मा पुरखा मन आदर खूब ग होवन लागय।
भूत घलो पुरखा मनके बड़ आदर देख ग रोवन लागय।
जीयत जीत सके नइ गा मन झूठ मया बस बोवन लागय।
पाप करे तड़फाय सियान ल देख उही ल ग धोवन लागय।
(3)
पीतर भोग ल तोर लिही जब हाँसत जावय वो परलोक म।
आँगन मा कइसे अउ आवय जेन जिये बस रोक ग टोक म।
पालिस पोंसिस बाप ह दाइ ह राखिस हे नव माह ग कोख म।
हाँसय गावय दाइ ददा नित राहय ओमन हा झन शोक म।
(4)
जीयत मा करले तँय आदर पीतर हा भटका नइ खावय।
छीच न फोकट दार बरा बनके कँउवा पुरखा नइ आवय।
दाइ ददा सँग मा रहिके करथे सतकार उही पद पावय।
वेद पुराण घलो मिलके बढ़िया सुत के बड़ जी गुण गावय।
हरिगीतिका छंद - गोठ पुरखा के
(1)
मैं छोड़ दे हौं ये धरा,बस नाम हावै साख गा।
पुरखा हरौं सुरता ल कर,पीतर लगे हे पाख गा।
रहिथस बिधुन आने समय,अपने खुशी अउ शोक मा।
चलते रहै बस चाहथौं,नावे ह मोरे लोक मा।
(2)
माँगौं नहीं भजिया बरा,चाहौं पुड़ी ना खीर गा।
मैं चाहथौं सत काम कर धरके जिया मा धीर गा।
लाँघन ला नित दाना खवा कँउवा कुकुर जाये अघा।
तैं मोर बदला दीन के दे डेहरी दाना चघा।
(3)
कर दे मदद हपटे गिरे के मोर सेवा जान के।
सम्मान दे तैं सब बड़े ला मोर जइसे मान के।
मैं रथौं परलोक मा माया मया ले दूर गा।
पीतर बने आथौं इहाँ पाथौं मया भरपूर गा।
छन्दकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
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पितर तर्पण - आशा देशमुख
(1) त्रिभंगी छंद
लीपत हे ओरी ,दिया अँजोरी ,पितर पाख मा मान करे।
जीयत नइ भावय ,मरे मनावय ,देखा देखी दान करे।
पुरखा तर जाही ,सब सुख आही ,सरजुगिया ले रीत चले।
पूजत हे दुनियाँ ,साँझ बिहनियां,बिन बाजा के गीत चले।
(2) मदिरा सवैया
मान मरे पुरखा मन के अउ जीयत बाप इहाँ तरसे।
रीत कहाँ अब कोन बतावय ,नीर बिना मछरी हरसे।
देखत हे जग के करनी सब रोवत बादर हा बरसे।
फ़ोकट के मनखे अभिमान दिनों दिन पेड़ सहीं सरसे।
(3) शंकर छंद
जीयत ले नइ पूछय बेटा ,आज पितर मनाय।
दाई मरगे लांघन भूखन ,मरे बाद खवाय।
कोन जनी गा मरे बाद मा, जाथे कहाँ जीव।
हाड़ राख हा गंगा जावय ,कोन पीये घीव।
छन्दकार - आशा देशमुख
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"पितर के बरा" -
एक गीत - श्री बोधनराम निषादराज
देख तो दाई कउँवा,छानी मा सकलावत हे।
पितर के बरा अउ सुहारी,बर सोरियात हे।।
कुँवार पितर पाख,देख ओरिया लिपाये हे।
घरो घर मुहाटी म,सुघ्घर चउँक पुराये हे।।
सबो देवताधामी अउ,पुरखा मन आवत हे।
देख तो दाई कंउवा.......................
तोरई पाना फुलवा, संग मा उरिद दार हे।
कोनो आथे नम्मी अउ,कोनो तिथिवार हे।।
मान गउन सबो करत हे,हुम गुँगवावत हे।
देख तो दाई कउँवा.......................
नाव होथे पुरखा के,रंग रंग चुरोवत हावै।
दार भात बरा बर, लइका ह रोवत हावै।।
जियत ले खवाये नही, मरे मा बलावत हे।
देख तो दाई कउँवा.......................
रचनाकार :-- श्री बोधनराम निषादराज
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पितर पाख -
बेटा-बहू बड़ तपे, आगी खा अँगरा खपे, रोज के मरना जपे, मोला तरसाय हें।
राखे रहैं पोरा नाँदी, रोज खाँय बफे माँदी, मोर बर सुक्खा काँदी, पसिया पियाय हें।
उछरँय करू करू, होगे रहँव मैं गरू, पानी कहाँ एक चरू, भारी मेछराय हें।
जीयत मा मारे डंडा, मरे के बाद म गंगा, राँधे हावै सतरंगा, पितर मिलाय हें।
छन्दकार -श्री कन्हैया साहू "अमित"
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पीतर(किरीट सवैया) - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
(1)
काखर पेट भरे नइ जानँव पीतर भात बने घर हावय।
पास परोस सगा अउ सोदर ऊसर पूसर के बड़ खावय।
रोज बने ग बरा भजिया सँग खीर पुड़ी बड़ गा मन भावय।
खेवन खेवन जेवन झेलय लोग सबे झन आवय जावय।
(2)
आय हवे घर मा पुरखा मन आदर खूब ग होवन लागय।
भूत घलो पुरखा मनके बड़ आदर देख ग रोवन लागय।
जीयत जीत सके नइ गा मन झूठ मया बस बोवन लागय।
पाप करे तड़फाय सियान ल देख उही ल ग धोवन लागय।
(3)
पीतर भोग ल तोर लिही जब हाँसत जावय वो परलोक म।
आँगन मा कइसे अउ आवय जेन जिये बस रोक ग टोक म।
पालिस पोंसिस बाप ह दाइ ह राखिस हे नव माह ग कोख म।
हाँसय गावय दाइ ददा नित राहय ओमन हा झन शोक म।
(4)
जीयत मा करले तँय आदर पीतर हा भटका नइ खावय।
छीच न फोकट दार बरा बनके कँउवा पुरखा नइ आवय।
दाइ ददा सँग मा रहिके करथे सतकार उही पद पावय।
वेद पुराण घलो मिलके बढ़िया सुत के बड़ जी गुण गावय।
हरिगीतिका छंद - गोठ पुरखा के
(1)
मैं छोड़ दे हौं ये धरा,बस नाम हावै साख गा।
पुरखा हरौं सुरता ल कर,पीतर लगे हे पाख गा।
रहिथस बिधुन आने समय,अपने खुशी अउ शोक मा।
चलते रहै बस चाहथौं,नावे ह मोरे लोक मा।
(2)
माँगौं नहीं भजिया बरा,चाहौं पुड़ी ना खीर गा।
मैं चाहथौं सत काम कर धरके जिया मा धीर गा।
लाँघन ला नित दाना खवा कँउवा कुकुर जाये अघा।
तैं मोर बदला दीन के दे डेहरी दाना चघा।
(3)
कर दे मदद हपटे गिरे के मोर सेवा जान के।
सम्मान दे तैं सब बड़े ला मोर जइसे मान के।
मैं रथौं परलोक मा माया मया ले दूर गा।
पीतर बने आथौं इहाँ पाथौं मया भरपूर गा।
छन्दकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
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पितर तर्पण - आशा देशमुख
(1) त्रिभंगी छंद
लीपत हे ओरी ,दिया अँजोरी ,पितर पाख मा मान करे।
जीयत नइ भावय ,मरे मनावय ,देखा देखी दान करे।
पुरखा तर जाही ,सब सुख आही ,सरजुगिया ले रीत चले।
पूजत हे दुनियाँ ,साँझ बिहनियां,बिन बाजा के गीत चले।
(2) मदिरा सवैया
मान मरे पुरखा मन के अउ जीयत बाप इहाँ तरसे।
रीत कहाँ अब कोन बतावय ,नीर बिना मछरी हरसे।
देखत हे जग के करनी सब रोवत बादर हा बरसे।
फ़ोकट के मनखे अभिमान दिनों दिन पेड़ सहीं सरसे।
(3) शंकर छंद
जीयत ले नइ पूछय बेटा ,आज पितर मनाय।
दाई मरगे लांघन भूखन ,मरे बाद खवाय।
कोन जनी गा मरे बाद मा, जाथे कहाँ जीव।
हाड़ राख हा गंगा जावय ,कोन पीये घीव।
छन्दकार - आशा देशमुख
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"पितर के बरा" -
एक गीत - श्री बोधनराम निषादराज
देख तो दाई कउँवा,छानी मा सकलावत हे।
पितर के बरा अउ सुहारी,बर सोरियात हे।।
कुँवार पितर पाख,देख ओरिया लिपाये हे।
घरो घर मुहाटी म,सुघ्घर चउँक पुराये हे।।
सबो देवताधामी अउ,पुरखा मन आवत हे।
देख तो दाई कंउवा.......................
तोरई पाना फुलवा, संग मा उरिद दार हे।
कोनो आथे नम्मी अउ,कोनो तिथिवार हे।।
मान गउन सबो करत हे,हुम गुँगवावत हे।
देख तो दाई कउँवा.......................
नाव होथे पुरखा के,रंग रंग चुरोवत हावै।
दार भात बरा बर, लइका ह रोवत हावै।।
जियत ले खवाये नही, मरे मा बलावत हे।
देख तो दाई कउँवा.......................
रचनाकार :-- श्री बोधनराम निषादराज
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बहुत बढ़िया गुरुदेव जी सादर नमन्
ReplyDeleteसादर आभार गुरुवर
ReplyDeleteहमर रचना मन ला छंद खजाना मा जगह दे हवव।
कोटिशः आभार नमन
सादर आभार गुरुवर
ReplyDeleteहमर रचना मन ला छंद खजाना मा जगह दे हवव।
कोटिशः आभार नमन
सबो रचनाकार मन ला गाड़ा गाड़ा बधाई हो
ReplyDeleteगुरुदेव कोटि-कोटि नमन।
ReplyDeleteसादर नमन गुरुदेव।।।
ReplyDeleteपुरखा मन के सुरता करत सुग्घर संग्रह।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना बधाई हो आप सब झन ल
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर रचना पितर पाख के सबो कवि मनला बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर पितर पाख मा छ्न्द संकलन ।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर पितर पाख मा छ्न्द संकलन ।
ReplyDeleteसबो रचनाकार मन ला गाड़ा गाड़ा बधाई
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteगुरुदेव के अभिनव कार्य।सादर नमन।बहुत सुन्दर सुन्दर रचना आय हे पितृपक्ष विशेषांक मा।हार्दिक बधाईयाँ
ReplyDeleteबड़ गजब के छंद संग्रह हे गुरू जी । सादर जय जोहार।
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