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Thursday, June 3, 2021

छ्न्द के छ की प्रस्तुति-विश्व सायकिल दिवस पर छ्न्द बद्ध कवितायें


 छ्न्द के छ की प्रस्तुति-विश्व सायकिल दिवस पर छ्न्द बद्ध कवितायें


चोवाराम वर्मा बादल


चला साइकिल चला साइकिल, सेहत बर चला साइकिल।

लइकापन मा खूब चलावन,कसके ओंटन हम पइडिल।


हीरो अउ हरकुलश एटलस ,साइज मा छोटे बड़का।

पिछू केरियर आगू टुकनी,हेंडिल मा घंटी छुटका।

बिन डीजल पेट्रोल पिये वो,पहुँचाथे जल्दी मंजिल।

चला साइकिल चला साइकिल, सेहत बर चला साइकिल।


आथे पाछू ले पुरवाई, तब गरगर-गरगर चलथे।

अउ ढलान मा गुड़गुड़ -गुड़गुड़, बिन ओंटे वो ढुलथे।

आथे गर्रा चढ़ऊ मिलथे, जी करथे तलमिल-तलमिल।

चला साइकिल चला साइकिल ,सेहत बर चला साइकिल।


हवै सवारी ये मन भावन, इसकुल जा भइया राजा।

संगी  सँग जा मेला -ठेला,घूम-घाम के जी आजा।

हवै जवानी मस्त-मगन ता,ककरो तैं धड़का ले दिल।

चला साइकिल चला साइकिल, सेहत बर चला साइकिल।


हाथ गोड़ मजबूत फेफड़ा, मोटापा हा घट जाथे।

चलौ चलावव नोनी-बाबू, चमक चेहरा मा आथे।

पर्यावरण सुरक्षित होही, बनौ देश सेवा काबिल।

चला साइकिल चला साइकिल, सेहत बर चला साइकिल।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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हरिगीतिका छंद- बोधनराम निषाद


सइकिल सवारी कर चलौ,सेहत बने रहिथे सखा।

पुरखा बबा मन जी हमर,सुग्घर तभे कहिथे सखा।।

कैंची चलावन गोड़ मा,पैडिल बने जी मार के।

चारों डहर जी गाँव के,आवन सबो थक हार के।।


हीरो रहै सँग एटलस,अउ हरकुलस छाए रहै।

कुछ छोटकुन एवन घलो,मन ला गजब भाए रहै।।

शाला सबो लइका मिले,सइकिल चढ़े जावन घलो।

घंटी बजावत जोर से,बहुँतेच डरवावन घलो।।


पेट्रोल  डीजल  नइ लगै, पर्यावरण सुग्घर रथे।

योगा बने होवत रथे, आलस पछीना बह जथे।।

ताकत सबोके बाढ़थे, बी.पी.सुगर सब दूर जी।

विश्वास मन मा जागथे, मिलथे खुशी भरपूर जी।।



छंदकार:-

बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 सार छंद -वासन्ती वर्मा

शीर्षक (  साइकिल  )


1) एक सीट अउ दू पहिया के,सुविधा जनक सवारी।

तीन जून साइकिल दिवस हे,जगत चलावे सारी।।

2)बिगन तेल के येहर चलथे,साइकिल बिसा लेवा।

लइका सियान बड़का छोटे,सबो ला बता देवा।।

3)गाँव गाँव अउ सहर सहर मा,आज साइकिल चलथे।

डामर रोड चला के देखव,हवा से बात करथे।।

4)इस्कुल जाथे लइका मन जी,सबो साइकिल चढ़के।

केरियर मा चिपे रइथे जी,बस्ता  ला भर भरके।।

   

    वसन्ती वर्मा बिलासपुर


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 महेंद्र बघेल: *सायकिल* ( कुण्डलियाॅं छंद)


गुड़गुड़ ढूलत सायकिल, सबके मन ला भाय।

सबले पहिली आदमी ,कैंची छाप चलाय।

कैंची छाप चलाय,गोड़ मा ओंटत पयडिल। 

थाम जेवनी हाथ,धरे डेरी मा हेंडिल।

गिरत उठत नित होय ,ओंटई झूलत झूलत। 

बिन डीजल पेट्रोल,चले ये गुड़गुड़ ढूलत।।


महेंद्र कुमार बघेल

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5 comments:

  1. लाजवाब संकलन गुरूदेव सबो रचना शानदार

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  2. बहुत बढ़िया संग्रह

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  3. बहुत सुग्घर सायकल

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  4. वाह वाह वाह सुग्घर सुग्घर छन्दबद्ध रचना सायकिल ऊपर

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  5. साइकिल जइसे अलग विषय मा सृजन, सराहनीय कदम। वाह वाह वाह बढ़िया बढ़िया रचना।

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