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Friday, May 14, 2021

अक्ती पर्व विशेष-छंदबध्द कवितायें

 




 अक्ती पर्व विशेष-छंदबध्द कवितायें


अक्ती तिहार(दोहा चौपाई)

उल्लाला-
*बेरा मा बइसाख के,तीज अँजोरी पाख के।*
*सबे तीर मड़वा गढ़े,अक्ती भाँवर बड़ पड़े।*

हरियर मड़वा तोरन तारा,सजे आम डूमर के डारा।
लइका लोग सियान जुरें हे,लीप पोत के चौक पुरें हे।

पुतरी पुतरा के बिहाव बर,सकलाये हें सबे गाँव भर।
बाजे बाजा आय बराती,मगन फिरय सब सगा घराती

खीर बरा लाड़ू सोंहारी,खाये जुरमिल ओरी पारी।
अक्ती के दिन पावन बेरा,पुतरी पुतरा लेवव फेरा।  

सइमो सइमो करे गली घर,सबे मगन हें मया पिरित धर।
अचहर पचहर परे टिकावन,अक्ती बड़ लागे मनभावन।

दोहा-
*परसु राम भगवान के,गूँजय जय जय कार।*
*ये दिन भगवन अवतरे,छाये खुसी अपार।।*

शुभ कारज के मुहतुर होवय,ये दिन खेती बाड़ी बोवय।
बाढ़य धन बल यस जस भारी,आस नवा बाँधे नर नारी।

माँगै पानी बादर बढ़िया,जुरमिल के सब छत्तीसगढ़िया।
दोना दोना धान चढ़ावय,दाइ शीतला ला गोहरावय।

सोना चाँदी कोनो लेवय,दान दक्षिणा कोनो देवय।
पुतरी पुतरा के बिहाव सँग,पिंवरावै कतको झन के अँग।

दोहा-
*देवी देवन ला मना,शुरू करे  सब  काज।*
*पानी बादर के परख,करे किसनहा आज।*

*करसी मा पानी मढ़ा,बारह चना डुबाय।*
*भींगय जतकेकन चना,ततके पानी आय।*

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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हरिगीतिका छंद-अक्ती

मिलजुल मनाबों चल चली अक्ती अँजोरी पाख में।
करसा सजा दीया जला तिथि तीज के बैसाख में।।
खेती किसानी के नवा बच्छर हरे अक्ती परब।
छाहुर बँधाये बर चले मिल गाँव भर तज के गरब।।

ठाकुरदिया में सब जुरे दोना म धरके धान ला।
सब देंवता धामी मना बइगा बढ़ावय मान ला।।
खेती किसानी के उँहे बूता सबे बइगा करे।
फल देय देवी देंवता अन धन किसानी ले भरे।।

जाँगर खपाये के कसम खाये कमइयाँ मन जुरे।
खुशहाल राहय देश हा धन धान सुख सबला पुरे।।
मुहतुर किसानी के करे सब पाल खातू खेत में।
चीला चढ़ावय बीज बोवय फूल फूलय बेत में।।

ये दिन लिये अवतार हे भगवान परसू राम हा।
द्वापर खतम होइस हवै कलयुग बनिस धर धाम हा।
श्री हरि कथा काटे व्यथा सुमिरण करे ले सब मिले।
धन धान बाढ़े दान में दुख में घलो मन नइ हिले।

सब काज बर घर राज बर ये दिन रथे मंगल घड़ी।
बाजा बजे भाँवर परे ये दिन झरे सुख के झड़ी।।
जाये महीना चैत आये झाँझ  झोला के समय।
मउहा झरे अमली झरे आमा चखे बर मन लमय।

करसी घरोघर लाय सब ठंडा रही पानी कही।
जुड़ चीज मन ला भाय बड़ शरबत मही मट्ठा दही।
ककड़ी कलिंदर काट के खाये म आये बड़ मजा।
जुड़ नीम बर के छाँव भाये,घाम हे सब बर सजा।

लइकन जुरे पुतरा धरे पुतरी बिहाये बर चले।
नाँचे गजब हाँसे गजब मन में मया ममता पले।
अक्ती जगावै प्रीत ला सब गाँव गलियन घर शहर।
पर प्रीत बाँटे छोड़के उगलत हवै मनखे जहर।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
9981441795

अक्ती तिहार के बहुत बहुत बधाई
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मड़वा हा सजही 

एसो के अक्ती मा  मोरो , मड़वा हा सजही।
जम्मो पहुना मन सकलाही ,बाजा हा बजही।।

हरदी तेल चढ़ाही सुग्घर, देही जी अँचरा।
दीदी भाँटो के सँग आही, अउ भाँची भँचरा।।

मोतीचूर खवाही लाड़ू , माँदी मा मन के।
खीर बरा अउ पापड़ देही , सथरा सब झन के 

 मउर सजाके मँयहा जाहूँ ,मोटर मा चढ़के।
जाही सँग मा मोर बरतिया ,  एक सेक बढ़के।।

बाजा -गाजा मा परघाही, मान गौन करही।
दुल्हिन हा मुस्कावत आही , पाँव मोर परही।।

विधि विधान ले पंडित पढ़ही , साखोचार हमर।
देही शुभ आशीष सबो झन , रइहव सदा अमर।।

सुग्घर दुल्हनिया के सँग मा,सब सुख हा मिलही।
घर आही धरके खुशहाली,मया कमल खिलही।।

                छंद साधक कक्षा १०
            परमानंद बृजलाल दावना
                         भैंसबोड़ 
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गंगोदक सवैया- विजेन्द्र वर्मा

देव धामी करा आज तो गाँव के, लोग हा जी चढ़ाये चले धान ला।
काज अक्ती घड़ी मा बने होय के,लोग दीया जला के करै दान ला।
खेत मा जाय खातू बने पाल के,आज के बेर मा देय जी ध्यान ला।
प्रीत बाढ़ै किसानी फलै आज तो,गात हे आदमी जी इहाँ गान ला।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)

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 कवि बादल: अक्ती तिहार
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शुभ मुहरत अक्षय तिथि हावय, कहिथें वेद पुरान।
एही दिन तो सतयुग त्रेता, रचे रहिस भगवान।।

चलौ मनाबो जुरमिल अक्ती, पावन तीज तिहार।
कर बिहाव पुतरा पुतरी के, सुग्घर साज सँवार।।

अक्षय फल मिलथे ये दिन तो,करना चाही दान।
जइसन देथे तइसन पाथे, पुण्यात्मा इंसान।।

प्यासा पंछी बर बिरछा मा, भरे सकोरा टाँग।
प्याऊ खोले भरदे करसी, राही पीही माँग।।

हे बइसाख मास मा गरमी,मनखें बइठ थिरायँ।
छोटे मोटे कुँदरा छादे,आसिस देके जायँ।।

कोनो दुखिया के बेटी के, करदे आज बिहाव।
भुँखहा ला दू कौर खवादे, लेही तोरे नाव।।

दीन हीन के आँसू पोंछे,  होही गंगा स्नान।
तिरथ बरत घर मा हो जाही, सफल जिंदगी मान।।

मन पतंग के डोरी थामौ, उड़ही भरे उमंग।
अनुशासन जीवन मा आही,सुख नइ होही भंग।।

देश प्रेम के अलख जगाबो, नइ त्यागन संस्कार।
भेदभाव के खाई पाटे, समता भाव उभार।।

चोवा राम वर्मा 'बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़

3 comments:

  1. बाल कविता - बोधन राम निषादराज
    शीर्षक - अक्ती बिहाव

    देख पाख अब अक्ती आ गे।
    बर बिहाव के लगन धरागे।।

    पुतरी पुतरा ला सम्हराबो।
    अँगना मा मड़वा गड़ियाबो।।

    चुलमाटी कोड़े बर जाबो।
    मँगरोहन पर्रा धर आबो।।

    आमा पाना मउर बनाबो।
    दुलहिन दूल्हा ला पहिराबो।।

    बने बराती गड़वा बाजा।
    बइला गाड़ी दूल्हा राजा।।

    रचनाकार:-
    बोधन राम निषादराज
    सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)

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  2. बड़ सुग्घर संकलन

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