गुरुपूर्णिमा विशेष छंदबद्ध कविता
[7/21, 7:15 AM] सूर्यकांत गुप्ता सर:
पा के गुरुवर के कृपा, लिख लेथौं कुछ छंद।
आँव नहीं विद्वान जी, बुद्धि दुआरी बंद।।
बुद्धि दुआरी बंद, सूत्र नइ आवय सुरता।
लिखथौं लय आधार, सीख अतके के पुरता।।
नंगत मिहनत 'कांत', करे कर गुरुकुल जाके।
धन्य छंद परिवार, निगम गुरुवर ला पा के।।
सूर्यकान्त गुप्ता, जुनवानी भिलाई(छ.ग.)
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[7/21, 7:43 AM] आशा देशमुख: गुरु चालीसा
दोहा
करत हवँव गुरु वंदना, चरणन माथ नँवाय ।।
भाव भक्ति मन मा धरे , श्रद्धा फूल चढ़ाय।।
सदा रहय गुरु के कृपा,अतकी विनती मोर।
अंतस रहय अँजोर अउ,भागे अवगुण चोर।।
चौपाई
गुरु ब्रह्मा अउ विष्णु महेशा। गुरु हे पहिली पूर्ण अशेषा।।
बरन बरन हे गुरु के वंदन।आखर आखर बनथे चंदन।।
गुरु ला जानव सुरुज समाना। गुरु आवय जी ज्ञान खजाना।।
गुरु जइसे नइहे उपकारी।गुरु के महिमा सब ले भारी।।
गुरु सउँहत भगवान कहाये। गुण अवगुण के भेद बताये।।
सात समुंदर बनही स्याही।गुरु गुण बर कमती पड़ जाही।।
गुरु के बल ला ईश्वर जाने। तीन लोक महिमा पहिचाने।।
गुरुवर सुरुज तमस हर लेथे। उजियारा जग मा भर देथे।।
जब जब छायअमावस कारी। गुरु पूनम लावय उजियारी।।
गुरु पूनम के अबड़ बधाई।माथ नँवा लव बहिनी भाई।।
शिष्य विवेकानंद कहाये।परमहंस के मान बढ़ाये।।
द्रोण शिष्य हें पांडव कौरव ।अर्जुन बनगे गुरु के गौरव।।
त्याग तपस्या मिहनत पूजा।गुरु ले बढ़के नइहे दूजा।।
वेद ग्रंथ हे गुरु के बानी।पंडित मुल्ला ग्रंथी ज्ञानी।।
ज्ञान खजाना जेन लुटाए।जतका बाँटय बाढ़त जाए।।
गुरु के वचन परम हितकारी।मिट जाथे मन के बीमारी।।
जेखर बल मा हे इंद्रासन।बलि प्रहलाद करे हें शासन।।
ये जग गुरु बिन ज्ञान न पाये।गुरु गाथा हर युग हे गाये।।
सत्य पुरुष गुरु घासी बाबा। गुरु हे काशी गुरु हे काबा।।
देवै ताल कबीरा साखी।
उड़ जावय मन भ्रम के पाखी।।
गुरु के जेन कृपा ला पाथे। पथरा तक पारस बन जाथे।।
माटी हा बन जावय गगरी। बूँद घलो हा लहुटय सगरी।।
महतारी पहली गुरु होथे । लइका ला संस्कार सिखोथे।।
देवय जे अँचरा के छइयाँ।दूसर हावय धरती मइयाँ।।
जाति धरम से ऊपर हावय।डूबत ला गुरु पार लगावय।।
आदि अनादिक अगम अनन्ता।जाप करयँ ऋषि मुनि अउ संता।।
गुरु के महिमा कतिक बखानौं। ज्योति रूप के काया जानौं।।
बम्हरी तक बन जाथे चंदन। घेरी बेरी पउँरी वंदन।।
हाड़ माँस माटी के लोंदी।बानी पाके बोले कोंदी।।
पथरा के बदले हे सूरत। गढ़थे छिनी हथौड़ी मूरत।।
भुइयाँ पानी पवन अकाशा।कण कण में विज्ञान प्रकाशा।।
समय घलो बड़ देथे शिक्षा।रतन मुकुट तक माँगे भिक्षा।।
अमर हवैं रैदास कबीरा। निर्गुण सगुण बसावय मीरा।।
सातों सुर मन कंठ बिराजे। तानसेन के सुर धुन बाजे।।
कण कण मा गुरु तत्व समाये।सबो जिनिस कुछु बात सिखाये।।
गोठ करत हे सूपा चन्नी।कचरा ला छाने हे छन्नी।।
गुरु के दर हा सच्चा दर हे। मुड़ी कटाये नाम अमर हे।।
एकलव्य के दान अँगूठा। अइसन हे गुरु भक्ति अनूठा।।
श्रद्धा से गुरु पूजा करलव। ज्ञान बुद्धि से झोली भरलव।
जे निश्छल गुरु शरण म जावै।।अष्ट सिद्धि नवनिधि जस पावै।।
गुरु चालीसा जे पढ़े,ओखर जागे भाग।
दुख दारिद अज्ञानता ,ले लेथे बैराग।।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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[7/
छंद के छ परिवार के जम्मो गुरु अउ साधक मन ला गुरु पुर्णिमा के शुभ अवसर मा हार्दिक शुभकामना-
गुरु-
गुरू अँधियार मिटाथय देथय ज्ञान करे मन मा उजियार।
गुरू बल बुद्धि विवेक भरे नहकाथय ये भवसागर पार।
गुरू गुण गाथँय देव घलोक गुरू घर सींखँय जीवन सार।
गुरू बिधुना जग पालनहार नवावँव माँथ करे उपकार।।
सवैया :मुक्ताहरा
बलराम चंद्राकर भिलाई
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[7/21, 8:35 AM] अमृतदास साहू 12: *अमृत के दोहे*
अरझे माया मोह मा,जिनगी के सब तार।
गुरू तोर आशीष बिन,फँसे नाव मझधार।१।
जनम मरण के पार ला,कोनो हा नइ पाय।
जिनगी के उद्धार बर, रद्दा गुरू बताय।२।
प्रथम गुरु माँ-बाप हे,दूसर शिक्षक होय।
शिक्षा अउ संस्कार के,सदा बीज ये बोय।३।
मनखे जनम अमोल हे,बिरथा ये झन जाय।
गुरू तोर उपकार ले, मनुज मुक्ति ला पाय।४।
गुरू समर्पण भाव ले ,देवय हमला ज्ञान।
ऊँखर जम्मो सीख हा,लागय जस वरदान।५।
गुरू ज्ञान परताप ले,अइसे होय अँजोर ।
अँधियारी ला चीर के,जइसे निकलय भोर।६।
अहंकार ला त्याग के,कर सबके उपकार।
बात गुरु के मान ले,हो जाही उद्धार।७।
रचनाकार
अमृत दास साहू
ग्राम+ पोस्ट - कलकसा, डोंगरगढ़
जिला - राजनांदगांव (छ.ग.)
मो.नं-9399725588
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*दोहा-गुरु महीमा*
जने हवय दाई ददा, गुरुवर देहे ज्ञान।
नमन करँव कर जोर के, गुरुजन आप महान।।
हर आखर के ज्ञान गुरु, दोहा घलो समास।
अलंकार रस छंद मा, गुरुवर सब मा वास।।
कतका करँव बखान मँय, गुरु महिमन के खान।
हाथ रखय जो शीश मा, बाढ़य अड़बड़ ज्ञान।।
सबले उप्पर मान दय, गुरु ला ये संसार।
जेखर उज्जर ज्ञान ले, मिटय सबो अँधियार।।
गुरुवर सरलग ज्ञान के, बिजहा ला जब बोय।
फरय फुलय चतुरा बनय, अढ़हा ज्ञानी होय।।
✍️✍️नागेश कश्यप.
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[7/21, 9:18 AM] पात्रे जी:
नवाँवत माथ हवौं गुरु जी पग ज्ञान सुधा करहू बरसात।
बने पतवार दिखा गुरु राह करौं शुभ काम सदा शुरुआत।।
बिना गुरु के जिनगी बिरथा सुख छाँव दिनोंदिन हे दुरिहात।
गजानन मातु पिता गुरु ले बड़का भगवान नहीं सुन बात।।
::::::::::::::::::::मुक्ताहरा सवैया::::::::::::::::
✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 21/07/2024
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[7/21, 9:21 AM] बोधन जी: मत्तगयंद सवैया - गुरुदेव
सादर पाँव पखारत हावँव डारत नैनन के निज पानी।
हे गुरुदेव दया बरसावव देवव मीठ मया शुभ बानी।।
नेक सदा इंसान बनौं मँय छोड़ प्रपंच सबो अभिमानी।
ज्ञान पियास रहै मन मा गुरु सीखँव छंद बनौं नर ज्ञानी।।
रचना:-
बोधन राम निषादराज
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[7/21, 9:29 AM] Sumitra कामड़िया 15:
गुरुवर के वंदन करव, हे गुरु गुन के खान।
अग्यानी ला ज्ञान दे, गुरुवर हवे महान।।
मिलथे गुरुवर भाग ले, खोजत फिरथे लोग।
सँउहत मिलगे गुरु दरस, बने रहिस सँजोग।।
भीतर मधुरस मीठ हे, ऊपर हवय कठोर।
कोवँर मन भीतर रखय, अउ देवय बड़ जोर।।
देवय दीक्षा ज्ञान के, गरब गुमान ल छोड़।
रद्दा सहीं दिखाय के, टूटे मन दे जोड़।।
ज्ञान उजाला बाँट के, हृदय रखय पट खोल।
भीतर उपजे आस ला, लेवत रहय टटोल।।
कण-कण गुरु के बास हे, गुरुवर हे भगवान।
पीरा हर हीरा करय, गुरुवर हे धनवान।।
मात पिता हे गुरु हमर, येला नवाँव शीश।
इँकर चरण मा हे सदा, अबड़ अकन आशीष।।
सुमित्रा कामड़िया शिशिर "
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[7/21, 9:37 AM] +91 99265 58239: "" कुन्डलियॉं""
आओ सब वंदन करें , लेकर गुरु का नाम ।
गुरु जागृत ईश्वर यही , कर लो सभी प्रणाम ।।
कर लो सभी प्रणाम , चरण में सिर को रखकर ।
है यह पवित्र धाम , याद सब करना जपकर ।।
गुरु है गुण की खान , भाव से महिमा गाओ ।
सभी करें सम्मान, जगत में मिलकर आओ ।
संजय देवांगन सिमगा रायपुर छत्तीसगढ़
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[7/21, 10:13 AM] केंवरायदु2: चौपइ छंद
15-15
बिन गुरु मिलै नहीं जी ज्ञान ।
मन मा तँय हा अतका मान ।।
ब्रम्हा विष्णु उही ला जान।
उही हरय हमरो भगवान ।।
गुरु अउ गोविन्द सँघरा आय ।
काखर मँयहा लागवँ पाँय ।।
गुरु हा हरि ले आज मिलाय।
गुरु चरनन मा शीश नवाय ।।
चरन धरें हँव जब ले आय ।
दोहा चौपइ तब ले पाय ।।
गुरु के महिमा काय बताँव ।
संझा बिहना लागँव पाँव ।।
गुरुवर ईमोरे छंद बताय ।
लिखथन हम हा खुशी मनाय।।
छन्न पकैया सरसी जान ।
नइ तो तँय रहिबे अज्ञान ।।
किसम किसम के छंद विधान ।
सिखबो भइया धरके ध्यान ।
गुरु चरनन मा मिलथे झान
आके अडहा बनय सुजान ।।
ज्ञान मिले हे गीत सुनाँव ।
महिमा पार नहीं मँय पाँव ।।
सीखत रहिबो छंद विधान ।
मिलते रहिही गुरु ले ग्यान ।।
गुरुवर के रखबो जी मान ।
तब होही हमरो कल्यान।।
केवरा यदु ॰मीरा "
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[7/21, 10:13 AM] अनुज छत्तीसगढ़ी 14: *अरविंद सवैया छंद*
*विषय-गुरुजी*
कतको पढ़लौ गुनलौ मन के, नइ पावव गा गुरु के बिन ज्ञान।
बिन स्वारथ के जिनगी गढ़थें, तब आज हवे गुरुजी भगवान।
बिन भेद करे गुरु देत रथें, सब ज्ञान बिशारद एक समान।
कतको अढ़हा अउ अप्पढ़ ला, गुरु देत बना गुनि संत सुजान।
*अनुज छत्तीसगढ़िया*
*पाली जिला कोरबा*
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त्रिभंगी छंद
गुरु पइयाॅ लागव,माथ नवावॅव,
हाथ जोड़ परनाम करू।
सदा नाम लेवव,मन मा जपवव,
रोजे गुरु के, ध्यान धरू।
छंद ज्ञान पावव,महिमा गावव,
मोरे बर गुरु धाम शुरू।
गुरु नाम सुमरके, आस लगाके
करथवॅ मय हा ,काम शुरू।।
ॲधियार मिटा के,सुरुज बनके,मन मा गुरु तॅय,ज्ञान भरे।
गुरु हाथे धरके,भेद छोड़ के,
गुरु वर शिक्षा,दान करे।।
गुरु देव छाँव मा,कमल पाँव मा ज्ञान भक्ति रसपान मिले।
गुरु दीक्षा पाके,मन हा चमके,ज्ञान ज्योति बन,फूल खिले।।
लिलेश्वर देवांगन
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[7/21, 1:32 PM] अश्वनी कोसरे 9: चौपाई छंद- अश्वनी कोसरे
गुरु पूर्णिमा
गुरु महिमा जस अमृत धारा।पोहय तनमन ज्ञान सहारा।
मन के दुर्गुण झार हँटावय। जिनगी जोनी सफल बनावय।।1
मातु - पिता अउ गुरु के बानी।देवत रहिथें पीयुष पानी।
वंदन हे नित गुरु चरनन मा। हँसा दौड़ लगावय रन मा ।।2
गुरुगुढ़ ज्ञानी ध्यान लगावँय। गीता के सम ज्ञान लखावँय।
धर्म ज्ञान ले हे मर्यादा। वइसे ही गुरु करथें वादा।।3
निर्मल रहिथे गुरु के बानी। सदगुरु के सम चेला ज्ञानी।
शरनागत हँव ध्यान लगावँव।गुरु पँउरी मा शीस झुकावँव।।4
गा ले मनुवा गुरु के महिमा।दूर करैं उन घपटे अणिमा।
जिनिगी भर तँय नाम सुमरले। जाके आसन दर्शन करले ।।5
अश्वनी कोसरे
रहँगिया कवर्धा कबीरधाम
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[7/21, 4:05 PM] राजेश निषाद: ।।चौपई छंद।।
गुरु के कहना तैंहर मान, गुरु हा देथे सबला ज्ञान।
हवय दया के सागर जान,जग के हावय वो भगवान।।
अँधरा मन के आँखी आय,भटके ला वो राह बताय।
जउन शरण मा गुरु के जाय,वोहर कभू न धोखा खाय।।
गुरु सेवा मा लगा धियान, तब तो पाबे चोखा ज्ञान।
गुरु के महिमा भारी जान,देही तोला वो वरदान।।
गुरु के सेवा मा सब जाय, नइ तो छोटे बड़े कहाय।
सबला चोखा रहे बनाय,खोटा सिक्का तक चल जाय।।
मिले सहारा गुरु के तीर,रखले मनवा तैंहर धीर।
बदल जही तोरो तकदीर,हरथे गुरु हा सबके पीर।।
रचनाकार:- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद रायपुर
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[7/21, 5:25 PM] मुकेश 16: मदिरा सवैया- गुरु महिमा
पाँव पखारँव तोर सदा मन के तँय मोर विकार हरे ।
जोत जलावँव ध्यान लगा गुरुजी तुरते भव पार करे ।।
माथ नवा गुरु के पद मा सत अंतस भीतर ज्ञान भरे ।
देव बरोबर हे गुरु हा भजले मनवा अँधियार टरे ।।
मुकेश उइके "मयारू"
ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)
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[7/21, 7:11 PM] पात्रे जी: चौपाई छंद- *गुरु चालीसा*
दोहा-
करत हवँव गुरु वंदना, हो करके मतिमंद।
गजानंद गुरु भावना, लिख चौपाई छंद।।
चौपाई-
गुरु ही दीपक ज्ञान उजाला। गुरु ही मंदिर देव शिवाला।।
गुरु ही भक्ति भाव अउ पूजा। गुरु ले कोई बड़े न दूजा।।
तीन लोक गाये गुरु महिमा। गुरु ले ही हे शिक्षा गरिमा।।
गुरु ही इज्जत मान बढ़ाथे। सदा सफलता शिखर चढ़ाथे।।
चाक कुम्हार समान गढ़े मन। गुरु कहिलाथे पहिया जीवन।।
मूढ़ गूढ़ उद्धार करे हे। भवसागर ले पार करे हे।।
छाँव कृपा गुरु जे हा पाये। जिनगी वो हा सफल बनाये।।
धर्म कर्म गुरु मर्म बताथे। सदा सत्य के पाठ पढ़ाथे।।
गुरु ही असली देव सही हे। ब्रम्हा विष्णु महेश इही हे।।
रूप देव के कोन सरेखा, गुरु ही कर्म बनाथे लेखा।।
गुरु गुण सूर्य समान प्रखर हे। बसा रखव गुरु नाम अजर हे।।
गुरु जग मा पहचान दिलाथे। इही धरा मा स्वर्ग दिखाथे।।
गुरु के वचन न जाये खाली। जीवन बगिया के गुरु माली।।
फूल समान सुगन्धित करथे। ज्ञान सुधा रस मन मा भरथे।।
गुरु कबीर रैदास हुये हे। सच्चाई विश्वास दिये हे।।
गुरु नानक सत पंथ चलाये। सतगुरु घासीदास कहाये।।
गुरु ही मथुरा गुरु ही काशी। गुरु के ज्ञान हवै अविनाशी।।
रखव आत्म ला गुरु के दासी। बंधन छूटे लख चौरासी।।
गुरु ही प्रेम दया के सागर। गुरु ही ज्ञान भरे गुण गागर।।
गुरु ही पावन गंगा धारा। गुरु ही सब ला भव से तारा।।
गुरु वाणी रसपान करो सब। जीवन मा सुख शांति भरो सब।।
चरण कमल रज कर लौ सेवा। कहिथे ऋषि मुनि गुरु हे देवा।।
गुरु ही सत्य सनातन शोधक। अहंकार अज्ञान निरोधक।।
सत्य पुंज गुरु सूरज जइसे। गुरु उपकार चुकाबो कइसे।।
गुरु के कृपा स्वर्ग के सीढ़ी। तर जाथे पीढ़ी दर पीढ़ी।।
गुरु गुण गाथे कीट पतंगा। गुरुवर करथे तन मन चंगा।।
माता-पिता प्रथम गुरु मानौ। आदर गुरु के करना जानौ।।
गुरु ही सभ्य समाज बनाथे। नेक भलाई राह सुझाथे।।
कीचड़ मा गुरु फूल खिलाथे। सुखमय जिनगी सेज सजाथे।।
मर्यादा के सीख सिखाथे। गुरु अटूट रहि वचन निभाथे।।
गुरु ही जग के भाग्य विधाता। गुरु से कोई बड़े न दाता।।
गुरु शिक्षा संस्कार दिये हे। मानवता कल्याण किये हे।।
गुरु समाज के असली दर्पण। गुरु सेवा मा जीवन अर्पण।।
शिष्य सदा रहि गुरु बलिहारी। महकाये जीवन फुलवारी।।
वेद पुराण कहे गुरु ज्ञानी। रखव सुरक्षित कर्म निशानी।।
कर्म गढ़व गुरु ले पा शिक्षा। बदला मा देहू गुरु दीक्षा।।
सफल मनोरथ पूर्ण करे गुरु। जिनगी मा नित नेह भरे गुरु।।
जीव चराचर सुन लौ प्राणी। झइन भूलहू जी गुरु वाणी।।
लोहा ला करथे गुरु कुंदन, भरे विचार सदा ही कंचन।।
पेड़ बबूल बनाये चंदन। करे गजानन गुरु पग वंदन।।
दोहा-
गुरुवर ज्ञान अथाह हे, कइसे करँव बखान।
शब्द स्याह भी कम पड़े, सुन लौ संत सुजान।।
---- *स्वरचित मौलिक अप्रकाशित*------
---✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 21/07/2024
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[7/21, 8:38 PM] +91 84358 44508:
ब्रह्मा विष्णु- महेश हें, गुरुवर जगत महान।
महतारी अउ बाप के,गनपति करथें ध्यान।।
गुरुवर सत-सत वंदना,करथवँ बारंबार।
सनमति पावन ज्ञान के,कृपा मिलिस साकार
गुरुवर के आशीष पा,बंदन- चरन पखार।
मिट जाथे मन के भरम,मिल जाथे उजियार।।
भेदभाव ले दूर हे, गुरुवर अरुण बिहान।
छंद ज्ञान दाता हमर, करत हवँय उत्थान।।
*अमितारवि दुबे©®*
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[7/21, 9:04 PM] अशोक धीवर जल: दोहा छंद - गुरु सब ले महान
बिना गुरू संसार मा, कभू मिलय नइ ज्ञान।
मन के शंका छोड़ के, ब्रम्ह गुरू ला मान।।
शिक्षक गुरु मा भेद हे, अंतर समझ बिचार।
शिक्षा देवय एक हा, एक करे भवपार।।
कहां चले भगवान बर, गुरु ला अंतस जान।
शरणागत होके बने, देव उही ला मान।।
सुमिरन गुरु के कर बने, दूसर ला मत मान।
मन मा शंका झन करव, उही हरे भगवान।।
गुरू शरण मा जाय के, भक्ति करव सब पोठ।
ज्ञान मुक्ति देथे घलौ, सही बताथे गोठ।।
गुरू ज्ञान दाता हरे, सब ला राह दिखाय।
जिनगी मा ओकर बिना, कोनो पार न पाय।।
अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा- नेवरा)
जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)
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