होली विशेषांक छंदबद्ध कवितायें-छंद के छ परिवार की प्रस्तुति
छंद के छ के होली-दोहा गीत
"छंद के छ"के मंच मा, माते हावै फाग।
साधक सब जुरियाय हे,देवत हावै राग।
आज छंद परिवार मा,माते हवै धमाल।
सुधा सुनीता केंवरा,छीचत हवै गुलाल।
सरस्वती सुचि ज्योति शशि,चित्रा ला भुलवार।
आशा मीता मन लुका,करय रंग बौछार।
रामकली धानेश्वरी,भागे सबला फेक।
नीलम वासंती तिरत,लाने उनला छेक।
शोभा संग तुलेश्वरी,गाये सुर ला पाग।
"छंद के छ"के मंच मा, माते हावै फाग----
बादल बरसत हे अबड़,धरे गीत अउ छंद।
ढोल बजाय दिलीप हा, मुस्की ढारे मंद।।
मोहन मनी मिनेश सँग,केतन मिलन महेंद्र।
गावत हे गाना गजब,मथुरा अनिल गजेंद्र।।
ईश्वर अजय अशोक सँग,हे ज्ञानू राजेश।
घोरे हावय रंग ला,भागय हेम सुरेश।।
मुचमुचाय जीतेन्द्र हा,भिनसरहा ले जाग।
"छंद के छ"के मंच मा, माते हावै फाग--------
दुर्गा दीपक दावना,सँग गजराज जुगेश।
श्लेष ललित सुखदेव ला,ताकय छुप कमलेश।
लीलेश्वर जगदीश सँग,बइहाये बलराम।
लहरे अउ कुलदीप के,करे चीट कस चाम।
पोखन तोरन मातगे,माते हे वीरेंद्र।
उमाकांत अउ अश्वनी,सँग माते वीजेंद्र।
सरा ररा सूर्या कहे,भिरभिर भिरभिर भाग।
"छंद के छ"के मंच मा,माते हावै फाग-----
पुरषोत्तम धनराज ला,खीचत हे संदीप।
कौशल रामकुमार मन,फुग्गा फेके छीप।
बोधन अउ चौहान के,रँगदिस गाल गुमान।
सत्यबोध राधे अतनु,भगवत हे परसान।।
राजकुमार मनोज हा,पूरन ला दौड़ाय।
अरुण निगम गुरुदेव हा,देखदेख मुस्काय।
सब साधक मा हे भरे,मया दया गुण त्याग।
"छंद के छ"के मंच मा,माते हावै फाग-----
बारह तेरह का कहँव, चौदह तक हे सत्र।
होली के भेजत हवँव, सबला बधई पत्र।
का जुन्ना अउ का नवा, सबे एक परिवार।
हमर लोक साहित्य के, बोहे हावै भार।
आगर कोरी पाँच हे,हमर छंद परिवार।
छूटे जिंखर नाम हे, उन सबला जोहार।
पहुना सत्यप्रकाश हे, हमर जगे हें भाग।
"छंद के छ"के मंच मा,माते हावै फाग-----
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा
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*त्रिभंगी छंद - होली*
(1)
चल खेलौ होली,मिल हमजोली,रंग गुलाली,धरे रहौ।
धर भर पिचकारी,ए सँगवारी,मन मा खुशियाँ,भरे रहौ।।
सब बइरी हितवा,बन के मितवा,गला मिलौ जी,आज सबो।
सब भेद छोर के,मया जोर के,करलौ सुग्घर,काज सबो।।
(2)
होली मा सुग्घर,मन हो उज्जर,भेद भाव ला,छोर चलौ।
अउ बजै नँगारा,आरा-पारा,रंग मया के,घोर चलौ।।
सब बनौ सहाई,भाई-भाई,दया मया सुख,छाँव रहै।
झन मन मुटाव हो,नेक भाव हो, होली के शुभ,नाँव रहै।।
(3)
होली के आवन,बड़ मन भावन,चारों कोती,शोर उड़ै।
मन मा खुशहाली,रंग गुलाली,गली मुहल्ला,खोर उड़ै।।
फागुन के मस्ती,छाए बस्ती,लइका बुढ़वा,खेल करै।
होली हुड़दंगा,मन रख चंगा,मनखे-मनखे,मेल करै।।
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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*गीत*
(आधार छंद--रोला)
इरखा कचरा बार, मना ले सुग्घर होली।
रंग मया के घोर,भिंजो दे हिरदे चोली।
माया लगे बजार, हवै दुनिया के मेला।
तोर मोर के रोग, घेंच मा लटके ठेला।
जाबे खुदे भुँजाय, जरब झन करबे जादा
कौड़ी लगे न दाम, बोलना गुत्तुर बोली।
इरखा कचरा बार, मनाले सुग्घर होली।
नइ ककरो बर भेद, करै सूरुज वरदानी।
देथे गा भगवान, बरोबर हावा पानी।
मूरख मनवा चेत, जतन अब तो कुछ कर ले
हरहा गरब गुमान, धाँध अँधियारी खोली।
इरखा कचरा बार, मना ले सुग्घर होली।
कतको बड़े कुबेर, चले गिस हाथ हलाके।
बड़े बड़े बलवान, झरिन जस बोइर पाके।
डोरी कस झन अइँठ, टूटबे खाके झटका
गाल फुलाना छोंड़, सीख ले हँसी ठिठोली।
इरखा कचरा बार, मना ले सुग्घर होली।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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: कुण्डलिया- अजय"अमृतांशु"
आवत फागुन देख के,रंग बसंती छाय।
परसा रंग जमात हे , सेम्हर हा मुस्कॉय ।
सेम्हर हा मुस्काय, देख के आमा डोलय।
पाके तेंदू चार, मगन कोयल कू बोलय।
कपसा हा बिजराय, कोइली गाना गावत।
महुवा फर टपकाय,देख के फागुन आवत।।
तन ला रंगे तैं हवस,मन ला नइ रंगाय।
पक्का लगही रंग हा,जभे रंग मन जाय।।
जभे रंग मन जाय, तभे जी पावन होली।
नाचव गावव आज, सबो मिल करव ठिठोली।
तनिक मया ला जोर, रंग ले तँय हा मन ला।
होही इक दिन राख, राख ले कतको तन ला।
पिचकारी मा रंग भर, खेलत हे सब ग्वाल।
सखा संग मा मस्त हे, देख यशोदा लाल।।
देख यशोदा लाल, बिरज मा माते होरी।
माखन खाये देख, किशन हा करके चोरी।
माते रंग गुलाल, मिले हे सब सँगवारी।
ब्रज होगे हे लाल,चलत हे बड़ पिचकारी।।
करिया करिया मुँह दिखय,आँखी देखव लाल।
भूतनाथ कस तन दिखय, सोहे रंग गुलाल।
सोहे रंग गुलाल, गली मा माते होली।
तन मा मलय गुलाल, लोग मन करय ठिठोली।
रामू श्यामू संग, मगन होरी अउ हरिया।
तन भर रंग गुलाल, दिखत हे लाली करिया।
अजय"अमृतांशु"
भाटापारा (छत्तीसगढ़ )
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*त्रिभंगी छंद--- फागुन*
आरा औ पारा, ढोल नॅंगाड़ा, देख ढमा ढम, आज बजे।
मारे पिचकारी, छोड़ चिन्हारी, किसम किसम के, सबो सजे।।
सब रंग लगाके, भेद भुलाके, गात एक अब, राग कहे।
अब छोड़ बुराई, करव भलाई, सुघर नेक ये, फाग कहे।।
हे रंग बिरंगी, सब सतरंगी, घोर मया जी, देख धरे।
तन मन ल रॅंगाके, मया मिलाके, डार रंग अब, अंग भरे।
गोरी के नैना, लागे रैना, मया पाय के, भीग घले।
मारे पिचकारी,खाके गारी, लाल गाल भर, रंग मले।।
फागुन के ठौका, पाये मौका, रंग लगा मन, बात कहे।
तोर बिना अब वो, बिरथा सब वो, जाय अकेला, नही रहे।।
बड़ सुख ये पावत, खुशी मनावत, डार मया मा, दुनो रॅंगे।
खावत हे किरिया, नइ होवन दुरिया, जिनगी भर हम, रबो सॅंगे।।
मनोज कुमार वर्मा
बरदा लवन बलौदा बाजार
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बागीस्वरी सवैया- विजेन्द्र वर्मा
नँगारा बजावौ लगावौ गला जी मया रंग ला छींत के आज तो।
भुलाके इहाँ बैर होरी ग खेलौ सनाये मया मा करै नाज तो।
लगावौ बने रंग छोटे बड़े ला रँगे प्रेम के रंग मा साज तो।
सबो संग खेलौ खुशी मा गुलाले बने फाग गावौ भगा लाज तो।
बने फाग गावौ सबो आज संगी बजावौ बने जी नँगारा इहाँ।
मया के रँगे मा सबो रंग जावौ मते जी चिन्हावौ जँवारा इहाँ।
मया रंग लाली गुलाबी हवै जी लगावौ सबो ला दुबारा इहाँ।
समे आज काहै बनौ जी नशा छोड़ के तो सबो के सहारा इहाँ।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
जिला रायपुर
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: *त्रिभंगी छंद - होली*
(4)
जब बजै नँगारा,जम्मों पारा,ये तिहार के,जोर लगै।
मन घुमरन लागै,झुमरन लागै,नाचे के मन,मोर लगै।।
अउ माँदर बाजय,राउत नाचय,डंडा धरके,फाग घलो।
मन खुशी समाए,धूम मचाए,मातय होली, राग घलो।।
(5)
धर रंग गुलाली,भोली भाली,लइकन मन मुँह,गाल मलै।
कनिहा मटकावत,हाथ हिलावत,देखौ कइसन,चाल चलै।।
हो के जी अघुवा,गावत फगुवा,मनखे टोली,साथ चलै।
मस्ती मा झूमत,नाचत-घूमत,धर पिचकारी,हाथ चलै।।
(6)
बड़ सुग्घर करिया,ओढ़ चुनरिया,जुगुम जुगुज जी,आँख दिखै।
गोरी के बइँहा,भुइयाँ छइँहा,आज चिरइया,पाँख दिखै।।
कुलकत बड़ जिवरा,हरियर पिँवरा,मुँह मा बोथे,लाल दिखै।
होली मन भाए,मया दिखाए,बने मोहनी,चाल दिखै।।
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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मतगयंद सवैया - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
(1)
फागुन के रंग लाल गुलाल भरे पिचका म मनावत होली ।
गोप गुवालिन प्रेम मया म लगावत हे किशना ल ठिठोली।।
बाल गुवाल सबोझन आवँय तीर गुवालिन के हमजोली ।
देख गुवालिन बाल गुवाल ल वो सब जाय लुकावय खोली ।।।
(2)
देखत हे किशना सब गोपिन जात कहांँ अब छोड़त होरी।
आव लगावव रंग गुलाल कहे किशना तब आवय छोरी ।।
पाय मजा बड़ गोप गुवालिन बीतत रात ह होवत भोरी ।
प्रेम गुलाल अतेक लगे करिया दिखथे सब के अंग गोरी।।
छंदकार-अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा-नेवरा)
जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)
सचलभास क्रमांक - 9300 716 740
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घनाक्षरी छंद :- जगदीश "हीरा" साहू
होली हे....
हाथ मा गुलाल धरे, कोनो पिचकारी भरे, कोनो हा लुका के खड़े, आगू पाछू जात हे।
लईका सियान संग, बुढ़वा जवान घलो, रंगगे होली मा गली गली इतरात हे।।
गली मा नगाड़ा बाजे, मूड़ पर टोपी साजे, बड़े बड़े मेंछा मुँह ऊपर नचात हे।
गावत हावय फ़ाग, लमावत हावै राग, सबो संगवारी मिल, मजा बड़ पात हे।।
बाहिर के छोड़ हाल, भीतर बड़ा बेहाल, भौजी धर के गुलाल काकी ला लगात हे।
हरियर लाली नीला, बैगनी नारंगी पीला, आनी बानी रंग डारे, सब रंग जात हे।।
माते हावै हुड़दंग, भीगे सब अंग अंग, अँगना परछी सबो रंग मा नहात हे।
बइठे बाबू के दाई, सब के होली मनाई, अपन समय के आज सुर ला लमात हे।।
जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
छत्तीसगढ़
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: कुण्डलिया छंद - श्लेष चन्द्राकर
होली होली बोल के, खीक करव झन काम।
बड़ सुग्घर हे ये परब, करव नहीं बदनाम।।
करव नहीं बदनाम, मनावव सुग्घर येला।
बोलव बानी मीठ, लगे जे गुर के भेला।।
चुपरव रंग गुलाल, करव गा हँसी ठिठोली।
लागय सबला नीक, मनावव अइसे होली।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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सार छंद- राजेश कुमार निषाद
महिना फागुन गजब सुहाथे, आथे जब गा होली।
मया पिरित ला बाँधे रखथे,गुरतुर हमरो बोली।।
हाँसत गावत रंग लगावौ,पालौ नही झमेला।
बैर भुलाके आहू संगी,पारा हमर घुमेला।।
नीला पीला लाल गुलाबी, धरे रंग ला आहू।
बैर भाव ला छोड़े संगी,सबला गले लगाहू।।
ढोल नगाड़ा बजही अबड़े, गीत फाग के गाबो।
रंग भरे मारत पिचकारी,मिलके मजा उड़ाबो।।
भाई चारा के संदेशा,देवत सबझन जाबो ।
गली गली मा मिलके घुमबो,बढ़िया अलख जगाबो।।
रचनाकार :- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद पोस्ट समोदा तहसील आरंग जिला रायपुर छत्तीसगढ़
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कुंडलियां छंद -सुधा शर्मा
1--
हरियर लुगरा पोलखा ,लाली- लाली छीट।
पीयर लगे गुलाल हे ,आँखी देखो नीट।।
आँखी देखो नीट,जोगनी कस हे बारे।
मुँह भर लागे चीट , सबो के रूप निहारे।।
कहय सुधा सुन मीत,हदय ला राखव फरियर।
बगरे हिया हुलास , रहे होरी मा हरियर।।
2--
आगे होरी के परब , हिरदे भरे उछाह।
माते मौसम झूमरत , धरत हवे गा बाँह।।
धरत हवे गा बाँह ,करत हावे बरजोरी।
आगू पाछू घूम,कहे अब खेलो होरी।।
कहे सुधा सुन मीत , अरे कोरोना जागे ।
सावचेत रस आज , कहत ये होरी आगे।।
स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम- छत्तीसगढ़
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*मधुशाला छंद*--आशा देशमुख
गाँव शहर के गली गली मा
सजे हवय जी पिचकारी।
मया प्रीत के रंग लगावै
हाँसत खेलत नर नारी।
पखवाड़ा भर बजे नगाड़ा
भैया मन नाचें डंडा।
सखी सहेली मन हा देवँय
हँसी ठिठोली के गारी।
भाँग मतौना धरे करे कस
बहत हवय जी पुरवाई।
रितुराजा के संग बितावै
गहदे हावय अमराई।
फागुन के अँगना मा आये
मया रंग धर के होली।
बैर भाव ला लेसव बारव
पाटव इरखा के खाई।
रंग धरे सब किंजरत हावैं
लाल हरा पिंवरा नीला ।
लइका मन पिचकारी धरके
करत हवँय सब ला गीला।
लगत हवय बृजधाम सही कस
गाँव गली अँगना पारा।
रंग लगावत राधा रम्भा
खुल खुल हाँसय रमशीला।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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: घनाक्षरी छंद -दुर्गा शंकर ईजारदार
(1)
गोरी गोरी राधा रानी, रंग धरे आनी बानी ,
कन्हैया ला खोजत हे ,गोपी सखी संग हे ।
करिया ला करिया मा , अउ रंग फरिया मा ,
पोते बर करिया ला ,मन मा उमंग हे।
कदम के रुख तरी , खोजे गली खोल धरी ,
कन्हैया तो मिले नहीं ,राधा रानी तंग हे ।
कहत हे हाथ जोड़ ,आजा राधे जिद छोड़ ,
तोर बिना होरी के ये ,जीवन बेरंग हे ।।
(2)होरी के मउसम
परसा हा फूले हावै, आमा हर मौरे हावै ,
गुन गुन भौंरा करे, पीये जैसे भंग हे ।
कोयली हा गात हावै ,जिया हरसात हावै,
सरसों हा फूल के तो , झूमत मतंग हे ।
फागुन के रंग में तो ,सबो झन मात गे हे ,
सबो रंग मिल के तो ,होगे एक रंग हे ।
चार तेन्दू लोरी डारे ,मन ला तो मोही डारे,
मया अउ पिरित मा , भीगे अंग अंग हे ।
(3)अइसन होली खेलव
दया मया के तो डोरी ,बाँध खेलौ सब होरी ,
जात पाँत बैर भाव ,मन से निकालव गा ।
हरा पीला नीला लाल ,पोत डारौ मुँह गाल ,
छोटे बड़े सब संग ,मिल के मनालव गा ।
झन करौ हुड़दंग,छोड़ देवा दारू भंग ,
दूरिहा के काल झन, तीर मा बुलावव गा ।
कहत हँ हाथ जोड़ ,परत हँ पाँव तोर ,
सबो से तो नाता ला जी ,बने निभावव गा ।
दुर्गा शंकर ईजारदार
सारंगढ़( छत्तीसगढ़)
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कुण्डलिया छंद-संतोष कुमार साहू
होली हरे उमंग के,सुग्घर एक तिहार।
सबके सुख बर सोच ला,रंग समझ अउ डार।।
रंग समझ अउ डार,भेद राहय झन मन मा।
ईर्ष्या द्वेष ल मार,प्रेम राहय जन जन मा।
सब झन से नित नेक,मधुर राहय सब बोली।
ताहन समझ तिहार,इही हे जब्बर होली।।
सबके हित के कामना,मन मा राहय नेक।
ताहन एला जान ले,होली रंग अनेक।।
होली रंग अनेक,लाल काहस या पीला।
सबो समागे रंग,हरा काहस या नीला।
भाग जही सब मैल,जमे कतको बड़ कबके।
मन मा राहय खास,बनन हितवा हम सबके।।
होली के दिन आज गा,जेखर बढ़िया गोठ।
ओखर कर तँय मान ले,सबो रंग हे पोठ।
सबो रंग हे पोठ,खुशी दे सब ला अइसे।
ईश्वर छप्पर फाड़,नोट दे सब ला जइसे।
ताहन तँय हा मान,खुशी के भरगे झोली।
कोनो नही दुखाय,तभे सुग्घर हे होली।।
छंदकार-संतोष कुमार साहू
ग्राम -जामगांव( फिंगेश्वर)
जिला -गरियाबंद
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रोला छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
आगे रंग तिहार, चलत हे बड़ पिचकारी।
बाजे मांदर झाँझ, नँगाड़ा तासक भारी।
लइका संग सियान, मगन सब मिलजुल नाँचे।
चिक्कन कखरो गाल, आज के दिन नइ बाँचे।
भजिया बरा बनाय, खाय सब झन मिलजुल के।
होके मस्त मतंग, फाग मा नाँचे खुलके।।
काय बड़े का छोट, पटत हे सबके तारी।
कोई लागय लाल, गाल कखरो हे कारी।
धरती संग अगास, रंग गेहे होली मा।
परसा सेम्हर साल, प्लास नाँचे होली मा।
नवा नवा हे पात, फूल हे आनी बानी।
सज धज हे तइयार, गजब के धरती रानी।
छोड़ तोर अउ मोर, तभे होली हे होली।
मिल अन्तस् ला खोल, बोल मधुरस कस बोली।
चुपर मया के रंग, धोय मा नइ धोवाये।
नीला पीला लाल, रंग दू दिन के ताये।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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कुण्डलिया छंद-
होरी के शुभकामना, देवत हवँव अशेष।
गाँव शहर पर्यावरण, शुद्ध रखव परिवेश।।
शुद्ध रखव परिवेश, मिटा के द्वेष बुराई।
छींचौ रंग गुलाल, सबो ला गला लगाईं।।
गजानंद कर काम, बाँध ले सुमता डोरी।
सब ला दे सम्मान, मना ले अइसन होरी।।
इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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होली (रोला छंद)
जलके होगे राख , होलिका देखव भाई।।
जय हो भक्त प्रहलाद , विष्णु जी के अनुयाई ।।
बिक्कट करत उछाह , लगे जिनगी सतरंगी।
झूमे नाचे आज , देख कतको हुड़दंगी ।।
डगमग डोले पाँव , बिगाडे़ भाखा बोली।
तबले कहिथे यार , बुरा झन मानो होली।।
आनी बानी भेष , बनाके पिटै नँगारा ।
खेलै रंग गुलाल , सनाए जम्मो पारा।।
नाचे डंडा नाच , बबा हा कुहकी पारे।
गाए फगुवा गीत , सबो के जाय दुवारे ।।
परंपरा ला आज , बचाके रखे हवै गा ।
फूहड़ता ले दूर , संस्कृति रचे हवै गा ।।
भेदभाव ला छोड़ , बुराई ला अब त्यागव।
सुमता अउ सद्भाव, जगावव खुद भी जागव।।
लगे कँहू ला ठेस , न बोलव अइसन बोली ।
रंग गुलाल लगाव , प्रेम से माँनव होली ।।
साधक सत्र 10
परमानंद बृजलाल दावना
भैंसबोड़
6260473556
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महाभुजंग प्रयात सवैया
होली
गली खोर पारा म झूमैं तिहारू समारू बुधारू पियें भाँग गोली।
बजे झाँझ तासा मँजीरा नँगारा सबों नाँच गावैं बने फाग टोली।
बबा डोकरा हा मया मा फँसावै करे डोकरी संग हाँसी ठिठोली।
मले रंग लाली दुनों गाल भैया करे तंग भौजी कहे आज होली।।
लजावै न कोनों करे ठाड़ बोली मतंगी मया मा कुँवारी कुँवारा।
हरा लाल पीला गुलाबी धरे जी लगावै मया मा दुबारा तिबारा ।
मया मा सनाये सबो संगवारी चिन्हावै नहीं कोन भाँटो जँवारा।
बने फाग गावै बबा गोंटिया हा गुड़ी चौंक पारा म बाजै नँगारा ।।
छंदकार -कौशल कुमार साहू
सुहेला (फरहदा )
जि. बलौदाबाजार भाटापारा
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: त्रिभंगी छंद
विषय--होली
हे गाड़ा गाड़ा, ढ़ोल नंगाड़ा ,गली गली मा,रोज बजे।
सब नाचत गावत,रंग लगावत,रंग रंग मा,खूब सजे ।।
वो भेद मिटाके,रंग लगाके,खुशी मनाके,संग मिले ।
होरी मा सन के ,भींगे मन के ,दया मया के,फूल खिले ।।
लिलेश्वर देवांगन
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: छन्न पकैया छंद
फागुन
छन्न पकैया छन्न पकैया, कोयल राग सुनावे ।
गुरतुर लागय बोली भइया, सबके मन ला भावे ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, ढोल नँगारा बाजय
रंग लगा के देय बधाई,मस्ती मा सब नाचय ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, रंग लगा के भागे ।
फाग गीत जुर मिल के गावे , फागुन महिना आगे ।।
ओमप्रकाश साहू" अंकुर "
सुरगी, राजनांदगॉव
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: छन्न पकैया छंद - श्लेष चन्द्राकर
छन्न पकैया छन्न पकैया, आज हरे गा होली।
तेखर सेती पारा-पारा, गूँजत हँसी ठिठोली।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, कहाँ हाथ हे खाली।
लोगन धरके घूमत हावँय, रंग गुलाबी लाली।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, धरे हवँय पिचकारी।
लइकामन हा छींचत सब मा, रंग ल बारी-बारी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बाजत ढोल मँजीरा।
लोग मनावत हावँय होली, बिसरा के दुख पीरा।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, गावत हें सब गाना।
थिरकत हावँय तन-मन देखव, हे माहौल सुहाना।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, शुभ हे सब बर होली।
बैर भाव ला तज के बोलव, सुग्घर मीठा बोली।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, छोड़व आज लड़ाई।
जात-पात के भेद भुलाके, सबला देव बधाई।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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होली पहिली मिल सबो,बसंत पांचे मान।
माघ महीना खोंच लव, अंड़ा डारा पान।
अंडा डारा,पान गाड़ के,झूमव नाचव।
पेड़ कटय झन, ये होरी मा,सुरता राखव।
दया मया के,मदरस घोरय, गुरतुर बोली ।
भेदभाव अउ,द्वेष दंश के ,बारव होली।।
रचनाकार-मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़
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: मंदारमाला सवैया-चित्रा श्रीवास
भौंरा सुनाये नवा गान छेड़े हवे तान झूमे कली बाग के।
कूहू पुकारे हवे मीठ बोली बहे धार जैसे इहाँ राग के।
बाजे नगाड़ा कहूँ ढोल बाजे चढ़े भाँग छाये नशा फाग के।
घोरे मया रंग भींजे हवे अंग संगी लुकाबे कहाँ भाग के।
छंदकार _चित्रा श्रीवास
बिलासपुर छत्तीसगढ़
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चकोर सवैया*
खोर गली निकले लइका पिचका धर मारत रंग गुलाल।
रंग गुलाल अबीर धरे अउ पोतँय चिक्कन चिक्कन गाल।
ढोल बजावत कूदत नाचत हे बदले मउहा सब चाल।
रंग रँगे कतको सब लेकिन रंग मया बिन होत मलाल।।
छंदकार : पोखन लाल जायसवाल
पलारी
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घनाक्षरी
छंद के आनंद लेत, इहाँ हे हेराये चेत।
होली के तिहार मा जी घुरे प्रेम रंग हे।
टिमकी नँगारा संग राग अनुराग फाग
गावत हें कभू कभू बाजत मृदंग हे।।
आये हवँय कान्हा राधा खेले बर होली 'कांत'
मन मा तो उमड़त कतका उमंग हे।
पावय मोर राज के सम्मान भाखा गुरतुर
छेड़े बर एकर खातिर अब जंग हे।।
सूर्यकान्त गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्गा
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: लावणी छंद- महेंद्र बघेल
*होली हे...*
(घर मा घुॅंसरे रहि जा भइया, हालत करत कलोली हे।
दू गज दुरिहा ले अब कहिदे, बुरा न मानो होली हे।।)
बात मान लव घरवाली के, छोड़ सबो मजबूरी ला।
हाथ बटावव ये तिहार मा,चपकत राॅंधत पूरी ला।
चम्मच चिमटा पाठ पढ़े बर, रॅंधनी वाले खोली हे।
दू गज दुरिहा ले अब कहिदे, बुरा न मानो होली हे।।
फेर दिनों दिन पनपत हावय, कोरोना के परछाई।
होय सगाई फसगे शादी , उनकर समझव करलाई।
अइसन दुल्ही दूल्हा मनबर,गायब हॅंसी ठिठोली हे।
दू गज दुरिहा ले अब कहिदे, बुरा न मानो होली है।।
हाथ सफाई बिन नइ छूना , दार भात अउ रोटी ला।
अबड़ जतन ले राखव घर मा, नान्हे बेटा बेटी ला।
बरज तभो येमन नइ माने, उपई ईखर टोली हे।
दू गज दुरिहा ले अब कहिदे, बुरा न मानो होली हे।।
दू ला दस मा बेच बेच के ,कुलकत हे बेपारी मन।
कभू लाकडाउन झन होवय,सोचत दुखिया नारी मन।
बनी भरोसा चुरथे जेवन,चिरहा जेकर ओली हे।
दू गज दुरिहा ले अब कहिदे, बुरा न मानो होली हे।।
भीड़ भाड़ ले दूर रहव जी , अलहन ला तिरियाये बर।
मन मसोस के रहना परही,बर बिहाव मा जाये बर।
बम बारुद ले जादा खतरा, बजुर वाइरस गोली हे।
दू गज दुरिहा ले अब कहिदे, बुरा न मानो होली हे।।
छंदकार:-महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव जिला राजनांदगांव
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किरीट सवैया - रामकली कारे
फागुन आवय रंग उड़ा सब नाचॅय गावॅय शोर मचावॅय।
ठोंक ग ढोलक झाॅझ बजावॅय फाग झमाझम गीत ल गावॅय।
रंग लगावॅय गा जुरके सब छोट बड़े हर भेद मिटावॅय।
फूल खिले वन झूम उठे तन देख सबो सुख अंतस पावॅय।
छंदकार - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा (छ.ग.)
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अरसात सवैया
शशि साहू
जाड़ जनाय न घाम जरोवय आय हवे ऋतु राज सुहावना ।
अंग सरी पिंवराय दिखे जइसे दुलही भँवरावत आँगना ।
पींयर फूल फुले सरसों अरसी पहिरे पट पींयर पावना ।
रंग उड़ावत ढोल बजावत आवत हे फगुवा मन भावना ।
छंदकार शशि साहू
बालकोनगर
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बहुत सुग्घर होली विशेषांक छंद संग्रह
ReplyDeleteबहुत सुगो
Deleteसुग्घर
Deleteबहुत सुग्घर सबो रचना मन
ReplyDeleteसुग्घर
ReplyDeleteलाजवाब संकलन।
ReplyDeleteबड़ सुग्घर संकलन करेहव गुरु जी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
वाह वाह लाजवाब संकलन तैयार होये हे। आप सबो ला होली के हार्दिक बधाई अउ शुभकामना
ReplyDeleteबहुत सुग्घर संकलन। आप सब ला बधाई अउ शुभकामना...
ReplyDeleteअनुपम संकलन बहुत बहुत बधाईयॉं
ReplyDeleteआदरणीय जितेंद्र वर्मा खैरझिटिया जी के छंद परिवार ल समेटत गजब-गजब के दोहा हे।
ReplyDeleteउनला अन्तस् ले बधाई हे!
ओसने जम्मो अग्रज मन के एक ले बढ़ के एक होलियाना रचना ल पढ़ के मन गदगद हो गिस
छंद परिवार ल हार्दिक बधाई
सुरेश पैगवार
जाँजगीर
वाह बढ़िया संकलन
ReplyDeleteसुग्घर मनभावन रचना संग्रह! जय छत्तीसगढ़💐
ReplyDeleteएक ले बढके एक रचना
ReplyDeleteएक ले बढके एक रचना
ReplyDeleteसुग्घर सृजन
ReplyDeleteमनोहर रचना है Thanks You.
ReplyDeleteआपको Thanks you Very Much.
बहुत अच्छा लिखते हाँ आप
हम लगातार आपकी हर पोस्ट को पढ़ते हैं
दिल प्रसन्न हो गया पढ़ के
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मनोहर रचना है Thanks You.
ReplyDeleteआपको Thanks you Very Much.
बहुत अच्छा लिखते हाँ आप
हम लगातार आपकी हर पोस्ट को पढ़ते हैं
दिल प्रसन्न हो गया पढ़ के
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सुघ्घर संकलन
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया संकलन
ReplyDeleteमोर रचना ल स्थान दे खातिर बहुत बहुत धन्यवाद गुरु जी
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