नवटप्पा के मार -चोवाराम वर्मा बादल
------------------------
(मनहरण घनाक्षरी)
ताते तात झाँझ झोला , लेसावत हावै चोला,
जेठ लगे नवटप्पा ,भारी इँतरात हे।
सुक्खा कुआँ तरिया हे, मरे मरे झिरिया हे,
बोरिंग हा ठाढ़े ठाढ़े , रोज्जे दुबरात हे।
रोवत हें रुखराई, नदिया के मुँह झाँई,
धरती के देख देख, जीवरा करलात हे।
ईंटा भट्ठी आवा कस, भँभकत जग हावै,
भात बासी नइ भावै ,धूँकनी सुहात हे ।1।
बूँद बूँद पानी बर, लोगन बेहाल हावैं,
तरस तरस पशु , तजत परान हें ।
भाँय भाँय खेत खार, सुन्ना लागे घर द्वार ,
धरे रोग माँदी दाबे, सब हलकान हें।
धमका धमक आगे, हवा देख उठ भागे,
भोंभरा मा पाँव जरे, जरे मुँह कान हें।
वो असाड़ कब आही, जेन जीव ला बँचाही,
लागथे अबड़ संगी, रुठे भगवान हें ।2।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
बड़ सुग्घर गुरुदेव
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर मनहरण घनाक्षरी चोवाराम भाई बधाई हो
ReplyDelete