विश्व गौरैया दिवस विशेषांक-छंद के छ परिवार की प्रस्तुति
गउरइया (दोहा गीत)-मनीराम साहू मितान
गउरइया मन झुंड मा, मोरो अँगना आँय।
मोहँय मन ला खूब जी, मिलके गाना गाँय।
रोजे बिहना साँझ के, बइठँय लिमवा डार।
किंजरँय घर कोठार मा, नइ जावँय गा खार।
भिनसरहा अँधियार मा, चिँव चिँव करत जगाँय।
मोहँय मन ला खूब जी, मिलके गाना गाँय।
फुदर फुदर चारा चरँय, बारी अँगना खोर।
पोरा के पानी पियँय, करत रहँय बड़ शोर।
कउँवा बिलई देख के फुर्र करत उड़ जाँय।
मोहँय मन ला खूब जी, मिलके गाना गाँय।
लगगे हे ककरो नजर, या छिपगे हें राम।
दिखँय नहीं इँन गँय कहाँ,अँगना हे सिमसाम।
संसो मोला खात हे, कोन हवय बिलमाय।
मोहँय मन ला खूब जी, मिलके गाना गाँय।
-मनीराम साहू 'मितान'
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कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
परछी अँगना मा फुदक, मन ला लेवै जीत।
वो गौरइया नइ दिखे, नइ सुनाय अब गीत।।
नइ सुनाय अब गीत, सिरावत हे गौरइया।
मारे पानी घाम, मनुष तक हे हुदरैया।
छागे छत सीमेंट, जिया मा गड़गे बरछी।
उजड़त हे बन बाग, कहाँ हे परवा परछी।।
काँदी पैरा जोड़ के, झाला अपन बनाय।
ठिहा ठौर के तीर मा, गौरइया इतराय।।
गौरइया इतराय, चुगे उड़ उड़ के दाना।
छत छानी मा बैठ, सुनावै गुरतुर गाना।
आही गाही गीत, रखव जल भरके नाँदी।
गौरइया के जात, खोजथे पैरा काँदी।।
दाना पानी छीन के, हावय मनुष मतंग।
बाढ़त स्वारथ देख के, गौरइया हे दंग।।
गौरइया हे दंग, तंग जिनगी ला पाके।
गाके काय सुनाय, मौत के मुँह मा जाके।
छिन छिन सुख अउ चैन, झरे जस पाके पाना।
कहाँ खुशी सुख पाय, कोन ला माँगे दाना।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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