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Sunday, June 20, 2021

जनकवि कोदूराम "दलित" जी के कवित्त - "चउमास"*

 *जनकवि कोदूराम "दलित" जी के कवित्त - "चउमास"*


(1)

घाम-दिन गइस, आइस बरखा के दिन

सनन-सनन चले पवन लहरिया।

छाये रथ अकास-मा, चारों खूँट धुँआ साहीं

बरखा के बादर निच्चट भिम्म करिया।।

चमकय बिजली, गरजे घन घेरी-बेरी

बरसे मूसर-धार पानी छर छरिया।

भरगें खाई-खोंचका, कुँआ डोली-डांगर "औ"

टिप टिप ले भरगे-नदी, नरवा, तरिया।।


(2)

गीले होगे माटी, चिखला बनिस धुर्रा हर,

बपुरी बसुधा के बुताइस पियास हर।

हरियागे भुइयाँ सुग्घर मखमल साहीं,

जामिस हे बन, उल्होइस काँदी-घास हर।।

जोहत रहिन गंज दिन ले जेकर बाट,

खेतिहर-मन के पूरन होगे आस हर।

सुरुज लजा के झाँके बपुरा-ह-कभू-कभू,

"रस-बरसइया आइस चउमास हर"।।


(3)

ढोलक बजाँय, मस्त होके आल्हा गाँय रोज,

इहाँ-उहाँ कतको गँवइया-सहरिया,

रुख तरी जाँय, झूला झूलैं सुख पाँय अउ,

कजरी-मल्हार खुब सुनाँय सुन्दरिया ।।

नाँगर चलाँय खेत जा-जाके किसान-मन,

बोवँय धान-कोदो, गावैं करमा ददरिया ।

कभू नहीं ओढ़े छाता, उन झड़ी झाँकर मा,

कोन्हो ओढ़े बोरा, कोन्हों कमरा-खुमरिया ।।


(4)

बाढिन गजब माँछी, बत्तर-कीरा "ओ" फाँफा,

झिंगरुवा, किरवा, गेंगरुवा, अँसोढिया ।

पानी-मा मउज करँय-मेचका, भिंदोल, घोंघी ।

केंकरा, केंछुवा, जोंक मछरी अउ ढोंड़िया ।।

अँधियारी रतिहा मा अड़बड़ निकलँय,

बड़ बिखहर बिच्छी, साँप-चरगोड़िया ।

कनखजूरा-पताड़ा, सतबूंदिया "ओ" गोेहे,

मुँहलेड़ी, धूर, नाँग, करायत कौड़िया ।।


(5)

भाजी टोरे बर खेत-खार "औ" बियारा जाये,

नान-नान टूरा-टूरी मन घर-घर के ।

केनी, मुसकेनी, गुंड़रु, चरोटा, पथरिया,

मछरिया भाजी लाँय ओली भर भर के ।।

मछरी मारे ला जाँय ढीमर-केंवट मन,

तरिया "औ" नदिया मा फाँदा धर-धर के ।

खोखसी, पढ़ीना, टेंगना, कोतरी, बाम्बी धरे,

ढूँटी-मा भरत जाँय, साफ कर-कर के ।।


(6)

धान-कोदो, राहेर, जुवारी-जोंधरी कपसा

तिली, सन-वन बोए जाथें इही ॠतु-मा।

बतर-बियासी अउ निंदई-कोड़ई कर,

बनिहार मन बनी पाथें इही ॠतु मा ।।

हरेली, नाग पंचमी, राखी, आठे, तीजा-पोरा

गनेस-तिहार, सब आथें इही ॠतु मा।

गाय-गोरु मन धरसा-मा जाके हरियर,

हरियर चारा बने खाथें इही ॠतु मा ।।


(7)

देखे के लाइक रथे जाके तो देखो चिटिक,

बारी-बखरी ला सोनकर को मरार के ।

जरी, खोटनी, अमारी, चेंच, चउँलई भाजी,

बोये हवें डूंहडू ला सुग्धर सुधार के ।।

मांदा मा बोये हे भाँटा, रमकेरिया, मुरई,

चुटचुटिया, मिरची खातू-डार-डार के ।

करेला, तरोई, खीरा, सेमी बरबट्टी अउ,

ढेंखरा गड़े हवँय कुम्हड़ा के नार के ।।


(8)

कभू केउ दिन-ले तोपाये रथे बादर-ह,

कभू केउ दिन-ले-झड़ी-ह हरि जाथे जी ।

सहे नहीं जाय, धुँका-पानी के बिकट मार,

जाड़ लगे, गोरसी के सुखा-ह-आथे जी ।।

ये बेरा में भूँजे चना, बटुरा औ बाँचे होरा,

बने बने चीज-बस खाये बर भाथे जी ।

इन्दर धनुष के कतिक के बखान करौं,

सतरङ्ग अकास के शोभा ला बढ़ाथे जी ।


(9)

ककरो चुहय छानी, ककरो  भीतिया गिरे,

ककरो गिरे झोपड़ी कुरिया मकान हर,

सींड़ आय, भुइयाँ-भीतिया-मन ओद्दा होंय,

टूटय ककरो छानी ककरो  दूकान हर ।।

सरलग पानी आय-बीज सड़ जाय-अउ,

तिपौ अघात तो भताय बोये धान हर,

बइहा पूरा हर बिनास करै खेती-बारी,

जिये कोन किसिम-में बपुरा किसान हर ?


(10)

बिछलाहा भुइयाँ के रेंगई-ला पूछो झन,

कोन्हों मन बिछलथें, कोन्हों मन गिरथें ।

मउसम बदलिस, नवा-जुन्ना पानी पीके,

जूड़-सरदी के मारे कोन्हों मन मरथें ।।

कोन्हों माँछी-मारथें, कोन्हों मन खेदारथें तो,

कोन्हों धुँकी धररा के नावे सुन डरथें ।

कोन्हों-कोन्हों मन मनेमन मा ये गुनथें के

"येसो के पानी - ह देखो काय-काय करथे" ।।


(11)

घर घर रखिया, तूमा, डोड़का, कुम्हड़ा के,

जम्मो नार-बोंवार-ला छानी-मा, चढ़ावैं जी ।

धरमी-चोला-पीपर, बर, गसती "औ",

आमा, अमली, लीम के बिरखा लगावैं जी ।।

फुलवारी मन ला सदासोहागी झाँई-झुँई,

रिंगी-चिंगी गोंदा पचरंगा-मा सजावैं जी ।

नदिया "औ" नरवा मा पूरा जहँ आइस के,

डोंगहार डोंगा-मा चधा के नहकावैं जी ।।


*जनकवि कोदूराम "दलित"*

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