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Tuesday, June 22, 2021

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर म छंदबद्ध कविता-प्रस्तुति-छ्न्द के छ परिवार

 


अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर म छंदबद्ध कविता-प्रस्तुति-छ्न्द के छ परिवार

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(कुकुभ छंद)
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मनखे ला सुख योग ह देथे, मन बगिया बड़ ममहाथे।
योग करे तन बनै निरोगी,धरे रोग हा मिट जाथे।।

सुत उठके गा बड़े बिहनिया, पेट रहय जी जब खाली।
दंड पेल अउ दउँड़ लगाके, हाँस हाँस ठोंकव ताली।।

रोज करव जी योगासन ला,चित्त शांत मन थिर होही।
अंतस हा पावन हो जाही,तन पावन मंदिर होही।।

नारी नर सब लइका छउवा,बन जावव योगिन योगी।
धन माया के सुख हा मिलही, नइ रइही तन मन रोगी।।

जात पात के बात कहाँ हे,काबर होबो झगरा जी।
इरखा के सब टंटा टोरे,योग करव सब सँघरा जी।।

जेन सुभीता आसन होवय,वो आसन मा बइठे जी।
ध्यान रहय बस नस नाड़ी हा,चिंता मा झन अँइठे जी।।

बिन तनाव के योग करे मा,तुरते लाभ जनाथे गा।
आधा घंटा समे निकाले, मन चंगा हो जाथे गा।।

सुग्घर अनुलोम करव भाई,साँस नाक ले ले लेके।
कुंभक रेचक श्वाँसा रोके,  अउ विलोम श्वाँसा फेके।।

प्राणायाम भस्त्रिका हवय जी, बुद्धि बढ़ाथे सँगवारी।
अग्निसार के महिमा सुंदर, भूख बढ़ाथे जी भारी।।

हे कपाल भाती उपयोगी, अबड़ असर एखर होथे।
एलर्जी नइ होवन देवय, सुख निंदिया मनखे सोथे।।

कान मूँद के करव भ्रामरी,भौंरा जइसे गुंजारौ।
माथा पीरा दूर भगाही, सात बार बस कर डारौ।।

ओम जपव उद्गीत करव जी, बने शीतली कर लेहौ।
रोज रोज आदत मा ढालव, आड़ परन जी झन देहौ।।

चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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योग 
(हरिगीतिका छंद)

चल योग कर लौ रोज के,होथे सबल तन मन सखा।
बनथे निरोगी देह हा,इहि आय असली धन सखा।।
नित उठ बिहनिया ले सबो,ले के प्रभो के नाम ला।
सब भागथे जी रोग हा,अपनाव प्राणायाम ला।।

मन के मिलन भगवान ले,होथे सबो जी जान लौ।
मन मा जगाथे भक्ति ला,ये योग हा जी मान लौ।।
तन स्वस्थ होथे योग ले,मन मा भरै विश्वास हा।
हर काम मा मन हा लगै,अउ होय पूरा आस हा।।

डॉक्टर जरूरत नइ पड़ै,तन चुस्त रहिथे जी सखा।
बीमार झन रहिहौ सुनौ,पुरखा हमर कहिथे सखा।।
लम्बा उमर योगा करै,सब योग आवव कर चलौ।
बेरा निकालौ योग बर,सब धर्म मारग धर चलौ।।

छंदकार:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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मोर हरिगीतिका आसन


 योगा करव योगा करव,तन मन अपन सुन्दर रखव।
मन मैल कचरा फेंक के,सच सार ला अंदर रखव।
ये ध्यान प्राणायाम ले,मन देह हा  निर्मल बने।
संयम नियम आहार से,तन मा निरोगी बल बने।1


योगा दिवस मा प्रण करव,मिलके भगाबो रोग ला।
आलस अहिंसा छोड़बो,अउ छोडबो सब भोग ला।
काया विकारी होय ले,दुख के कबीला घेरथे।
दिन रात बेचैनी बढ़े,सब रोग राई पेरथे।2


ये योग धनवन्तरि सही,योगा दवाई जान लव।
संझा बिहनिया नित करव,ये बात मोरे मान लव।
खोजे हवे ऋषि संत मन ,वैदिक सनातन ज्ञान हे।
सब ले बड़े ईश्वर हवे,  ,पर मंत्र   रद्दा ध्यान हे।3

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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योग(दोहा)

महिमा  भारी योग के,करे  रोग ला दूर।
जेहर थोरिक ध्यान दै,नफा पाय भरपूर।

थोरिक समय निकाल के,बइठव आँखी मूंद।
योग  ध्यान तन बर हवे,सँच मा अमरित बूंद।

योग  हरे  सत साधना,साधे ते फल पाय।
कतको दरद विकार ला,तन ले दूर भगाय।

बइठव  पलथी मार के,लेवव छोंड़व स्वॉस।
राखव मन ला बाँध के,नवा जगावव आस।

सबले बड़े मसीन तन,नितदिन करलव योग।
तन  ले   दुरिहा  भागही,बड़े  बड़े  जर  रोग।

योगा करलव रोज के, सुख के ये संजोग।
तन मन ला करथे बने, योग भगाथे रोग।

आही जीवन मा खुशी, तन के रखव खियाल।
कसरत बिन काया कभू, रहे नही खुशहाल।।

योग भगाथे रोग ला, देथे खुशी अपार।
रोजे समय निकाल के, योग करव दू बार।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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योग दिवस मा

मोर सोरठा छंद म आसन

करलव संगी योग, थोरक समे निकाल के।
ठाहिल संग निरोग, होवय तन मन हा सुघर।।

जिनगी सुघर बनाय, ठाहिल संग निरोग ये।
धीरज संयम आय, अपनाये ले रोज के।।

करथे दूर तनाव, धीरज संयम आय अउ।
तन ला अपन बचाव, बड़का बड़का रोग ले।।

बीमारी झन होय, तन ला अपन बचाव सब।
जाने बिरला कोय, आवय फोकट के दवा।।

जाने जें अपनाय, महिमा अड़बड़ योग के।
कहै ज्ञानु कविराय, करलव थोरक योग सब।।

ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा
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कुण्डलिया- विजेन्द्र वर्मा

आसन प्राणायाम ले, भाग जथे सब रोग।
रोज करिन जी योग तो,काया होय निरोग।
काया होय निरोग,सुघर जिनगी तब चलही।
जीवन होही धन्य,पीर नइ कोनों सहही।
मनखे जम्मो आज,खाव अब कम जी राशन।
निस दिन प्राणायाम,करिन हम सब जी आसन।

विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
जिला-रायपुर
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कुण्डलियाँ 

देवत रहिथें ज्ञान सब, करयँ न कोनो योग। 
बाढ़त हावय पेट हर, अउ बाढ़त हे रोग। 
अउ बाढ़त हे रोग, भोग मा सबो सनायें। 
पढ़थें बस सब लोग, ज्ञान कोनो नइ पायें। 
हो गिन सब लाचार, दुःख भारी सब सहिथें। 
पर नइ उघरिस आँख, ज्ञान बस देवत रहिथें।1।

मोरो अइसन हाल हे, जइसन सब के हाल। 
गणपति जइसन पेट हे, अउ भिदोल कस गाल। 
अउ भिदोल कस गाल, कमर भारी अटियाथे। 
गर्दन टेढ़ा होय, भुजा भारी छटियाथे।  
करले संगी योग, मोर जस हो झन तोरो। 
रहिबे सदा निरोग, नाम ला लेबे मोरो।2।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार
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