खैरझिटिया के दोहे
सूरज कस उजियार कर,कहूँ हवस तैं एक।
चंदा बन चमकत रहा,तारा बीच अनेक।1।
पसरा देख गरीब के,मोल भाव के ठौर।
कीमत बड़े दुकान के,कोन करत हे गौर।2।
मरहम धरके मार झन,छल मत बनके दास।
आसा बाँधे जौन हा,तोड़ न ओखर आस।3।
कतको अधमी लेड़पा, होगे देख सुजान।
किरपा ले गुरुदेव के,बाढ़ै जस अउ शान।4।
भाग बना नित भाग के,आलस निंदिया छोड़।
सपना होथे सच कहाँ,नता करम ले जोड़।5।
फूल आज महकय नही,भले लुभावय नैन।
देखावा हा एक दिन,छीन लिही सुख चैन।6।
समरथ हा बिन साधना,हो जाथे बेकार।
माड़े माड़े जंग मा,सर जाथे तलवार।7।
कुहके कारी कोयली,सबके जिया लुभाय।
सादा रँग के कोकड़ा,बिन बिन मछरी खाय।8।
पूस म पहरा रात के,जी के हे जंजाल।
चना गहूँ बाँचे कहाँ,फिरे चोर चंडाल।9।
अन्तस् के जब गोठ ला,देय कलम आवाज।
वो रचना होवय अमर,करे सबे जुग राज।10।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
सूरज कस उजियार कर,कहूँ हवस तैं एक।
चंदा बन चमकत रहा,तारा बीच अनेक।1।
पसरा देख गरीब के,मोल भाव के ठौर।
कीमत बड़े दुकान के,कोन करत हे गौर।2।
मरहम धरके मार झन,छल मत बनके दास।
आसा बाँधे जौन हा,तोड़ न ओखर आस।3।
कतको अधमी लेड़पा, होगे देख सुजान।
किरपा ले गुरुदेव के,बाढ़ै जस अउ शान।4।
भाग बना नित भाग के,आलस निंदिया छोड़।
सपना होथे सच कहाँ,नता करम ले जोड़।5।
फूल आज महकय नही,भले लुभावय नैन।
देखावा हा एक दिन,छीन लिही सुख चैन।6।
समरथ हा बिन साधना,हो जाथे बेकार।
माड़े माड़े जंग मा,सर जाथे तलवार।7।
कुहके कारी कोयली,सबके जिया लुभाय।
सादा रँग के कोकड़ा,बिन बिन मछरी खाय।8।
पूस म पहरा रात के,जी के हे जंजाल।
चना गहूँ बाँचे कहाँ,फिरे चोर चंडाल।9।
अन्तस् के जब गोठ ला,देय कलम आवाज।
वो रचना होवय अमर,करे सबे जुग राज।10।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
लाजवाब दोहावली खैरझिटिया जी।हार्दिक बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद भैया
Deleteसादर नमन गुरुदेव, सधन्यवाद
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दोहावली हे भाई
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब कवि महोदय
ReplyDeleteबेहतरीन दोहावली।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबड़ सुग्घर दोहा सृजन सर जी।
ReplyDeleteलेड़पा या लेड़गा ???
दूनो चलन में हे भैया
Deleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteअनंत बधाई सर जी,सुंदर दोहावली👌👍💐
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहावली सर
ReplyDeleteसही बात कहे हव भइया जी।
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