सार छंद आधारित गीत
"ये पित्तर के मनई लगथे,मोला जी बइहासी"
जीयत लोटा पानी तरसे,मरे म मथुरा काशी।
देख चरित्तर ये दुनिया के,आवत हे बड़ हाँसी।
ये पित्तर के मनई लगथे,मोला जी बइहासी।1।
जीयत भूखन लाँघन तरसे,मरे म चीला बबरा।
करिया कउँवा बाप बने हे,हत रे मानुष लबरा।
ताते तात कुकुर बिलई बर,पुरखा खावय बासी।
ये पित्तर के मनई लगथे,मोला जी बइहासी।2।
जीयत मीठा बोली तरसे,दउड़े लेकेे डंडा।
तर जही हमर पुरखा कहिके,पिंड पराये पंडा।
राह धरे हे मनखे कइसे,मन हे मोर उदासी।
ये पित्तर के मनई लगथे,मोला जी बइहासी।3।
जीयत तन लंगोटी तरसे,मरे म धोती कुरता।
जीयत सेवा करे नही अउ,मरे म करथस सुरता।
इही बात ला बोले हावय,मोर संत गुरु घासी।
ये पित्तर के मनई लगथे,मोला जी बइहासी।4।
छन्दकार - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
"ये पित्तर के मनई लगथे,मोला जी बइहासी"
जीयत लोटा पानी तरसे,मरे म मथुरा काशी।
देख चरित्तर ये दुनिया के,आवत हे बड़ हाँसी।
ये पित्तर के मनई लगथे,मोला जी बइहासी।1।
जीयत भूखन लाँघन तरसे,मरे म चीला बबरा।
करिया कउँवा बाप बने हे,हत रे मानुष लबरा।
ताते तात कुकुर बिलई बर,पुरखा खावय बासी।
ये पित्तर के मनई लगथे,मोला जी बइहासी।2।
जीयत मीठा बोली तरसे,दउड़े लेकेे डंडा।
तर जही हमर पुरखा कहिके,पिंड पराये पंडा।
राह धरे हे मनखे कइसे,मन हे मोर उदासी।
ये पित्तर के मनई लगथे,मोला जी बइहासी।3।
जीयत तन लंगोटी तरसे,मरे म धोती कुरता।
जीयत सेवा करे नही अउ,मरे म करथस सुरता।
इही बात ला बोले हावय,मोर संत गुरु घासी।
ये पित्तर के मनई लगथे,मोला जी बइहासी।4।
छन्दकार - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
वाह वाह बड़ सार्थक संदेश।हार्दिक बधाई पात्रे जी।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना बधाई हो गुरुजी
ReplyDeleteगजब सुग्घर रचना सर
ReplyDeleteगजब सुग्घर रचना सर
ReplyDeleteसुग्घर रचना सर जी ,वाह्ह्ह्ह
ReplyDeleteअपन रचना के माध्यम ले सार्थक संदेश दिये हव आदरणीय पात्रे सर।सुग्घर रचना बर हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteआप सबो आदरणीय जन ला बहुत बहुत बधाई।।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया भाई
ReplyDeleteबेहतरीन रचना सर हार्दिक बधाई ।।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पात्रे जी
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