पोला परब विशेष छंदबद्ध रचना
*पोरा के परब - हरिगीतिका छंद*
भादो अमावस मा इहाँ,पोरा परब आथे सखा।
खुरमी अनरसा बोबरा,सब ठेठरी खाथे सखा।।
भगवान आशुतोष के, नंदी सवारी साथ मा।
करथे सबो पूजा इहाँ, फल फूल थारी हाथ मा।।
सुग्घर परब होथे इही,अउ गर्भधारण धान के।
देथे सधौरी रात मा, देवी बरोबर मान के।।
दीया चुकलिया खेलथे,लइका सबो घर द्वार मा।
बइला सजाके दउड़थे, पोरा इही त्यौहार मा।।
माटी बने गाड़ा सिली,लेके जहुँरिया खोर जी।
जाँता पिसनही खेल मा,करथे सबो मिल सोर जी।।
मिलके सबो संगी इहाँ,पोरा पटकथे गाँव मा।
खो-खो कबड्डी खेलथे,जुरियाय सब बर छाँव मा।।
रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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===पोरा====
भादो आधा बीत गे, धान म आगे पोर।
पोरा परब मनात हे, धान-कटोरा मोर।।
सुख अउ दुख दुन्नो बखत, जुरियाथे परिवार।
हरय इही व्यवहार हा, जिनगी के आधार।।
महतारी भेजे हवय, बिटियन बर लेवाल।
मइके मा दू चार दिन, बेटी रहय निहाल।।
पहुना बन पोरा परब, पहुँचे हावय द्वार।
गाँव शहर मा होत हे, बड़ आदर सत्कार।।
खुशी मनावत गाँव हे, कुलकत हावय खोर।
मइके के मन हे मगन, जय हो पोरा तोर।।
पोरा के चलथे पता, गर्भ धना गय धान।
प्रथा सधौरी के हमर, मन ले पाथे मान।।
अरसा खुरमी ठेठरी, चीला चउँर पिसान।
बनथे हमर किसान घर, चरिहा भर पकवान।।
हे अनमोल किसान बर, नन्दी के श्रमदान।
भोग लगा पूजा करय, भुइयाँ के भगवान।।
मात-पिता शिव-शक्ति ले, अरज करन कर जोर।
सुख सम्मत दय माँग लन, सतफल नरियर फोर।।
रचना- सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छंद- तीजा पोरा
तीजा पोरा के परब, घर घर गाँव मनाँय।
बारा बछर तिहार ये, बहिनी मन सकलाँय।।
बहिनी मन सकलाय, मया धर मइके आथें
किसिम किसिम पकवान, घरो घर लोग बनाथें।
कर सुरता माँ बाप, आँख भर करे निहोरा।
धान कटोरा मोर, मनावत तीजा पोरा।।
झमझम लुगरा ला पहिन, बहिनी निकलय खोर।
आरा पारा घर गली, होवत हावय शोर।।
होवत हावय शोर, मयारू बहिनी आये।
बइठ सहेली चार, अपन सुख दुख बतलाये।
गूँजत हावय गान, बोल शिव भोले बमबम।
भाँची भाँचा खूब, खुशी मा नाचत झमझम।।
आधा भादो के गये, धरय पोटरी धान।
तीजा पोरा ले खुशी, झूमय खेत किसान।।
झूमय खेत किसान, थिरावय बइला नाँगर।
जे दुनिया के पेट, भरे बर पेरय जाँगर।।
व्याकुलता मा डूब, किशन ले पूछत राधा।
बड़ा अभागा दीन, सुखी हे काबर आधा।।
इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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सार छंद-तीजा पोरा
मइके ले अब आही कोनों, करके रखबो जोरा।
सुध हा मोरो लामे हावै, आगे तीजा पोरा।।
ददा देख के गदगद होही, खुश सब बहिनी भाई।
मया दया के होही बरसा, देख फफकही दाई।।
घर अँगना हा गजब दमकही, सखी सहेली मिलहीं।
बच्छर भर मा आज सबो के, सुघर चेहरा खिलहीं।।
हालचाल सब पूछत पूछत, मिलके खुशी मनाबो।
हमर गाँव के बहिनी माई, एक जगा जुरियाबो।।
करू भात ला खाये बर जी, घर घर हम सब जाबो।
नवा बिहनिया शंकर जी ला, आरुग फूल चढ़ाबो।।
घर घर रोटी पीठा बनही, सुग्घर आनी बानी।
बरा बोबरा खुरमी चुरही, बइठ चुरोही नानी।।
पुरखौती के रीत बने हे, तिजहारिन के कहना।
तिजहा लुगरा हमरो मन के, सबले बड़का गहना।।
विजेंद्र वर्मा
नगरगाँव
जिला-रायपुर
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कुकुभ छंद-पोरा जाँता
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।
राँध ठेठरी खुरमी भजिया,करे हवै सबझन जोरा।
भादो मास अमावस के दिन,पोरा के परब ह आवै।
बेटी माई मन हर ये दिन,अपन ददा घर सकलावै।
हरियर धनहा डोली नाचै,खेती खार निंदागे हे।
होगे हवै सजोर धान हा,जिया उमंग समागे हे।
हरियर हरियर दिखत हवै बस,धरती दाई के कोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।1
मोर होय पूजा नइ कहिके,नंदी बइला हर रोवै।
भोला जब वरदान ल देवै,नंदी के पूजा होवै।
तब ले नंदी बइला मनके, पूजा होवै पोरा में।
सजा धजा के भोग चढ़ावै,रोटी पीठा जोरा में।
पूजा पाठ करे मिल सबझन,सुख पाये झोरा झोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।2
कथे इही दिन द्वापर युग में,पोलासुर उधम मचाये।
मनखे तनखे बइला भँइसा,सबझन ला बड़ तड़पाये।
किसन कन्हैया हर तब आके,पोलासुर दानव मारे।
गोकुलवासी खुशी मनावै,जय जय सब नाम पुकारे।
पूजा ले पोरा बइला के,भर जावय उना कटोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।3
दूध भराये धान म ये दिन,खेत म नइ कोनो जावै।
परब किसानी के पोरा ये,सबके मनला बड़ भावै।
बइला मनके दँउड़ करावै,सजा धजा के बड़ भारी।
पोरा परब तिहार मनावय,नाचयँ गावयँ नर नारी।
खेले खेल कबड्डी खोखो,नारी मन भीर कसोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।4
बाबू मन बइला ले सीखे,महिनत अउ काम किसानी
नोनी मन पोरा जाँता ले,होवय हाँड़ी के रानी।
पूजा पाठ करे बइला के,राखै पोरा में रोटी।
भरे अन्न धन सबके घर में,नइ होवै किस्मत खोटी।
परिया में मिल पोरा पटके,अउ पीटे बड़ ढिंढोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।5
सुख समृद्धि धन धान्य के,मिल सबे मनौती माँगे।
दुःख द्वेष ला दफनावै अउ,मया मीत ला उँच टाँगे।
धरती दाई संग जुड़े के,पोरा देवय संदेशा।
महिनत के फल खच्चित मिलथे,कभू रहै नइ अंदेशा।
लइका लोग सियान सबे झन,पोरा के करै अगोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।6
छंदकार-जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
पता-बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)
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पोरा(ताटंक छंद)
बने हवै माटी के बइला,माटी के पोरा जाँता।
जुड़े हवै माटी के सँग मा,सब मनखे मनके नाँता।
बने ठेठरी खुरमी भजिया,बरा फरा अउ सोंहारी।
नदिया बइला पोरा पूजै, सजा आरती के थारी।
दूध धान मा भरे इही दिन,कोई ना जावै डोली।
पूजा पाठ करै मिल मनखे,महकै घर अँगना खोली।
कथे इही दिन द्वापर युग मा,कान्हा पोलासुर मारे।
धूम मचे पोला के तब ले,मनमोहन सबला तारे।
भादो मास अमावस पोरा,गाँव शहर मिलके मानै।
हूम धूप के धुँवा उड़ावै,बेटी माई ला लानै।
चंदन हरदी तेल मिलाके,घर भर मा हाँथा देवै।
धरती दाई अउ गोधन के,आरो सब मिलके लेवै।
पोरा पटके परिया मा सब,खो खो अउ खुडुवा खेलै।
संगी साथी सबो जुरै अउ,दया मया मिलके मेलै।
बइला दौड़ घलो बड़ होवै,गाँव शहर मेला लागै।
पोरा रोटी सबघर पहुँचै,भाग किसानी के जागै।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
बहुत सुग्घर पोरा विशेष संकलन
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