अमृत ध्वनि छंद- हीरा गुरुजी समय
*माहंगी सस्ती*
भाजी पाला होत हे, रोज माहँगी आज।
जब ले छोड़े हन सबे, बारी बखरी काज।।
बारी बखरी, काज छोड़ अब, बजार करथन।
पइसा जादा, खरचा करके, झोरा भरथन।।
बखरी कमाय अपन हाथ जे होही राजी।
उही खायबर, पाही भाई , सस्ती भाजी।।
आलू गोभी माहँगी, कइसे बनही साग।
लूटत हवे बजार हा, बेटा तैंहा जाग।।
बेटा तैंहा , जाग अपन अउ, भाग जगाले।
ठलहा बइठे,छोड़ काज मा, लगन लगाले।।
अपन बाँह के, शक्ति लगा दे, मोर दयालू।
बखरी मा उपजाले भाजी गोभी आलू।।
*मोबाइल*
मोबाइल मा हे चलत, पढ़ई तुँहर दुवार ।
एखर ले अब नइ परे, ददा उपर गा भार।
ददा उपर गा,भार पढ़ाए, के नइ आवे।
खुद लइका हा, होमवर्क सब, करते जावे।
पढ़े लिखे बर निकले नावा हे इस्टाइल।
लइका बर वरदान बने हे अब मोबाइल।
*नवा जमाना*
चिरहा फटहा बोचका, नवा जमाना पैंट।
बिना बाँह के पोलखा, महर महर हे सैंट।
महर महर हे, सैंट चुपर के, सेखी मारे।
बइठ फटफटी, घूमत हावे, देह उघारे।
नोहे गरीब नइ चढ़े उपर हे शनि गिरहा।
पइसा वाला मन पहिरे अब कुरता चिरहा।
हीरालाल गुरुजी"समय"
बहुत सुन्दर अमृतध्वनि छंद 'समय'जी
ReplyDelete