छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय, छंद शास्त्री,जनकवि कोदू राम दलित जी के 111वीं जयंती के अवसर म, उन ल शत शत नमन,
दोहा छंद
करिस छंद के जौन हा,हमर इँहा शुरवात।
श्रद्धा सुमन चढाँव मैं, माथा अपन नँवात।
साहित के वो देंवता,जनकवि वो कहिलाय।
बगरे बाँढ़य छंद बड़,आस ओखरे आय।
नाँव मिटाये नइ मिटै,करनी जेखर पोठ।
साहित के आगास मा,बरे सियानी गोठ।
पैरी जब जब बाजही,मुख मा आही गीत।
बैरी पढ़ पढ़ काँपही,फुलही फलही मीत।
रचना रिगबिग हे बरत,भले बछर के बीत।
डहर नवा गढ़ते रही,जनकवि जी के गीत।
नाँव अमर जुगजुग रही,जइसे गंगा धार।
जनकवि कोदू राम जी,छंद मरम आधार।
सपना उही सँजोय हे,अरुण निगम जी आज।
पालत पोंसत छंद ला,करत हवे निक काज।
साधक बन सीखत हवै,कतको कवि मन छंद।
महूँ करत हँव साधना,लइका अँव मतिमंद।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को (कोरबा)
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दोहा छंद
अलख जगाइन साँच के, जन कवि कोदू राम।
जन्म जयंती हे उँकर, शत शत नमन प्रणाम।
सन उन्नीस् सौ दस बछर, जड़काला के बाद।
पाँच मार्च के जन्म तिथि, हवय मुअखरा याद।
राम भरोसा ए ददा, जाई माँ के नाँव।
जन्म भूमि टिकरी हरै, दुरुग जिला के गाँव।
पेशा से शिक्षक रहिन, ज्ञान बँटई काम।
जन्म जयंती हे उँकर, शत शत नमन प्रणाम।
राज रहिस ॲंगरेज के, देश रहिस परतंत्र।
का बड़का का आम जन, सब चाहिन गणतंत्र।
आजादी तो पा घलिन, दे के जीव परान।
शोषित दलित गरीब मन, नइ पाइन सम्मान।
जन-मन के आवाज बन, हाथ कलम लिन थाम।
जन्म जयंती हे उँकर, शत शत नमन प्रणाम।
जन भाखा मा भाव ला, पहुँचावँय जन तीर।
समझय मनखे आखरी, बहय नयन ले नीर।
दोहा रोला कुंडली, कुकुभ सवैया सार।
किसिम किसिम के छंद मा, गीत लिखिन भरमार।
बड़ ज्ञानी उन छंद के, दया मया के धाम।
जन्म जयंती हे उँकर, शत शत नमन प्रणाम।
रचना-सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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कुंडलियाँ छंद
पुरखा जनकवि के हवय, पुण्य जयंती आज।
श्रीमन कोदू राम जी,करिन नेक जे काज।
करिन नेक जे काज,छंद मा रचना रचके।
सुग्घर के सुरताल, भाव मनभावन लचके।
गाँधी सहीं विचार, रहिंन उन उज्जर छवि के।
अमर रही गा नाम, सदा पुरखा जनकवि के।
आइस बालक ले जनम,पावन टिकरी गाँव।
मातु पिता जेकर धरिन, कोदू राम जी नाँव।
कोदू राम जी नाँव, पिता श्री राम भरोसा।
घोर गरीबी झेल, करिन उन पालन पोसा।
अर्जुन्दा के स्कूल, ज्ञान के गठरी पाइस।
गुरुजी बनके दुर्ग, शहर मा वो हा आइस।
बड़का रचनाकार वो,गद्य-पद्य सिरजाय।
हास्य व्यंग्य के धार मा, श्रोता ला नँहवाय।
श्रोता ला नँहवाय, गोठ वो लिखिन सियानी।
माटी महक समाय, गठिन बड़ कथा-कहानी।
अलहन के जी बात,व्यंग्य के डारे तड़का।
दू मितान के गोठ, करिन वो कविवर बड़का।
श्रद्धावनत
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
सादर नमन आदरणीय पूज्य दलित जी ल
ReplyDeleteसादर शत् शत् नमन पूज्य जनकवि दलित जी मन ल 🙏🙏
ReplyDeleteशत शत नमन
ReplyDeleteशत शत नमन।
ReplyDeleteसादर नमन
ReplyDeleteशत् शत् नमन
ReplyDeleteशत् शत् नमन💐💐💐🙏🙏
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