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Tuesday, August 30, 2022

तीजा परब विशेष छंदबद्ध कविता

 



तीजा परब विशेष छंदबद्ध कविता


तीजा (हरतालिका)

(हरिगीतिका छंद)


तीजा अँजोरी तीज मा,भादो रथे महिना सखा।

जम्मों सुहागिन मानथे,पहिरे रथे गहना सखा।।

शिव पाय बर माँ पार्वती,उपवास ला पहिली करिन।

जानव इही खातिर सबो,नारी इहाँ व्रत ला धरिन।।


पति के उमर लम्बा रहै, दाई - ददा के घर सबो।

करुहा करेला खाय के,व्रत राखथे दिन भर सबो।।

कतको कुँवारी मन घलो,रखथे इही उपवास ला।

सुग्घर मिलै वर सोंच के,मन मा सजाथे आस ला।।


पूजा रचा शिव-पार्वती,अउ गीत बाजा बाजथे।

जम्मों सुहागिन रात भर,सुग्घर फुलेरा साजथे।।

होवत मुँधरहा सब नहा,लुगरा नवा तन डार जी।

व्रत टोरथे मिलके बहिन,करथे सबो फरहार जी।।


रचनाकार;-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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कुंडलियाँ छंद- *पावन तीज तिहार*


बेटी बहिनी बर हवय, तीज सुहागन प्रीत।

पति के लम्बा आयु बर, उपासना के रीत।।

उपासना के रीत, चतुर जन सोंच बनाये।

दाई ददा दुलार, बहिन मइके मा पाये।।

पा शुभ आशीर्वाद, भरे झोली सुख पेटी।

पावन तीज तिहार, मनावव बहिनी बेटी।।


तरसे बहिनी झन कभू, मइके मया दुलार।

लुगरा मा झन बाँधहू, एक कोंख के प्यार।।

एक कोंख के प्यार, कहाथे बहिनी भाई।

सुन्ना राखी पर्व, कभू झन रहय कलाई।।

गजानंद लिख छंद, आँख ले आँसू बरसे।

हवय फूटहा भाग, मया बहनी बर तरसे।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)30/08/22

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बोधन जी: //तीजा के तिहार//


हमर परब तीजा के भइया,

                  संस्कृति बड़ा महान हे।

छत्तीसगढ़ राज मा ये तो,

                 पुरखा के पहिचान हे।।


पौराणिक मान्यता तीज के,

                  भाद्र अँजोरी मास मा।

पार्वती माँ करिन हवै व्रत,

               शिव शंकर के आस मा।।

ये तीजा उपवास निर्जला,

                    सुग्घर रीत विधान हे।

हमर परब तीजा के भइया..........


मइके आ के दाई बहिनी,

                  करै सबो व्रत संग मा।

करू करेला घर-घर खावै,

                   खुशी समावै अंग मा।।

गौरी दाई ले पति खातिर,

                     माँगत ये वरदान हे।

हमर परब तीजा के भइया..........


झूला झूले सखी सहेली,

                   बाँधे आमा डार मा।

बड़ दिन मा सकलाये बहिनी,

                   अमराई के खार मा।।

रात फुलेरा साज बाँध के,

                   गावत शिव के गान हे।

हमर परब तीजा के भइया.............


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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: कुण्डलिया छंद---- *तीजा*


परब खास हे ये गजब, हवै अजब के रीत।

भाई घर उपवास अउ, जीजा जी बर प्रीत।।

जीजा जी बर प्रीत, रही निरजला निभाथे।

भाई हे अनमोल, मान बड़ लुगरा पाथे।।

लोटा भरभर पाय, नीर बस इही आस हे। 

सुग्घर भादो मास, अॅंजोरी तीज खास हे।


लाली शुभ सिंदूर निक, टिकली चमके माथ।

लाल महावर पॉंव मा, सजे महेंदी हाथ।।

सजे महेंदी हाथ, परब पबरित शुभ तीजा।

दीदी के उपवास, पाय बड़ जिनगी जीजा।

सोलह कर सिंगार, कान मा पहिरे बाली।

नथली चूरी संग, सजाये मुॅंह मा लाली।।


बिहिनी माई हे सबो, मइके मा सकलाय।

हॅंसी ठिठोली हे करत, करू करेला खाय।।

करू करेला खाय, मीठ हे बोली बतरस।

मया पाग ससुरार, लाय हे मइके मा जस।।

राहय अमर सुहाग, होय जिनगी सुखदाई।

गौरी शंकर पूज, मनावय बहिनी माई।।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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 *सार छंद*

*तीजा*


हाय हाय रे बइरी तीजा, फेर घलो तँय  आगे।

बिना सुवारी घर हा मोला, घर जइसे नइ लागे।।


घर के जम्मो बुता परे हे,  कइसे करके होही।

बरतन भाँड़ा सबो परे हे, कोन माँजही धोही।।


झाड़ू पोंछा घलो परे हे, माथा हा चकरावय।

साग भात राँधे नइ आवय, नहीं समझ कुछ आवय।।


खेत खार नींदे के बाँचे, वोला कोन कमाही।

कोन जनी ये तिजहारिन हर,कतका दिन मा आही।।


बहिनी मन बर लुगरा कपड़ा, कइसे करके लेहूँ।

पइसा कौड़ी काहीं नइहे, सेठ ल काला देहूँ।।


तीजा हा गा तेल निकाले, हावय जी दुख भारी।

मरना हावय 'प्यारे' हमरो, घर सुन्ना बिन नारी।


*प्यारेलाल साहू*

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     (  तीजा तिहार  ) सार छंद


तीजहारिन ह चलदिस तीजा,

               मरना हो गे मोला।

दिन गुजरत हे लाँघन भूखन,

               हावे तरसत चोला।।ध्रुव पद।।

साग ह होगे सिट्ठा संगी,

               भात ह होगे गिल्ला।

झाड़ू पोछा बर्तन पानी,

                होगे कनिहा ढिल्ला।

रांधे बर तो आवे नइ जी,

                कभू ग मोला रोटी।

भूख प्यास के मारे अब तो,

                 अँइठत हावे पोटी।

रोज रोज में खावत हाववं, 

                   सत्तू के गा घोला।।1।।

छटपट छटपट में रात कटे,

                   लागय दिन मा सुन्ना।

कइसे कर के समय गुजरही,

                   मोला होगे गुन्ना।

बारे बरय न लकड़ी छेना,

                   अब्बड़ ग गुंगवाथे।

गदगद नरवा जइसे अब तो,

                    आँसू हा चुचवाथे।

अबड़ अकन सकलागे कपड़ा,

                     धोही कोन ग वोला।।2।।

फोन घलो जी बाज बाज के,

                     जीव ल मोर जलाथे।

जाये हावे मइके मा अउ,

                      अब्बड़ के गोठियाथे।

पूछत रहिथे बने बने सब,

                       बने कहाँ ले पाबे।

बने जभे गा होही दिन हा,

                       जब तैं घर मा आबे।

खोल बने हों आँखि तीसरा,

                       बम बम बम शिव भोला।।3।।


कुलदीप सिन्हा "दीप"

कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी

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तीजा के हार्दिक बधाई।

🙏🌹🙏


तीजा

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(कुण्डलिया)


मइके मा आके रथे , बेटी तीज उपास।

छत्तीसगढ़ी संस्कार के, झोली भरे उजास।

झोली भरे उजास, मनावै औघड़दानी।

माँगै वो वरदान, सुखी हो पति जिनगानी।

लहुट जथे ससुरार,मया के डोर लमाके।

बेटी पाथे मान, सदा मइके मा आके।


पोरा तीज तिहार हा, हमर हवै पहिचान।

जम्मों बहिनी अउ बुआ, पाथें सुग्घर मान।

पाथें सुग्घर मान, भेंट लुगरा के मिलथे।

करके निक सिंगार, फूल कस बेटी खिलथे।

सरग लोक ले ऊँच, आय मइके के कोरा।

छत्तीसगढ़ के शान, परब ये तीजा पोरा।


भाँचा भाँची आय हें, दिन भर उधम मचायँ।

नाना नानी ला अपन, बंदर नाच नचायँ।

बंदर नाच नचायँ, ममा के चढ़ें पिठइया।

छोटू हा लेवाय, जिद्द बड़ करके खउवा।

कुलकत हे घर द्वार, प्रेम के पी रस साँचा।

हाबय गरब गुमान, राम जी हमरो भाँचा।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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तीजा के बिहान दिन

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तीजा परब बिहान दिन , सब्बो घर सत्कार।

तिजहारिन मन हें करत ,घूम घूम फरहार।

घूम घूम फरहार, बने हे रोटी पीठा।

मन भावै नमकीन,अइरसा पपची मीठा।

करू करेला साग, बजै कुर्रुस ले बीजा।

बाँटै मया दुलार, परब पावन हे तीजा।


जीजा लुकरू आय हे, बड़े बिहनिया आज।

चल झटकुन जाबो कथे, नइये चिटको लाज।

नइये चिटको लाज, हवै दीदी गुसियाये।

काहै जाबो काल, आज बस रात पहाये।

 करथच तैं हलकान ,  भेज के मोला तीजा।

करत हवै मनुहार, सुने ये ताना जीजा।


झोला-झँगड़ी जोर के, बेटी हे तइयार।

सुग्घर तीज मनाय हे, फिरना हे ससुरार।

फिरना हे ससुरार, निंदाई हे पछुयाये।

लइका जाही स्कूल, वोकरो फिकर सताये।

जोहत होही सास, चेत सबके हे वोला।

चल ना कहिस दमाँद ,टँगागे सइकिल झोला।


गणराजा आये हवै ,परब चतुर्थी आज।

करबो पूजा पाठ हम, होय सफल सब काज।

 होय सफल सब काज, देश मा सुख भर जावै।

मिटै गरीबी रोग, खुशी घर घर मा छावै।

उन्नति चारों खूँट, बजै सुमता के बाजा।

बढ़ै हिंद के शान, करै किरपा गणराजा।


चोवा राम  'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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: तीजा (हरितालिका)


*दोहा छंद*


आज परब हे खास जी, तीजा तीज तिहार ।

आथे मइके मा बहिन,  पाथे मया दुलार ।। 


भादो महिना आय जी,  पुरखौती  ये  रीत ।

सबो सुहानिन मन सदा, गावँय सुमधुर गीत ।।


रखथे जी उपवास ला,  पति के सेवा जान ।

पावन हे तीजा परब,  मिले सुघर वरदान ।।


आस लगाके व्रत करै, करू करेला ला खाय ।

जप पूजा अउ ध्यान ले, मुँह माँगे वर पाय ।।


पहिने लुगरा पोलका, टिकली चमके माथ ।

चूरी  कंगन  हे  सुघर,  लगे  महेंदी  हाथ ।।


घर-घर मा खुरमी बरा, सुघर बने हे आज ।

शिव भोला ला तँय मना, पूरन होवय काज ।।


*मुकेश उइके "मयारू*

*छंद साधक- सत्र 16*

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: सार छन्द गीत -तीजा २९/०८/२०२२


जावत हावॅंव मइके जोड़ी, बने पेट भर खाबे।

तीजा के होवत बिहान दिन, तॅंय लेगे बर आबे।।


दीदी- बहिनी मन सॅंग मिलहूॅं, मइके मा मॅंय जाके।

अउ तोरे बर तीजा रइहूॅं, करू भात ला खाके।।


तोरो बहिनी देखत होही, जाके झटकुन लाबे।

तीजा के होवत बिहान दिन, तॅंय लेगे बर आबे।।


चाउर दार चना के बेसन, रख दे हावॅंव मॅंय हा।

धनिया मिरचा सब्जी मन ला, ला के देबे तॅंय हा।।


रोटी-पीठा गुलगुल भजिया,गरम-गरम बनवाबे।

तीजा के होवत बिहान दिन, तॅंय लेगे बर आबे।।


दीदी मन बर साड़ी लेबे, भाॅंचा मन बर कपड़ा।

कभू-कभू तो आथे घर मा, झन करबे तॅंय लफड़ा।।


लइका मन ला चेत लगाके,रखबे बने खवाबे।

तीजा के होवत बिहान दिन, तॅंय लेगे बर आबे।।


 ✍️ओम प्रकाश पात्रे "ओम"

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 सार छंद गीत- पोरा ३०/०८/२०२२


माटी के जाॅंता पोरा अउ, नॅंदिया बइला आगे।

हमर गाॅंव के तीजा पोरा, अब्बड़ सुग्घर लागे।।


बेंचत हवय कुम्हारिन मन हा,ओरी ओर लगाके।

बीच- गली अउ पारा- पारा, गाॅंव- गाॅंव मा जाके।।


रोजी-रोटी चलथे सुग्घर, दुख पीरा बिसरागे।

हमर गाॅंव के तीजा पोरा, अब्बड़ सुग्घर लागे।।


घर मा लाके करथें पूजा, नरियर फूल चढ़ाथें।

चीला रोटी बरा राॅंध के,बइला तीर मढ़ाथें।।


खेले बर सॅंगवारी मन सॅंग, लइका मन जुरियागे।

हमर गाॅंव के तीजा पोरा, अब्बड़ सुग्घर लागे।।


दीदी मन हा पोरा धरके, जघा-जघा मा पटकय।

भइया मन हा खाये बर जी, सोंहारी ला झपटय।।


खेलय-कूदय नाचय-गावय, मन मा खुशी समागे।

हमर गाॅंव के तीजा पोरा, अब्बड़ सुग्घर लागे।।


 ✍️ओम प्रकाश पात्रे "ओम"

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: तीजा तिहार (हरितालिका)


हरिगीतिका छंद


*भादो अँजोरी पाख मा, आथे सुघर ये रीत गा।*

*तीजा परब के मान बर, गाथें मया के गीत गा।।*

*बहिनी सबो सकलाँय के, तीजा रहँय उपवास जी ।*

*पति के उमर लम्बा करै, रखथें अबड़ कन आस जी ।।*


*भोले बबा के ध्यान कर, तँय रख सदा बिंसवास जी ।*

*आथे बछर मा एक दिन, तीजा परब हा खास जी ।।*

*पहिरे नवा लुगरा बहिन, पावन हवय त्यौहार हा ।*

*करले अपन कारज सफल, सुग्घर रहय परिवार हा ।।*


*मुकेश उइके "मयारू"*

ग्राम-चेपा, पाली, जिला-कोरबा(छ.ग.)

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मरना हे तीजा मा


सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


लइका लोग ल धरके गय हे,मइके मोर सुवारी।

खुदे बनाये अउ खाये के, अब आ गय हे पारी।


कभू भात चिबरी हो जावै,कभू होय बड़ गिल्ला।

बर्तन भँवड़ा झाड़ू पोछा, हालत होगे ढिल्ला।

एक बेर के भात साग हा,चलथे बिहना संझा।

मिरी मसाला नून मिले नइ,मति हा जाथे कंझा।

दिखै खोर घर अँगना रदखद, रदखद हाँड़ी बारी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।1।


सुते उठे के समय बिगड़गे,घर बड़ लागै सुन्ना।

नवा पेंट कुर्था मइलागे, पहिरँव ओन्हा जुन्ना।

कतको कन कपड़ा कुढ़वागे,मूड़ी देख पिरावै।

ताजा पानी ताजा खाना, नोहर हो गय हावै।

कान सुने बर तरसत हावै,लइकन के किलकारी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।2।


खाय पिये बर कहिही कहिके,ताकँव मुँह साथी के।

चना चबेना मा अब कइसे,पेट भरे हाथी के।

मोर उमर बढ़ावत हावै,मइके मा वो जाके।

राखे तीजा के उपास हे,करू करेला खाके।

चारे दिन मा चितियागे हँव,चले जिया मा आरी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।3।


छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)

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