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Saturday, November 24, 2018

दोहा छन्द - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खैरझिटिया के दोहे

सूरज कस उजियार कर,कहूँ हवस तैं एक।
चंदा बन चमकत रहा,तारा बीच अनेक।1।

पसरा  देख  गरीब के,मोल  भाव  के  ठौर।
कीमत बड़े दुकान के,कोन करत हे गौर।2।

मरहम धरके मार झन,छल मत बनके दास।
आसा  बाँधे जौन हा,तोड़ न ओखर आस।3।

कतको  अधमी  लेड़पा, होगे  देख  सुजान।
किरपा ले गुरुदेव के,बाढ़ै जस अउ शान।4।

भाग बना नित भाग के,आलस निंदिया छोड़।
सपना  होथे सच कहाँ,नता करम ले जोड़।5।

फूल  आज  महकय  नही,भले लुभावय नैन।
देखावा हा एक दिन,छीन लिही सुख चैन।6।

समरथ हा बिन साधना,हो जाथे बेकार।
माड़े माड़े जंग मा,सर जाथे तलवार।7।

कुहके  कारी  कोयली,सबके  जिया  लुभाय।
सादा रँग के कोकड़ा,बिन बिन मछरी खाय।8।

पूस म पहरा रात के,जी के हे जंजाल।
चना गहूँ बाँचे कहाँ,फिरे चोर चंडाल।9।

अन्तस्  के  जब गोठ ला,देय कलम आवाज।
वो रचना होवय अमर,करे सबे जुग राज।10।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

12 comments:

  1. लाजवाब दोहावली खैरझिटिया जी।हार्दिक बधाई

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  2. सादर नमन गुरुदेव, सधन्यवाद

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  3. बहुत बढ़िया दोहावली हे भाई

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  4. बहुत ही लाजवाब कवि महोदय

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  5. बेहतरीन दोहावली।हार्दिक बधाई।

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  6. बड़ सुग्घर दोहा सृजन सर जी।

    लेड़पा या लेड़गा ???

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  7. बहुत ही सुन्दर

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  8. अनंत बधाई सर जी,सुंदर दोहावली👌👍💐

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  9. बहुत सुंदर दोहावली सर

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  10. सही बात कहे हव भइया जी।

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