शक्ति छन्द- गड़ी चल
गड़ी चल ढुलाबों दुनो गड़गड़ी।
मया के सबे दिन झरे बस झड़ी।।
झड़क भात बासी अदौरी बड़ी।
किंजरबों गली मा हँसत हर घड़ी।
निकलबों ठिहा ले बहाना बना।
बबा डोकरी दाइ माँ ला मना।
सबें यार जुरबोंन बर रुख कना।
नँगत खेलबों धूल माटी सना।
कका देही गारी दिखाही छड़ी।
तभो नइ टुटे मीत मन के लड़ी।
गड़ी चल ढुलाबों दुनो गड़गड़ी।
मया के सबे दिन झरे बस झड़ी।।
उड़ाबों हवा मा बना फिलफिली।
चना भूंज खाबोंन खाबों तिली।।
नहाबों नदी मा उड़ाबों मजा।
जगाबों सुते ला नँगाड़ा बजा।।
छिंदी चार आमा कमल के जड़ी।
झराबोंन अमली ग जिद मा अड़ी।।
गड़ी चल ढुलाबों दुनो गड़गड़ी।
मया के सबे दिन झरे बस झड़ी।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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