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Sunday, August 14, 2022

राखी तिहार म- (सरसी छंद)


 *राखी तिहार म*

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(सरसी छंद)


बहिनी के मया

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तिलक सार भइया के माथा, राखी ला पहिराय।

साज आरती लेथे सुग्घर, रहि- रहि के मुस्काय।

डार मिठाई मुँह भइया के, रोटी खीर खवाय।

हाँस-हाँस इँतराथे थोकुन, अब्बड़ मया जताय।।

सदा सुखी राहय भइया हा, मन मा भरके भाव।

देव मनाथे हाथ जोर के, चरनन माथ नवाय।।

नता हवय भाई बहिनी के ,सब रिश्ता ले सार।

बहिनी के हिरदे मा बहिथे, निश्छल ममता धार।।

कहिथे पाँव गड़ै झन काँटा, सुखी रहै परिवार।

मातु पिता भाई भइया के, मिलते रहै दुलार।।

आशा करथे भइया रखही, ये राखी के लाज।

रक्षा खातिर ठाढ़े रइही, वीर सँवागा साज।।



भइया-भाई के भाव

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बहिनी हमर भरोसा रखबे, तैं अच प्रान अधार।

हमर रहत ले तोर दुवारी, नइ आवय अँधियार।।

सब दुख ला तोरे हर लेबो, देबो सुख के फूल।

तीज-तिहार लिहे बर आबो, नइ जावन वो भूल।।

मातु पिता के अबड़ दुलौरिन, तैं मइके के शान।

जेन माँग ले वो सब मिलही, लहुटय नहीं जुबान।।

भाँचा-भाँची अउ दमाँद सँग,तोर इहाँ अधिकार।

हिरदे भितरी रथौ समाये, जुरे मया के तार।।

रक्षा धागा बाँधे हच तैं, तेकर देख प्रताप।

संकट बइरी बुलक जही वो, दुरिहा ले चुपचाप।।

तोर हमर में फरक कहाँ हे, नस-नस एके धार।

भले हवन छछले दू शाखा, हावय एके नार।।


🙏🙏🙏


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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