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Wednesday, July 13, 2022

गुरुपूर्णिमा विशेष छंदबद्ध कविताएँ-


 

गुरुपूर्णिमा विशेष छंदबद्ध कविताएँ-


लावणी छन्द गीत-द्वारिका प्रसाद लहरे


गुरू चरन मा पहली वंदन,निसदिन माथ नवावँव मँय।

हाथ जोर के करँव आरती,काया फूल चघावँव मँय।।


गुरू रूप मा मिले देवता,जिनगी मोर सँवारे हें।

ज्ञान धरा के ए अंतस मा,जिनगी मोर निखारे हें।

तन के दीया मन के बाती,ज्योत अखण्ड जलावँय मँय।

हाथ जोर के करँव आरती,काया फूल चघावँव मँय।।


गुरू ज्ञान के बोहत हावय,परगट पावन गंगा जी।

जेखर ले मन आलस भागय,तन मन होवय चंगा जी।।

तन मन के ए गुरुद्वारा मा,गुरुवर ज्ञान बसावँव मँय।।

हाथ जोर के करँव आरती,काया फूल चघावँव मँय।।


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

छन्द साधक सत्र-07

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 दोहा-गुरु महिमा - बोधन राम निषादराज


बिन गुरु जिनगी में सखा,मिलै नहीं जी ज्ञान।

चलबे गुरु के संग तँय,पा जाबे भगवान।।


सत् के डोंगा मा बइठ,गुरु के लेके नाम।

गुरु के रद्दा में सखा,मिलही प्रभु के धाम।।


गुरु ले शिक्षा पाय के,बन जाबे तँय धीर।

गुरु  के  छाया  में रबे, झन  होबे  गंभीर।।


सुघ्घर पाबे ज्ञान ला,मिटही सब अज्ञान।

किरपा गुरु के होय ले,बढ़ जाही जी मान।।


हाथ जोर बिनती करव,चरन परव कर जोर।

गुरुवर पुण्य प्रताप से,जिनगी बनही तोर।।


गुरु के बानी सार हे,गुरु के ज्ञान अपार।

जे मनखे ला गुरु मिलय,ओखर हे उद्धार।।


भक्ति शक्ति दूनों मिलय,मिलय  ज्ञान भंडार।

गुरु पद में तँय ध्यान धर,गुरु हे तारनहार।।


गुरु चरनन मा ध्यान हो,रहै हृदय मा नाम।

सत् के रसता मा सखा,बनथे बिगड़े काम।।


गुरु बिन जग अँधियार हे,ज्ञान कहाँ ले आय।

हरि दरशन हा नइ मिलय,मुक्ति कहाँ मिल पाय।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)

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आशा देशमुख: गुरु चालीसा


दोहा


करत हवँव गुरु वंदना, चरणन माथ नँवाय ।।

भाव भक्ति मन मा धरे , श्रद्धा फूल चढ़ाय।।


सदा रहय गुरु के कृपा,अतकी विनती मोर।

अंतस रहय अँजोर अउ,भागे अवगुण चोर।।


चौपाई 


गुरु ब्रह्मा अउ विष्णु महेशा। गुरु हे पहिली पूर्ण अशेषा।।

बरन बरन हे गुरु के वंदन।आखर आखर बनथे चंदन।।


 गुरु ला जानव सुरुज समाना।  गुरु आवय जी ज्ञान खजाना।।

गुरु जइसे नइहे उपकारी।गुरु के महिमा सब ले भारी।।



गुरु सउँहत भगवान कहाये। गुण अवगुण के भेद बताये।।

सात समुंदर बनही स्याही।गुरु गुण बर कमती पड़ जाही।।


गुरु के बल ला ईश्वर  जाने। तीन लोक  महिमा पहिचाने।।

गुरुवर सुरुज तमस हर लेथे। उजियारा जग मा भर देथे।।


जब जब छायअमावस कारी। गुरु पूनम  लावय उजियारी।।

गुरु पूनम के अबड़ बधाई।माथ नँवा लव बहिनी भाई।।



शिष्य विवेकानंद कहाये।परमहंस के मान बढ़ाये।।

द्रोण शिष्य हें पांडव कौरव ।अर्जुन बनगे गुरु के गौरव।।


त्याग तपस्या मिहनत पूजा।गुरु ले बढ़के नइहे दूजा।।

वेद ग्रंथ हे गुरु के बानी।पंडित मुल्ला ग्रंथी ज्ञानी।।


ज्ञान खजाना जेन लुटाए।जतका बाँटय बाढ़त जाए।।

गुरु के वचन परम हितकारी।मिट जाथे मन के बीमारी।।


जेखर बल मा हे इंद्रासन।बलि प्रहलाद करे हें शासन।।

ये जग गुरु बिन ज्ञान न पाये।गुरु गाथा हर युग हे गाये।।


सत्य पुरुष गुरु घासी बाबा। गुरु हे काशी गुरु हे काबा।।

 देवै ताल कबीरा साखी।

 उड़ जावय  मन भ्रम के पाखी।।


गुरु के जेन कृपा ला पाथे। पथरा तक पारस बन जाथे।।

माटी हा बन जावय गगरी। बूँद घलो हा लहुटय सगरी।।


महतारी पहली गुरु होथे । लइका ला संस्कार सिखोथे।।

देवय जे अँचरा के छइयाँ।दूसर हावय धरती मइयाँ।।



जाति धरम से ऊपर हावय।डूबत ला गुरु पार लगावय।।

आदि अनादिक अगम अनन्ता।जाप करयँ ऋषि मुनि अउ संता।।


गुरु के महिमा कतिक बखानौं।    ज्योति रूप के काया जानौं।।

बम्हरी तक बन जाथे चंदन। घेरी बेरी पउँरी वंदन।।


हाड़ माँस माटी के लोंदी।बानी पाके बोले कोंदी।।

पथरा के बदले हे सूरत। गढ़थे छिनी हथौड़ी  मूरत।।


भुइयाँ पानी पवन अकाशा।कण कण में विज्ञान प्रकाशा।।

समय घलो बड़ देथे शिक्षा।रतन मुकुट तक माँगे भिक्षा।।



अमर हवैं रैदास कबीरा। निर्गुण सगुण  बसावय मीरा।।

सातों सुर मन कंठ बिराजे। तानसेन के सुर धुन बाजे।।



कण कण मा गुरु तत्व समाये।सबो जिनिस कुछु बात सिखाये।।

गोठ करत हे सूपा चन्नी।कचरा ला छाने हे छन्नी।।



गुरु के दर हा सच्चा दर हे। मुड़ी कटाये नाम अमर हे।।

एकलव्य के दान अँगूठा। अइसन हे गुरु भक्ति अनूठा।।


श्रद्धा से गुरु पूजा करलव। ज्ञान बुद्धि से झोली भरलव।

जे निश्छल गुरु शरण म जावै।।अष्ट सिद्धि नवनिधि जस पावै।।



गुरु चालीसा जे पढ़े,ओखर जागे भाग।

दुख दारिद अज्ञानता ,ले लेथे बैराग।।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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: *रोला छंद*

*विषय- गुरु*


गुरुजी देके ज्ञान, बनाथें सब ला ज्ञानी।

दया मया के पाठ, बताथें गोठ सियानी।।

रखथें अब्बड़ ध्यान, बाप कस जिनगी गढ़थें।

धरके चेला बात, दिनों दिन आघू बढ़थें।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

  पाली जिला कोरबा

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: गुरू पुर्णिमा 

दोहा छंद 


प्रथम गुरू माता पिता,चरणन माथ नवाँव।

सीखे हँव मैं बोलना, पाये हँव सुख छाँव।।


गुरूदेव के पाँव मा,सदा झुकावँव माथ।

कृपा करौ विनती हवै,मूड़ी राखव हाथ।।


गुरू ज्ञान दाता हरे,भरथे उर मा ज्ञान।

गोविंद कहिथे मोर ले,गुरूदेव ला मान।।


गुरूदेव के है चरण ,काशी मथुरा धाम।

वाणी ले अमरित झरे,है शत कोटि प्रणाम ।।


गुरूदेव ज्ञानी मिले,हरे तमस मन जान।

गुरू ईश सम जानिए,देथे हरपल ज्ञान।


गुरूदेव वंदन करौं, मिले सत्य के राह।

द्वेष दंभ मन ले मिटै,अतके मन मा चाह।। 


गुरूदेव के पाँव में वंदन बारंबार।

छंद ज्ञान दाता गुरू, करत हवै उपकार।।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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: दोहा-गुरु महिमा - बोधन राम निषादराज


बिन गुरु जिनगी में सखा,मिलै नहीं जी ज्ञान।

चलबे गुरु के संग तँय,पा जाबे भगवान।।


सत् के डोंगा मा बइठ,सुमिर सदा हरि नाम।

गुरु के रद्दा में सखा,मिलही प्रभु के धाम।।


गुरु ले शिक्षा पाय के,हो जाबे धनवान।

गुरु  के  छाया  में रबे, मिल जाही भगवान।।


सुघ्घर पाबे ज्ञान ला,मिटही सब अज्ञान।

किरपा गुरु के होय ले,बढ़ जाही जी मान।।


हाथ जोर बिनती करव,चरन परव कर जोर।

गुरुवर पुण्य प्रताप से,जिनगी बनही तोर।।


गुरु के बानी सार हे,गुरु के ज्ञान अपार।

जे मनखे ला गुरु मिलय,जिनगी नइया पार।।


भक्ति शक्ति दूनों मिलय,मिलय  ज्ञान भंडार।

गुरु पद में तँय ध्यान धर,गुरु हे तारनहार।।


गुरु चरनन मा ध्यान हो,रहै हृदय मा नाम।

सत् के रसता मा सखा,बनथे बिगड़े काम।।


गुरु बिन जग अँधियार हे,ज्ञान कहाँ ले आय।

हरि दरशन हा नइ मिलय,मुक्ति कहाँ मिल पाय।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)

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शोभमोहन श्रीवास्तव: 


गुरुवर कर दौ भव ले पार (सरसी छंद)



जनम जनम के भाँवर देवत, 

जीव परे अँधियार। 


ज्ञान अधारी अगम दुआरी, 

सरका दौ ओलवार।

गुरुवर कर दौ भव ले पार। 


ज्ञान विज्ञान जला के जोती, 

कर दौ जीव उद्धार।।

गुरु ब्रम्हा गुरु विष्णु शंकर, 

गुरुवर जीव अधार।।

गुरुवर कर दौ भव ले पार



सहसो मुँह बरने नइ जावै, 

महिमा अपरम्पार।।

नैन माँस के जग ला देखत, 

गुरु झकँवा दौ पार।।

गुरुवर कर दौ भव ले पार



जगत पटल के बाहिर घेरा, 

दृश्य दिखावनहार।।

तुम माटी के भाग गढ़इया, 

गुनधर विग्य कुम्हार।।

गुरुवर कर दौ भव ले पार



करके चोट सुधारौ गल्ती, 

पाछू फेर पुचकार।

भक्ति मिलै नइ तुँहर बिना गुरु, 

मिलय नहीं सुख सार।।

गुरुवर कर दौ भव ले पार



पारस छूके सोन बनाथे, 

तुम गुनि करव गँवार।।

तुँहर कहे अब हलहूँ चलहूँ, 

जग जंजाल बिसार।।

गुरुवर कर दौ भव ले पार



चोला माटी सोन असन हे, 

गुरुवर बचन बिचार।।

तुम दुरिहा हौ नाम तुँहर हे, 

लकठा अंतस द्वार।।

गुरुवर कर दौ भव ले पार



जे गुरुवर के बाचा मानै, 

वो लग जावै पार।।

गुरु ओढ़ना प्रभुवर छाँटिन, 

टारे बर भू भार।।

गुरुवर कर दौ भव ले पार



जनम जनम के भाँवर देवत, 

जीव परे अँधियार।

शोभामोहन सरनागत प्रभु, 

डंडासरन जोहार।।

गुरुवर कर दौ भव ले पार, 


शोभामोहन श्रीवास्तव

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दोहा

गुरु के किरपा होय ले, सबके मिलय असीस। 

गुरु चरणन मा सिर नवय, ऊँच रहय तब सीस। ।


गुरु चरणन के पैलगी, जम्मो सुख के खान।

गुरु के महिमा हे जबर , दूर करय अज्ञान। ।


हितवा ए संसार मा, गुरु ले बढ़के कोन ।

माटी जइसे जीव ला, जेन बनावय सोन। ।

       दीपक निषाद--लाटा (बेमेतरा)

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*दुर्मिल सवैया*


गुरु देव सुनौ हमरो विनती, अँधियार भगावव जोत जला |

अधिकार जमा बइठे तम हा, गड़थे चुक ले बन फाँस गला ||

जिनगी बिरथा बनगे जइसे, मति मूढ़ लगै बिन ज्ञान घला |

उजियार दिया जलवा सत के, चमके हिरदे बगराय कला ||


अशोक कुमार जायसवाल

सत्र- 13 के साधक

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विषय: गुरु पूर्णिमा (आल्हा छंद)


हे गुरुदेव दया के सागर , बारंबार करँव परनाम ।

मँय निच्चट अज्ञानी लइका , सुमिरत हँव बस तोरे नाम।।

तीन लोक नव खंड म कोनो  , नइहे गुरुवर तोर समान।

ज्ञान दीप ला बारे जग मा ,  कतका तोरे करँव बखान।।


गुरु के किरपा ले बगरे हे , जग मा बिकट ज्ञान विज्ञान।

मोटर गाड़ी बिजली बत्ती , सबो बनाए गुरु के मान।।

कोनों नापै जी अगास ला , नाप डरे धरती के छोर ।

बगरे हवे ज्ञान गुरुवर के  , उत्तर दक्षिण चारो ओर।।


अवधपुरी के रामचंद्र जी , गुरु के पाँव नवाँवय शीश ।

तीन लोक मा डंका बाजे , पा के गुरुवर के आशीष।।

हमन हरन माटी के लोंदा , गुरुवर देवत हे आकार।

कठिन साधना करके गुरुवर , बाँटत हवै ज्ञान भंडार।।


छंद ज्ञान अमरित के धारा , आखर आगर रोज सिखाय ।

पी के ज्ञान सबो साधक मन , छंद सृजन नित करते जाय ।।

गुरु के महिमा लिखे दावना , अंतस परमानंद समाय ।

हाँथ जोड़ गुरु के पँउरी मा , सरधा ले नित माँथ नवाय ।।



        *बृजलाल दावना*

               *भैंसबोड़*

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 9: गुरु पूर्णिमा के दोहा 


जड़ता अउ अज्ञान के, खाई देथें पाट।

गुरु जी हर बनथें हमर, हिरदय के सम्राट।। 


सादा कागज कस हमन, गुरु जी भरथें रंग।

उनकर किरपा ले सदा, मन मा रथे उमंग।। 


कुटिया जइसे हम हरन, गुरु जी बड़े पहाड़।

बचथन जग के घाम ले, उनकर ले के आड़।। 


जिनगी के पथ मा हवय, काँटा-खूंटी घात।

गुरु के हवय असीस ता, का हे डर के बात।। 


दाई-बाबू मन भले, देथें कतको ज्ञान।

फेर बिना गुरु-ज्ञान के, बनय नहीं पहिचान।। 


दोहाकार - श्लेष चन्द्राकर,

महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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 गुरु पूर्णिमा--- लावणी छंद


जग ला रसता गुरु देखाके, दीया बनके जलथे नित।

पा के जेकर ज्ञान सुघर शुभ, जिनगी बढ़िया चलथे नित।।


भरे ज्ञान भंडार जिहॉं बड़, शबद शबद हर सागर हे।

मानवता ला गढ़े सदा ये, संस्कारी बड़ आगर हे।।


देके शिक्षा जोत जलाके, जगर मगर बगरावत हे।

ज्ञान संग विज्ञान घलो ला, नित नित इही बढ़ावत हे।।


जेन चरन शुभ पा समाज हर, धरे सभ्यता पलथे नित।

पा के जेकर ज्ञान सुघर शुभ, जिनगी बढ़िया चलथे नित।।

जग ला रसता गुरु देखाके, दीया बनके जलथे नित.....


बार ज्ञान के दीया जगमग, जिनगी उज्जर जे करथे।

दूर करे अज्ञान हरे बर, सुघर जोगनी कस बरथे।।


कल्प वृक्ष कस शीतल छइॅंया, शिक्षा जोत जलाथे गुरु।

देव महात्मा रिषि भगवन मा, श्रेष्ठ तभे कहाथे गुरु।।


गाथे जेकर महिमा निश दिन, वेद पुरान सदा मुख ले।

जिनगी सरग बरोबर करथे, गुरुवर बॉंट ज्ञान सुख ले।।


मनखे मानवता के रसता, जेन कृपा ले ढलथे नित।

पा के जेकर ज्ञान सुघर नित, जिनगी बढ़िया चलथे नित।।

जग ला रसता गुरु देखाके, दीया बनके जलथे नित......


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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 *गुरू पूर्णिमा के दोहा*

अरझे माया मोह मा,जिनगी के सब तार।

गुरू तोर आशीष बिन,फँसे नाव मझधार।१।


जनम मरण के पार ला,कोनो हा नइ पाय।

जिनगी के उद्धार बर, रद्दा गुरू बताय।२।


प्रथम गुरु माँ-बाप हे,दूसर शिक्षक होय।

शिक्षा अउ संस्कार के,सदा बीज ये बोय।३।


मनखे जनम अमोल हे,बिरथा ये झन जाय।

गुरू तोर उपकार ले, मनुज मुक्ति ला पाय।४।


गुरू समर्पण भाव ले ,देवय हमला ज्ञान।

ऊँखर जम्मो सीख हा,लागय जस वरदान।५।


गुरू ज्ञान परताप ले,अइसे होय अँजोर ।

अँधियारी ला चीर के,जइसे निकलय भोर।६।


अहंकार ला त्याग के,कर सबके उपकार।

बात गुरु के मान ले,हो जाही उद्धार।७।


अमृत दास साहू

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 दोहा छंद - गुरुवर


गुरुवर पुंज प्रकाश के, दूर करैं अॅधियार।

जीव जगत मा मनुज के, देवय पथ उजियार।।

 

गुरुवर करथें जी कृपा, निशदिन  देवय ज्ञान।

मूढ़ मनुज ला ज्ञान ले, करथें सीख प्रदान।।


गुरुवर ज्ञानी ले मिलै, अकुत ज्ञान भंडार।

शब्द- शब्द मा सिरजना, कर देवय साकार।।


गुरु करुणा सागर हवै, वंदन बारम्बार।

गुनी ज्ञान बाॅटत रथें, गुरु हमरे बुधियार।।


बुद्ध कबीरा अवतरै, हे नानक साक्षात।

सत मारग के ज्ञान पा , दुनिया मुड़ी नवात।।


रामकली कारे

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: प्रदीप छन्द


                हमर छन्द परिवार

 

आसमान के चन्दा जइसन, गुरुवर अरुण कुमार हे,

जगमग करत चँदैनी जइसन, हमर छन्द परिवार हे।


गुरुवर हमर जलाइन दीया, जेकर गजब अँजोर हे,

गाँव-गाँव अउ शहर-शहर मा, बगरत अड़बड़ सोर हे।

तन साधक के भले अलग हे, मन मा एक विचार हे,

बगराना छत्तीसगढ़ी ला, सात समुंदर पार हे।

पोठ करे खातिर भाखा ला, गुरुकुल हमर अधार हे,

जगमग करत-----------------।।

छन्द सिखइया साधक मन बर, छन्द के छ वरदान हे,

तड़पत चातक पंछी बर जस, नीर स्वाति के प्रान हे।

छन्द के छ कस गुरुकुल नइहे, सुग्घर छन्द सिखाय जे,

ध्रुवतारा कस ये दुनिया मा, चेला ला चमकाय जे।

गुरुवर पेंड़उरा गुरुकुल के, साधक मन सब डार हे,

जगमग करत -----------------------।।


गुरु चेला के परम्परा मा, सुग्घर डारिन जान हे,

महतारी भाखा ला जग मा, देवाइन सम्मान हे।

अइसन गुरुकुल के डेरौठी, सदा नवावँव माथ ला,

जब तक तन मा साँस हवे जी, नइ छोड़ौ मँय साथ ला।।

गुरुकुल मा हर साधक मन हा, पावत मया दुलार हे,

जगमग करत--------------------।।


               राम कुमार चन्द्रवंशी

               बेलरगोंदी (छुरिया)

               जिला-राजनांदगाँव

                9179798316

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 *चौपाई छंद* 


भरे रहय भंडार  ज्ञान के, शबद सीख वो देय लान के||

मानवता बर  गढ़थें बानी, चेला मन होथे लगमानी||


देवत शिक्षा दीप जलाथें, करम धरम जग मा सुधराथें||

जिनगी के हर बात बनाथें,

मुशकुल रसदा सुगम जनाथे||


बरगद कस हे झलॎर लामे, जिनगी धारा गुरु मन थामे||

बारम्बार चरन गुरु परिहँव, भवसागर ले जलदी तरिहँव||


सबला रसता गुरु देखावँय, बाती बनके जलते जावँय||

पबरित जेखर ज्ञान सबर हे, महिमा गुरुके सदा अमर हे।।


छंदकार-अश्वनी कोसरे 

कवर्धा कबीरधाम

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 सरसी छंद  ( गुरु )


1)ज्ञान के बात बताय गुरुजी,करे सियानी गोठ।

छंद सिखाय साधक मनला,अरूण गुरुजी पोठ।

छत्तीसगढ़ के छंद  छटा हे, सुघ्घर करथे काम।

हाथ जोड़ के करव पैलगी,अरूण गुरु जी नाम।


  वसन्ती वर्मा बिलासपुर

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गीत

 शब्द-शब्द मा जेकर होथे,

सबो शास्त्र के सार।

तीन देव कस सँउहे गुरु के,

महिमा अगम अपार।।


जेहा चेला के हिरदे के,हर लेथे अज्ञान।

बरत रथे मन के मंदिर मा, जोत अखंड समान।

मातु-पिता कस दया-मया के,

जे छलकत भंडार।

तीन देव कस सँउहे गुरु के,

महिमा अगम अपार।।


कइसे जीना हे दुनिया मा, जेन बताथे मर्म।

फोर-फोर समझाथे जे हा, का हे मानव धर्म।

अँगरी धर सद राह चलाथे, करथे बड़ उपकार।

तीन देव कस सँउहे गुरु के,

महिमा अगम अपार।।


मिलै नहीं सिरतो कोनो ला, कभू बिना गुरु ज्ञान।

गुरु के चरण वंदना करथें, संत सिद्ध भगवान।

गुरु के किरपा बिन साधक के, नइ होवय बढ़वार।

तीन देव कस सँउहे गुरु के,

महिमा अगम अपार।।


टूटी-फूटी गुन गावत हँव, अड़हा चोवा राम।

पूज्यनीय गुरुदेव निगम के, सुमर-सुमर के नाम।

पाये हाववँ मैं जेकर ले,  छंद- सुधा रसधार।

तीन देव कस सँउहे गुरु के,

महिमा अगम अपार।।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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:बड़े राम अउ कृष्ण खुदा ले, जग मा गुरुवर हे।

मोर इही साक्षात इहाँ हे, गुरु हा ईश्वर हे।।


बिन गुरु किरपा भवसागर ले, कोन इहाँ तरथे।

जे नइ जानय गुरु के महिमा, घूँट घूँट मरथे।।


रूठ कहूँ गे गुरु हा जग मा, नइये जान ठिहाँ।

रूठे ईश्वर ता गुरु करथे , नइया पार इहाँ।।


शीतल छइहाँ सब ला देथे, जइसे तरुवर हा।

सबो शिष्य ला ज्ञान बरोबर, देथे गुरुवर हा।।


 मोर उपर गुरु सदा बनाये, अपन कृपा रखहू।

मँय मूरख सेवा नइ जानँव, क्षमा सदा करहू।।


 बरनन  कोन करै गुरु महिमा, अगम अनंत हवै।

बेद पुरान सदा गावत अउ, ऋषि-मुनि संत हवै।।


ज्ञानु

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 मनहरण घनाक्षरी

गुरु ज्ञान के आधार,बंदत हौं बारंबार,

तीनों लोक मा गूँजय,जय  जयकार हे।

गुरु के कृपा ले मान,मिलिस हे पहिचान,

हाथ धर सिखाइस,छंद ग अपार हे।

गढ़य रूप कुम्हार,ठोक पीट अउ मार,

मन अँधियारी मेट,दिस उजियार हे।

गुरु हे तारनहार,राह दिस चतवार,

अंतस ले करजोर, बड़ उपकार हे।


विजेंद्र वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

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कुंडलियाँ छंद


पहली गुरु दाई ददा, देइस जे पहिचान।

दूसर गुरु गुण ज्ञान ले, हे बनाय इंसान।

हे बनाय इंसान, हेर तन मन के काई।

बने धराइस पाथ, पाट जिनगी के खाई।

उपर चढ़ाइस रोज, खुदे गुरुवर बन चहली।

बंदौं बारम्बार, उही पद ला मैं पहली।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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सरसी छन्द - गुरू महिमा


गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।

भव सागर ले सहज तरे बर,बना गुरू पतवार।


छाँट छाँट के बने चीज ला,अंतस भीतर भेज।

उजियारा करथे जिनगी ला,बन सूरज के तेज।

जल जाथे जर जहर जिया के,लोभ मोह संताप।

भटक जानवर कस झन बइहा,नता गुरू सँग खाप।

ज्ञान आचमन कर रोजे के,पावन गंगा धार।

गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।


धीर वीर ज्ञानी अउ ध्यानी,सबो गुरू के देन।

मानै बात गुरू के हरदम,पावै यस जश तेन।

गुरू बिना ये जग मा काखर,बगरे हावै नाम।

महिनत करले कतको चाहे,बिना गुरू ना दाम।

ठाहिल हीरा असन गुरू हे,गुरू कमल कचनार।

गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।


गुरू बना जीवन मा बढ़िया,कर कारज नित हाँस।

गुरू सहारा जब तक रहही,गड़े कभू नइ फाँस।

नेंव तरी के पथरा बनके,गुरू सदा दब जाय।

यश जश बाढ़े जब चेला के,गुरू मान तब पाय।

गावै गुण सब लोक गुरू के,गुरू करै उपकार।

गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।


2,रूपमाला छंद


गुरु बिना भव कोन तरथे,कोन करथे राज।

हाथ गुरु के सिर मा होवय,छोट तब सब ताज।

घोर अँधियारी मिटाथे,दुख ल देथे टार।

वो चरण मा मैं नँवावों,माथ बारम्बार।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़

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*रोला छंद*:- 

 (1) 

जे देथे जी ज्ञान, जगत मा गुरू कहाथे ।

हरथे मन अज्ञान, मान ला सबके पाथे ।

करथे गा उजियार, बरय जस दियना बाती ।

मेटय सब अँधियार, भरम के जे दिन- राती ।।


(2)

सदा नवावँव माथ, चरण मा तोरे गुरुवर ।

धरती के सम्मान, झुकय जस फर के तरुवर ।

अंतस ले कर जोर, तोर मँय महिमा गावँव ।

"मोहन " तन मा साँस, रहत ले नइ बिसरावँव ।।


*सरसी छंद*:- 

माथ नवावँव गुरु चरनन मा, महिमा करँव बखान ।

जेकर किरपा ले पाये हँव, ये जिनगी के ज्ञान ।।1।


जब-तक सूरज-चंदा रइही, अउ ये धरा-अगास ।

अंतस मा गुरु मोर समाके, पूरा करही आस ।।2।।


करँव वंदना मँय कर जोरे, पावँव आशिर्वाद ।

छाहित रहिके देवव गुरुवर, अपने ज्ञान- प्रसाद ।।3।।


छंदकार-  मोहन लाल वर्मा 

पता :- ग्राम- अल्दा,वि.खं.तिल्दा, 

जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)🙏🏻

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कुण्डलिया छंद- गुरु महिमा


महिमा अपरंपार गुरु, गुरु जी गुण के खान।

तोर नाम से मोर गुरु, जग मा हे पहिचान।।

जग मा हे पहिचान, मान सम्मान मिले हे।

तोर धराये राह, सुमत के फूल खिले हे।।

बन मैं सच्चा शिष्य, बढ़ावँव गुरु के गरिमा।

तीन लोक मा जान, बड़े हे गुरु के महिमा।।


ये तन माटी के घड़ा, गुरु जी चाक कुम्हार।

अनपढ़ करे सुजान गुरु, ज्ञान जोत ला बार।।

ज्ञान जोत ला बार, भगाये दुख अँधियारी।

गुरु के पग मा मोर, हवय जिनगी बलिहारी।।

गजानंद गुरु ज्ञान, बिना भटके मन बन-बन।

कर ले गुरु गुनगान, साँस हे जब तक ये तन।।


इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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*रूप घनाक्षरी*


दूर करे अँधियार ,भर देय उजियार, बहाय ज्ञान के गंगा ,ज्ञानी गुरु हा महान।

बारय ज्ञान के ज्योति ,बगरे हे चारों कोती,मूरख मनखे घलौ,बन जाये गुणगान।

गुरु महिमा अपार ,गावत हवे संसार, गुरु हा सबले बड़े,कहिथे जी भगवान।

गुरु कस नही दानी,चित्रा हवे भागमानी,बड़ मूरख नदान,पावय छंद के ज्ञान।



चित्रा श्रीवास

बिलासपुर छत्तीसगढ़

4 comments:

  1. गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर मा छंद परिवार तरफ ले परम श्रद्धेय गुरुदेव जी ला सुग्घर छंद सुमन चरण कमल मा सादर समर्पित💐💐

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  2. गुरुपर्व के अवसर में संकलित गुरु स्तुति वंदना सुमरनी छंद ला पढ़ के हमर प्राचीन गुरुकुल परंपरा फेर जीयत जागत कस छत्तीसगढ़ के पबरित भुँइया मा ठाढ़ होगे हे । सबो गुरुजन मन ला सादर प्रणाम् ।

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  3. अद्वितीय संकलन नमन् गुरूदेव मन ल

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  4. गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर म गुरु महिमा अनेक प्रकार के छंद म छंद परिवार द्वारा अनुपम संग्रहनीय

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