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Sunday, August 14, 2022

आजादी के अमृत महोत्सव विशेष-छंदबद्ध कविता


 

आजादी के अमृत महोत्सव विशेष-छंदबद्ध कविता


*हमर तिरंगा,अमर तिरंगा*

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जन-गण-मन के राष्ट्रगान ले,

 दसों दिशा भर जावै।।

हमर तिरंगा अमर तिरंगा,

घर-घर मा फहरावै।।


ये झंडा के तीन रंग ले,

तीन लोक फीका हे।

चक्र फबे भारत माता के,

 माथा के टीका हे।।

देख तिरंगा ला बैरी हा,

 थर-थर-थर थर्रावै।

हमर तिरंगा अमर तिरंगा,

घर-घर मा फहरावै।।


जन-जन के अभिमान तिरंगा,

 सबके मान बढ़ाथे।

वीर सिपाही जेकर बल मा,

 जंग लड़े बर जाथे।।

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,

 कंठ-कंठ हा गावै।

हमर तिरंगा अमर तिरंगा,

घर-घर मा फहरावै।।


ये झंडा के रक्षा खातिर,

 पुरखा प्रान गँवाइन।

नवा सुरुज ला आजादी के,

परघाके उन लाइन।।

सुरता हा तो शहीद मन के,

कभ्भू झन बिसरावै।

हमर तिरंगा अमर तिरंगा,

घर-घर मा फहरावै।।


देश हवै ता हावन हम सब,

 देश बिना जग सुन्ना।

बिना एकता भाईचारा,

सुख उन्ना के उन्ना।।

चेत करौ कोनो आपस मा,

 हम ला झन लड़वावै।

हमर तिरंगा अमर तिरंगा,

घर-घर मा फहरावै।।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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दोहा गीत- *राष्ट्र तिरंगा*


राष्ट्र तिरंगा गर्व के, हम सब के अभिमान।

हर दिल हर घर मा बसे, बनके अब तो शान।।


अमिय महोत्सव साल मा, खुशी मगन हे देश।

आँख उठा पर देख लौ, कइसे हे परिवेश।।

सच्चाई ले मोड़ मुँह, बनव नहीं नादान।

राष्ट्र तिरंगा गर्व के, हम सब के अभिमान।।


खड़े कहाँ हे देश अब, कर लौ जरा विचार।

अंधभक्ति चमचागिरी, फइले झूठ प्रचार।

रोजगार गायब दिखे, दूर नसीब मकान।

राष्ट्र तिरंगा गर्व के, हम सब के अभिमान।।


हवे उपेक्षित आज तो, सैनिक वीर जवान।

हँसत हँसत जो देश हित, हो जाथें बलिदान।।

भूल कभू तो नइ सकन, जेंखर हम अवदान।

राष्ट्र तिरंगा गर्व के, हम सब के अभिमान।।


जिंखर काँध मा हे टिके, असली देश विकास।

होइस वोखर देश मा, बहुत बड़े उपहास।।

धरती के भगवान जे, जेखर नाम किसान।

राष्ट्र तिरंगा गर्व के, हम सब के अभिमान।।


जेंखर श्रम बलिदान ले, खड़े ताज मीनार।

फूटपाथ मा जिंदगी, दिखे दुखित लाचार।।

गजानंद मजदूर के, झोपड़ हे वीरान।

राष्ट्र तिरंगा गर्व के, हम सब के अभिमान।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 14/08/22

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अमृत महोत्सव (आल्हा छंदगीत)


आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।

जनम धरे हन भारत भू मा, हम सब ला हावयँ बड़ नाज।


स्कूल दफ्तर कोट कछेरी, गली खोर घर बन अउ बाट।

सबे खूँट लहराय तिरंगा, तोर मोर के खाई पाट।।

हर हिन्दुस्तानी के भीतर, भारत माता करथे राज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


रही सबर दिन सुरता हम ला, बलिदानी मनके बलिदान।

टूटन नइ देन उँखर सपना, नइ जावन देवन स्वभिमान।

सुख समृद्धि के पहिराबों, भारत माँ के सिर मा ताज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


सब दिन रही तिरंगा दिल मा, सबदिन करबों जयजयकार।

छोटे बड़े सबे सँग सबदिन, रखबों लमा मया के तार।।

छोड़ सुवारथ सुमता गारत, देश धरम बर करबों काज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


जंगल झाड़ी झरना नदिया, खेत खदान हवय भरमार।

सोना उगले भारत भुइयाँ, कोई नइ पा पाये पार।

रक्षा खातिर लड़बों भिड़बों, बैरी उपर गिराबों गाज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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बागीश्वरी सवैया

मले  मूड़  मा  धूल  माटी  धरा के सिवाना म ठाढ़े हवे वीर गा।

लगे तोप गोला सहीं वीर काया त ओधे भला कोन हा तीर गा।

नवाये  मुड़ी  जेन  माँ  भारती तीर वोला खवाये बुला खीर गा।

दिखाये  कहूँ देश ला आँख बैरी त फेके भँवाके जिया चीर गा।

जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया 

बाल्को, कोरबा(छग)

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दोहा गीत(हमर तिरंगा)

लहर लहर लहरात हे,हमर तिरंगा आज।

इही हमर बर जान ए,इही  हमर ए लाज।


हाँसत  हे  मुस्कात  हे,जंगल  झाड़ी देख।

नँदिया झरना गात हे,बदलत हावय लेख।

जब्बर  छाती  तान  के, हवे  वीर  तैनात।

संसो  कहाँ  सुबे   हवे, नइहे  संसो   रात।

महतारी के लाल सब,मगन करे मिल काज।

लहर------------------------------ आज।



उत्तर  दक्षिण देख ले,पूरब पश्चिम झाँक।

भारत भुँइया ए हरे,कम झन तैंहर आँक।

गावय गाथा ला पवन,सूरज सँग मा चाँद।

उगे सुमत  के  हे फसल,नइहे बइरी काँद।

का  का  मैं  बतियाँव गा,हवै सोनहा राज।

लहर------------------------------लाज।


तीन रंग के हे ध्वजा, हरा गाजरी स्वेत।

जय हो भारत भारती,नाम सबो हे लेत।

कोटि कोटि परनाम हे,सरग बरोबर देस।

रहिथे सब मनखे इँहा, भेदभाव ला लेस।

जनम  धरे  हौं मैं इहाँ,हावय मोला नाज।

लहर-----------------------------लाज।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

कोरबा,छत्तीसगढ़

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 *रोला छंद* -अश्वनी कोसरे रहँगिया

तिरंगा ला लहराबो


ऊँचा झंडा रोज, गगन मा फहरत राहै।

सबो सुराजी गाँव, बने बर जाने  जाहै।।

पबरित बेरा आज, सबो जन गन ला गाबो।

अपन देश के शान, तिरंगा ला लहराबो।।


आवव सबो जवान, एकता माने जाहै।

बेटा सबो किसान, देश के गुन ला गाहै।।

भाखा बोली एक, राज पहिचाने जाहै।

भाईचारा लान, सबो मा सुमता राहै।


सत्य अहिंसा प्रेम, मान बापू के कहना।

नज़र उठा के देख, इही जिनगी के गहना।।

 राह सुमत के भेष, चले हे चरखा खादी। 

 कुरबानी के बाद, मिले हावय आजादी।।


छंदकार-

अश्वनी कोसरे

रहँगिया कवर्धाकबीरधाम

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: सरसी छन्द गीत-द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"


मँय भारत हँव मँय भारत हँव,करौ सदा जयकार।

भाग्य बिधाता मँय हँव सबके,करथौ जी उद्धार।

उत्तर मा ए खड़े हिमालय,मोरे उन्नत भाल।

तीन दिशा सागर ले घिरके,करथौं माला-माल।।

पाँव पखारे गंगा निशिदिन,बहथे पावन धार।

मँय भारत हँव मँय भारत हँव,करौ सदा जयकार।।


हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई,सब झन मोरे लाल।

इँखर एकता भाई-चारा,हे पूजा के थाल।।

देशभक्ति सबके रगरग मा,करथें अब्बड़ प्यार।।

विश्व गुरू मँय कहिलाथौं जी,देथँव सब ला ज्ञान।

इहें तिरंगा झंडा फहरे,जे मोरे पहिचान।।

जम्मू ले कश्मीर सबो हा,हे मोरे परिवार।

मँय भारत हँव मँय भारत हँव,करौ सदा जयकार।।


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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अमर तिरंगा 

(छत्तीसगढ़ी दोहे)

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धजा तिरंगा मान हे,पुरखा के पहिचान ।

लाज बचाना हे धरम,कमर कसौ जी जान ।।


आवौ भाई आव जी, बहरी ला भगवाव।

आँख उठा जे देखथे, बोला सबक सिखाव।।


भारत के खातिर सबो, मर मिट जाबो संग।

उड़न नहीं देवन हमन, आज तिरंगा रंग ।।


लहर- लहर लहराव जी, झंडा उड़े अगास।

खुशियाँ सबो मनाव जी, बइठौ नहीं उदास ॥


इही तिरंगा ले हवै, हमर देश के मान।

बइरी मन काँपत रथे,अइसन हिंदुस्तान।।


केसरिया पहचान हे, तप अउ त्याग समान।

एखर ले हे देश अब, सर्व सुरक्षा मान ।।


भाईचारा शांति के, सादा रंग महान।

समय बतायत चक्र ये, नीला गोल निशान।।


हरियर भुइयाँ खार बर,पर्यावरण बचाव।

रंग तिरंगा देश के,जुरमिल गुन ला गाव।।

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रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 झंडा गीत (लावणी छंद)


आजादी त्यौहार मनाबो,

               सर्व धर्म सब जुरियाबो।

चलौ तिरंगा फहराबो जी,

                 चलौ तिरंगा फहराबो।।


केशरिया हे त्याग निशानी,

                   हरियर हे हरियाली के।

सादा शांति सुरक्षा बर हे,

                नील चक्र खुशहाली के।।

तीन रंग के ध्वजा तिरंगा,

               एखर जी मान बढ़ाबो।

चलौ तिरंगा फहराबो जी...............


कतको बलिदानी होइन हे,

                      इही देश के माटी मा।

लाज बचाइन भारत माँ के,

               छाती तानिन घाटी मा।।

शेर जवान किसान सबो के,

              आज चलौ गुन ला गाबो।।

चलौ तिरंगा फहराबो जी..............


उमर पछत्तर आजादी के,

                  बेरा गजब सुहावत हे।

लइका बुढ़वा दाई बहिनी,

                  पशु पक्षी हरषावत हे।।

देश भक्ति बर बने भावना,

             मन मा जी अलख जगाबो।

चलौ तिरंगा फहराबो जी..............


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 दोहा गीत- *राष्ट्र तिरंगा*


राष्ट्र तिरंगा प्रेम के, देथे जग संदेश।

अनेकता मा एकता, भारत के परिवेश।।


गूँजत हे बड़ गर्व से, जनगण मन के गान।

बोलव वंदेमातरम, अमर जवान किसान।।

हिन्दू मुस्लिम एक सब, एक सबो के भेष।

राष्ट्र तिरंगा प्रेम के, देथे जग संदेश।।


केसरिया हा त्याग के, सिखलाथे जी पाठ।

देश धर्म पर मर मिटव, बाँध एकता गाँठ।।

जाति धर्म के नाम मा, रहे नहीं मन द्वेष।

राष्ट्र तिरंगा प्रेम के, देथे जग संदेश।।


श्वेत रंग हे शांति के, अमिट अमर पहिचान।

ध्येय बना के देश हित, लड़थे वीर जवान।।

सीमा मा रहिथे अडिग, दृष्टि बना अनिमेष।

राष्ट्र तिरंगा प्रेम के, देथे जग संदेश।।


देथे हरियाली हरा, खुशहाली हरहाल।

ऊँचा देश विदेश मा, रहे हिन्द के भाल।।

गजानंद ये सोन के, चिड़िया हवय विशेष।

राष्ट्र तिरंगा प्रेम के, देथे जग संदेश।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 14/08/22

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शान तिरंगा


तीन रंग के ध्वजा तिरंगा, लहर लहर लहराय। 

उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम, सबो डहर फहराय।। 


अमृत महोत्सव चलत हवय जी,  जानव सबसे खास। 

भारत के घर घर मा छाये, खुशहाली उल्लास।। 


मन मा जोश उमंग भरत हे, ये आज़ादी पर्व। 

हर भारत वासी  के मन मा, होवत हावय गर्व।। 


तीन रंग मा हवय समायें, त्याग, शांति, बलिदान। 

भारत भुइयाँ पावत हावय, विश्व गुरु के मान।। 


बलिदानी मन के सपना अब, होवत हे साकार।

चारों कोती गूंजत हे बस, भारत के जयकार।।


आशा देशमुख

एनटीपीसी  जमनीपाली कोरबा

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: *घनाक्षरी* 


*शूरबीर सबो बलिदानी ला नमन हे* 


बीर बाँहकर जेन सीमा में कटाये मूड़, 

अइसन बीर बलिदानी ला नमन हे। 

बैरी ला खेदार जेन देश के रखिन आन 

अइसन सबो स्वाभिमानी ला नमन हे।। 

अँचरा दाई बदला घेंच के करिन मोल, 

अइसन अटल जवानी ला नमन हे।

सोनहा आखर में लिखाये नाम जगमग

सुरता देवावत निशानी ला नमन हे।। 


करजा दाई के जेन छूटिन परान देके, 

अइसन बेटवा तो राम अउ लखन हे।।

सरग में उँकर तो होत होही अगवानी,

जेन महतारी बर वारे तन मन हे।।

देश के सेवा करैया लइका बियाये जेन, 

अइसन बाप महतारी ला नमन हे।। 

दाई के सेवा बर सोहाग जेन दान दिन, 

अइसन पिया के पियारी ला नमन हे। 


गुरतुर सपना हा खारो होगे आसूँ गिर,

अइसन सजनी कुँवारी ला नमन हे।

झाँकत दुवारी ददा आही कहि घेरीबेरी,

फूल कस बिटिया दुलारी ला नमन हे।

लइकुसहा उमर आगी पानी बाप देत,

अइसन बेटा के लाचारी ला नमन हे।

बीरगति पाये वो जवान के तो गाँव गली, 

डेरउठी अँगना व दुवारी ला नमन हे। 


शोभामोहन श्रीवास्तव 

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रन जूझे बर जाहूँ महू हर (सार छंद) 


रन जूझे बर जाहूँ महू हर, रन जूझे बर जाहूँ।

देश धर्म के रक्षा खातिर, अपनो मुड़ कटाहूँ।।

रन जूझे बर जाहूँ हर, रन जूझे बर जाहूँ। 


दाई तोरे दूध के कर्जा, देके लहू चुकाहूँ।। 

कंकन नइ बंधवावौं दाई, मैं तलवार उठाहूँ। 

रन जूझे बर जाहूँ हर, रन जूझे बर जाहूँ। 


दुश्मन खड़े दुआरी आके, ओला काट गिराहूँ।

छाती ला कठवा कर लेहौ, कहूँ बहुर नइ पाहूँ। 

रन जूझे बर जाहूँ हर, रन जूझे बर जाहूँ। 


शोभामोहन श्रीवास्तव

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: सार छन्द गीत..


हम बेटा हन वीर सिपाही,भारत के रखवाला।

पहरा देथँन हम शरहद मा,धरके बन्दूक भाला।।


कभू झुकन नइ देवन संगी,पावन हमर तिरंगा।

शान बढ़ाथे हम सबके जी,तन मन करथे चंगा।।

बुरी नजर ले देखय तेखर,मुँह ला करथँन काला।

हम बेटा हन वीर सिपाही,भारत के रखवाला।।


रक्षा खातिर मात्रभूमि के,बनबो हम बलिदानी।

लगा जान के बाजी संगी,देबो हम कुर्बानी।।

कहाँ मेकरा कस बढ़ पाही,बैरी मन के जाला।

हम बेटा हन वीर सिपाही,भारत के रखवाला।।


का बरसा का जाड़ा गरमी,हमला कुछ नइ लागे।

हम सबके हिम्मत के आगू,आलस पल्ला भागे।।

इंकलाब जय भारत माता,मिलके जपथन माला।

हम बेटा हन वीर सिपाही,भारत के रखवाला।।


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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आल्हा छंद- रे बइरी


महतारी के रक्षा खातिर, धरे हवँव मैं मन मा रेंध।

खड़े हवँव नित छाती ताने, काय मार पाबे तैं सेंध।


मोला झन तैं छोट समझबे, अपन राज के मैंहा वीर।

अब्बड़ ताकत हवै बाँह मा, दू फाँकी देहूँ रे चीर।।


तन अउ मन ला करे लोहाटी, बासी चटनी पसिया नून।

देख तोर करनी धरनी ला, बड़ उफान मारे तन खून।।


नाँगर मूठ कुदारी धरधर, पथना कस होगे हे हाथ।

तोर असन कतको हरहा ला, पहिराये हौं मैंहर नाथ।


ललहूँ पटुकू कमर कँसे हौं, चप्पल भँदई सोहे पाँव।

अड़हा जान उलझबे झन तैं, उल्टा पड़ जाही रे दाँव।


कोन खेत के तँय मुरई रे, मोला का तँय लेबे जीत।

परही मुटका कँसके तोला, छिनभर मा हो जाबे चीत।


हवै हवा कस चाल मोर रे, कोन भला पा पाही पार।

चाहे कतको हो खरतरिहा, होही खच्चित ओखर हार।


देश राज बर नयन गड़ाबे, देहूँ खँड़ड़ी मैं ओदार।

महानदी अरपा पैरी मा, बोहत रही लहू के धार।


उड़ा जबे रे बइरी तैंहा, कहूँ मार पाहूँ मैं फूँक।

खड़े खड़े बस देखत रहिबे, होवय नही मोर ले चूँक।


देख मोर नैना भीतर रे, गजब भरे हावय अंगार।

पाना डारा कस तोला मैं, छिन भर मा देहूँ रे बार।


गोड़ हाथ हर पूरे बाँचे, नइ लागय मोला हथियार।

अपन राज के आनबान बर, सुतत उठत रहिथौं तैंयार।


भाला बरछी बम अउ बारुद, भेद सके नइ मोरे चाम।

दाँत कटर देहूँ ततकी मा, तोर बुझा जाही रे नाम।।


जब तक जीहूँ ये माटी मा, बनके रहिहूँ बब्बर शेर।

डर नइहे कखरो ले मोला, करहू काय कोलिहा घेर।


नाँव खैरझिटिया हे मोरे, खरतरिहा माटी के लाल।

चुपेचाप रह घर मा खुसरे, नइ ते हो जाही जंजाल।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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दोहा छंद 


लहर लहर लहरात हे, बने तिरंगा शान।

तोरे सेवा बर खड़े, सैनिक सीना तान।।


सुघर तोर मॉं भारती, हावय वीर सपूत।

बैरी मन बर काल बन, लागे यम के दूत।।


सरदी गरमी हर रहय, या होवय बरसात।

पानी हवा जमीन मा, पहरा दय दिन रात।।


तन मन ला अरपन करें, देशभक्ति मा सान।

तोरे सेवा बर खड़े, सैनिक सीना तान।।

लहर लहर लहरात हे, भारत मॉं के मान....


सींच लहू तन के अपन, सुतगे अॅंचरा छॉंव।

होगे बलिदानी अमर, लेके तोरे नॉंव।।


गात अजादी गीत ला, नाचत गावत झूम।

चढ़गे फॉंसी लाल सब, रस्सी ला तब चूम।।


स्वतंत्रता के राग मा, चढ़े जवानी जीद।

नमन करव सब वीर ला, होगे जेन शहीद।।


जेखर यश के गीत ला, गावत हे भगवान।  

लहर लहर लहरात हे, बने तिरंगा शान।

तोरे सेवा बर खड़े, सैनिक सीना तान......

     

          मनोज कुमार वर्मा "बरदीहा"

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कुकुभ छंद

जब जब आय परब आजादी, सुरता आथे बलिदानी।

येला पाये खातिर संगी, होंगे कतको कुर्बानी।।


हमर देश के  शान तिरंगा, लहर लहर ये लहराये।

भेदभाव ला छोड़ छाड़ के, हँसी खुसी सब फहराये।।


केसरिया सादा अउ हरियर, तीन रंग झंडा प्यारा।

सदा उड़य नित ये अगास मा, दुनियाँ ले सुग्घर न्यारा।।


ऊँच नीच अउ जाँत पाँत के, पाँटन हम सब मिल खाई।

एक संग सब मिलजुल रहिबो, छोड़न हम अपन ढिठाई।।


छोड़ लोभ लालच स्वारथ ला, सुग्घर अब रोज कमाबो।

प्रान देश हित बर अरपन कर, भुइयाँ के लाज बचाबो।।


 ज्ञानु

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आशा देशमुख: *आज़ादी परब*



आज़ादी के ये परब, हावय सबले खास। 

चारों कोती शोर हे, छाये हे उल्लास।। 1


का छोटे अउ का बड़े, सब होगे हें एक। 

भाईचारा  एकता, भाव भरे हे नेक।। 2


तीन रंग के रंग मा, रँग गय भारत देश। 

अइसन सुम्मत देख के, भागय विपदा क्लेश।। 3


घर घर मा झंडा लगे, सबके मन मा जोश। 

जयकारा के गूंज हा, गूंजे दस दस कोस।। 4



अमिय महोत्सव के सबो , बनगे हवव गवाह। 

होवत हे अब्बड़ गरब, मन मा भरे उछाह।।5


कतको वीर जवान मन, दिये हवंय बलिदान। 

कहत  हवय ब्रम्हांड तक,भारत देश महान।। 6


जानव भारत भूमि हा, हावय स्वर्ग समान। 

सुरुज उगत ही गूंजथे, जन गण मन के गान।। 7


कोहिनूर चमके मुकुट, भारत माँ के माथ। 

सरस्वती बानी बने, लक्ष्मी दुर्गा हाथ।। 8


आजादी के ये परब, लिखत नवा अध्याय। 

सरी जगत मा हिंद के, जस गुण ला बगराय।।9



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा


15_8_2022 सोमवार

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आजादी के पछत्तर बछर पुरे के

महोत्सव के जम्मो झन ल बहुत बहुत बधाई 

सहित 🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹

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दोहा दर्जन 

सूझय अब कॉंही नहीं,  कुंठित  हवय  दिमाग।

कहय कलेचुप बइठ तैं, अब कॅंहुचो झन भाग।।१।।

आजादी  काबर  मिलिस,  तइसे  लगथे आज।

कदर      कहॉं     ईमान  के,  चलथे  गुंडा  राज।।२।।

सब  कुर्सी  हथियाय  बर, करथें उदिम तमाम।

टुकुर  टुकुर देखत सहय, बस अन्याय अवाम।।३।।

कमोबेश  रहिथे  कका,   सबके  एक   उसूल।

सातों   पीढ़ी   बर   बने,   दौलत  खूब  वसूल।।४।।

महमारी  के   मार   ला,  झेले   हवन   मितान।

सगा   सहोदर   संग  मा,    मित्र गॅंवाइन प्रान।।५।।

कतको  दौलतमंद  के, आइस  का धन काम।

करनी  के भुगते  हवन, हम  जॅंउहर  अंजाम।।६।।

आजादी   मिलगे  कका, आय  बने  ए  बात।

फेर मचय अंतलंग झन, अनुशासन तिरियात।।७।।

गरदन   रेते   बर   इहॉं,   खड़े    धरे    तलवार।

सर्वधर्म     समभाव    के,     भइगे      बंटाधार।।८।।

रइही     काबर   मेहनत,   से   हमला  दरकार।

देबे   करही   खाय   बर,   हो  कउनो  सरकार।।९।।

हो  गे  हन हम आलसी,  संग कोढ़िया जान।

निच्चट  अड़हा   भोकवा,  परबुधिया  इंसान।।१०।।

छोड़न  अइसन सोच ला,  हो   जावन   तैयार।

जीवन  रूपी  नाव  के,  बन  जावन  पतवार।।११।।

उत्सव  मानन  मिल  सबो, करत परन ए बात।

खुद  ऊपर  निर्भर  रहत, लाबो  नवा   प्रभात।।१२।।


जय हिन्द, जय भारत, वंदे मातरम्


सूर्यकान्त गुप्ता

सिंधिया नगर दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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4 comments:

  1. सुग्घर संकलन।जय हिंद।

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  2. स्वतन्त्रा दिवस के आप सबो ला बधाई। सुग्घर संकलन

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  3. बहुत बहुत बढ़िया संकलन सबो रचना कार ल बधाई

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