अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेषांक- प्रस्तुति -छंद के छ परिवार
*त्रिभंगी छंद
(1)
महिमा नारी के,महतारी के,आज चलौ जी,गान करौ।
एखर ले दुनिया,सुग्घर कुरिया,जुरमिल सब झन,मान करौ।।
बहिनी बन आथे,भाई पाथे,राखी बाँधे,हाथ धरै।
सबके दुख हरथे,दुख खुद सहिथे,घर मा सब ले,मया करै।।
(2)
दाई के दरशन,शीतल तन मन,हिरदय भितरी,फूल खिलै।
अउ सरग बरोबर,लगथे जी घर,ओखर अँचरा,भाग्य मिलै।।
पत्नी बन नारी,बन सँगवारी,जिनगी भर वो,साथ रहै।
बनके सँगवारी,पति के प्यारी,सुख दुख ला वो,साथ सहै।।
(3)
नारी गुन गावव,सरग ल पावव,जग फुलवारी,फरै फुलै।
ये दुर्गा काली,हिम्मत वाली,इँखरे पाछू,देव झुलै।।
करथे बड़ ममता,सब बर समता,ममता के ये,खान हवै।
ये जग महतारी,सुन सँगवारी,एखर कारन,मान हवै।।
छंदकार-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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डी पी लहरे: छप्पय छंद
नारी मन के पार,कभू कोनों नइ पावँय।
महिमा इँखर अपार,सबो जन गुन ला गावँय।
बेटी,बहनी रूप,मया ममता महतारी।
भउजी,काकी,सास,मयारू होथें भारी।
इँखरे ले संसार हे,इँखरे ले परिवार जी।
दया मया भंडार हे,नारी सुख के द्वार जी।।
द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
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रोला छंद-जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: नारी शक्ति
महिला मनके मान, सबे बर बरकत लाही।
बनही बिगड़े काम, सरग धरती मा आही।
दया मया के खान, हरे बेटी महतारी।
घर बन खेती खार, सिधोये सब ला नारी।।
जनम जनम रथ हाँक, बढ़ाये आघू जग ला।
महिनत कर दिन रात, होय अबला अब सबला।
जग के बोहै भार, तभो मुँह हँसी ठिठोली।
काटे दुक्ख हजार, बोल मधुरस कस बोली।
दुख पीरा के नाम, जुड़े हे नारी सँग मा।
गहना गुठिया राज, करे नित आठो अँग मा।
गहना जेखर लाज, हरे कहि जग भरमाये।
वो नारी अब जाग, भेस ला असल बनाये।
सुघराई के देख, लगे परि-भाषा नारी।
मिट जाये सब आस, उहाँ बर आशा नारी।
बेटी बहिनी बाढ़, बने पत्नी महतारी।
दू घर के सम्मान, बढ़ावै सब दिन नारी।।
नौ महिना ले भार, सहै बाबू नोनी के।
जग ला दै बढ़वार, दरद दुख मा खुद जी के।
सींच दूध के धार, बढ़ायवै बेटा बेटी।
नारी ममता रूप, मया के उघरा पेटी।।
बेटी बेटी शोर, सुनावै अड़बड़ भारी।
तब ले बेटी रोय, हाय कइसन लाचारी।
नारी हे नाराज, राज घर बन का बड़ही।
रूप ज्ञान गुण खान, कभू नइ होवै अड़ही।।
कदम मिलाके आज, चले सब सँग मा नारी।
जल थल का आगास, गढ़े बन महल अटारी।
देखव सब्बे छोर, शोर हे नारी मनके।
देवय सुख के दान, शारदे लक्ष्मी बनके।।
बइरी मनके नास, करे दुर्गा काली कस।
घर बन के रखवार, बगइचा के माली कस।
होवय जग मा नाम, सदा हे तोरे मइयाँ।
तैं देवी अवतार, परौं नित मैहर पइयाँ।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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*सूर्यकांत गुप्ता कांत
सँसकार शिक्षा बिना, जिनगी बिरथा जान।
मानुस तन हम पाय हन, भाग अपन सहरान।।
नर नारी बिन जगत के, रचना कइसे होय।
कोख म बेटी जान के, मनखे काबर रोय।।
दाई देवी मान के, पूजन पथरा चित्र।
काबर आवन दन नहीं, जग मा बेटी मित्र।।
बेटी मन बढ़ चढ़ के कइसे आघू आइन।
बढ़िया बढ़िया काम करत उन नाव कमाइन।।
रानी लछमी के कुरबानी, कोन भुलाही।
मदर टेरेसा के सुरता कइसे नइ आही।।
दीदी लता कंठ कोयलिया सरस्वती हे।
जस ओकर जग भर मा फइले सबो कती हे।।
अंतरिक्ष के करत कल्पना उँहचो चल दिस।
पँहुच उहाँ वो नाव कल्पना अमरेच कर दिस।।
इंदिरा प्रतिभा विजय लक्ष्मी सुषमा कस हें कइ झन।
काकर काकर नाँव गनावँव, जानत हावव सब झन।।
विज्ञानी, ज्ञानी सत साहित के उन अलख जगाथें।
खेल कूद ब्यापार जगत सँग सबमा नाँव कमाथें।।
अलग अलग कर्तव्य निभाथे, मइके ससुरे बेटी।
सबके सुख दुख मा तो आखिर कामेच आथे बेटी।।
फेर एक बात कइहौं
फेसन संग मरजादा अउ सालीनता अपनालौ।
दुराचार दुष्कर्मी मन ले, बेटी मन ल बचा लौ।।
जम्मो रिश्ता मा घर के तँय लछमी बेटी माई।
मातृ शक्ति ला माथ नवावत देवत हँवव बधाई।।
सूर्यकान्त गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)
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दुर्मिल सवैया- विजेन्द्र वर्मा
अब छोड़ दहेज सबो मनखे,करलौ सब काम इहाँ उमदा।
जिनगी सँवरे बिटिया मन के,बढ़ही जस हा तँय मान ददा।
जिनगी सुख मा बढ़िया कटही,पर के दुख ला तँय बाँट सदा।
बनके हितवा बिटिया मन के,धर ले अब तो तँय रोठ गदा।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
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चोवाराम वर्मा बादल: *नारी गुन के खदान*
(पद्धरि छंद)
हे नारी बड़ गुन के खदान ।
झन ओला जी कमजोर मान।।
जे करथें हत्या भ्रूण मार।
वो पापी जाहीं नर्क द्वार।।
तैं बेटा बेटी एक जान।।
हे दूनों मा एके परान।।
तब करथें काबरँ भेद भाव।
पुत लकठा पुत्री सँग दुराव।।
घर के धरखँध नारी अधार।
वो सावन के रिमझिम फुहार।।
मन ले जेकर झरथे पिरीत।
माँ गंगा कस पावन पुनीत।।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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मिनेश साहू: नारी
नारी मा गुण हे बहुत, महिमा कथे पुरान।
तीन देव सेवा करै,सँझा अउर बिहान।।
सँझा अउर बिहान, कहे मा हाजिर होवै।
बिना करे सब काम, नइतो खावै न सोवै।।
कहत मेघ कविराय, करै छिन म बुता भारी।
घर ला सरग बनाए, इही गुनवंतिन नारी।।
मिनेश कुमार साहू
गंडई जिला राजनांदगांव
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मनोज वर्मा:-
नारी गुन के खान जी, महिमा हवै महान।
जेकर कोरा पाय बर, तरसय गा भगवान।।
तरसय गा भगवान, बिस्नु ब्रह्मा शिव शंकर।
बेटा बनके आय, राम कृष्णा प्रभु जी हर।।
गावय वेद पुरान, तोर महिमा महतारी।
यम ले जावय जीत, सती सावित्री नारी।।
मनोज कुमार वर्मा
बरदा लवन बलौदा बाजार
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मनोज वर्मा
नारी बिन दुनिया हवै, पात बिना जस पेड़।
जिनगी बिरथा जान ले, खेत हवै जस मेड़।।
नारी ममता रूप हे, जग जन सिरजन हार।
नारी से सब होत हे, देव मनुज अवतार।
मनोज कुमार वर्मा
लवन बलौदा बाजार
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आल्हा छंद महिला दिवस की हार्दिक बधाई
घर आँगन को पावन करती,नारी की ममता पहचान।
नारी ताड़न हार नहीं है,करो नहीं उसका अपमान।।
जग जननी नारी होती है,इनको जानो देवी रूप।
ममता शीतल छाया देती, दूर करे हर दुख की धूप।
मंगलकारी नारी होती, करती संकट शोक निदान।।
घर आँगन को पावन करती,नारी की ममता पहचान।।
सुख में नारी साथ निभाती, दुख में बनती तारणहार।
संबल संयम सदा दिखाती, प्रेरक नारी प्राणाधार।।
सभी काम नारी करती है,नारी पर हम सबको नाज।
हीन भावना से क्यों देखें, बदलें अपने झूठ रिवाज।।
रिश्तों की है दौलत जानो, नारी होती सुख की खान।
घर आँगन को पावन करती, नारी की ममता पहचान।।
द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
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पढ़ा लिखा दव दाई बाबू
पढ़ा लिखा दव दाई बाबू , मॅंय अफसर बन जाहूँ।
जागत आँखी के सपना ला,मनमाफिक सम्हराहूँ।
बड़ दिन होगे चूल्हा चौंका, गोबर अँगना बारी।
मॅंजना-धोना बुता बिटोना, लइका के रखवारी।
नान्हेपन मा बर-बिहाव कमजोरी जनित बिमारी।
जॉंगर-चोट्टी नइ कहिलावौं,सुनॅंव न घुड़की गारी।
मोला कलम किताब धरा दव, महूॅं मदरसा जाहूॅं।
जागत आँखी के सपना ला, मनमाफिक सम्हराहूँ।
कइयों कहिथें पॉंव के जूती, कइयों अबला नारी।
कइयों कहिथें चूल्हा-फूकन,ताड़न के अधिकारी।
मुड़ ऊपर मा दहेज लोभी, ताने फरसा आरी।
रोज ददा पुरखा ल उटकथें,सुनथॅंव मॅंय दुखियारी।
करव भरोसा मोरो ऊपर, पढ़-लिख नॉंव जगाहूॅं।
जागत आँखी के सपना ला, मनमाफिक सम्हराहूँ।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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: दोहा छंद - श्लेष चन्द्राकर
नारी ला सम्मान दव, करव नहीं हिनमान।
लाने बर सक्षम हवय, ओहर नवा बिहान।।
माईलोगिन मन हरय, देवी के अवतार।
ओखर मनके साथ गा, बने करव व्यवहार।।
लड़थे गा हालात ले, कहाँ मानथे हार।
नारी के अंदर हवय, सत मा शक्ति अपार।।
नानी के बिन हो जही, सुन्ना ये संसार।
मूरख मनखे भ्रूण ला, कोख म तँय झन मार।।
समझव गा कमजोर झन, हरय शक्ति के रूप।
माईलोगिन मन सदा, करथें काम अनूप।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर
पता - खैराबाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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सार छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
शीर्षक - कोन कथे नारी अबला हे।
कोन कथे नारी अबला हे, ये हे झूठ लबारी ।
देख उठा इतिहास जगत मा, सबला हावै नारी ।।
इक नारी हे मांँ अनुसूया, सत महिमा बतलाए।
पूत बना के तीन देव ला, पलना खूब झुलाए ।।
इक नारी हे सति सावित्री, तप के बल दिखलाए ।
मरे जीव ला पति के यम ले, जीत जगत मा लाए ।।
इक नारी हे शबरी भीलन, गुरु के अलख जगाए ।
राम -राम कहि गुरुवाणी ला, सच करके दिखलाए ।।
रत्नावली हवै इक नारी, पति ला ज्ञान बताए।
कामी क्रोधी लोभी हर अब, तुलसी संत कहाए।।
इक नारी हे मीराबाई, गुरु रैदास बनाए।
बिख ला पीये राणा के अउ, गिरधर प्रेम रिझाए ।।
लक्ष्मीबाई हे इक नारी, अंग्रेजन ला मारे।
संतावन मा पहली क्रांति, शुरूआत कर डारे ।।
गांँधी इंदिरा ह इक नारी, भारत भाग जगाए ।
पहली महिला पी.एम. बने, दुनिया ला दिखलाए ।।
इक नारी हे प्रतिभा पाटिल, नाम उभर के आए ।
ये भारत के पहली नारी, राष्ट्रपति कहलाए ।।
इक नारी कल्पना चावला, लोगन ला दिखलाए ।
पहली नारी हे भारत के, चांद घूम के आए ।।
गांँधी सोनिया ह इक नारी, भारत बहू कहाए।
यू.पी.ए. सरकार चलाके, दुनिया भर मा छाए।।
कतको नारी फिल्म बना के, गजबे नाम कमाए।
कतको लड़की मन पढ़ लिखके, सब ले अव्वल आथे।
कतको नारी बनके रानी, जिनगी बने बिताथे।।
जतन सबो के करके सुग्घर, घर ला सरग बनाथे।
अउ नारी जेन छंद के छ म, आके नाम कमाथे।।
रचना करके आनी - बानी, सब ला सुघर सुनाथे।।
"जलक्षत्री" हा नइ जानै गा, अउ कतको हे नारी ।
भूल चूक गर होही मोरो, झन देहौ जी गारी।।
छंदकार- अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा-नेवरा) जिला-रायपुर (छत्तीसगढ़) सचलभास क्रमांक- 9300716740
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,छंद मनहरण घनाक्षरी
*नारी महत्तम*
परबतिया ला देखौ शंभू मेर चेंध चेंध,
जगसुख सेती सब पोथी सिरजाय हे ।
सीता सत ड़टे रहि पति पत राखे बर,
फूलभार अगन ले नाहक देखाय हे।
रतना रानी ला देखौ माया परे तुलसी ला,
राम में रमाय मन लहर लगाय हे।
जब जब देखहू लहुट के रे मनखे हो,
पग पग तिरिया हा जग ला रेंगाय हे ।
शोभामोहन श्रीवास्तव
रायपुर
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दोहा-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
नाम छोड़ नित काम के, पाछू नारी जाय।
हाथ मेहनत थाम के, सरग धरा मा लाय।।
मनखे सब रटते रथे, नारी नारी रोज।
तभो सुनत हे चीख ला, रुई कान मा बोज।
बोज रुई ला कान मा, होके मनुष मतंग।
करत हवैं कारज बुरा, महिला मनके संग।
लेख विधाता का लिखे, दुख हावै दिन रात।
काम बुता करथों सदा, खाथों भभ्भो लात।
नारी शक्ति महान हे, नारी जग आधार।
नारी ले निर्माण हे, नारी तारन हार।
शान दुई परिवार के, बेटी माई होय।
मइके ले ससुराल जा, सत सम्मत नित बोय।
आज राज नारी करे, चारो कोती देख।
अपन हाथ खुद हे गढ़त, अपने कर के लेख।
जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया
बाल्को, कोरबा(छग)
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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के गाड़ा बधाई। सुग्घर संकलन
ReplyDeleteगाड़ा गाड़ा बधाई हो
ReplyDeleteअद्भुत संकलन
ReplyDeleteहार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर संकलन तैयार हो ये हे। सबो साधक मन ला विश्व महिला दिवस के हार्दिक बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteबहुतेच सुग्घर संकलन।
ReplyDeleteबड़ सुघ्घर संकलन आप जम्मो झन ल बहुंतेच अकन बधाई 🙏🙏🙏
ReplyDeleteअनुपम संकलन
ReplyDeleteबहुत ही सुग्घर
ReplyDeleteबहुत ही सुग्घर
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बहुते सुघ्घर
ReplyDeleteअनुपम संकलन। बहुत बहुत शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबढ़िया संकलन बर हार्दिक बधाई गुरुदेव
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