हरेली तिहार विशेष- छंदबद्ध कविताएँ
: *छप्पय छंद*
*हरेली*
सुग्घर हवय तिहार, हरेली हमन मनाबों ।
नाँगर बक्खर आज, माँज धो भोग लगाबों।।
होथे गेंड़ी दौड़, खुशी मा लइका झूमें।
मच मच गेंड़ी भाग, गाँव भर वोमन घूमें।।
सुग्घर खेती खार हे, जम्मो मगन किसान हे।
बरसा बरसे पोठ अउ, हरियर-हरियर धान हे।।
*छत्तीसगढ़ के पहिली तिहार हरेली के गाड़ा गाड़ा बधाई, जोहार, जय छत्तीसगढ़*
*प्यारेलाल साहू*
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दिलीप वर्मा सर: हरेली
सरग बरोबर लागत हावय, चढ़े हवँव जब गेड़ी।
नरक बरोबर ये चिखला मा, नइ माढ़त हे एड़ी।
मुड़ी टांग डँगडँग ले रेंगँव, ऊँट बरोबर धावँव।
तीन पाँव भुइयाँ जस नापिस, वामन पाँव बढ़ावँव।
कीट पतंगा जइसन लागय, बघुवा भलुवा हाथी।
मोर उचाई के टक्कर मा, सिरिफ हिमालय साथी।
नदिया मन हर नाली लागय, झील दिखे जस डबरी।
गाँव शहर छिटही लुगरा के, चिनहा कबरी-कबरी।
बादर मोरो मुँह धोवत हे, बिजुरी मांग सँवारे।
बजा-बजा के ढोल नगाड़ा, ठाढ़े देव निहारे।
रचरिच रइया रचरिच रइया, गेड़ी ताल मिलावय।
आज हरेली के अवसर मा, मजा गजब के आवय।
चल रे चतरू चल रे मटरू, आये आज हरेली।
चढ़के गेड़ी रंग-रंग के, आजा खेला खेली।
रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार
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*हरेली तिहार*
बड़े बिहनिया सूरज जागे। काम काज जम्मो सकलागे।।
खेत खार मनखे हर भागे। परब हरेली संगी आगे।।
नांगर बक्खर रापा गैती। धोये माँजे झटकुन चैती।।
रगड़ रगड़ बइला नउहाये। चंदन बंदन माथ सजाये।।
रदरद रदरद बरसे पानी। लइका लोग करय मनमानी।।
भरे लबालब नदिया तरिया। परे रिहिस जी जेहर परिया।।
दाई चीला मीठ बनाये। गुड़ के चीला भोग लगाये।।
गोल बनाये भइया लोंदी। देखत राहय बइठे कोंदी।।
फूल दूध अउ लोंदी गोला। धर के जाये झटकुन भोला।।
माई लोगिन सब सकलाये। नाग देव ला दूध पियाये।।
हे भगवन रक्षा तै करबे। दुख पीरा ला सब के हरबे।।
खेत खार मा डोलय पाना। तब मनखे ला मिलही दाना।।
रच रच रच रच चढ़हे गेड़ी। टांँग टांँग के राखय एड़ी।।
खो खो फुगड़ी दौड़ लगाये। लइका लोगन सब सकलाये।।
खोंचय भोंदू निमुआ डारा। धर के झोला घूमय पारा।।
कन्द मूल ला घर घर बांँटे। बीमारी ला ओहर काटे।।
बैगा मन हर भूत भगावै। मनखे मन ला अबड़ डरावै।।
अंँधविश्वासी संगी छोड़ो। नाथ शिवा से नाता जोड़ो।।
हमर गाँव के सुघर हरेली। नाचय गावय सखी सहेली।।
साथ रहे के इही निशानी। परब हरेली हवै कहानी।।
प्रिया देवांगन *प्रियू*
राजिम
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गुमान साहू: सार छन्द ।।
परब हरेली।।
आये हावय परब हरेली, जुरमिल चलव मनाबो।
परब हमर ये पहिली संगी, सुग्घर सब परघाबो।।
सावन मास अमावस्या मा, ये तिहार हा आथे।
गाँव गाँव अउ गली गली मा, हरियाली बगराथे।।
बरदी मा जाके गइया ला, लोंदी सबो खवाबो।
बन कांदा दसमूल गोंदली, के प्रसाद ला खाबो।।
धो धोवाके जिनिस किसानी, सुग्घर सबो सजाथे।।
नरियर चीला फूल चढ़ाके, गुड़ के सँग जेंवाथे।।
नीम डार खोंचे बर राउत, घर घर सबके जाथे।
बइगा घलो अशीस देके, दार चाऊँर पाथे।।
लइका मन हा मचथे गेड़ी, भारी मजा उठाथे।
दीदी बहिनी खो-खो फुगड़ी, खेले भाठा जाथे।।
-गुमान प्रसाद साहू
समोदा (महानदी),रायपुर
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*कुंडलियाँ छंंद*
*हरेली*
करके बूता खेत के, करथें सब आराम।
परब हरेली आय तब, बंद रथे सब काम।।
बंद रथे सब काम, गाँव मा खुशी मनाथें।
गेड़ी सबो खपाय, गाय ला खीर खवाथें।।
बइगा खोचय लीम, देव ला बने सुमरके।
चीला चउँर चढ़ाय, ध्यान धर पूजा करके।।
*अनुज छत्तीसगढ़िया*
*पाली जिला कोरबा*
*सत्र 14*
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हरेली गीत (सरसी छंद)
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छत्तीसगढ़ी परब हरेली, पहिली इही तिहार ।
आवौ जुरमिल संग मनाबो,लेलव जी जोहार ॥
लिपे-पुते भिथिया हे सुग्घर, सवनाही पहिचान।
नाँगर बख्खर धोये माँजे, हमरो देख किसान।।
चारों खुँट हरियाली सोहय, धरती के सिंगार।
छत्तीसगढ़ी परब हरेली............
रच-रच-रच-रच गेड़ी बाजै,मन मा खुशी समाय।
गाँव-गली मा रेंगय लइका, पारा मा जुरियाय ॥
अइसन खुशहाली के बेरा, होवत हे गोहार।
छत्तीसगढ़ी परब हरेली.............
डंडा अउ पचरंगा खेलय, फुगड़ी के हे जोर।
खो-खो रेस,कबड्डी खेलत,उड़त हवै जी सोर।
मया प्रेम मा जम्मों बूड़े, बरसत हावै धार।
छत्तीसगढ़ी परब हरेली..............
होय बियासी हरियर धनहा, सुग्घर खेती खार।
मोर किसनहा भइया देखव,खुश होवै बनिहार।।
सावन महिना रिमझिम रिमझिम,बुँदियाँ परे फुहार।
छत्तीसगढ़ी परब हरेली.............
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छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
खुशी छाय हे सबो मुड़ा मा,बढ़े मया बरपेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।
रिचरिच रिचरिच बाजे गेंड़ी,फुगड़ी खो खो माते।
खुडुवा खेले फेंके नरियर,होय मया के बाते।
भिरभिर भिरभिर भागत हावय,बैंहा जोर सहेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली----।
सावन मास अमावस के दिन,बइगा मंतर मारे।
नीम डार मुँहटा मा खोंचे,दया मया मिल गारे।
घंटी बाजै शंख सुनावय,कुटिया लगे हवेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली-।
चन्दन बन्दन पान सुपारी,धरके माई पीला।
रापा गैंती नाँगर पूजय,भोग लगाके चीला।
हवै थाल मा खीर कलेवा,दूध म भरे कसेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली-।
गहूँ पिसान ल सान मिलाये,नून अरंडी पाना।
लोंदी खाये बइला बछरू,राउत पाये दाना।
लाल चिरैंया सेत मोंगरा,महकै फूल चमेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।
बेर बियासी के फदके हे,रँग मा हवै किसानी।
भोले बाबा आस पुरावय,बरसै बढ़िया पानी।
धान पान सब नाँचे मनभर,पवन करे अटखेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली---।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795
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