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Monday, May 31, 2021

ताटंक छंद-अश्वनी कोसरे

 ताटंक छंद-अश्वनी कोसरे


नहना जुँड़ा तुतारी धर के, जाथे अपन सियारी मा|

जागे हे पँगपँगहाआही, सोपा परत बियारी मा||


चीर अँगौछी तन मा पहिरे, मुड़ मा बाँधे पागा हे| 

संसो तन-मन फिकर समाये, सावकार के लागा हे||


करिया माटी चंदन तोरे, महर - महर ममहाथे जी|

आरी - पारी करिया बादर, भुइँया ला सरसाथे जी||


जावत हावँय खेत किसनहा, आगे पारी बांवत के|

तरिया - नँदिया भरही डबरी, नाँगर चलही सांवत के||


सतरोहन तिरलोचन भइया, खेत खार अब जाहीं गा|

करमइतिन के चटनी - बासी, खार - खार ममहाहीं गा||


दून तिगुन चौगुन होगे हे, धनहा टिकरा बारी हा|

बड़े़ मुँधरहा उठ गे भइया, नेंग धरे महतारी हा||


छेना ला सिपचाये हावय, गुँगवावत हे आगी हा|

गुरमटिया दुबराजा सफरी, छँटगे बिजहा दागी हा|


खेती - खार सुहावन लागे, घुमरत बादर पानी हा|

जरइ जाम गे हे पिकिया के , घुर मा गोही चानी हा||


तर - तर चूहत हावय परवा, खपरा वाले छानी हा|

हिम्मत करबे तभ्भे होथे, जाँगर टोर किसानी हा||


किसम - किसम के सपना साजे, सोंचत हें आनी - बानी|

कहूँ इही बेरा मा होतिस, घात नँगत दाना-पानी|| 


राजा बेटा कॉलज जाही, मोटर सइकिल लेना हे|

गहना -गुरिया टोंड़ा पैंजन, लान मयारू देना हे||


लेंटर वाले छत हो जातिस, सुधर जतिस परवा छानी|

मार परे हे पउर बछर के, तरसाये बादर-पानी||


देख किसनहा के जिनगानी,  नरक बरोबर लागे जी|

जरके जाँगर करिया होगे, जस छोइहा सुखागे जी|| 


कहूँ चेत करही शासन ता, उबर जहीं करलाई ले|

कोन उठाहीं बीड़ा देखन, माटी हीत भलाई ले||

🙏

 

अश्वनी कोसरे "रहँगिया"

कवर्धा कबीरधाम

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