चौमास विशेष छंदबद्ध रचना
*चउमास* (घनाक्षरी)
(1)
घाम-दिन गइस, आइस बरखा के दिन
सनन-सनन चले पवन लहरिया।
छाये रथ अकास-मा, चारों खूँट धुँआ साही
बरखा के बादर निच्चट भिम्म करिया।।
चमकय बिजली, गरजे घन घेरी-बेरी
बरसे मूसर-धार पानी छर छरिया।
भरगें खाई-खोधरा, कुँआ डोली-डांगर "औ"
टिप टिप ले भरगे-नदी, नरवा, तरिया।।
(2)
गीले होगे माटी, चिखला बनिस धुर्रा हर,
बपुरी बसुधा के बुताइस पियास हर।
हरियागे भुइयाँ सुग्धर मखमल साही,
जामिस हे बन, उल्होइस कांदी-घास हर।।
जोहत रहिन गंज दिन ले जेकर बाट,
खेतिहर-मन के पूरन होगे आस हर।
सुरुज लजा के झाँके बपुरा-ह-कभू-कभू,
"रस-बरसइया आइस चउमास हर"।।
(3)
ढोलक बजावैं, मस्त होके आल्हा गाँय रोज,
इहाँ-उहाँ कतको, गँवइया-सहरिया,
रुख तरी जाँय झुला झूलैं सुख पाँय अउ,
कजरी-मल्हार खूब सुनाँय सुन्दरिया ।।
नाँगर चलाँय खेत जा-जाके किसान-मन,
बोवँय धान-कोदो, गावैं करमा ददरिया ।
कभू नहीं ओढ़े छाता, उन झड़ी झाँकर मा,
कोन्हो ओढ़े बोरा, कोन्हों कमरा-खुमरिया ।।
(4)
बाढिन गजब माछी, बत्तर-कीरा "ओ" फाँफा,
झिंगरुवा, किरवा, गेंगरुवा, अँसोढिया ।
पानी-मा मउज करें-मेचका, भिंदोल, घोंघी।
केंकरा, केंछुवा, जोंक मछरी अउ ढोंड़िया ।।
अँधियारी रतिहा मा अड़बड़ निकलँय,
बड़ बिखहर बिच्छी, साँप-चरगोड़िया ।
कनखजूरा-पताड़ा, सतबूँदिया "ओ" गोेहे,
मुँहलेड़ी, धूर नांग, कँरायत कौड़िया ।।
(5)
भाजी टोरे बर खेत-खार "औ" बियारा जाँय,
नान-नान टूरा-टूरी मन घर-घर के ।
केनी, मुसकेनी, गुंड़रु, चरोटा, पथरिया,
मछरिया भाजी लाँय ओली भर भर के ।।
मछरी मारे ला जाँय ढीमर-केंवट मन,
तरिया "औ" नदिया मां फाँदा धर-धर के ।
खोखसी, पढ़ीना, टेंगना, कोतरी, बाम्बी धरें,
ढूँटी-मा भरत जाँय साफ कर-कर के ।।
(6)
धान-कोदो, राहेर, जुवारी-जोंधरी कपसा
तिली, सन-वन बोए जाथे इही ॠतु-मा ।
बतर-बियासी अउ निंदई-कोड़ई कर,
बनिहार मन बनी पाथें इही ॠतु मा।।
नाग पंचमी हरेली राखी, आठे, तीजा-पोरा
गनेस-तिहार, सब आथें इही ॠतु मा ।
गाय-गोरु मन धरसा-मा जाके हरियर,
हरियर चारा बने खाँयइही ॠतु मा ।।
(7)
देखे के लाइक रथे जाके तो देखो चिटिक,
बारी-बखरी ला सोनकर के मरार के ।
जरी, खोटनी, अमारी, चेंच, चउँलई भाजी,
बोये हवें डूंहडू ला सुग्धर सुधार के ।।
मांदा मा बोये हें भाँटा, रमकेरिया, मुरई,
चुटचुटिया, मिरची खातू-डार-डार के ।
करेला, तरोई, खीरा, सेमी बरबटी अउ,
ढेंखरा गड़े हवँय कुम्हड़ा के नार के ।।
(8)
कभू केउ दिन-ले तोपाये रथे बादर-ह,
कभू केउ दिन-ले झड़ी-ह रहि जाथे जी ।
सहे नहीं जाय, धुँका-पानी के बिकट मार,
जाड़ लगे, गोरसी के सुरता-ह-आथे जी ।।
ये बेरा में भूँजे चना, बटुरा औ बाँचे होरा,
बने बने चीज-बस खाये बर भाथे जी ।
इन्दर धनुष के कतेक के बखान करीं,
सतरंगा अकास के शोभा ला बढ़ाये जी ।
(9)
ककरो चुहय छानी, ककरो भीतिया गिरे,
ककरो गिरे झोपड़ी कुरिया मकान हर,
सींड़ आय, भुइयाँ-भीतिया-मन ओद्दा होंय,
ककरो टूटय छानी ककरो दूकान हर ।।
सरलग पानी आय-बीज सड़ जाय-अउ,
तिपै अघात तो भताय बोये धान हर,
बइहा पूरा हर बिनास करै खेती-बारी,
जिये कोन किसिम-मा बपुरा किसान हर ?
(10)
घर घर रखिया, तूमा, डोड़का, कुम्हड़ा के,
जम्मो नार-बेंवार-ला छानी-मा, चढ़ावैं जी ।
धरमी-चोला मन-पीपर, बर, गस्ती"औ",
आमा, अमली, लीम के बिरवा लगावैं जी ।।
फुलवारी मन ला सदासोहागी झाँई-झूई,
रिंगी-चिंगी गोंदा पचरंगा-मा सजावैं जी ।
नदिया "औ" नरवा मा पूरा जहँ आइस के,
डोंगहार डोंगा-मा चधा के नहकाँय जी ।।
(11)
बिछलाहा भुइयाँ के रेंगई-ला पूछो झन,
कोन्हों मन बिछलथें, कोन्हों मन गिरथें ।
मउसम बदलिस, नवा-जुन्ना पानी पी के,
जूड़-सरदी के मारे कोन्हों मन मरथें ।।
कोन्हों माछी-मारथें तो कोन्हों मन खेदारथें,
कोन्हों धुंकी धररा के नावे सुन डरथे ।
कोन्हों-कोन्हों मन मनेमन मा ये गुनथें के
"येसो के पानी - ह देखो काय-काय करथे" ।।
*जनकवि कोदूराम "दलित"
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*हरिगीतिका छंद - चउमास*
चिखला मतावत खेत मा,जम्मों खड़े बनिहार जी।
परहा लगावत धान के,गावत ददरिया झार जी।।
पानी गिरै रिमझिम बने,पुरवा घलो सुग्घर चलै।
अँचरा उड़ावै खाँध ले,अउ पेड़ के पाना हलै।।
नाचन लगै मन झूमके,लहराय खेती खार जी।
बड़ खुश किसनहा मन लगै,मानै सबो त्यौहार जी।।
नाँगर चलै ट्रेक्टर चलै,बादर घलो बरसै सखा।
बन के मयूरा कस इहाँ,तन मन सबो हरषै सखा।।
दुल्हिन सहीं भुइयाँ लगै,सुग्घर लगै श्रृंगार हा।
चारों मुड़ा छाए खुशी,हरियाय खेती खार हा।
लइका मगन होके सबो,टुप-टुप मढ़ावै पाँव ला।
करके किसानी काम ला,सँहराय अपने नाँव ला।।
छंद रचना:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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*हरिगीतिका छंद - चउमास*
करिया उठै घनघोर जी,बादर घटा आगास मा।
सुर-सुर चलै पुरवा घलो,सुग्घर लगै इहि मास मा।।
सुग्घर दिखै बन कोयली,काजर अँजाये आँख जी।
नाचय सुहावन मोरनी,फइलाय जम्मों पाँख जी।।
आषाढ़ पानी बड़ गिरै,अउ खेत भर बोहाय जी।
नाँगर चलै बाँवत चलै,अब दिन किसानी आय जी।।
छानी चुहै परवा चुहै,नरवा कुआँ भर जाय जी।
टर-टर करै सब मेचका,मन ला गजब के भाय जी।।
डबरा भरै अउ खोचका,बड़ मेड़ पार बोहात ले।
पानी गिरै बड़ झोर के,तन मन सबो जुड़वात ले।।
हरियर दिखै अँचरा सबो,भुइयाँ करै श्रृंगार ला।
सब भाग जागै जीव के,पा के गजब उपकार ला।।
छंद रचना:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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*आल्हा*
(चउमास)
झिमिर-झिमिर बरसा के पानी, घपटे बादर गेहे मात।
गड़-गड़-गड़-गड़ गरजत घुमरत, जाने काय कहत हे बात।।
लप-लप-लप-लप लउकत बिजुरी, गजब अँधेरत हवै अगास।
नाँगर बइला बोर दिही का, हे किसान मन राखत आस।।
झरर-झरर झर हवा झकोरा, डारा झूपत नाचत पात।
फिल-फिल-फिल-फिल पीपर पाना, कइसे डोलत हावै घात।।
बक्का नइ फूटत कउँवा के, कोयल नइ कुहकत हे आज।
बोट-बोट ले आँखी खोले, चुप बइठे खुसरा महराज।।
चिरई-चुरगुन सबो लुकावत, जीव-जानवर ओध थिराय।
तरिया के मछरी उछलत हे, जल बरसा पा के मुस्काय।।
होत लबालब तरिया डबरी, छलकत नरवा नदिया देख।
धरती होवत पानी-पानी, गाँसा-मूँही खोल सरेख।।
मगन परानी गदगद बानी, उर्रा भागत हे जल धार।
दिन दुकाल के संकट टरही, काम बुता भदराही खार।।
सावन भादो बरसा अमरित, बूझाथे भुइयाँ के प्यास।
जल-थल-नभचर जीवन पाथे, चउमासा सुख साल सुवास।।
छंद :आल्हा
बलराम चंद्राकर भिलाई
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सरसी छन्द विरह गीत
विषय-बरसात
मोर धनी कइसे नइ आये,आगे हे बरसात।
ए बिरहा मा कइसे जीयँव,तरसत हँव दिनरात।।
मन-मन सोंचत हावँव ओला,अंतस लागे ठेस।
कइसे होही मोर बिना वो,गे हावय परदेश।।
फोन घलो नइ करे सखी रे,करे नहीं कुछ बात।
मोर धनी कइसे नइ आये,आगे हे बरसात।।
कोन किसानी करही अब तो,परिया खेती खार।
नान-नान हे लइका छउवा,कोन लगाही पार।।
कइसे ए परिवार चलावँव,मँय नारी के जात।।
मोर धनी कइसे नइ आये,आगे हे बरसात।।
अँधियारी डर लगे सखी रे,बादर बरसे जाय।
बिजली चमके बादर गरजे,जिंवरा हा घबराय।।
चूहय छानी घर भर पानी,भुइयाँ गय हे मात।
मोर धनी कइसे नइ आये,आगे हे बरसात।।
द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
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-मनहरण घनाक्षरी
तन मन मा उमंग,सबो जीव रँगे रंग,
उमड़ घुमड़ जब,बादर हा छात हे।
गरज बरस बने,रुखराई दिखे तने,
चउमास के पानी मा,जींयरा जुड़ात हे।।
कुलकत उछलत,जीव-जंतु पुलकत,
तरिया नदियाँ इहाँ,छलकत जात हे।
मचल मचल झूम,बादर धरा ला चूम,
बाँटत सुघर मया,पानी ला गिरात हे।।
विजेंद्र वर्मा
नगरगाँव (धरसीवाँ)
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: हाकलि छन्द
सावन महिना आये हे,
खुशहाली धर लाये हे।
करिया बादर छाये हे,
पानी ला बरसाये हे।।(१)
आये बरसा रानी हा,
रिमझिम बरसे पानी हा।
चुचवावय बड़ छानी हा,
आनंदित जिनगानी हा।।(२)
बादर जब बरसे भारी,
बोहय पानी के धारी।
दिन लागे बड़ अँधियारी,
डर लागे जी घर-बारी।।(३)
जुड़हा-पावन पुरवाई।
मन ला मोहे अमराई,
फुलवा मन के ममहाई,
जिनगी लागे सुखदाई।।(४)
धरती अब हरियाये हे,
माटी हा ममहाये हे।
झिंगुर राग सुनाये हे,
सबके मन ला भाये हे।।(५)
होवय गोठ सियानी के,
नइहे काम फुटानी के।
आगे काम किसानी के।
बइला संग मितानी के।।(६)
बरसे बादर करिया हा,
भरगे बाँधा तरिया हा,
झलके डोली परिया हा
दउडे कलकल नदिया हा।।(७)
रद्दा होगे बड़ बिछला,
अब्बड़ माते हे चिखला।
लइका खेले घड़घिसला,
का पुछबे इँखरों सुख ला।।(८)
भौंरा मारत हे ताना,
कोयल गावत हे गाना।
फुलवा मनके मुस्काना,
झूमत हे डारा-पाना।।(९)
मनभावन सावन आगे,
जंगल झाड़ी हरियागे।
डारा-पाना उलहागे,
पावन ए भुँइयाँ लागे।।(१०)
द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
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: चउमास
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(सार छंद)
वर्षा ऋतु के चार महीना, चउमासा कहलाथे।
सँग असाड़ सावन भादो के,माह कुँवार गिनाथे।।
मानसून पहुना बन आथे, बाँटे बर खुशहाली।
धरती दाई के अँगना मा, बगरावत हरियाली।।
अदरा के आरो ला पाके, दादुर टेर लगाथे।
करिया बादर घूम-घूम के, पानी ला बरसाथे।।
काँटा-खूँटी ता चतवारे, काँदी दूब हटाके।
खेत किसनहा मन सिरजाथें, खातू ला बगराके।।
अरा-तता के टेही परथे, बिजहा खेत छिंचाथे।
लगते सावन होय बियासी, रोपाई भदराथे।।
भादो के बरसे पानी मा, धाने पोटिरियाथे।
लहुटत बरसा हा कुँवार के,कंशा ला झलकाथे।।
हवय महत्तम चउमासा के ,छत्तीसगढ़ मा भारी।
मना तिहार उपास रहे मा, मगन रथें नर-नारी।।
होथे शुरुआत हरेली ले,गेंड़ी धूम मचाथे।
नाँगर अउ बइला के पूजा, गरुवा लोंदी खाथे।।
सावन मा शिवजी के पूजा,नागपंचमी राखी।
भादो जन्माष्टमी कृष्ण के, दुनिया बनथे साखी।।
तीजा-पोरा गनपति पूजा,पितर पाख हा आथे।
अउ कुँवार नवरात दसेरा, देवारी लकठाथे।।
रीत रिवाज हमर कतको हे,पुरखा हवैं बनाये।
मरम-धरम खेती-बारी के, माला सहीं गुँथाये।।
नइतो होवय बर-बिहाव हा, खेती मा बिपताये।
नदिया-नरवा के पूरा मा, घर मा रहे धँधाये।।
गृह प्रवेश अउ छट्ठी-बरही,नइ होवय चउमासा।
किच्चिर-कइया चिखला-माटी, का मंगल के आसा।।
खान-पान के चउमासा मा,ध्यान बने रखना हे।
अल्लम-गल्लम भाजी पाला, चिटको नइ चखना हे।।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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चौपई छन्द
चौमास
जीव जगत बर अब्बड़ खास, नेंव धरे हे ये चउमास।
नदिया मन टोरंय उपवास, कुलके धरती मगन अगास।।
ताल तलैया मन मुसकाय, खेती बारी सब हरियाय।
अबड़ मेचका मन टर्र्राय, नाचैं कूदें खुशी मनाय।।
बरसा के जब पड़े फुहार, बादर चुकता करे उधार।
नदी समुंदर के हे प्यार, इंद्र देव के बड़ उपकार।।
नांगर धरके चले किसान, खेत खार मा बोवत धान।
चम चम बिजुरी के मुस्कान, सन सन सनन हवा के तान।।
बादर पीटे माँदर ढोल, टरर नरियाय गिंधोल।।
जीव जंतु के सुग्घर बोल, ईश्वर् कृपा हवय अनमोल।।
झींगुर मन करर्थे बड़ शोर, बन मा झम झम नाचय मोर।
भीगे गाँव गली घर खोर, दिखथे खेती खार सजोर।।
चौमासा मा परब तिहार, बरसे अब्बड़ मया दुलार।
भाई बहिनी मन के प्यार, कतको रीति मया संस्कार।।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमानीपाली कोरबा
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(कुण्डलियां)
धरके रपली जात हॅंव, खेत मटासी खार ।
भरगे पानी खेत मा, बगरे नार बिंयाॅंर।।
बगरे नार बिंयाॅंर, मेढ़ ला बाॅंधत आहँव।
परगे कुकरा बाॅंख, लऊहा मैंहर जाहँव।।
बन दूबी घपटाय, नींदहँव सुरता करके।
झटकुन आबे आज, भात-बासी ला धरके।।
।
आजा बदरी अंगना, आसों के आषाढ़।
धरती अंबर संग मिल, बांधव मया प्रगाढ़।।
बांधव मया प्रगाढ़ , खेत डोली हरियादे।
धधकत खेतीखार, टीपकत बुॅंद बरसादे।।
ताकत सबो किसान , पधारौ बदरी राजा।
करत मिलन गोहार , हमर गांव तैं आजा ।।
-
झरझर गीत असाड़ के, झुमरत धरती गाय।
सपटे लपटे जीवमन, हरियर कोरा पाय।।
हरियर कोरा पाय, देख पानी के मोती।
जगगे जीवन आस, भाय हरियर सब कोती।।
रंग बिरंगी जीव, घूम नाचत हे लरलर।
कन कन मा आषाढ़, मया बरसत हे झरझर।।
(छप्पय छन्द)
आगे हावय बाढ़, जलाजल खेती बारी ।
दिनभर के बरसात, धान बुड़गे हे सारी।।
नइ चिनहावत खेत, नजर भर पानी पानी।
प्रकृति संग हर साल, जुवा मा हे परशानी।।
खेत बने हे ताल रे, बुरा मेढ़ के हाल रे।
गोलू जाके देख तो, गरुवा ला सारेख तो।।
।
मिलन मलरिहा
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
*छन्न पकैया छंंद*
*विषय-बरखा आगे*
छन्न पकैया छन्न पकैया, आगे बरखा रानी।
झरझर सरसर नाचत झूमत, लेके आगे पानी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, करिया बादर आगे।
बिजली चमके पानी गिरगे, धरती अब हरियागे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, कलकल नरवा करथे।
खचवा डबरा भरगे पानी, झरझर झरना झरथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, सबो जीव तर जाथें।
पानी गिरथे धरती मा जब, अब्बड़ सुख सब पाथें।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बाँधौ संगी नरवा।
आगे हवय किसानी के दिन, रोकव छेकव गरवा।।
*अनुज छत्तीसगढ़िया*
*पाली जिला कोरबा*
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सार छंद- चउमासा
बरसव बरसव बरखा रानी, धरती प्यास बुझाही।
तरसावव झन जीव जन्तु ला, वन उपवन हरियाही।।
चार मास तक बरसे पानी, चउमासा कहलाथें।
सावन भादो कुवाॅर कातिक, छाता खुमरी भाथें।।
करिया- करिया घटा बरस दव, हो जिनगी खुशहाली।
करै किसानी रोपय थरहा, डोली डबरा काली।।
गाॅव गली मा छानी अगनाॅ, छछल बछल जल जाही।
नदिया नाला ताल- तलैया, गगन मगन हो जाही।
भाग जागही ये माटी के, नव सिंगार चढ़ाही।
लाली पिंवरी लुगरा पहिरे, ऑखी देख सुहाही।।
बड़ा महातम चउमासा के, ध्यानी ध्यान लगाथें।
बुद्ध तथागत सुंदर वन मा, महिना चार पहाथें।
रामकली कारे
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छप्पय छंद (चउमास)
नाचत बन मा मोर, जीव जम्मों हरसाये।
मारत बिजली बान, बिकट बादर हे छाये।
गरज गरज के आज, गिरत हे अड़बड़ पानी।
लहरावत हे पेड़, देख खुश हे जिनगानी।
हरियर लुगरा ला पहिर, धरती माँ मुस्कात हे।
गाना गावत हे पवन, बरखा रानी आत हे।।
वसुन्धरा पटेल "अक्षरा"
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: छन्न पकैया
छन्न पकैया छन्न पकैया, बरसे रिमझिम पानी।
पानी ले हे खेत खार जी,पानी ले जिनगानी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, गरवा प्यास बुझाथे।
डारा पाना हरियर होथे,झींगुर गाना गाथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, भरगे ड़बरा खँचका।
नाव चलाके लइका खेले,पुच पुच कुदे मेचका।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, धरे तिहार ल आगे।
रथदुतिया ले शुरु हे भैया,फेर हरेली छागे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,रुच रुच गेंड़ी बाजे।
पोरा आगे देखव लइका,नँदिया बइला साजे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, नोनी चुकिया पोरा।
खेलत हाबे बरा राँध के,अउ राँधे हे बबरा। ।
छन्न पकैया छन्न पकैया, सावन शिवा मनाबो।
हर-हर भोले बम भोले कहि, दूध दही चढ़हाबो।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, पावन राखी आगे।
आवन लागे भाई बहिनी, जम्मो झन सकलागे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,किसम किसम के रोटी।
भाई मन बर लानत हावे,जम्मो बहिनी बेटी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,भादो तीजा आथे।
रिहिस अगोरा भैया के जी,बहिनी गाना गाथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,कभू झमाझम बरसे।
सिटिरे साटर गिरथे पानी,खेत खार तब तरसे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,बाढ़ कभू आ जाथे।
घर दुवार अउ गरवा बछरू,धार -धार बोहाथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,चूहय खपरा छानी।
छत वाला मन बइठे देखे,बूड़त गा जिनगानी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,झन करहू रघुराई।
रिमझिम रिमझिम देवत रहिहू,बाढ़ बने दुखदाई।।
केवरा यदु"मीरा"राजिम
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*सावन आवौ* (मरहठा छन्द)
हे सावन आवौ,विनती सुनलौ,करलौ हमरो चेत।
होवत हे चौपट,बिन बरसा के,आव बचावौ खेत।
परगे हे सुक्खा,नदिया नरवा,बिसरे हे जल धार।
प्राणी हे प्यासे,प्यास बुझावौ,करव नीर बौछार।।
चन्दा चंदैनी,आसमान मा,हावय करत अँजोर।
छिपगे हे बदरा,जल हर खचका,बाँचे हे ना थोर।
बिन कारज माली,हलधर खाली,बइठे हे बेकार।
दे काम सबो ला,हरषै चोला,झूम उठै बनिहार।
काँटा बनगे हे,बिन बरसा के,झूला हर अब तोर।
बादर गरजावौ,जल बरसावौ,हरियावौ हर छोर।
भुइयाँ हर मधुबन,लागै सुग्घर,बिसरे झन संसार।
हाँसय हलधर मन,मालिन मन सब,गावै गीत मल्हार।
राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी (छुरिया)
जिला-राजनांदगाँव
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*वीर छंद*
चउमास
हे चउमास अगोरा तोरे, आठ माह ले जोरा आय|
लाथस तँयहर धर खुशहाली, जीव जंतु के बल बढ़जाय||
लाथस तँय हर धर खुशहाली, हरियर हरियर धरती छाय|
जंगल पर्वत झाड़ी झाहू, तुहँर समाये पोषण पाय|
रदरद रदरद बरसय पानी, देख किसनहा के मन भाय|
बड़ा सुहावन मौसम लागे, पबरित दानी असाढ़ आय||
गड़गड़ गड़गड़ गरजय बादर, नँदिया नरवा बोहय धार|
चमचम चमचम चमकय बिजुरी, बरसावँय पानी भरमार ||
धरती के हर प्यास मिटाके, तरसत ला करथस खुशहाल|
जीव जंतु मन बाढ़े लगथें, बन मा चारा चंदन साल||
बीजा तिनसा सरई साजा, फुटथे पिहरी बनथे राल|
चौंतरफा वनधन हर बढ़थे, धन्ना होथें माला माल||
फाफा फिरगा मेचका झिंगुरा, गावत रहिथे लगा के आश|
सबके जिनगी मा भरदेथस, मँदरस पानी घोर मिठास|
तरतर तरतर चुहथे परवा, छानी मा गिरथे भरमार|
बोहत रहिथे भाग तोर बड़, जिनगी के तो तहीं अधार||
करम धरम के खेती होथे, आनी बानी तीज तिहार|
मगन खुशी ले कारज सिघथे, धनी दास बनथें सरकार||
बटकी बासी धरे किसानिन, बीज भाँत जोरे बर जाँय|
नाँगर बइला धरे किसानन, बांवत कर सम्मत ले आँय||
लगथे परहा पौधा थरहा, खेत खार हर मन हरषाय|
नाँगर बइला धरे तुतारी, अर्र तता के बोल सुनाय||
जरई छीतँय खेत मतावँय, थरहा परहा लगगे खार|
खुल खुल बोहत हे जलधारा, नँदिया नरवा बाढ़े पार||
हरियाली के खुशी मनावत, मनखे मन देवत हे मान|
नाँगर बक्खर धो फरिया के, पूजन वंदन करँय विधान||
लइकन मनसब मचकँय गेड़ी, रिचपिच रिचपिच बाजय खास|
खेलँय खुडुवा बिल्लस फुगड़ी, मार जगावँय भारी आस||
महतारी मन बने उपसहिन, छठ आठे तीजा रहि जाँय|
किसम किसम के नेंग बनावत, राँध कलेवा जुरमिल खाँय||
भादो भर भदरावय खेती, झुमर झुमर फुलवा मुसकाय|
धान पान मोंजराये लागँय, डहर डहर नारा छरियाय||
पिवँरा पिवँरा फुलय तरोई, घमघम ढ़ाँके तूमा नार|
मखना मड़वा मा छतरावय, लहसत हे मुनगा के डार||
मूंगफली लटलट ले गूँथे, उरदा हे चिपियाये पाग|
भुट्टा खीरा मन ललचावँय, रखिया रखियाये बलराग||
मोहर महिना कुआँर आगे, पुरखा देव सरग ले आँय|
घर घर पितर मनावन लागें, राँध बरा चीला जेवाँय||
नवा फसल मन पाकन लागिन, सबो नवा खाई हें खात|
अइसे चार महीना बनथे, जिनगी बर सुख के सौगात||
कातिक मा देवारी पूजा, माँ धरनी ला भोग लगाँय||
नवा नवासा जेवन बनथे, अन धन के भंडार भराय||
छंदकार
अश्वनी कोसरे
रहँगी पोंड़ी
कवर्धाकबीरधाम
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*चौमास*
मनहरण घनाक्षरी
//1//
गड़ गड़ गरजय, बादर हा बरसय,
बिजुरी हा चमकय, देख तो अगास मा ।
बाजत हे खद बद ,पानी गिरे रद रद,
ढोड़गा नरवा नद, कुँवा हे उल्लास मा ।
भुइयाँ के सुसि बुझे, सबो जीव खुशी सूझे,
नँगरिहा खेत जूझे, जावत हुलास मा ।
एसो के बरखा घन, आये झन अलहन ,
पानी पी जियत हन, तुँहरे विश्वाश मा ।।
//2//
हरियर हरियर, धरती हे फरीयर,
धूंका चले सरसर, गमके चौमास हे ।
चोरो बोरो नान्हे बड़े, भीजत हे अड़े खड़े,
चिखला मा कूदे पड़े, नाचत बिंदास हे ।
दादुर हा मौज मारे, कीरा काँटा राज करे,
टप टप छानी झरे, रेला बोहे खास हे ।
आ गे हे बरखा रानी, झमाझम गिरे पानी ।
हन के कर किसानी, अभी शुभ मास हे ।।
नंदकिशोर साव 'नीरव'
लखोली, राजनांदगांव (छ. ग.)
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: बरखा रानी (हेम के सार छंद)
करिया-करिया बादर देखत,
हाँसत हे जिनगानी।
सबके मन मा आस जगत हे,
आवत बरखा रानी।1।
रुमझुम-रुमझुम पानी बरसे,
खड़े किसान दुवारी।
सावन भादो महिना आगय,
रात लगे अँधियारी।।2।
खेलँत हावँय लुका छुपी ला,
चाँद सुरुज बड़ भारी।
छावय जग मा घुमड़- घुमड़ के,
बदरी कारी-कारी।3।
धरके गावय राग मेचका,
करँय तमासा मछरी।
झूमर-झूमर डोरी नाचय,
पिटय केकड़ा डफरी।4।
झींगुर सोर मचावत हावय,
खेलँय घोंघी घाँदी।
चारो कोती स्वागत करथे,
झूम-झूम के काँदी।5।
टपटप-टपटप पानी गिरथे,
चुहथे खपरा छाँही।
तरिया-नदिया होय भरावर,
सुघ्घर जिनगी आही।6।
पहिरे धरती हरियर लुगरा,
लाय नवा खुशियाली।
चिरई चुरगुन खेती घूमय,
देखय बड़ हरियाली।7।
-हेमलाल साहू
छंद साधक, सत्र-1
ग्राम गिधवा, जिला बेमेतराब
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: करिया बदरा (जलहरन घनाक्षरी)
1
करिया तैं बदरा गा, चुहे बड़ खपरा गा, बरसे तैं सरलुग, अब थोक जा अँतर।
लहुटे नइहे छानी, जात हे भीतर पानी, बेंदरा कुदे हे बड़, हवै जतर-खतर।
जाना जाना तैं हा जाना, दूर देश तैं हा जाना, देखाबे तैं उही कोती, अपन बने गतर।
धनी गये परदेश, कहि देबे जा संदेश, आगे हे किसानी दिन, शुरु होही गा बतर।
2
पैरा नइ धराय हे,भूँसा नइ तोपाय हे, छेना लकड़ी भिँजे के, हवै मोला बड़ डर।
नइहे गा झिपारी हा, मातगे हे ओसारी हा, होवथे गा चोरो-बोरो, कुरिया अँगना घर।
भिथिया हा गिर जाही, कोन एला बनवाही, उड़ उड़ जात हवै, लगे कोठा के खदर।
संसो हवै भारी मोला, जल्दी बलाय हे तोला, कहिबे जोड़ी ला मोर, जा तैं लकर -धकर।
3
घुरवा नइहे माटी, होही चिखला मुहाटी, परे हे पलानी हर, गोंटी काड़ी जाही सर।
खातू नइ बिछाय हे, मुँही नइ बँधाय हे, काँद दुबी लगही गा, अड़बड़ छोले बर।
बिजहा नइहे दाना, परही गा खोज लाना, खातू घलो बिसाही वो, झट करके बतर।
पिया मोरे परदेशी, बने हावै तोरे सेती, भारी तरसाय रहे, तैं गा पीछू के बछर।
-मनीराम साहू 'मितान'
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लगते असाढ के बेरा बर
घनाक्षरी छंद
बरखा बहार आगे, धरती ह हरियागे ।
चेत करो खेती बर, जाॅगर चलाव जी ।
लहसत रुख राई, झुमरत पुरवाई ।
मन मा उमंग भर, खेत खार जाव जी ।
माटी ममहात हवे, बेंगवा ह गात हवे ।
मिहनत करो भइया, नाॅगर सजाव जी ।
बिन डार बूटा झिटी, लेस डारो काॅटा खूंटी ।
खेती चतवार डरो, सोना उपजाव जी ।
जागो रे आलस छोड़, ढेलवानी माटी फोड़ ।
धान खातू बिजहा के, करले हियाव जी।
लग जाही चउमास, झन टूटे बिसवास ।
तोरे अन्न खाही जग, नाम ल कमाव जी ।
राजकुमार चौधरी
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*चउमास*
★कुंडलियाँ छन्द★
करिया बादर देख के, वन मा नाचे मोर।
जगर-मगर बिजली करे, मन मा उठय हिलोर।।
मन मा उठय हिलोर, मया के गाना गाथे।
बादर मन के बात, मयारू तक पहुँचाथे।।
संग-संग बरसात, मया भरगे मन तरिया।
अब्बड़ सुरता आय, देख के बादर करिया।।
★मनहरण घनाक्षरी★
घनन-घनन घन, सनन-सनन सन,
बरसत बादर हे, मन घबरात हे।
टूटत गिरत छानी, बरसत भारी पानी,
बादर के रूप देख, जी ह अकुलात हे।
रोज-रोज पानी गिरे, मन ह न धीर धरे,
बिरह के आगी घलो, मन ल जरात हे।
जेकर हे घर द्वार, संग रहै परिवार,
करिया बादर देख, वो ह हरषात हे।
★रूप घनाक्षरी★
पानी गिरे झर - झर, हवा बहे फर - फर,
खेत चलो जाबो संगी, काम बहुते भराय।
धान बोना हवै जल्दी, पाछु लगावव हल्दी,
सब काम करना हे, खेती-बारी दिन आय।
नाँगर - बइला संग, समारू चले मतंग,
खेती बाड़ी दिन मा जी, बरसा ह भारी भाय।
करौ मिहनत भारी, तभे होही जी चिन्हारी,
जे ह जतका कमाये, ओतकी वो फल पाय।
तेजराम नायक "तेज"
छन्द साधक सत्र - 11
आमगांव, रायगढ़ (छ. ग.)
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🌦️पानी-बादर के अषाढ़🌦️
छन्न पकैया छन्न पकैया, दिन अषाढ़ के आथे।
जेठ माह के बड़ गर्मी ले, छुटकारा सब पाथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, करिया बादर छाथे।
रदरद- रदरद बरसा ले जी, भुइँया प्यास बुझाथे।1।
छन्न पकैया छन्न पकैया,मनखे मन डर जाथें।
गरजत बादर चमकत बिजली, पोटा बिकट कँपाथें।
छन्न पकैया छन्न पकैया, प्रकृति मधुर मुस्काथे।
धुर्रा मा जब पानी पड़थे,सौंधी तब ममहाथे।2।
छन्न पकैया छन्न पकैया,नँगत धार बोहाथे।
छलछल कलकल नदिया नरवा, हाँसत खेलत जाथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,कोयलिया कू-कू गाथे।
अउ मयूर के सुघर नाच हा ,कोमल भाव जगाथे।3।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बोनी के दिन आथे।
सब किसान मन रमथें श्रम मा, खेती हा भदराथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, गुरुपुन्नी मन भाथें।
रथयात्रा मा प्रभु के आघू ,भक्तन मूँड़ नवाँथें।4।
रचना--
कमलेश वर्मा
छन्द के छ
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गीत
बेरा कहाँ थिराये के हे, हावय करे सियानी के
अपन तियारी करलौ संगी, आगे बखत किसानी के
- खातू-कचरा घलो पाल लव, मेड़पार चतवार डरौ।
मुही पार फूटे होही ता, बने उहू ल तियार करौ।।
सावचेत हो जावव भइया, नइये समय नदानी के
अपन तियारी......
- बीजभात खातू माटी के, जोरा जोरी करलौ जी।
नाँगर-जूड़ा, नहना-जोता, हाथ अपन अब धरलौ जी।।
अर-तता तुतारी बइला ले, बेरा हवय मितानी के
अपन तियारी....
- बारी-बखरी रुँधना-बंधना, देदव घलो पलानी जी
बाँधव घलो झिपारी संगी, छालव परवा छानी जी
हवा गरेरा धूंका आँधी, बेरा बादर पानी के
अपन तियारी.....
ज्ञानु
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चउमास
छन्न पकैया छन्न पकैया,बदरा के मनमानी।
करव किसानी कतको भाई, होवय नइ बिन पानी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, मन के प्यास बुझाथे।
उमड़ घुमड़ के जब जब देखव, करिया बादर आथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, टपकय परवा छानी।
कागज के डोंगा ला खेलय,लइका सँग मा नानी ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, सावन भादो आगे।
लइका मन मा देखव भैया,कतका मस्ती छागे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, पहुना मन के डेरा।
राखी-तीज-हरेली आगे, चउमासा के बेरा।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, सावन भादो रिमझिम।
कांवरिया मन पूजय शिव ला, भरे कुंभ हे राजिम।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,बहिनी-दीदी आगे।
राखी के तिहार मा देखव, पहुना सब सकलागे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, आवव सब सँगवारी।
नाचव गावव धूम मचावव, सुग्घर हे फुलवारी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,लइका बोलय दाई।
रिमझिम रिमझिम बरसत पानी,अड़बड़ हे सुखदाई।
छन्न पकैया छन्न पकैया,दादुर-झींगुर गावँय।
किसिम किसिम के राग लमाके,बारिश सबो बुलावँय।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,अड़बड़ बरसत पानी।
मेंढ़क मन टर्रावत हावँय, भुइयाँ होगे धानी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, पूरा आगे नरवा।
आन देश जा बादर भैया, हलाकान हे घुरवा।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, जेखर काम किसानी।
चूहय खपरा तभो ले माँगय, झम झम झम झम पानी।।
शुचि 'भवि'
भिलाई, छत्तीसगढ़
9826803394
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कुण्डलिया-1
सावन ले कार्तिक तक, कहिलाथे चौमास |
धरम सनातन मा हमर, होथे ये हर खास ||
होथे ये हर खास, काज नइ मंगल होवय |
दे शिव ला दायित्व, जगत के श्रीपति सोवय ||
त्यागय संत प्रवास, साधना करथे पावन |
शिव शम्भू ला पूज, व्रती मन मानय सावन ||
कुण्डलिया-2
हरियर धरती हे मगन, डोलत हावय पान |
बड़े बिहनिया जाग के, जावत खेत किसान ||
जावत खेत किसान, खेत ला हावय साजत |
रिमझिम हे बरसात, नँगाड़ा कस घन बाजत ||
चमकत बिजली खूब, गिरत हे पानी फ़रियर |
खुश हे जम्मों जीव, लगत धरती हे हरियर ||
कुण्डलिया-3
छानी परवा मन चुहय, आवय नदिया बाढ़ |
सिटिर-सिटिर छनकय कभू, सावन अउ आषाढ़ ||
सावन अउ आषाढ़, कभू धुँगिया कस छावय |
उमस करय भरपूर, जाड़ हर कभू कँपावय ||
कीरा निकलय रोज, सबोघर आनी-बानी |
चिखला चारो कोत, घरोघर टपकय छानी ||
सुनिल शर्मा 'नील'
थानखम्हरिया(छत्तीसगढ़)
8839740208
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बरसात (गीतिका छ्न्द)
घन घटा घनघोर धरके, बूँद बड़ बरसात हे।
नाच के गाके मँयूरा, नीर ला परघात हे।
ताल डबरी एक होगे, काम के हे शुभ लगन।
दिन किसानी के हबरगे, कहि कमैया हें मगन।।
ढोंड़िहा धमना हा भागे, ए मुड़ा ले ओ मुड़ा।
साँप बिच्छू बड़ दिखत हे, डर हवैं चारो मुड़ा।
बड़ चमकथे बड़ गरजथे, देख ले आगास ला।
धर तभो नाँगर किसनहा, खेत बोंथे आस ला।
घूमथे बड़ गोल लइका, नाचथें बौछार मा।
हाथ मा चिखला उठाके, पार बाँधे धार मा।
जब गिरे पानी रदारद, नइ सुनें तब बात ला।
नाच गाके दिन बिताथें, देख के बरसात ला।
लोग लइका जब सनावैं, धोयँ तब ऍड़ी गजब।
नाँदिया बइला चलावैं, चढ़ मचें गेड़ी गजब।
छड़ गड़उला खेल खेलैं, छोड़ गिल्ली भाँवरा।
लीम आमा बर लगावैं, अउ लगावैं आँवरा।।
ताल डबरी भीतरी ले, बोलथे टर मेचका।
ढेंखरा उप्पर मा चढ़के, डोलथे बड़ टेटका।
खोंधरा झाला उझरगे, का करे अब मेकरा।
टाँग के डाढ़ा चलत हें, चाब देथें केकरा।।
पार मा मछरी चढ़े तब, खाय बिनबिन कोकड़ा।
रात दिन खेलैं गरी मिल, छोकरा अउ डोकरा।
जब करे झक्कर झड़ी, सब खाय होरा भूँज के।
पाँख खग बड़ फड़फड़ाये, मन लुभाये गूँज के।।
खेत मा डँटगे कमैया, छोड़ के घर खोर ला।
लोर गेहे बउग बत्तर, देख के अंजोर ला।
फुरफुँदी फाँफा उड़े बड़, अउ उड़ें चमगेदरी।
सब कहैं कर जोर के घन, झन सताबे ए दरी।
होय परसानी गजब जब, रझरझा पानी गिरे।
काखरो घर ओदरे ता, काखरो छानी गिरे।
सज धरा सब ला लुभावै, रूप हरिहर रंग मा।
गीत गावै नित कमैया, काम बूता संग मा।
ओढ़ना कपड़ा महकथे, नइ सुखय बरसात मा।
झूमथें भिनभिन अबड़, माछी मछड़ दिन रात मा।
मतलहा पानी रथे, बोरिंग कुवाँ नद ताल के।
जर घरो घर मा हबरथे, ये समै हर साल के।
चूंहथे छानी अबड़, माते रथे घर सीड़ मा।
जोड़ के मूड़ी पुछी कीरा, चलैं सब भीड़ मा।
देख के कीरा कई, बड़ घिनघिनासी लागथे।
नींद घुघवा के परे नइ, रात भर नित जागथे।
नीर मोती के असन, घन रोज बरसाते हवे।
मन हरेली तीज पोरा, मा मगन माते हवे।
धान कोदो जोंधरी, कपसा तिली हे खेत मा।
लहलहावै पा पवन, छप जाय फोटू चेत मा।
बूँद तक बरसै नही, कतको बछर आसाढ़ मा।
ता कभू घर खेत पुलिया, तक बहे बड़ बाढ़ मा।
बाढ़ अउ सूखा पड़े ता, झट मरे मन आस हा।
चाल के पानी गिरे तब, भाय मन चौमास हा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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चउमास ऊपर सुग्घर छंद संकलन
ReplyDeleteजबरदस्त संकलन
ReplyDeleteसुग्घर संकलन।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गुरुजी 👌👌🙏🙏💐💐
ReplyDeleteलाजवाब,जतका बड़ाई करे जाय कम हे,, जम्मों प्रकाशित कवि मन ला बधाई
ReplyDeleteजिंदाबाद
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