बसंत वर्णन ( दोहा छंद )
मउरे आमा बाग मा, हावे फुले पलास।
ऋतु बसंत हा हे घलो, सब ऋतुओं में खास।।1।।
आवत तितली देख के, फूल घलो हर्षाय।
गा के भौंरा गीत जी, बगिया ला गुंजाय।।2।।
कूके कोयल रोज के, बइठे आमा डार।
हुँआ हुँआ चिल्लात हे, नरवा तीर सियार।।3।।
फुले हवे जी खेत मा, पिंअर सरसों फूल।
छा के बदरा कर गइस, मौसम ला प्रतिकूल।।4।।
फुले हवे जी कुमुदिनी, सुघर दिखत हे ताल।
भ्रम मा पड़ बगुला घलो, चले हंस के चाल।।5।।
तोता मैना ला कहे, चल हम करबो प्यार।
तरुणी उनला देख के, हवे करत श्रृंगार।।6।।
आये हवे बसंत हा, आज सबो के द्वार।
भर भर झोला हे धरे, बांटय मया दुलार।।7।।
बड़ सुघ्घर मौसम हवे, गांव लगे मनुहार।
खुशी खुशी सब जीव मन, पारत हवे गोहार।।8।।
चांटी हाथी सब हवे, खुश अब्बड़ के जान।
बैरागी बाँटत चले, जगह जगह जी ज्ञान।।9।।
"दीप" कहत हे आप ला, कतका करौं बखान।
ये मौसम ले कोन हे, अब तक के अनजान।।10।।
कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी
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