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Monday, June 7, 2021

अमर गीतकार जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी ल नमन करत,, छ्न्द बद्ध भावांजलि-प्रस्तुति छ्न्द के छ परिवार








 

अमर गीतकार जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी ल नमन करत,, छ्न्द बद्ध भावांजलि-प्रस्तुति छ्न्द के छ परिवार



कुंडलियाँ छ्न्द- मस्तुरिया जी

मधुरस घोरे कान मा, मन ला लेवै जीत।

लोक गीत के प्राण ए, मस्तुरिया के गीत।

मस्तुरिया के गीत, सुनाथे जन के पीरा।

करदिस हे अनमोल, बना माटी ला हीरा।

करिस जियत भर काम, कभू नइ बोलिस हे बस।

माटी पूत महान, सदा बरसाइस मधुरस।


छोड़िस नइ स्वभिमान ला, सत के करिस बखान।

बनिस निसेनी मीत बर, बइरी मन बर बान।

बइरी मन बर बान, गिराइस हे मस्तुरिया।

दया मया सत घोर, बनाइस हे घर कुरिया।

कलम चला गा गीत, सदा मनखे ला जोड़िस।

अमरे बर आगास, कहाँ माटी ला छोड़िस।


जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


छत्तीसगढ़ के दुलरवा कवि गायक मस्तुरिया जी ल शत शत नमन


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छप्पय छन्द

भारत माँ के लाल,हमर लक्ष्मण मस्तुरिहा।

रइही दिल के पास,कभू नइ जावय दुरिहा।

कालजयी हर गीत,सुने मा अति मनभावन।

लोककला के साज,करे तँय जुग-जुग पावन।

हमर राज के शान तँय,जनकवि हमर महान जी।

जब तक सूरज चाँद हे,होही जग मा मान जी।।(१)


दया मया के गीत,लिखय अउ गावय बढ़िया।

अमर हवय गा नाँव,हमर लक्ष्मन मस्तुरिया।

परे डरे ला संग,लगाये बनके दानी।

ए माटी के लाल,अमर हे तोर कहानी।

जन मानस मा गीत हा,गूँजत रहिथे तोर गा।

जल्दी आजा अब इहाँ,तोर लेत सब सोर गा।।(२)


गुत्तुर तोर अवाज,गीत मा सुमता लाये।

सदा नीत के गोठ,तोर अंतस ला भाये।

भारत माँ के लाल,रोज तोला हे वंदन।

लक्ष्मन हवस महान,तोर पवरी हे चंदन।

श्रद्धा सुमन चढ़ाँय सब,मिलके बारंबार जी।

हमर गाँव ए राज मा,अउ ले ले अवतार जी।।(३)


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

बायपास रोड कवर्धा

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*दोहा -चौपाई*

दोहा -मस्तुरिया होगे अमर,कालजयी हे गीत।
सबो जिनिस के भाव ला, समझे बनके मीत।।

छोड़ चले लक्ष्मण मस्तुरिया ।सुन्ना होगे सुर के कुरिया।।
कण कण मा तँय बसे दुलरवा।खेत खार घर नदिया नरवा।। 1

घुनही होगे तोर बँसुरिया।तैंहर चलदे सबले दुरिहा।।
छलकत रहिथे धान कटोरा।तँय बइठे धरती के कोरा।। 2।

लाल रतन धन छतीसगढ़िया।सबले सुघ्घर सबले बढ़िया।।
बगरय जग मा चिटिक चँदैनी।आप चढ़े हव सरग निसैनी।।3।

रस घोले रे माघ फगुनवा।बिरहिन के तब आय सजनवा।।
अमर गीत ला रचके लक्ष्मण।बसगे भुइयाँ के तँय कण कण।।4।

ले चल रे चल गाड़ी वाला।धरे मरारिन भाजी पाला।
सबके पीरा दुःख चिन्हैया।अइसन नइहे लोक गवैया।।5।

दोहा-कतका करँव बखान मँय,हे माटी के लाल।
जन जन मा तैंहर बसे,रहिबे तीनों काल।।

छंदकार -आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
(छत्तीसगढ़)

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सुरता मस्तुरिया जी

छत्तीसगढ़ के नाम जगाये, माटी के जस गाके।

जनकवि हे लक्ष्मण मस्तुरिया,पावन कलम चलाके।।


महानदी के छलकत आँसू,सरु किसान के पीरा।

अउ गरीब ला हृदय बसाके, गाये गीत कबीरा।।


आखर आखर अलख जगाके,तैं अँजोर बगराये।

परे डरे कस मनखे मन बर,सुग्घर भाव जगाये।।


कर विरोध सब शोषक मन के,हक बर लड़े सिखोये।

दुखिया के बन दुखिया संगी, बीज मया के बोये।।


लोक गीत के ऊँचा झंडा, फहर फहर फहराये।

छत्तीसगढ़ियापन के लोहा,सरी जगत मनवाये।।


झुके नहीं तैं पद पइसा मा,कलाकार के सँगवारी।

पाये नहीं भले तैं तमगा, कोनो जी सरकारी।।


जन जन के हिरदे मा बसथस,सुरता मा लपटाये।

नमन करत हावय ये 'बादल', तोला मूँड़ नँवाये।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

(छंद के छ परिवार -छंद साधक)

हथबंद

छत्तीसगढ़

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लावणी छन्द- बोधन राम निषादराज

(लक्ष्मण मस्तुरिया जी ला सादर नमन)


गिरे परे मनखे मन के तँय,दुख ला अपन बनाए गा।

श्री लक्ष्मण मस्तुरिया भइया, ऊँखर गीत ल गाए गा।।


मस्तूरी मा जनम धरे तँय, महतारी भुइयाँ खातिर।

जन-जन मा बिस्वास भरे तँय,गीत बने दुनिया खातिर।।

संग चलौ कहिके मनखे ला,अपन संग रेंगाए गा। 

गिरे परे मनखे मन के तँय...............


दया मया के गीत रचइया,सुग्घर भाखा अउ बोली।

गुरतुर राग सुनाए तँय हा,झूमै नाचै हमजोली।

छइँहा भुइयाँ के सिरजइया, माटी गंगा लाए गा।

गिरे परे मनखे मन के तँय.................


अंतस सबके रचे बसे तँय,कइसे आज भुलाबो गा।

सुरता करके तोर गीत ला, तोर राग मा गाबो गा।

सुन्ना परगे तोर बिना अब,कइसे आस बँधाए गा।

गिरे परे मनखे मन के तँय................

छंदकार - बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम 

(छत्तीसगढ़)

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सरसी छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"


गाँव मस्तुरी मा जनमे हे, लक्ष्मण नाम धराय।

आनी- बानी गीत लिखे हे, दुनिया भर मा छाय।।

छत्तीसगढ़ी भाखा के वो, अड़बड़ मान बढ़ाय।

दया- मया के मँदरस घोरे, सब ला गीत सुनाय।।

लोकगीत के बड़े धुरी वो, सबके मन ला भाय।

परे- डरे अउ गिरे -थके ला, अपने संग बुलाय।।

कालजयी रचना हे ओखर, जुग- जुग कर ही राज।

रतन - दुलरवा बेटा वोहा, कहलावत हे आज।।

अमर हवय लक्ष्मण मस्तुरिहा, जुग- जुग रइही नाम।

श्रद्धा - सुमन चढ़ावत हावँव, कहत राम हे राम।।

"जलक्षत्री" आशीष मँगत हे, कुछ तोरो गुण पाँव।

नवा - नवरिया अड़हा साधक, सबले छुटका आँव।।


छंदकार-अशोक धीवर "जलक्षत्री"

 ग्राम -तुलसी (तिल्दा-नेवरा)

 जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)

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आल्हा छंद- विजेन्द्र वर्मा

सुरता मस्तुरिया जी

रिहिस हवै जी माटी बेटा,कहय चलव जी मोरे संग।

गिरे परे हपटे मन हा तब,रँगत  रिहिन हे ओकर रंग।1।


हमर राज के राजा बेटा, लक्ष्मण मस्तुरिया हे नाँव।

गीत लिखे जी आनी बानी,गूँजय गली गली हर ठाँव।2।


कलम गढ़े जन जन के पीरा,परदेशी बर बनजय काल।

हितवा मन के हितवा बनके,बइरी बर डोमी विकराल।3।


रद्दा सुमता मा चलके जी,स्वारथ छोड़व अब इंसान।

कहत रिहिन हे लक्ष्मण भइया,बेंचव झन कोनो ईमान।4।


बसे हवै जन जन के हिरदे,गावयँ सुग्घर गुरतुर गीत।

परे डरे ला साथ लान के,बना डरिस जी सब ला मीत।5।


भरे रहै जी तन मा गरदा,अंतस जेकर हे अँधियार।

दीप जला के करदय लक्ष्मण,मन ला ओकर जी उजियार।6।


देश धरम बर काम करिन हे,देवत रिहिन मया के छाँव।

हाथ जोड़ के पाँव परत हँव,अमर रहय जी ओकर नाँव।7।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

जिला-रायपुर

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 *लावणी छंद* 


तोर नाव ला रोजे लेवँय, भुइँया के बने नँगरिया|

दया मया के गीत सुनादे, आ तँय लछिमन मस्तुरिया||



किंदरावँय भवँरा ला कोनो, खेती बर धनहा परिया|

कहाँ लुका गे जाके भैया, मोर सुमत के मस्तुरिया||



कोन बताही रस्ता हमला, कोन उठाही परे डरे|

तोर सुमत के सरग निसेनी, कोन चढा़ही संग धरे||


झुूलत हावय अँखियन मोरे, छत्तीसगढ़ के माटी हा|

भारत माँ के रतन बेटा, बाना बांधे छाती हा||


तोर गीत संगीत अमर हे, रहि-रहि के सुरता आही|

फिटिक अँजोरी के बगरे ले, छइँहा भुइँया ममहाही||


गावत झूँमय सावन भादो, नाचे फागुन जहूँरिया|

लोक धून मा थिरकँय तोरे, करमा बड़ झोर ददरिया||



दीन दुखी के मरम समझ के, फुलगी पानी अमराये|

गुरुतुर भाखा बोली बानी, राज -राज तँय बगराये||


छंद साधक -अश्वनी कोसरे

रहँगी पोड़ी कवर्धा कबीरधाम( छ.ग

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कुण्डलिया छंद - राजकुमार बघेल


करके गुरु के बंदगी, जपे हवय सतनाम ।

अष्ट कमल आसन बना, हिरदे गुरु के नाम ।।

हिरदे गुरु के नाम, शबद के अमरित बानी ।

सत के बीड़ा थाम, रटे ये शबद रुहानी ।।

अजर अमर हे नाम, काट दुख अंतस धरके  ।

हंसा हो सतधाम, बंदगी गुरु के करके ।।


पावन हावय शुभ दिवस, सुरुज उगिस आगास ।

सात जून उन्नीस सौ,बछर रहिस उनचास ।।

बछर रहिस उनचास, जन्म दिन धरती हीरा ।

भरे हृदय हे खाश किसनहा मन बर पीरा ।।

अइसन माटी पूत, गीत हे बड़ मनभावन ।

जन बर प्रेरक आज, जनम दिन हावय पावन ।।


बाना साहित बर बुने, तॅऺंय गुदड़ी के लाल ।

दया मया के डोर धर, जग बर बने मिशाल ।।

जग बर बने मिशाल, पाय मस्तूरी कोरा ।

आव जनम ले काश, तोर अब हवय अगोरा ।।

दुनियाॅऺं दुनियाॅऺं शोर, नाम जाना पहिचाना ।

कलम धरे तॅऺंय हाथ, बुने बर साहित बाना ।।


छंदकार - राज कुमार बघेल

सेन्दरी जिला बिलासपुर (छ.ग.)

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*लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता*

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लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता, कइसे गा हम बिसराबो ।

जब-जब सुनबो अमर गीत ला, आगू मा सउँहे पाबो ।।1।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------


ये माटी के स्वाभिमान के, गीत सदा जे गाइस हे।

मँय छत्तीसगढ़िया अँव कहिके, जग मा अलख जगाइस हे।।2।

दया-मया के परवा छानी, सुरता मा ओकर छाबो ।।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------


बन गरीब के हितवा-मितवा, संग चले बर जे बोलय ।

माघ-फगुनवा मा सतरंगी, मया- रंग ला जे घोरय ।।3।

देश मया के भारत गीता, संदेशा ला बगराबो ।।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,-----


महानदी-अरपा-पइरी मा, जब- तक पानी हा रइही ।

अपन दुलरवा ये बेटा के, अमर कहानी ला कइही ।।4।

परके सेवा मोर सिखानी, बात कहे ला दुहराबो ।।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------


सुवा-ददरिया-करमा-पंथी, गुरतुर सुर मा जे गावै ।

सुरुज-जोत मा करय आरती, छइयाँ भुइँया दुलरावै ।।5।

अइसन जनकवि के चरनन मा, श्रद्धा के फूल चढ़ाबो ।।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------


लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता, कइसे गा हम बिसराबो ।

जब-जब सुनबो अमर गीत ला, आगू मा सउँहे पाबो ।।

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छंदकार- मोहन लाल वर्मा 

पता:- ग्राम-अल्दा,पो.आ.-तुलसी (मानपुर),व्हाया- हिरमी,

वि.खं.-तिल्दा,जिला-रायपुर 

(छत्तीसगढ़)पिन-493195

मोबाइल नं.-9617247078

                9340183624

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शीर्षक - मस्तुरिया जी राह दिखावँय।


तान छेड़ के अलख जगावँय।

मस्तुरिया जी राह दिखावँय।।


जन सेवा बर अगुवा रहितिन।

लोगन मन के हित मा कहितिन।।

समता के उँन पाठ पढ़ावँय।

मस्तुरिया जी राह दिखावँय।।


लोक-गीत बर लड़िन लड़ाई।

भेदभाव के पाटिन खाई।।

गायक मन ला आगू लावँय।

मस्तुरिया जी राह दिखावँय।।


गीत सुनावँय पुरखा मन के।

सार रहय जेमा जीवन के।।

सुग्घर प्रेरक गाना गावँय।।

मस्तुरिया जी राह दिखावँय।।


भाखा के बड़ मान बढ़ाइन।

परंपरा ला बने निभाइन।।

सुरता मा जन-जन के हावँय।

मस्तुरिया जी राह दिखावँय।।


गीतकार - श्लेष चन्द्राकर

पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं.-27,

महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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कुकुभ छंद - राज कुमार बघेल


भारत के अनमोल रतन ये, हावय जी गजब निराले ।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, कहिथें जी दुनिया वाले ।।


नाम धराये मस्तुरिया ये, साहित बड़े पुरोधा हे ।

कोन पाय जी तोर पार ये, अइसन सिरजन बोधा हे ।।


गिरे परे के संग चले वो, बंदत नित दिन हे माटी ।

लोक गीत के मान बढ़ाये, गुन गावत परवत घाटी ।।


मन डोले ये जब फागुन हो, गोंदा राखे हे चौरा ।

धनी बिना जग सुन्ना लागे, हवे मयारु मन भौंरा ।।


मोला जावन दे अलबेला, बाली मोर उगरिया हे ।

संगी मया जुलुम लागे रे, घुनही बजे बसुरिया हे ।।


छन्नर छन्नर पैरी बाजे, खन्नर हाथे चूरी रे ।

रूप धरे मोहिनी मोहथे, हावय आंखी भूरी रे ।।


हवे नाक बर ये नथनी अउ, हवे पाॅऺंव बर रे पैरी ।

चंदा टिकुली फूल चॅऺंदैनी, जले निहारत रे बैरी ।।


लागे झन ये कभू नजरिया, माटी होही चोला रे ।

राम राम के बेरा संगी, भेंट कहाॅऺं अब टोला  रे ।।


बखरी तुमा नार बरोबर, सावन आगे आगे रे ।

लहरा मारे लहरा बुॅऺंदिया, धरती मन हरियागे रे ।।


जम्मों किसान चला चली गा, बोंय धान बर ये जाबो ।

मुड़ मा पागा कान म चोंगी, गीत मया के सब गाबो ।।


चला चला जाबो रे भाई,जुरमिल कर निंदाई रे ।

सुन सॅऺंगवारी मोर मितानी, खेती खार कमाई रे ।। 


घाम लगे जस आग बरोबर, बोकबाय देखे हाले ।

जस दॅऺंउरी हे बइला घूमत,गोड़ परे हे बड़ छाले ।।


चंदा बनके जीबो हम तो,करतब कारण मर जाबो ।

चम चम चमके बने नहीं अब, कड़क कड़क के बरसाबो ।।


मोटर वाला पता बतादे, काल अवइया नइ आये ।

मोरो कुरिया सुन्ना मितवा, सावन अब तो नइ भाये ।।


झिलमिल दिया बुता देबे का,देख बदरिया घिर आगे ।

घानी मुनी घोर दे पानी,तब भे चिरई उड़ भागे ।


परगे हवय किनारी चिनहा,लुगरा मन के ये नोहे ।

काॅऺंटा खुंटी हवे रेंगइया,हॅऺंउला मूॅऺंड़ म  हे बोहे ।।


कहाॅऺं शहर जाबो ये भाई,मया गाॅऺंव  के झन खोबे ।

अंगरेजिया  बोली बोले, परदेसिया धनी होंबे ।।


मॅऺंय बंदत हॅऺंव दिन राती, धरती मॅऺंइया जय होवे ।

भारत भुॅऺंइया धरम धाम हे, पाॅऺंव  फूल जस बड़ सोहे ।।


छंदकार- राज कुमार बघेल

 सेन्दरी बिलासपुर (छ.ग.)

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लक्ष्मण मस्तुरिया (लावणी छंद)

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गिरे परे हपटे मनखे के,

                    पीरा दुःख हरइया।

मस्तुरिया छत्तिसगढ़िया जी,

           मस्तुरिया छत्तिसगढ़िया।।


जनम धरिन मस्तुरी गाँव मा,

             सात जून के छइँहा मा।

उन्नाईस उनचास ईसवी,

             खेलिस दाई बइँहा मा।।

हावय सबके अन्तस् भीतर,

              सिधवा लक्ष्मण भइया।

मस्तुरिया छत्तिसगढ़िया ............


मोरे संग चलव के नारा,

                दिल्ली तक पहुँचाइस।

महानदी गंगा जस मानिस,

               सबके प्यास बुझाइस।।

बिखहर डोमी बइरी मन बर,

                 हितवा  गले  लगइया।

मस्तुरिया छत्तिसगढ़िया...............


गीत अपन धरती मइया के,

               अउ  किसान के नाँगर।

महिनतकश मजदूर गँवइहा,

                पेरिन   अपने  जाँगर।।

नवा जोत ले नवा गाँव बर,

                  रद्दा   नवा    गढ़इया।

मस्तुरिया छत्तिसगढ़िया...............


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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माटी के मया लक्ष्मण बर - सार छंद - विरेन्द्र कुमार साहू


क्रांति बिगुल फूकइया बेटा, तँय वाणी जन गण के।

मँय छत्तीसगढ़िन लक्ष्मण तँय, गहना मोर रतन के।।


मोर मान सम्मान रखे बर, जूझे तँय दुनिया ले।

तेखर सेती कहिथँव मँय हा, बेटा हिम्मत वाले।


मोर संग मा सुख अउ दुख के, कँवरा तँय हा गटके।

मोर तपस्वी लाला तँय हा, सोना बनगे तप के।


कोन मेटही गा समाज के, रगबगरे आडम्बर।

कोन जगाही मरहा आगी, मोर भिंया के सुख बर।।


सुरता करथँव लक्ष्मण मँय हा, घरी-घरी बस तोरे।

मोर दुलरुवा बेटा फिर ले, आबे अँगना मोरे।


विरेन्द्र कुमार साहू, ग्राम - बोड़राबांधा (पाण्डुका), जिला गरियाबंद (छत्तीसगढ़)

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सोरठा छंद


दुनिया भर मा शोर, उड़त हवय चारों डहर।

अमर नाम हे तोर, शत शत सादर हे नमन।।


जन जन के आवाज, बनके बोलस रोज तँय।

सबके हिरदै राज, करथस तैहा आज भी।।


मैं साथी हव तोर, गिरे परे मनखे तुँहर।

चलव संग मा मोर, दया मया बाँटत कहै।।


छत्तीसगढ़ के शान, दुनिया भर बगराय तँय।

सेवा अउ गुनगान, माटी के सेवा करे।।


रखे जिहाँ तँय पाँव, सात जून उनचास के।

ओ मस्तूरी गाँव, भाग अपन सहरात हे।।


मस्तुरिया के नाम, सबके हिरदै मा बसे।

सादर मोर प्रणाम, अइसन जनकवि ला हवै।।


छंदकार- ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

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दोहा छंद - रामकली कारे


कवि लक्ष्मण जी ला नमन, जन्मदिवस के आज।

जन जन के नायक हवै, गीत कार सुर साज।। 


अनुपम सिरजन लेखनी, मस्तुरिया के गीत। 

संग चलव अभियान ले, दुनिया ला लिन जीत।।


अरपा पैरी धार हा, होय हमर अभिमान।

राज गीत बनगे हवै, छत्तीसगढ़ी शान।। 


रचे गढ़े सब गीत के, गुरतुर गुरतुर बोल।

अंतस ला छू जाय जी, तन मन जावय डो़ल।।


माघ फगुनवा गीत ले, मया रंग छलकाय।

सुवा ददरिया गीत गा, सबके मन हरषाय।।


नागरिहा सुरता करैं, कहाॅ मितानी खोय।

जौंरा धौंरा संग मा, पड़की मैंना रोय।


लोक कला संगीत ले, जन जन दय संदेश।

चंदैनी गोंदा बना, हरिन सबो के क्लेश।।


बेटा छत्तीसगढ़ के, कण कण बसथव आप।

सहज सरल समभाव ले, छोड़िन हिरदे छाप।।


हीरा अस चमकत रहै, कवि लक्ष्मण जी नाम।

रहै धरोहर लेखनी, मस्तुरिया निज धाम।।


अपने माटी ले मिले, मूल रूप पहिचान।

जड़ ले जुड़ के जे रहै, भुॅइया के भगवान।।


महतारी के मान बर, कलम करै हें धार।

जीयय जागय वो सदा, रहिथे अमर विचार।।



छंदकार - रामकली कारे

बालको नगर कोरबा 

छत्तीसगढ़

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रूपमाला छंद :-


लोक धुन गुरतुर सजइया,एक लक्ष्मण नाॅंव।

वो सृजन बाना गड़ा के ,दे हवय छत छाॅंव।

गीत गावत अउ जगावत, बड़ करिस उपकार।

स्वप्न ओकर सच करे बर,जाग अब संसार ।।


महेंद्र कुमार बघेल

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अजय अमृतांसु: कुण्डलिया- 


बाना धरिन कबीर के,बेटा रतन कहाय।

कालजयी संदेश दिन, अंतस सोझ समाय।

अंतस सोझ समाय, बात गंभीर कहिन जी।

पीरा अउ अन्याय, देख ना कभू सहिन जी।

खुल के करिन विरोध, सहिन नइ ककरो ताना।

मस्तुरिहा हे नाव,धरिन जी कबीर बाना।।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छ. ग.)

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सुरता मस्तुरिया जी

सुरता आथे रहि रहि मोला, तोर गीत ला गावँव।

छत्तीसगढ़ मयारू बेटा, तोला माथ नवावँव।।


जनम धरे तँय मस्तूरी मा, मस्तूरिहा कहाये।

बचपन बीतिस खेल कूद मा, लक्ष्मण नाम धराये।।


तोर गीत हा सुग्घर लागे, जन मन मा बस जाथे।

संग चलव जब कहिथस तैंहा, कतको झन हा आथे।।


अमर करे तँय नाम इँहा के, माटी के तैं हीरा।

गिरे परे हपटे मनखे के, जाने तैं हर पीरा।।


अरपा पैरी महानदी कस, निरमल हावय बानी।

सब ला मया लुटाये तैं हर, हरिशचंद कस दानी।।


छछलत हावय तुमा नार हा, घर घर मा तँय बोंये।

सुरता कर के आज सबो झन, अंतस ले गा रोये।।


*छंदकार* 

महेंद्र देवांगन *माटी*

*प्रेषक- सुपुत्री - प्रिया देवांगन *प्रियू*

राजिम

छत्तीसगढ़

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*दोहा छंद*

*जन कवि श्री लक्ष्मण मस्तुरिया जी ल समर्पित*


सात जून उनचास के,जनम धरिस इक बाल।

लक्ष्मण जेकर नाव सुन,छेड़े वीणा ताल।।


सात सूर ला साध के,करगे नवा कमाल।

गीतकार कविता गढ़े,निक माटी के लाल।।


हमर राज के सान अउ,रहे कला भगवान।

जुग जुग जग सूरत करे,सुन लक्ष्मण के तान।।


कला धरोहर राज मा, लक्ष्मण सुरुज समान।

बगराये परकाश ला,बाँट कला कवि ज्ञान।।


गिरे पड़े मनखे सबो,चलव संग मा मोर।

बोले मस्तुरिया सदा,करो कभू झन शोर।।


तीन नवम्बर काल के,चलगे चक्का लाल।

कलम कला जग छोड़ के,श्वेत ओढ़ लिस साल।।


*छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र*

   छन्द साधक सत्र-09

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दोहा छ्न्द

लक्ष्मण जी मस्तूरिहा, रचे मया के गीत। 

जन मा करे सजोर तँय, सुमता संग पिरीत। ।

शोषण अउ पाखंड के, सरलग करे विरोध। 

गिरे परे जन  मा भरे, नवा चेतना बोध। ।

काम किसानी गाँव के, सुघ्घर सिरजे हाल। 

तोर नाँव जस हें अमर, छत्तीसगढ़ के लाल। ।

        --दीपक निषाद-बनसाँकरा (सिमगा)

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( सार छंद ) 


 *लक्ष्मण मस्तुरिया जी ला सादर समर्पित* 


छत्तीसगढ़ी गीत सुनावँय, लक्ष्मण जी मस्तुरिया।

सुग्घर सुग्घर गीत लिखे हें, आनी-बानी बढ़िया।।


सरल सहज सुभाव हा ओखर, जनमानस ला भावै।

मोर संग चलव ' गीत गा के, बेटा रतन कहावै।।


तुमा नार बखरी के गावै, मन झुमरे बर लागे।

घुनही तोर बँसुरिया सुनके, सोवत मनखे जागे ।।


चल रे गाड़ी वाला ' सुग्घर, गीत लिखे मस्तुरिया।

माटी के बेटा चंदन कस, हावय छत्तीसगढ़िया।।


फूल सुमन श्रद्धा के अर्पण,हाथ जोड़ पैलगी।

आज वसन्ती मस्तुरिया ला, सादर करवँ बंदगी।।


             - वसन्ती वर्मा

               

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*जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी ला समर्पित*

(आल्हा छंद जीवनी)

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छत्तीसगढ़ी जाने माने,गीतकार मस्तुरिया आय।

अइसन जनकवि लक्ष्मण जी ला,आज नहीं कउनो बिसराय।।


बिलासपुर मस्तुरी गाँव मा,सात जून के सन् उन्चास।

जनम धरिन लक्ष्मण मस्तुरिया,पूरा होइन परिजन आस।।


ददा दास कुन्दन गोस्वामी,समेकुँवर दाई के नाँव।

बने इँखर संस्कार मिलिन हे,लइकापन मा सुख के छाँव।।


दाई ददा दुलरुवा बेटा,पढ़ लिख के होगिन हुशियार।

जिनगी के संघर्ष कहानी,अपन गीत ले करिन तियार।।


माटी के अनमोल रतन ये,लोक कला ला करिन प्रणाम।

छत्तीसगढ़ी भाखा सेवा,अपन बनालिन बूता काम।।


करिन साधना मस्तुरिया जी,कला समर्पित सुग्घर ध्यान।

गीत रचिन हे छत्तीसगढ़ी,पाइन हे बहुते सम्मान।।


बाइस साल उमर मा लक्ष्मण,बना डरिन अपने पहिचान।

दाऊ रामचन्द्र कृत संस्था,चंदैनी गोंदा के गान।।


सुग्घर गायक छत्तीसगढ़ी,करिन देशमुख सँग शुरुआत।

गाँव बघेरा सन् इकहत्तर,मास नवम्बर के दिन सात।।


छत्तीसगढ़ विरासत संस्कृति,बने जगाइन हे पहिचान।

जिनगी के संघर्ष कहानी,नारी दुख मजदूर किसान।।


मोर संग चल कहै सबो ला,गिरे परे मनखे के गीत।

चंदैनी गोंदा के मंचन,खूब निभाइन सुन लौ मीत।।


लिखिन अनगिनत गीत मधुर जी,मस्तुरिया के लेखन सार।

रहिन समर्पित लक्ष्मण भइया,चंदैनी गोंदा परिवार।।


सन् अठ्यासी मा रइपुर मा,सुग्घर कालेज राजकुमार।

प्रोफेसर बन घलो पढ़ाइस,बाँटिस ज्ञान करिन उपकार।।


लिखिन "हमूँ बेटा भुइयाँ के","गँवई गंगा" पुस्तक गीत।

"धुनही बाँसुरिया" धुन छोड़िन,बड़ मनभावन सुन लौ मीत।।


"माटी कहै कुम्हार" लिखिन हे,छइँहा भुइयाँ के गुणगान।

दिल्ली लाल किला मा गाइन,छत्तीसगढ़ी गीत महान।।


"मन डोले रे मांघ फगुनवा",गीत मया के गावय झूम।

फागुन महिना लाली परसा,ये भुइयाँ ला लेवय चूम।।


दया मया के गीत लिखिन हे,सुग्घर स्वर मा थिरकय अंग।

अता पता लेजा देजा रे,सोर उड़य कविता के संग।।


सन् पचहत्तर केंद्र रायपुर,अकाशवाणी गूँजिस गीत।

जन-जन के हिरदय मा बसगे,सुग्घर गुरतुर ये मनमीत।।


मस्तुरिया के रचना मन मा,धरती के हावै जय गान।

एखर कोरा सरग बरोबर,छइँहा भुइयाँ सिरतों मान।।


चंदैनी गोंदा सुन मनखे,सकला जावय भीड़ अपार।

गाँव-शहर हा खलक उजर जय,मस्तुरिया बर परय गुहार।।


दो हजार सन् तीन बछर मा,छपिस एक पुस्तक मा गीत।

"मोरे संग चलव" जी जम्मों,छत्तीसगढ़ी सुग्घर रीत।।


छत्तीसगढ़ निबंध संकलन,उपयोगी लइका बर आज।

"माटी कहे कुम्हार" छपिस हे,मस्तुरिया के सुग्घर काज।।


हिंदी कविता घलो संकलन,"सिर्फ सत्य के लिए" लिखाय।

वीर शहीद नरायन गाथा,"आगी सोना खान" सुनाय।।


लोक कला साहित्य संस्कृति,जिनगी अर्पण करिन सुजान।

सेवा मा चालीस बछर भर,अपन पहादिन उमर मितान।।


अविभाजित जब राज्य रहिन हे,मध्य प्रदेश करिन गुणगान।

दो हजार सन् आठ बछर मा,पाय आंचलिक हे सम्मान।।


छत्तीसगढ़ी राज्य घलो मा,मस्तुरिया पाइन हे मान।

रामचन्द्र सम्मान देशमुख,दुर्ग जिला के हावै शान।।


छत्तीसगढ़ी राज्य रायपुर,गीतकार गायक पहिचान।

जन-जन के हिरदय मा बसगे,पाइन श्रेष्ठ सृजन सम्मान।।


दो हजार चौदह सन् लगभग,राजनीति मा राखिन पाँव।

महासमुंद चुनाव लड़िन जी,आम आदमी पार्टी नाँव।।


मनखे बर हितवा नेता बन,जन-जन के वो सुन आवाज।

छत्तीसगढ़ी के दुख पीरा,अपन समझ के करदिन काज।।


दो हजार अठरा मा लक्ष्मण,तीन नवम्बर सरग सिधार।

छोड़ चलिन हे ये दुनिया ले,नाता-सैना अउ परिवार।।


नहीं भुलावय छत्तीसगढ़ी,इँखर करे कउनो उपकार।

सुरता आही सदा गीत मा,जब-जब बजही सुर के तार।।

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बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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               लक्ष्मण मस्तुरिया


गहिरा उॅंचहा भाव शबद हा, अंतस तरी हमाही।

लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरषाही।


रोज बिहनहा मोर किसनहा, सुरुज सॅंघाती जागय।

धरा धाम धरती मइया के, सुत उठ पइयॉं लागय।


रुमझुम खेती खार किंजर के, मस्तुरिया जब आवय ।

झूम झूम के मन भॅंवरा हा, धुन मा नाचय गावय।


धरती के ॲंगना के फुलवा, दुरिहा ले ममहाही।

लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरषाही।


चौंरा मा गोंदा रसिया बर, हे पताल बारी मा।

मया छोड़ नइ जाये सकबे, फॅंसबे सॅंगवारी मा।


झुमरे लगही तुमा नार कस, मन बखरी बारी मा।

मया परोसे हे मस्तुरिया हर बटकी थारी मा।


फिटिक ॲंजोरी निर्मल छइहॉं, मन ला गजबे भाही।

लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरषाही।


कॉंटा खूॅंटी के रेंगइया, भूती बनी करइया।

अपन गॉंव ले हाथ दया के, मान मया भेजइया।


गिरे परे हपटे मनखे ला, संग चलव जे कहिथे।

लकठे मा पापी तारे बर, बनके गंगा बहिथे।


मीठ मया मॅंगनी मॉंगे मा, कहॉं भला मिल पाही।

लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरषाही।


छत्तीसगढ़ के राज रतन तैं, धन्य धनइया माटी।

करिया सोना के खदान तैं, धन-धन बस्तर घाटी।


तोर लहर लहरे ओन्हारी, सरसे संग सियारी।

घुनही बॅंसुरी माघ फगुनवा, कबिरा के सॅंगवारी।


लोक दुलरुवा लोकतंत्र बर, कुछ ना कुछ अलखाही।

लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरषाही।


रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़


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लक्ष्मण_मस्तुरिहा_जी_ल #काव्यांजलि...

छप्पय छंद


भारत माँ के लाल,हमर लक्ष्मण मस्तुरिहा।

रइही दिल के पास,कभू नइ जावय दुरिहा।

कालजयी हर गीत,सुने मा अति मनभावन।

लोककला के साज,करे तँय जुग-जुग पावन।

हमर राज के शान तँय,जनकवि हमर महान जी।

जब तक सूरज चाँद हे,होही जग मा मान जी।।(१)


दया मया के गीत,लिखय अउ गावय बढ़िया।

अमर हवय गा नाँव,हमर लक्ष्मन मस्तुरिया।

परे डरे ला संग,लगाये बनके दानी।

ए माटी के लाल,अमर हे तोर कहानी।

जन मानस मा गीत हा,गूँजत रहिथे तोर गा।

जल्दी आजा अब इहाँ,तोर लेत सब सोर गा।।(२)


गुत्तुर तोर अवाज,गीत मा सुमता लाये।

सदा नीत के गोठ,तोर अंतस ला भाये।

भारत माँ के लाल,रोज तोला हे वंदन।

लक्ष्मन हवस महान,तोर पवरी हे चंदन।

श्रद्धा सुमन चढ़ाँय सब,मिलके बारंबार जी।

हमर गाँव ए राज मा,अउ ले ले अवतार जी।।(३)


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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 आल्हा छंद- विजेन्द्र वर्मा


जनकवि स्व.लक्ष्मण मस्तुरिया जी के 72 वाँ जयंती के बेरा मा श्रद्धा सुमन के दू आरुग फूल चढ़ावत हौं।


रिहिस हवै जी माटी बेटा,कहय चलव जी मोरे संग।

गिरे परे हपटे मन हा तब,रँगत  रिहिन हे ओकर रंग।1।


हमर राज के राजा बेटा, लक्ष्मण मस्तुरिया हे नाँव।

गीत लिखे जी आनी बानी,गूँजय गली गली हर ठाँव।2।


कलम गढ़े जन जन के पीरा,परदेशी बर बनजय काल।

हितवा मन के हितवा बनके,बइरी बर डोमी विकराल।3।


रद्दा सुमता मा चलके जी,स्वारथ छोड़व अब इंसान।

कहत रिहिन हे लक्ष्मण भइया,बेंचव झन कोनो ईमान।4।


बसे हवै जन जन के हिरदे,गावयँ सुग्घर गुरतुर गीत।

परे डरे ला साथ लान के,बना डरिस जी सब ला मीत।5।


भरे रहै जी तन मा गरदा,अंतस जेकर हे अँधियार।

दीप जला के करदय लक्ष्मण,मन ला ओकर जी उजियार।6।


देश धरम बर काम करिन हे,देवत रिहिन मया के छाँव।

हाथ जोड़ के पाँव परत हँव,अमर रहय जी ओकर नाँव।7।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

जिला-रायपुर

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 छत्तीसगढ़ के गौरव अमर गायक जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी ला विनम्र श्रद्धांजलि।

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छत्तीसगढ़ के नाम जगाये, माटी के जस गाके।

जनकवि हे लक्ष्मण मस्तुरिया,पावन कलम चलाके।।


महानदी के छलकत आँसू,सरु किसान के पीरा।

अउ गरीब ला हृदय बसाके, गाये गीत कबीरा।।


आखर आखर अलख जगाके,तैं अँजोर बगराये।

परे डरे कस मनखे मन बर,सुग्घर भाव जगाये।।


कर विरोध सब शोषक मन के,हक बर लड़े सिखोये।

दुखिया के बन दुखिया संगी, बीज मया के बोये।।


लोक गीत के ऊँचा झंडा, फहर फहर फहराये।

छत्तीसगढ़ियापन के लोहा,सरी जगत मनवाये।।


झुके नहीं तैं पद पइसा मा,कलाकार के सँगवारी।

पाये नहीं भले तैं तमगा, कोनो जी सरकारी।।


जन जन के हिरदे मा बसथस,सुरता मा लपटाये।

श्रद्धांजलि देवत हे 'बादल', तोला मूँड़ नँवाये।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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संग चलव सब मोर कहइया।

दया मया के गीत गवइया।।

छ्त्तीसगढ़ के मान बढ़इया।

कहाँ गए तँय लक्ष्मण भइया।।


गिरे परे ला इहाँ उठइया।

भटके मन ला राह बतइया।।

सोवइया ला सदा जगइया।

कहाँ गए तँय लक्ष्मण भइया।।


बइरी बर फुफकार करइया।

शोषक मन ला आँख दिखइया।।

जनता बर आवाज उठइया।

कहाँ गए तँय लक्ष्मण भइया।।


नाम अमर जग मा मस्तुरिया।

छत्तीसगढिया सबले बढ़िया।।

स्वाभिमान हुंकार भरइया।

कहाँ गए तँय लक्ष्मण भइया।।


ज्ञानु

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*श्रद्धेय लक्ष्मण मस्तुरिया जी ल विनम्र श्रद्धांजलि -शब्दांजलि।*



छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान के,घर-घर अलख जगाइस।

वाणी हा मस्तुरिया जी के,अमरित रस बरसाइस।


जीव पार दै वो मुर्दा मा,गीत सुराजी गाके।

जोश जगा दै गिरे-परे मा,सँग-सँग अपन चलाके।

शोषक मन ला हुरियाये बर, कभ्भू नइ घबराइस।

वाणी हा मस्तुरिया जी के,अमरित रस बरसाइस।


फूल चँदैनी गोंदा के वो,रहिस पराग मतौना।

कला जगत के फुलवारी मा,जस ममहावत दौना।

आखर-आखर अम्मर होगे,अइसन कलम चलाइस।

वाणी हा मस्तुरिया जी के,अमरित रस बरसाइस।


करमा,पंथी,मस्त ददरिया,फाग गीत होली के।

माटी के महिमा ला गाइस,अउ मया ठिठोली के।

गीतकार,गायक वो कवि श्री,जग मा नाम कमाइस।

वाणी हा मस्तुरिया जी के,अमरित रस बरसाइस।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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 *श्री लक्ष्मण मस्तुरिया जी ला समर्पित रचना*


*दोहा -चौपाई*


दोहा -मस्तुरिया होगे अमर,कालजयी हे गीत।

सबो जिनिस के भाव ला, समझे बनके मीत।।


छोड़ चले लक्ष्मण मस्तुरिया ।सुन्ना होगे सुर के कुरिया।।

कण कण मा तँय बसे दुलरवा।खेत खार घर नदिया नरवा।। 1


घुनही होगे तोर बँसुरिया।तैंहर चलदे सबले दुरिहा।।

छलकत रहिथे धान कटोरा।तँय बइठे धरती के कोरा।। 2।


लाल रतन धन छतीसगढ़िया।सबले सुघ्घर सबले बढ़िया।।

बगरय जग मा चिटिक चँदैनी।आप चढ़े हव सरग निसैनी।।3।


रस घोले रे माघ फगुनवा।बिरहिन के तब आय सजनवा।।

अमर गीत ला रचके लक्ष्मण।बसगे भुइयाँ के तँय कण कण।।4।


ले चल रे चल गाड़ी वाला।धरे मरारिन भाजी पाला।

सबके पीरा दुःख चिन्हैया।अइसन नइहे लोक गवैया।।5।


दोहा-कतका करँव बखान मँय,हे माटी के लाल।

जन जन मा तैंहर बसे,रहिबे तीनों काल।।


 -आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

(छत्तीसगढ़)

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: *लक्ष्मण मस्तुरिया - हरिगीतिका छंद*


छत्तीसगढ़ बेटा रतन, कइसे भुलाबो नाँव ला।

माटी समाए तँय इहाँ,सुग्घर जगाए गाँव ला।।

सेवा करे सब दीन के,करके गुजारा तँय इहाँ।

अपने चलाए संग मा,बनके सहारा तँय इहाँ।।


बनके नँगरिहा खेत मा, जोंते उगाए धान ला।

जम्मों किसनहा संग मा,पाये अबड़ तँय मान ला।।

दुख ला बनाये तँय अपन,अपटे गिरे जन के इहाँ।

अउ गीत ला गाए बने,सुग्घर अपन मन के इहाँ।।


जन-मन भरे बिश्वास तँय,भुइयाँ पखारे पाँव जी।

बनके करम के गीत तँय,छाये मया के छाँव जी।।

अंतस समाए हस हिया,कइसे भुलाबो आज गा।

सुन्ना परे भुइयाँ इहाँ,सुरता लमाबो आज गा।।


छंद रचना-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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आज छतीसगढ़ के दुलरवा बेटा अउ अमर गायक कवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी के पुण्य तिथि हे। उनला सुरता करत शब्द सुमन अर्पित करत हँव।


                   शंकर छंद ( लक्ष्मण मस्तुरिया)


ये माटी के बेटा लक्ष्मण,मस्तुरी के आय

तेखर सेती अपन नाँव मा,मस्तुरिया लगाय

कलम जिंखर इतिहास रचिन अउ,गायक कवि कहाय

मंच चँदैनी गोंदा मा जे,रचे गीत ला गाय।


जानय उन माटी के पीरा,अनित अउ अन्याय

देखय शोषण विकट गरीबी,जी उँखर अँगियाय

संग चलव रे लिखे कलम हर,लगय दास कबीर

छोड़ अपन घर बार चलव जी,जौन बने फकीर।


नारी मन के दरद लिखय उन,कहे कोंवर नार

घुनही बँसुरी बजे कोन सुर,लिखय दुःख अपार

लागय सुन्ना धनी बिना जग,लगे जिनगी भार

लिखय कभू गीता के बानी,कभू लिखय श्रृंगार।


जौन सहे अउ सुने गुने हे,गीत वो बन जाय

पइरी महानदी कस कलकल, सुर मा गीत गाय

हरे सामरथ छतीसगढ़िया,बेटा रतन ताय

जन जन के कवि गायक लक्ष्मण,मस्तुरिया कहाय।


शशि साहू - बाल्को नगर

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18 comments:

  1. बहुत सुग्घर शब्दांजलि संकलन

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  2. स्व.लक्ष्मण मस्तुरिहा जी ला समर्पित सुग्घर छंदमय श्रद्धांजलि

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  3. अमर गीतकार ल कोटि कोटि प्रणाम💐

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  4. अमर गीतकार गायक माटी सपूत ल कोटि-कोटि नमन 🙏🙏

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  5. वाह वाह वाह! लाजवाब संकलन तैयार होये हे। बड़ सुग्घर भावांजलि।

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  6. बेहतरीन संकलन सुघ्घर भावांजलि सादर नमन

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  7. शत शत नमन,, बढ़िया संग्रह

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  8. शत् शत् नमन। बड़ सुग्घर भावांजलि बड़ सुग्घर संकलन

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  9. शत शत नमन हे छत्तीसगढ़ के रतन बेटा , माटी सपूत अमर गीतकार ,लोकगायक ,जनकवि परम श्रद्धेय लक्षमण मस्तुरिहा जी ल | सुंदर भावॎंजली ,गजब के संकलन|

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  10. एक ले बढ़ के एक रचना

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  11. बहुत सुघ्घर संकलन मस्तुरिया जी के श्रद्धांजलि स्वरुप सादर नमन्

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  12. अनमोल धरोहर संकलन

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  13. सुघ्घर संकलन
    शत शत नमन्

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  14. मस्तुरिया जी ला शत् शत् नमन

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  15. बहुत सुग्घर संकलन।छत्तीसगढ़ के दुलरवा जन कवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी ला शत् शत् नमन💐💐🙏

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  16. बहुत मनभावन छंदरचना संकलन ।श्रद्धेय मस्तूरिहा जी ला सादर नमन् 🙏🙏🙏

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  17. हमर पुरखा कवि प्रणम्य मस्तुरिया के सुरता आँखी मा झूलगे ।बहुत ही शानदार अउ लाजवाब संकलन ।सादर नमन ।

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