कृष्ण जन्माष्टमी विशेषांक
: दोहा छंद
कृष्ण जन्म
कारी अँधियारी घटा,बरसे बादर जोर।
बंदीगृह के भीतरी जन्मे नंद किशोर।।
भाद्र पद तिथी अष्टमी, अँधियारी हे रात।
मगन होत वसुदेव जी,हँसे देवकी मात।
देखे जब वसुदेव हा,नैनन बरसे नीर।
तीन लोक के नाथ अब,आगे हरही पीर।।
माता कहिथे देखके,गिरधारी के हाल।
बेटा छोटे रूप धर,चूमौं तोरे गाल।।
रूप चतुर्भुज देख के,होगे मातु निहाल।
शंख चक्र हे हाथ में,आया मामा काल।।
धरके छोटे रूप ला,पारत हे गोहार।
रोवत हावे कँह कहाँ,बड़ किलकारी मार।।
चूमत हे मुख लाल के,छाती मा लिपटाय।
मामा तोरे काल हे,पापी झिन आ जाय।।
सूपा मा धर लालना,जावत नंद दुवार।
रोवत माता देवकी,ओकर मुहूँ निहार।।
पानी बरसे झर झरर,भींगत हे गोपाल।
लीला धारी साँवरा ,जानत हावे हाल।।
देख दशा गोपाल के,शेषनाग तब आय।
छाया करके शीश मा,मुचुर मुचुर मुसकाय।।
छोटे भाई जान के,हाँसत हे नँदलाल।
बनबे बड़का भ्रात तँय,करबो गजब धमाल।।
आट पाट यमुना बढ़े,चरण छुये के आस।
मुस्कावत हे श्याम जी,पाँव बढ़ावे पास।।
यमुना कहिथे मोहना,जोड़ँव दोंनो हाथ।
पैंया तोर पखार के,होहूँ महूँ सनाथ।।
पानी जम्मो गै उतर,बने बीच मा राह।
लीला गिरधर जी करे,पाय न कोई थाह।।
छोड़ लाल मथुरा नगर,आथे गोकुल धाम।
लड़की आइस जा कहो,करौ अपन तुम काम।
हाँसत हाबे कंस हा, मोला मारन हार।
लड़की आइस हे कहे,चले जेल के द्वार।।
झटके बेटी हाथ ले,पटके पथरा मार।
जगदंबा माँ प्रगट हो, कहे बात ललकार।।
मथुरा नगरी मा हवे,तोला मारन हार।
अतलँग जादा मत करो,झन कर अत्याचार।।
केवरा यदु"मीरा"राजिम
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कृष्ण नाम गुन सुमिरन(चौपाई छंद)
जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय ।
तीनो तिलिक गुसैया जय जय।।
गोकुल धाम रहैया जय जय ।
जसुमति के लरिकैया जय जय।।
नंद हृदय हरसैया जय जय।
जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।।
राधा साँस रटैया जय जय।
बंधन जगत कटैया जय जय ।।
मधुबन रास रचैया जय जय ।
जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।।
मन अंँधियार हरैया जय जय ।
अजगुत करम करैया जय जय।।
बन-बन गाय चरैया जय जय।
जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।।
इन्दर ताप नवैया जय जय।।
माखन लूट खवैया जय जय।
अंँगुरी छत्र छवैया जय जय।
जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।।
चंदन तिलक लगैया जय जय।
पाग पिरित पगैया जय जय।।
अंतसभाव जगैया जय जय।।
जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।।
धर्म ध्वजा फहरैया जय जय।
संत हृदय सहरैया जय जय।।
ब्रज भुँइया लहरैया जय जय।।
जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।।
जय जय धरमथपैया जय जय। ।
जय जय करमथपैया जय जय।
बलदाऊ के भैया जय जय।।
जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।।
कालीनाग नथैया जय जय।
गीता के अरथैया जय जय।।
जय जय काम लजैया जय जय।।
जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।।
कृष्णा लाज बचैया जय जय।।
अजगुत सृष्टि रचैया जय जय।।
अधरम संग लड़ैया जय जय।
जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।।
बिखहर नाग नथैया जय जय ।
अगम अपार अथैया जय जय।।
अनगिन रूप बनैया जय जय।।
जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।।
गीता ज्ञान सुनैया जय जय।
जीव उपकार गुनैया जय जय।।
जय सारथी बनैया जय जय।
जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।।
सुंदर सृष्टि सजैया जय जय।
बंशी सुघर बजैया जय जय।।
अनगिन खेल रचैया जय जय।।
जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।।
जय जय चक्र चलैया जय जय।
छाती दुष्ट छलैया जय जय।।
जम्मो जगत पलैया जय जय।।
रक्सा मार सुतैया जय जय।।
बैरा नाम बुतैया जय जय।।
सबले बड़े लड़ैया जयजय।।
जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।।
शोभामोहन श्रीवास्तव
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: त्रिभंगी छंद
जय किशन कन्हैया, धेनु चरैया, आठे तिथि मा, जनम धरे।
यशुदा के लाला, नंद दुलारा, गोकुल नगरी, मगन भरे।।
छाये खुशहाली, धरके थाली, धरती दाई, पाँव परे।
मोहन ब्रजवासी , जय सुखरासी, सब भक्तंन के, कष्ट हरे।
आशा देशमुख
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मत्तगयंद सवैया - कृष्ण प्रेम
हे मुरलीधर तोर मया पगली बन घूमत - घामत हावौं।
काम बुता नइ आज सुहाय मने मन मा अकुलावत जावौं।।
मोहन बाँसुरिया बिन तोर इहाँ सुख ला कइसे मँय पावौं।
हे गिरिराज सुनौ बिनती अब हार थके गुन ला मँय गावौं।।
बोधन राम निषादराज
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: *अमृतध्वनि छंंद*
*कृष्ण जन्माष्टमी*
रहिथें सब उपवास गा, बनथे सब पकवान।
आथे जब जन्माष्टमी, गाथें कृष्णा गान ।।
गाथें कृष्णा, गान सबो झन, ढोल बजाथें।
गली-गली मा, टोली फिरथे, रंग लगाथें ।।
खाँध जोड़ के, ऊपर चढ़थें, पीरा सहिथें।
मरकी फोरत, दही मही ला, खावत रहिथें।।
*अनुज छत्तीसगढ़िया*
*पाली जिला कोरबा*
*सत्र 14*
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चौपाई छन्द
कृष्ण कन्हैया
आये तिथि शुभ अष्टमी, लिये कृष्ण अवतार।
दुनिया ले सब कष्ट मिटे, पाये गीता सार।।
जनम धरे हे किशन कन्हैया। घर घर बाजत हवय बधैया।।
बलदाऊ के छोटे भइया, मातु जसोदा लेत बलैया।।
नाचत हें ब्रज के नर नारी। सोन रतन धर थारी थारी।
झुलना झूले किशन मुरारी। बाजे ढोल मँजीरा तारी।।
ध्वजा पताका तोरण साजे। गली गली घर बाजा बाजे।
खुशी मनावैं सबो डहर मा, गाँव गाँव अउ शहर शहर मा।।
समय आय हे मंगलकारी। भागत हे दुख विपदा कारी।
मुस्कावत हे कृष्ण मुरारी। रोग शोक सब भय भव हारी।।
मन ला मोहत हे नंद लाला। आजू बाजू गोप गुवाला।।
मातु जसोदा गोदी पाये। मोती माणिक रतन लुटावे।।
ब्रजनारी मन सोहर गावैं। देवन सबो सुने बर आवैं।।
बड़े भाग पाए ब्रजवासी। इंखर घर आये सुखरासी।।
दूध दही के धारा बोहय। खुशी मगन शुभ घर घर सोहय।
लीलाधर के महिमा भारी। माया रचथे मंगलकारी।।
सबो डहर नाचे खुशी, भरे मगन आनंद।
भरे भरे धरती लगय, आये सुषमाकंद।।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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*सरसी -क्षन्द*
*कृष्णा- भगवान*
धरती मा जब आइस विपदा, जन्म धरिस भगवान।
दानव मन ला मार भगाइस, गीता के दिस ज्ञान।।
चम -चम चम- चम चमकय बिजली, पानी हे विकराल।
घुमर घुमर बादर हा गरजय, आवत हे नँदलाल।।
पानी बाढ़य यमुना में जब, छल छल छलकत जाय।
फन फैलाये छतरी बनके, शेष नाग हा आय।।
रंग रंग के लीला करके, मुच ले देवय हाँस।
राधा -कृष्णा अउ गोपी सब, खेले हावय रास।।
धरे कंश ला मारे बर जब, थर्रा गेहे काल।
सबके रक्षा करते जावय, बोलव जय नँदलाल।।
गीता के उपदेश सुनाइस, रखिस धरम के मान।
नाश करिस जग ले अधर्म के,श्री कृष्णा भगवान।।
राकेश कुमार साहू
सारागांव ,धरसींवा रायपुर
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कुकुभ छंद - नन्द यशोदा के ललना
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सब सखियन के मरकी फोरे, माखन लूटे अउ खावै।
संग राधिका जमुना तट मा, मुरली ला मधुर बजावै।।
नन्द यशोदा जी के ललना, बड़ सुन्दर श्याम सलोना।
मनभावन हे छवि अति मोहक, बगरे मुख दही बिलोना।।
मोर पंख के मुकुट सुघर हे, हीर मोतियन गर माला।
पीत कछौटी कमर बॅधे हे, कानन कुंडल हे बाला।।
मुरली मधुर बजाके कान्हा, मधुबन नित रास रचाथे।
बाल ग्वाल अउ गइया गोपी, लीला कर अपन रिझाथे।।
सबके बिगड़े काम बनावै, द्रोपति के लाज बचावै।
दे उपदेश धर्म के कृष्णा, गीता के सार बतावै।।
रामकली कारे
बालको नगर कोरबा
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लोकछंद- रामसत्ता
विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।
दीन दुखी के डर दुख हरके, धर्म ध्वजा फहराये हो राम।
एक समय देवकी बसदेव के, राजा कंस ब्याह रचाये।
उही बेर मा आकाशवाणी, कंस के काने मा सुनाये।।
आठवाँ सुत हा मारही तोला, सुनत कंस भारी बगियाये।
बाँध छाँद बसदेव देवकी ला, कारागर मा झट ओइलाये।।
*सुख शांति के देखे सपना, एके छिन छरियाये हो राम।*
विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।1
राजा कंस हा होके निर्दयी, देवकी बसदेव पूत मारे।
करँय किलौली दूनो भारी, रही रही के आँसू ढारे।।
थर थर काँपे तीनो लोक हा, कंस करे अत्याचारी।
भादो अठमी के दिन आइस, प्रभु अवतरे के बारी।।
*बिजुरी चमके बादर गरजे, नदी ताल उमियाये हो राम।*
विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।2
अधरतिहा अवतरे कन्हैया, बेड़ी भाँड़ी सब टुटगे।
देवी देवता फूल बरसाये, राजा बसदेव देख उठगे।।
देख मनेमने गुनय बसदेव, निर्दयी राजा के हे डर।
धरे कन्हैया ला टुकनी में, चले बसदेव नंद के घर।।
*यमुना बाढ़े शेषनांग ठाढ़े, गिरधारी मुस्काये हो राम।*
विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।3
छोड़ कन्हैया ला गोकुल में, माया ला धरके लाये।
समै के काँटा रुकगे रिहिस, बसदेव सुधबुध बिसराये।।
रोइस माया तब जागिस सब, आइस दौड़त अभिमानी।
पुत्र नोहे पुत्री ए राजा, हाथ जोड़ बोले बानी।।
*विष्णु के छल समझ कंस हा, मारे बर ऊँचाये हो राम।*
विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।4
छूटे कंस के हाथ ले माया, होय देख पानी पानी।
तोर काल होगे हे पैदा, सुन के काँपे अभिमानी।।
जतका नान्हे लइका हावै, कहै मार देवव सब ला।
सैनिक मन के आघू मा, करे किलौली कई अबला।
*रोवै नर नारी मन दुख मा, हाँहाकार सुनाये हो राम।*
विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।5
राजा कंस के काल मोहना, गोकुल मा देखाय लीला।
दाई ददा संग सब ग्राम वासी, नाचे गाये माई पीला।।
छम छम बाजे पाँव के पइरी, ठुमुक ठुमुक चले कन्हैया।
शेषनाग के अवतारे ए, संग हवै बलदऊ भइया।।
*किसन बलदऊ ला मारे बर, कंस हा करे उपाये हो राम।*
विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।6
कंस के कहना मान पुतना, गोकुल नगरी मा आये।
भेस बदल के कान्हा ला धर, गोरस अपन पिलाये।।
उड़े गगन मा मौका पाके, कान्हा ला धरके पुतना।
चाबे स्तन ला कान्हा हा, तब भारी भड़के पुतना।।
*असल भेस धर गिरे भूमि मा, पुतना प्राण गँवाये हो राम।*
विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।7
पुतना बध सुन तृणावर्त ला, कंस भेजे गोकुल नगरी।
बनके आय बवंडर दानव, होगे धूले धूल नगरी।।
मारे लात फेकाये दानव, प्राण पखेडू उड़े तुरते।
बगुला भेस बनाके बकासुर, गोकुल मा आये उड़ते।
भारी भरकम देख बगुला ला, नर नारी घबराये हो राम।
विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।8
अपन चोंच मा मनमोहना ला, धरके बगुला उड़िड़ाये।
चोंच फाड़ बगुला ला मारे, कंस सुनत बड़ घबराये।।
बछरू रूप धरे बरसासुर, मोहन ला मारे आये।
खुदे बरसासुर हा मरगे, अघासुर आ डरह्वाये।।
*गुफा समझ सब ग्वाल बाल मन, अजगर मुख मा जाये हो राम।*
विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।9
कंस के भेजे सब दानव मन, एक एक करके मरगे।
गोकुल वासी जय बोलावै, दानव मन मरके तरगे।।
माखन खावै दही चोरावै, मटकी फोड़े गुवालिन के।
मुँह उला के जग देखावै, माटी खावै बिनबिन के।।
*कदम पेड़ मा बइठ कन्हैया, मुरली मधुर बजाये हो राम।*
विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।10
पेड़ बने दुई यक्ष रिहिन हे, कान्हा उन ला उबारे।
गेंद खेलन सब ग्वाल बाल संग, मोहन गय यमुना पारे।
रहे कालिया नाग जल मा, चाबे नइ कोनो बाँचे।
कालीदाह मा कूदे कन्हैया, नाँग नाथ फन मा नाँचे।
*गोबर्धन के पूजा करके, इन्द्र के घमंड उतारे हो राम*
विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।11
मधुर मधुर मुरली धुन छेड़े, रास रचाये मधुबन मा।
गाय बछरू ला गोकुल के, कान्हा चराये कानन मा।।
सिखाय नाहे बर गोपियन ला, चीर हरण करके कान्हा।
राधा ला भिंगोये रंग मा, पिचकारी भरके कान्हा।।
*कृष्ण बलदउ ला अक्रूर जी, मथुरा लेके जाये हो राम।*
विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।12
गोकुल मधुबन मरघट्टी कस, बिन कान्हा के लागत हे।
मनखे मन कठवा कस होगे, सूतत हे ना जागत हे।।
यमुना आँसू मा भरगे हे, रोवय जम्मो नर नारी।
कान्हा जाके मथुरा नगरी, दुखियन के दुख ला हारी।
*कंस ममा ला मुटका मारे, लहू के धार बोहाये हो राम*
विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।13
अत्याचारी कंस मरगे, जरासन्त शिशुपाल पाल मरे।
असुरन मनके नाँव बुझागे, विदुर सुदामा सखा तरे।।
दुशासन चिर खींचत थकगे, बने सहारा दुरपति के।
महाभारत ला पांडव जीतिस, कौरव फल पाइस अति के।
*हरि कथा हे अपरम पारे, खैरझिटिया का सुनाये हो राम*
विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।14
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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दोहा छंद-- माखन चोर (कान्हा)
*जननी हावय देवकी, वासुदेव पितु तोर ।*
*जनम धरे मथुरा नगर, बोलँय माखन चोर ।।*
*मोर मुकुट सुग्घर सजे, कान्हा रास रचाय ।*
*बाजय सुमधुर बासुरी, राधा संग सुहाय ।।*
*बन-बन मा भटकय किशन, गइया रोज चराय ।*
*गोपी ग्वाला संग मा, मुरली मधुर बजाय ।।*
*बनके तँय हा काल जी, आय कंस के द्वार ।*
*मारे पापी कंस ला, करे जगत उद्धार ।।*
*दे के गीता ज्ञान ला, विपदा हरै हजार ।*
*छाय घोर संकट तभे, धरे मनुज अवतार ।।*
*मुकेश उइके "मयारू"*
ग्राम-चेपा, पाली, जिला-कोरबा
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रोला छंद
बाढ़ै अत्याचार, होय अवतार प्रभू के।
कर दै बेड़ापार, जगत आधार न चूके।।
दिन बादर हे आज, उही महुरत सँघरागे।
बाजै बढ़िया साज, जनम दिन कान्हा आगे।।
बहिनी बर तो प्रेम, कंस के जानौ अड़बड़।
करिस बंधु के अहम्, मगर सब कोती गड़बड़।।
खुद ला समझ अजेय, बंधु तो हे बौराये।
नारद बचन सुनाय, कंस ला मौत बलाये।।
नारद बोलिस कंस, मारही पूत देवकी।
संख्या ओकर आठ, जान ले बात देव की।।
आय आठवाँ कोन, मँहू नइ जानत हावँव।
रहिके मुनिवर मौन, कहिस मैं जावत हावँव।।
सुनके नारद बात, कंस के सुध हेरागै।
सोच सोच दिन रात, ओखरो जी डेरागै।।
बाँधिस बेड़ी पाँव, देवकी अउ भाँटो के।
कहिस जेल तुम जाव, पाव अब दुख आँसो के।।
जनमत गइन कोंख देवकी ले लइका मन ।
पाइस नही समोख मार दिस कंस ममा बन।।
मारिस सातों पूत देवकी के वो पापी।
लइस प्रभू अवतार हते बर कंस प्रतापी।।
आठे भादो रात, रहै अँधियार पाख के।
जँउहर ओ बरसात, नई कहि सकौं भाख के।।
कान्हा नटवर श्याम, करिन उन अद्भुत लीला।
आइन मथुरा धाम, देवकी के बन पीला।।
करिन याद वसुदेव, कंस के अत्याचारी।
कहिन करौं का देव, देवकी ओ महतारी।।
चलिन पिता वसुदेव, सूप मा धरे कन्हैया।
गोकुल घर बलदेव, जहाँ हे बन के भइया।।
मात यशोदा नंद, बाप बन मन हर्षाये।
नोनी ला वसुदेव, कंस बर मथुरा लाये।।
पर ओ मूरख जान, घलो बेटी ला मारय।
बेटी देवी मान, काल ला ओही टारय।।
देवी कहिस सियान कंस तैं मरबे अब तो।
आ गे हे भगवान, काय तैं करबे अब तो।।
गोकुल मा आनंद, मनावैं नंद यशोदा।
खेलैं बाल मुकुंद, लेन आनंद हमू गा।।
आप जम्मो झन ला भगवान नारायण के कृष्णावतार अवतरण के अब्बड़ अकन बधाई सहित सादर....
जय जोहार....
सूर्यकांत गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग...
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घनाक्षरी छंद
जसोदा हे महतारी, छोटकुन कान्हा भारी,
ठुमक-ठुमक चाल,गोल घुमे बाल हे।
साँवर सलोना मुख, दाई देख पावय सुख,
चूंदी मोर पंख सजा, दुलराथे गाल हे ।
लेवना चोराय घर, भागे संगी धरधर,
लीला बाल रुप डर, नंद ददा लाल हे ।
गगरी निसाना बने, टुकुर- टुकुर नैने ,
संगी गोपी ब्रज जने, देखत निहाल हे।।
(2)
बंसरी राजे अनूप ललियाये ओठ रुप,
गोपी सब रीझ भूप, जसुमति लाल हे ।
पुक फेके नदी नीर, कालिया दहन धीर,
ब्रज जमुना के तीर,देखे नृत्य ताल हे ।
बाल लीला कान्हा करे सब दुख पीर हरे,
पूतना संहार करे कंस बर काल हे ।
वसुदेव जसोमति, लइका के देख गति,
रीझे मुसकाय अति, चूमें सब भाल हे ।।
(3)
माधव मुरलीधर, कृष्ण कान्हा नटवर,
राधा रानी प्रियवर कोटि नमन हवे ।
नाथ सुख के सागर, हे नटवर नागर,
उर मा बिराजे हर , राधे रमण हवे ।
लीलाधर योगेश्वर, रुपधर गोपेश्वर,
चले घर हर-हर, परे चरण हवे ।
छबि बड मनोहारि, मोहे रुप घटा कारी,
हरषित नर-नारी, अवतरण हवे।।
डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छग.
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छंद के छ परिवार के साधक साधिका मन के भगवान श्रीकृष्ण ला समर्पित भक्ति भाव के सुघ्घर फूल हर छंद खजाना ला गमकावत हे आदरणीय जितेन्द्र वर्मा गुरुदेव जी सादर प्रणाम् आपके राम सत्ता अति सुघ्घर मुग्धकारी हे हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर कृष्ण छन्दावली
ReplyDeleteअति सुग्घर कृष्णभक्ति संकलन ।
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