आल्हा छंद - हिंदी भाषा
अबड़ सरल हे सीखे मा जी, बोले मा गुरतुर अउ सोझ ।
बड़ सजोर हे हिंदी भाषा , सबो भाव के सहिथे बोझ ।।
नइये कमसल बियाकरन मा, वैज्ञानिकता हे पुरजोर ।
शब्द खजाना भरे ठसाठस , अलंकार रस छन्द चिभोर ।।
दर्जा हे कानून म भारी, हमर राजभाषा कहिलाय ।
सदा सुहागिन फुलवा एहा ,घाम परे मा नइ मुरझाय ।।
कतको भाषा आइन गेइन , अंग्रेजी उर्दू भरमार ।
धमकी चमकी तको लगाइन, फेर कहाँ जी पाइन पार ।।
हिंदी ककरो बैरी नोहय ,कोनो ला नइ दय दुत्कार ।
जेहा एकर शरण म आथे, ओकर होथे बेड़ापार ।।
जन जन के भाखा हे हिंदी ,पढ़ लव गुन लव वेद पुरान ।
हृदय तार एही मा जुड़थे , जानौ एला देव समान ।।
दुनिया भरके मन सीखत हें , हम काबर रहिबो पछुवाय ।
मातु मान के सेवा करबो , गली गली मा जस बगराय ।।
हिंदी के महिमा सब गाबो , कलमकार मन कलम चलाय ।
गीत लिखत अउ रचत कहानी , मन चिटिको जी झन सकुचाय ।।
छन्दकार - श्री चोवाराम "बादल "
हथबंद
******************************
,,,,,,,,,,घनाक्षरी(हिंदी ),,,,,,,,
कहानी कविता बसे,कृष्ण राम सीता बसे,
हिंदी भाषा जिया के जी,सबले निकट हे।
साकेत के सर्ग मा जी,छंद गीत तर्ज मा जी,
महाकाव्य खण्डकाय,हिंदी मा बिकट हे।
प्रेम पंत हे निराला,रश्मिरथी मधुशाला,
उपन्यास एकांकी मा,कथा बड़ विकट हे।
साहित्य समृद्ध हवै,भाषा खूब सिद्ध हवै,
भारत भ्रमण बर,हिंदी हा टिकट हे।
नस नस मा घुरे हे, दया मया हा बुड़े हे,
आन बान शान हरे,भाषा मोर देस के।
माटी के महक धरे,झर झर झर झरे,
सबे के जिया मा बसे,भेद नहीं भेस के।
भारतेंदु के ये भाषा,सबके बने हे आशा,
चमके सूरज कस,दुख पीरा लेस के।
सबो चीज मा आगर,गागर म हे सागर,
भारत के भाग हरे,हिंदी घोड़ा रेस के।
चर्च मा जी चले हिंदी,मंदिर मा पले हिंदी,
बानी गुरु नानक के,आरती अजान के।
सागर के पानी सहीं,बहे गंगा रानी सहीं,
पर्वत पठार सहीं,खड़े सीना तान के।
ज्ञान ध्यान मान धरे,दुख दुविधा ल हरे,
निकले आशीष बन,मुख ले सियान के।
नेकी धर्मी धीर के जी,भक्त देव बीर के जी,
बहे मंदरस बन,हिंदी हिंदुस्तान के।
छन्दकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
******************************
समान सवैया - हिंदी भाषा
हिन्दी भाषा परम-पावनी, जस संगम गंगा कालिंदी।
माथ सजे चम चमचम चमके,जस भारत माता के बिंदी ।1।
प्रेम चंद के अमर कथा ये, बच्चन के हावय मधुशाला ।
लिखे सुभद्रा लक्ष्मी बाई, मीरा के ये हरि गोपाला।2।
तत्सम तद्भव देश विदेशी, सबो रंग ला ये अपनाथे ।
एक डोर मा सबला बाँधय, गीत एकता के ये गाथे ।3।
शब्द नाद अउ लिपि मा आघू, हम सबके ये एक सहारा।
सागर कस ये संगम लागे, गंगा कावेरी के धारा ।4।
सत्तर साल बीत गे तब ले, मान नहीं पाइस हे भाषा।
हमर राष्टभाषा के पूरा, कोन भला करही अभिलाषा।5।
संविधान हा भारत के जी, दिये राज भाषा के दरजा।
मान राष्ट्रभाषा के खातिर,हम सबके ऊपर हे करजा।6।
छन्दकार - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
******************************
सरसी छंद
पढ़व लिखव अउ बोलव हिंदी,सुंदर गुरतुर बोल।
हमर मातृभाषा ये आवय,छोड़व मारे रोल।
थोकन पढ़ लिखके मनखेमन , करत हवय नादान।
नाश करे अपने संस्कृति के,मारत रहिथे शान।
देखावा के चक्कर छोड़व,हिरदै मारय होल।
दिन दिन बाढ़त हमर देश मा,अंग्रेजी के रोल।
रोवत हे महतारी भाखा ,अबतो आँखी खोल।
दया मया के रस ला घोरत,हिंदी भाषा बोल।
हमर सभ्यता हमर धरोहर,हिंदी हे पहिचान।
अनेकता मा हवय एकता,सुंदर हिन्दुस्तान।
संकल्प करी आवव सब झन,देना हे अब ध्यान।
नाम चलय दुनिया मा दू ठन,हिंदी हिन्दुस्तान।
छन्दकार - श्री ज्ञानुदास मानिकपुरी
******************************
विष्णु छंद - हिंदी मातृभाखा
हिंदी महतारी भाखा हे,शान सबो कहिथे।
ए भाखा हा मान हमर जी,नीक अबड़ रहिथे।।
कतका सुग्घर लेखन शैली,अपन भाव लिखथे।
हिंदी के अक्षर मा जादू,देश भाव दिखथे ।।
जन-जन मा हिंदी पहुँचावौ,मान करव मन मा।
हिंदी के सब नाव बचावव,रंग लौ सब तन मा।।
कविता मा नव जोश आय सुन,खूब लिखौ मन ले।
देश प्रेम ला लिखदव अपने,सीख सबो झन ले।
देख इंगलिस छोड़े हिंदी ,दूर अबड़ रहिथे।
हिंदी मा सम्मान अबड़ हे,शान सबो कहिथे।।
हिंदी भाखा हिरदे राखव,रहय मान जग मा।
हिंदी हा सुन मान बढ़ाथे,नेक भाव रग मा।।
छन्दकार - श्रीमति आशा आजाद
पता-मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
******************************
दोहा छन्द - हिन्दी
छत्तीसगढ़ी हे मया, हिन्दी हे अभिमान।
दाई भाखा के सहीं,हिंदी ला तँय जान।।
हिन्दी भाषा राष्ट्र के, एला दव सम्मान।
हिन्दी के उत्थान ले,हमरो हय उत्थान।।
हिन्दी ला हीनव नहीं, अँगरेजी के नाम।
संसकार ले हय भरे,आही इही ह काम।।
हिन्दी ला सम्मान दव,कीमत एखर जान।
नइँ ता फिर से छिन जही,आजादी सच मान।।
छन्दकार - श्रीमती नीलम जायसवाल (भिलाई)-
अबड़ सरल हे सीखे मा जी, बोले मा गुरतुर अउ सोझ ।
बड़ सजोर हे हिंदी भाषा , सबो भाव के सहिथे बोझ ।।
नइये कमसल बियाकरन मा, वैज्ञानिकता हे पुरजोर ।
शब्द खजाना भरे ठसाठस , अलंकार रस छन्द चिभोर ।।
दर्जा हे कानून म भारी, हमर राजभाषा कहिलाय ।
सदा सुहागिन फुलवा एहा ,घाम परे मा नइ मुरझाय ।।
कतको भाषा आइन गेइन , अंग्रेजी उर्दू भरमार ।
धमकी चमकी तको लगाइन, फेर कहाँ जी पाइन पार ।।
हिंदी ककरो बैरी नोहय ,कोनो ला नइ दय दुत्कार ।
जेहा एकर शरण म आथे, ओकर होथे बेड़ापार ।।
जन जन के भाखा हे हिंदी ,पढ़ लव गुन लव वेद पुरान ।
हृदय तार एही मा जुड़थे , जानौ एला देव समान ।।
दुनिया भरके मन सीखत हें , हम काबर रहिबो पछुवाय ।
मातु मान के सेवा करबो , गली गली मा जस बगराय ।।
हिंदी के महिमा सब गाबो , कलमकार मन कलम चलाय ।
गीत लिखत अउ रचत कहानी , मन चिटिको जी झन सकुचाय ।।
छन्दकार - श्री चोवाराम "बादल "
हथबंद
******************************
,,,,,,,,,,घनाक्षरी(हिंदी ),,,,,,,,
कहानी कविता बसे,कृष्ण राम सीता बसे,
हिंदी भाषा जिया के जी,सबले निकट हे।
साकेत के सर्ग मा जी,छंद गीत तर्ज मा जी,
महाकाव्य खण्डकाय,हिंदी मा बिकट हे।
प्रेम पंत हे निराला,रश्मिरथी मधुशाला,
उपन्यास एकांकी मा,कथा बड़ विकट हे।
साहित्य समृद्ध हवै,भाषा खूब सिद्ध हवै,
भारत भ्रमण बर,हिंदी हा टिकट हे।
नस नस मा घुरे हे, दया मया हा बुड़े हे,
आन बान शान हरे,भाषा मोर देस के।
माटी के महक धरे,झर झर झर झरे,
सबे के जिया मा बसे,भेद नहीं भेस के।
भारतेंदु के ये भाषा,सबके बने हे आशा,
चमके सूरज कस,दुख पीरा लेस के।
सबो चीज मा आगर,गागर म हे सागर,
भारत के भाग हरे,हिंदी घोड़ा रेस के।
चर्च मा जी चले हिंदी,मंदिर मा पले हिंदी,
बानी गुरु नानक के,आरती अजान के।
सागर के पानी सहीं,बहे गंगा रानी सहीं,
पर्वत पठार सहीं,खड़े सीना तान के।
ज्ञान ध्यान मान धरे,दुख दुविधा ल हरे,
निकले आशीष बन,मुख ले सियान के।
नेकी धर्मी धीर के जी,भक्त देव बीर के जी,
बहे मंदरस बन,हिंदी हिंदुस्तान के।
छन्दकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
******************************
समान सवैया - हिंदी भाषा
हिन्दी भाषा परम-पावनी, जस संगम गंगा कालिंदी।
माथ सजे चम चमचम चमके,जस भारत माता के बिंदी ।1।
प्रेम चंद के अमर कथा ये, बच्चन के हावय मधुशाला ।
लिखे सुभद्रा लक्ष्मी बाई, मीरा के ये हरि गोपाला।2।
तत्सम तद्भव देश विदेशी, सबो रंग ला ये अपनाथे ।
एक डोर मा सबला बाँधय, गीत एकता के ये गाथे ।3।
शब्द नाद अउ लिपि मा आघू, हम सबके ये एक सहारा।
सागर कस ये संगम लागे, गंगा कावेरी के धारा ।4।
सत्तर साल बीत गे तब ले, मान नहीं पाइस हे भाषा।
हमर राष्टभाषा के पूरा, कोन भला करही अभिलाषा।5।
संविधान हा भारत के जी, दिये राज भाषा के दरजा।
मान राष्ट्रभाषा के खातिर,हम सबके ऊपर हे करजा।6।
छन्दकार - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
******************************
सरसी छंद
पढ़व लिखव अउ बोलव हिंदी,सुंदर गुरतुर बोल।
हमर मातृभाषा ये आवय,छोड़व मारे रोल।
थोकन पढ़ लिखके मनखेमन , करत हवय नादान।
नाश करे अपने संस्कृति के,मारत रहिथे शान।
देखावा के चक्कर छोड़व,हिरदै मारय होल।
दिन दिन बाढ़त हमर देश मा,अंग्रेजी के रोल।
रोवत हे महतारी भाखा ,अबतो आँखी खोल।
दया मया के रस ला घोरत,हिंदी भाषा बोल।
हमर सभ्यता हमर धरोहर,हिंदी हे पहिचान।
अनेकता मा हवय एकता,सुंदर हिन्दुस्तान।
संकल्प करी आवव सब झन,देना हे अब ध्यान।
नाम चलय दुनिया मा दू ठन,हिंदी हिन्दुस्तान।
छन्दकार - श्री ज्ञानुदास मानिकपुरी
******************************
विष्णु छंद - हिंदी मातृभाखा
हिंदी महतारी भाखा हे,शान सबो कहिथे।
ए भाखा हा मान हमर जी,नीक अबड़ रहिथे।।
कतका सुग्घर लेखन शैली,अपन भाव लिखथे।
हिंदी के अक्षर मा जादू,देश भाव दिखथे ।।
जन-जन मा हिंदी पहुँचावौ,मान करव मन मा।
हिंदी के सब नाव बचावव,रंग लौ सब तन मा।।
कविता मा नव जोश आय सुन,खूब लिखौ मन ले।
देश प्रेम ला लिखदव अपने,सीख सबो झन ले।
देख इंगलिस छोड़े हिंदी ,दूर अबड़ रहिथे।
हिंदी मा सम्मान अबड़ हे,शान सबो कहिथे।।
हिंदी भाखा हिरदे राखव,रहय मान जग मा।
हिंदी हा सुन मान बढ़ाथे,नेक भाव रग मा।।
छन्दकार - श्रीमति आशा आजाद
पता-मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
******************************
दोहा छन्द - हिन्दी
छत्तीसगढ़ी हे मया, हिन्दी हे अभिमान।
दाई भाखा के सहीं,हिंदी ला तँय जान।।
हिन्दी भाषा राष्ट्र के, एला दव सम्मान।
हिन्दी के उत्थान ले,हमरो हय उत्थान।।
हिन्दी ला हीनव नहीं, अँगरेजी के नाम।
संसकार ले हय भरे,आही इही ह काम।।
हिन्दी ला सम्मान दव,कीमत एखर जान।
नइँ ता फिर से छिन जही,आजादी सच मान।।
छन्दकार - श्रीमती नीलम जायसवाल (भिलाई)-
बहुत सुग्घर गुरुदेव जी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर गुरुदेव जी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर अउ लाजवाब संग्रह,गुरुदेव।सादर प्रणाम,बधाई।
ReplyDeleteसादर प्रणाम गुरुदेव
ReplyDeleteसादर प्रणाम गुरुदेव
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा
ReplyDeleteबहुत बढ़िया,आप सब ला बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteसुग्घर प्रस्तुति गुरुदेव
ReplyDeleteबहुत सुग्घर, हिंदी के मान ऊपर रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सुन्दर छंद रचना।
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर
ReplyDelete