*जनकवि कोदूराम "दलित" जी के कवित्त - "चउमास"*
(1)
घाम-दिन गइस, आइस बरखा के दिन
सनन-सनन चले पवन लहरिया।
छाये रथ अकास-मा, चारों खूँट धुँआ साहीं
बरखा के बादर निच्चट भिम्म करिया।।
चमकय बिजली, गरजे घन घेरी-बेरी
बरसे मूसर-धार पानी छर छरिया।
भरगें खाई-खोंचका, कुँआ डोली-डांगर "औ"
टिप टिप ले भरगे-नदी, नरवा, तरिया।।
(2)
गीले होगे माटी, चिखला बनिस धुर्रा हर,
बपुरी बसुधा के बुताइस पियास हर।
हरियागे भुइयाँ सुग्घर मखमल साहीं,
जामिस हे बन, उल्होइस काँदी-घास हर।।
जोहत रहिन गंज दिन ले जेकर बाट,
खेतिहर-मन के पूरन होगे आस हर।
सुरुज लजा के झाँके बपुरा-ह-कभू-कभू,
"रस-बरसइया आइस चउमास हर"।।
(3)
ढोलक बजाँय, मस्त होके आल्हा गाँय रोज,
इहाँ-उहाँ कतको गँवइया-सहरिया,
रुख तरी जाँय, झूला झूलैं सुख पाँय अउ,
कजरी-मल्हार खुब सुनाँय सुन्दरिया ।।
नाँगर चलाँय खेत जा-जाके किसान-मन,
बोवँय धान-कोदो, गावैं करमा ददरिया ।
कभू नहीं ओढ़े छाता, उन झड़ी झाँकर मा,
कोन्हो ओढ़े बोरा, कोन्हों कमरा-खुमरिया ।।
(4)
बाढिन गजब माँछी, बत्तर-कीरा "ओ" फाँफा,
झिंगरुवा, किरवा, गेंगरुवा, अँसोढिया ।
पानी-मा मउज करँय-मेचका, भिंदोल, घोंघी ।
केंकरा, केंछुवा, जोंक मछरी अउ ढोंड़िया ।।
अँधियारी रतिहा मा अड़बड़ निकलँय,
बड़ बिखहर बिच्छी, साँप-चरगोड़िया ।
कनखजूरा-पताड़ा, सतबूंदिया "ओ" गोेहे,
मुँहलेड़ी, धूर, नाँग, करायत कौड़िया ।।
(5)
भाजी टोरे बर खेत-खार "औ" बियारा जाये,
नान-नान टूरा-टूरी मन घर-घर के ।
केनी, मुसकेनी, गुंड़रु, चरोटा, पथरिया,
मछरिया भाजी लाँय ओली भर भर के ।।
मछरी मारे ला जाँय ढीमर-केंवट मन,
तरिया "औ" नदिया मा फाँदा धर-धर के ।
खोखसी, पढ़ीना, टेंगना, कोतरी, बाम्बी धरे,
ढूँटी-मा भरत जाँय, साफ कर-कर के ।।
(6)
धान-कोदो, राहेर, जुवारी-जोंधरी कपसा
तिली, सन-वन बोए जाथें इही ॠतु-मा।
बतर-बियासी अउ निंदई-कोड़ई कर,
बनिहार मन बनी पाथें इही ॠतु मा ।।
हरेली, नाग पंचमी, राखी, आठे, तीजा-पोरा
गनेस-तिहार, सब आथें इही ॠतु मा।
गाय-गोरु मन धरसा-मा जाके हरियर,
हरियर चारा बने खाथें इही ॠतु मा ।।
(7)
देखे के लाइक रथे जाके तो देखो चिटिक,
बारी-बखरी ला सोनकर को मरार के ।
जरी, खोटनी, अमारी, चेंच, चउँलई भाजी,
बोये हवें डूंहडू ला सुग्धर सुधार के ।।
मांदा मा बोये हे भाँटा, रमकेरिया, मुरई,
चुटचुटिया, मिरची खातू-डार-डार के ।
करेला, तरोई, खीरा, सेमी बरबट्टी अउ,
ढेंखरा गड़े हवँय कुम्हड़ा के नार के ।।
(8)
कभू केउ दिन-ले तोपाये रथे बादर-ह,
कभू केउ दिन-ले-झड़ी-ह हरि जाथे जी ।
सहे नहीं जाय, धुँका-पानी के बिकट मार,
जाड़ लगे, गोरसी के सुखा-ह-आथे जी ।।
ये बेरा में भूँजे चना, बटुरा औ बाँचे होरा,
बने बने चीज-बस खाये बर भाथे जी ।
इन्दर धनुष के कतिक के बखान करौं,
सतरङ्ग अकास के शोभा ला बढ़ाथे जी ।
(9)
ककरो चुहय छानी, ककरो भीतिया गिरे,
ककरो गिरे झोपड़ी कुरिया मकान हर,
सींड़ आय, भुइयाँ-भीतिया-मन ओद्दा होंय,
टूटय ककरो छानी ककरो दूकान हर ।।
सरलग पानी आय-बीज सड़ जाय-अउ,
तिपौ अघात तो भताय बोये धान हर,
बइहा पूरा हर बिनास करै खेती-बारी,
जिये कोन किसिम-में बपुरा किसान हर ?
(10)
बिछलाहा भुइयाँ के रेंगई-ला पूछो झन,
कोन्हों मन बिछलथें, कोन्हों मन गिरथें ।
मउसम बदलिस, नवा-जुन्ना पानी पीके,
जूड़-सरदी के मारे कोन्हों मन मरथें ।।
कोन्हों माँछी-मारथें, कोन्हों मन खेदारथें तो,
कोन्हों धुँकी धररा के नावे सुन डरथें ।
कोन्हों-कोन्हों मन मनेमन मा ये गुनथें के
"येसो के पानी - ह देखो काय-काय करथे" ।।
(11)
घर घर रखिया, तूमा, डोड़का, कुम्हड़ा के,
जम्मो नार-बोंवार-ला छानी-मा, चढ़ावैं जी ।
धरमी-चोला-पीपर, बर, गसती "औ",
आमा, अमली, लीम के बिरखा लगावैं जी ।।
फुलवारी मन ला सदासोहागी झाँई-झुँई,
रिंगी-चिंगी गोंदा पचरंगा-मा सजावैं जी ।
नदिया "औ" नरवा मा पूरा जहँ आइस के,
डोंगहार डोंगा-मा चधा के नहकावैं जी ।।
*जनकवि कोदूराम "दलित"*
No comments:
Post a Comment