हिन्दू नव वर्ष अउ चइत नवरात्रि के हार्दिक बधाई।
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प्रभु श्रीराम राज तिलक
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दोहा--
कनक भवन में आज तो,पहुँचे हे श्री राम।
हो प्रसन्न लहुटिन प्रजा,अवध लगे सुरधाम।।
सखा सबो रघुनाथ के, गुरु ला माथ नवायँ।
आवभगत ला देख के,वोमन खुशी मनायँ।।
गुरु वशिष्ठ बोलिस वचन,सुन हे सचिव सुमंत ।
राजतिलक बर राम के, कर सिरजाम तुरंत।।
चौपाई-
द्विजदल ला गुरुवर समझावै।राजतिलक के नियम बतावै।।
कहिस नहावैं चारों भाई। आवैं गहना अंग सजाई।।
सीता ला सासुन नहवावैं।चंदन उबटन अंग लगावैं।।
दिव्य वस्त्र सुग्घर पहिरावैं।
गहना सब्बो अंग सजावैं।।
बहन उर्मिला खोपा पारिस।श्रुतकीरति हा फुँदरा डारिस।।
हाथ मेंहदी पाँव महावर। बहन माण्डवी धरे रचे बर।।
लक्ष्मी कस शोभा हे भारी। मुस्कावत हे जनक दुलारी।।
सजे धजे हें चारों भाई।बरनै कोन उँकर सुँदराई।।
दोहा-
डेरी कोती राम के,सीता ला बइठार। आज सिंहासन के सुघर,होवत हे सिंगार।।
ब्रह्मा शिव जी देवगण, सिद्ध सबो मुनिराज।
चढ़े विमान अगास में, देखत हावयँ आज।।
वेद मंत्र द्विज हें पढ़त,मंगल शंख बजायँ।
पिंवरी चाउँर छींच के,आसिस ला बरसायँ।।
गुरु वशिष्ठ पहिली तिलक, सारिस रघुवर माथ।
राम सिया ला दे असिस,रखिस मूँड मा हाथ।।
चौपाई-
दसो दिशा होगे जयकारा। रघुवंशी हें जग ले न्यारा।।
करिन आरती सब महतारी। बड़भागी पुर के नर नारी।।
दान सबो ला रघुपति देइस। माथ नवाके आसिस लेइस।।
हें प्रसन्न बड़ सुर समुदाई। जय जय रघुवर सीता माई।।
कस के बाजा देव बजावैं।बरसा कस उन फूल गिरावैं।।
भरत शत्रुहन चँवर डुलावैं।छत्र उठा लछिमन मुसकावै।।
सखा विभीषण अउ हनुमाना। जामवंत अंगद बलवाना।।
हे कपिपति सुग्रीव बिराजे। मानुष जइसे चोला साजे।।
दोहा--
श्रीपति के बैकुंठ कस, हवै राम दरबार। तीन लोक के नाथ हा, ले हावय अवतार।।
करिन वंदना वेद मन, आके धर नर रूप।
जय जय जय बैकुंठपति, जय कौशल के भूप।।
आइस तब कैलाशपति, विनय करिस करजोर।
दर्शन पा रघुनाथ के, होगे भाव विभोर।।
छंद (तोटक)---
रघुवीर कृपालु सुरेश्वर हे।
अखिलेश्वर हे धरनीधर हे।।
अवतार लिए उपकार करे।
अउ मार निसाचर भार हरे।।
सुर कारज मा दुख नाथ सहे।
तपसी बन के बन जाय रहे।।
प्रभु देखत नैन जु़ड़ावत हे।
तिहुँ लोक खुशी बड़ छावत हे।। भवसागर के पतवार प्रभु।
सब दीनन के रखवार प्रभु।।
हिरदे बसथौ सब भक्तन के।
हरि नाथ अनाथन के बनके।।
वर भक्ति ल मैं प्रभु माँगत हँव।
रघुवीर सदा शरणागत हँव।।
जग मा जस श्रीहरि के बगरै।
भज राम रमापति जीव तरै।।
दोहा--
विनय करिस गदगद वचन, खुश हे भोलेनाथ।
लहुटिस वो कैलाश बर, चरन नँवाके माथ।।
राजतिलक के ये कथा,पढ़ही सुनही जेन।
कृपा जोर रघुनाथ के,भव ले तरही तेन।।
💐सियावर रामचंद्र की जय💐
(मोर छत्तीसगढ़़ी भाषा मा छंदबद्ध महाकाव्य "श्री सीताराम चरित ' के 9वाँ सर्ग राजतिलक ले उद्धृत)
🙏🏻
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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