*किसान* आल्हा छंद
महाकाल कस मोर भुजा हे।धरती डोले राखत पाँव।
बजुर बरोबर छाती हावय। राखँव हरियर जंगल गाँव।।
कोठी डोली भरे धान ले।करँव जगत ला अन के दान।
महानदी छींचय रसधारा।खंडी -काठा नापँव धान।।
करँव भरोसा मँय जाँगर के। राखे हँव माटी के मान।
दिन अउ रतिहा एक बरोबर। मिहनत हावय मोर मितान।।
छोड़व नही गाँव के कोरा। मँय माटी के बेटा राम।
चंदन माटी माथ लगावँव।येकर कोरा चारो धाम।।
जब जब गरजँव अउ ललकारँव।होय भोथरा उँखरो दाँव।
मोला सिधवा जानिन लूटिन।मोरे अँगना मोरे ठाँव।।
भौंरा-बाँटी कस झन खेलव।मोर पीर झन करँव पहार।
महूँ धधक के जे दिन बरहूँ। सपना होही तुँहर खुवार।।
शशि साहू बाल्को नगर
कोरबा।
🙏🙏
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