ताटंक छंद-अश्वनी कोसरे
नहना जुँड़ा तुतारी धर के, जाथे अपन सियारी मा|
जागे हे पँगपँगहाआही, सोपा परत बियारी मा||
चीर अँगौछी तन मा पहिरे, मुड़ मा बाँधे पागा हे|
संसो तन-मन फिकर समाये, सावकार के लागा हे||
करिया माटी चंदन तोरे, महर - महर ममहाथे जी|
आरी - पारी करिया बादर, भुइँया ला सरसाथे जी||
जावत हावँय खेत किसनहा, आगे पारी बांवत के|
तरिया - नँदिया भरही डबरी, नाँगर चलही सांवत के||
सतरोहन तिरलोचन भइया, खेत खार अब जाहीं गा|
करमइतिन के चटनी - बासी, खार - खार ममहाहीं गा||
दून तिगुन चौगुन होगे हे, धनहा टिकरा बारी हा|
बड़े़ मुँधरहा उठ गे भइया, नेंग धरे महतारी हा||
छेना ला सिपचाये हावय, गुँगवावत हे आगी हा|
गुरमटिया दुबराजा सफरी, छँटगे बिजहा दागी हा|
खेती - खार सुहावन लागे, घुमरत बादर पानी हा|
जरइ जाम गे हे पिकिया के , घुर मा गोही चानी हा||
तर - तर चूहत हावय परवा, खपरा वाले छानी हा|
हिम्मत करबे तभ्भे होथे, जाँगर टोर किसानी हा||
किसम - किसम के सपना साजे, सोंचत हें आनी - बानी|
कहूँ इही बेरा मा होतिस, घात नँगत दाना-पानी||
राजा बेटा कॉलज जाही, मोटर सइकिल लेना हे|
गहना -गुरिया टोंड़ा पैंजन, लान मयारू देना हे||
लेंटर वाले छत हो जातिस, सुधर जतिस परवा छानी|
मार परे हे पउर बछर के, तरसाये बादर-पानी||
देख किसनहा के जिनगानी, नरक बरोबर लागे जी|
जरके जाँगर करिया होगे, जस छोइहा सुखागे जी||
कहूँ चेत करही शासन ता, उबर जहीं करलाई ले|
कोन उठाहीं बीड़ा देखन, माटी हीत भलाई ले||
🙏
अश्वनी कोसरे "रहँगिया"
कवर्धा कबीरधाम
बड़ सुग्घर सर जी
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