विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर छंद बद्ध कवितायें
पर्यावरण - बोधन राम निषादराज
(हरिगीतिका छंद)
पर्यावरण खातिर सबो,श्रृंगार भुइयाँ के करौ।
आवौ लगा लौ पेड़ ला,सब बिन हवा के झन मरौ।।
जिनगी बचाथे पेड़ हा,फर फूल मिलथे साथ मा।
रक्षा बने करलौ सखा,हावै तुँहर जी हाथ मा।।
नरवा कुँआ तरिया सबो,करलौ सफाई रोज के।
कचरा कुड़ा झिल्ली सबो,आगी जलादौ खोज के।।
दुर्गन्ध जादा झन रहै,नाली सफाई सब करौ।
तब शुद्ध होही जी हवा,ये बात ला मन मा धरौ।।
ये कारखाना के धुँआ, बादर सबो मा छात हे।
छोड़त हवै जी ये जहर,सब रोग ले के आत हे।।
पर्यावरण हे हाथ मा,अब तो सम्हल जावौ सखा।
जंगल बचावौ मिल सबो,जिनगी बने पावौ सखा।।
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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: चलव_लगाबो_पेंड़
छप्पय छन्द
चलव लगाबो पेंड़,बने धरती हरियाही।
लेबो सुघ्घर साँस,तभे जिनगी बच पाही।
सुख के पाबो छाँव,संग फुरहुर पुरवाही।
पेड़ बचाही जान,खुशी जन-जन मा छाही।
एक पेंड़ होथे सुनौ,सौ-सौ पूत समान जी।
रक्षा करबो रोज हम,मिलके रखबो ध्यान जी।।
डी.पी.लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
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: वाम सवैया- विजेन्द्र वर्मा
बड़ा सुरता अब आत हवै लइकापन के चल पेड़ लगाबो।
उजाड़ परे दिखथे भुइयाँ ल चलौ मिलके सब खूब सजाबो।
सदा सब स्वस्थ रहै भइया भुइयाँ ल प्रदूषण मुक्त बनाबो।
गुमान करै सब लोग इहाँ जग मा बड़ सुग्घर नाँव कमाबो।
कुआँ तरिया अब सूखत हे गरमी हर लेवत प्राण ग भाई।
करौ झन स्वारथ खातिर फोकट लोगन आज ग पेड़ कटाई।
बने सब आज ग पेड़ लगावव होय तभे सब के ग भलाई।
तभे मिलही सुख घात इहाँ बइठे रहिहौ छइहाँ अमराई।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
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विषय - पर्यावरण
गीतिका छंद
ज्ञान के गंगा नहा सब, लोभ काया छोड़ के ।
पेंड़ के दुनियाॅऺं बसा अब, जा नहीं मुख मोड़ के ।
काय पाबे दुख बढ़ा झन, डार पाती तोड़ के ।
पाय हावन आज जिनगी, हाथ इॅऺंखरे जोड़ के ।
होय हरियर आज जंगल, पेंड़ पवधा काट झन ।
देत आक्सीजन सबो हें, जान के नद पाट झन ।
बेंच नइ अनमोल जीवन, जाव यम के हाट झन ।
देख संगी कर भरोसा, जोहबे नित बाट झन ।
काय ले जाबे इहाॅऺं ले, काम परहित आज कर ।
पेंड़ पवधा ले जगत हे, मीत सब बर नाज कर ।
पाप झन कर काट बन ये, हाय जग ये लाज कर ।
बाॅऺंध भरे संचित पानी, सुघर जिनगी राज कर ।
छंदकार- राज कुमार बघेल
सेंदरी, बिलासपुर (छ.ग.)
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*गड़बड़ हे* (कुण्डलियां छन्द)
कतको दिन गायब रहिन, दर्शन देइन आज।
पर्यावरण तिहार बर,करबो कहिके काज।
करबो कहिके काज,चउॅंक मा पेड़ लगाइन।
फोटू वाले लान,एकहू अकन खिचाइन।
आबंटन ला देख,करत हें झटको-झटको।
बिन खुराक अइलाय,अइसने पौधा कतको।।
जंगल रोज कटात हे,उजरत खेती खार।
गाॅंव तीर मा टेकगे,बड़े-बड़े बेपार।
बड़े-बड़े बेपार,कारखाना सब आगे।
करिया धुॅंगिया साॅंस,गाॅंव फोकट मा पागे।
चारों मुड़ा उजाड़,धनी के होवय मंगल।
अंधाधुंध कटात,सुसक के रोवय जंगल।।
पाउच पतरी के चलन, दिन-दिन बाढ़े जाय।
झिल्ली के उपयोग सुन, डिस्पोजल मा चाय।
डिस्पोजल मा चाय,करम हम सबके उथली।
विज्ञापन ला मान,बनत मनखे कठपुतली।
चारों मुड़ा उड़ात,देख ले तरिया डबरी।
पर्यावरण विनाश,करत हे पाउच पतरी।।
शौचालय बनगे हवय, ओकर सुनलव राज।
दूषित जल बोहात हे,गांव गली मा आज।
गांव गली मा आज,भरे माड़ी भर लद्दी।
तरिया मा बहि जाय,कोन ला देबो बद्दी।
तरिया के का दोष,आदमी अलहन पालय।
गंदा जल बर सोच,बना लेते शौचालय।।
गड़बड़ हे करनी हमर, करही कोन उपाय।
चीज इलेक्ट्रॉनिक सबो, कचरा धरके लाय।
कचरा धरके लाय, जिनिस ये डिजिटल जग मा।
पानी हवा जमीन,होय दूषित पग-पग मा।
कइसन यहू विकास,जिहां टेंशन हे अड़बड़।
प्रकृति संग हर रोज, होत हे काबर गड़बड़।।
महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव
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कुंडलियां
जंगल ला झन काट तँय, जीवन के आधार।
शुद्ध हवा मिलथे इहाँ, बात कहँव मैं सार।।
बात कहँव मैं सार, इही जा जीवन देथे।
औषधि के भंडार, सबो दुख ला हर लेथे।
जुरमिल पेड़ बचाव, कभू नइ होय अमंगल।
बंद करव व्यापार, काट के झाड़ी जंगल।
अजय अमृतांशु
सुग्घर संकलन
ReplyDeleteबहुते सुघ्घर संकलन गुरूदेव हार्दिक बधाई
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