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Friday, January 20, 2023

छंद के छ की प्रस्तुति- सम्मान विषय मा छंदबद्ध रचना


छंद के छ की प्रस्तुति- सम्मान विषय मा छंदबद्ध कविता


दोहा गीत-सम्मान


बँटे रेवड़ी के असन, जघा जघा सम्मान।

आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।


देवइया भरमार हें, लेवइया भरमार।

खुश हें नाम ल देख के,सगा सहोदर यार।

नाम गाँव फोटू छपा, अपने करयँ बखान।

आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।


साहित के संसार मा, चलत हवै ये होड़।

मुँह ताके सम्मान के, लिखना पढ़ना छोड़।

कागज पाथर झोंक के, बनगे हवैं महान।

आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।


धरहा धरहा लेखनी, सरहा होगे आज।

चाटुकार के शब्द हा, पहिनत हावै ताज।

हवै पुछारी ओखरे, जेखर हें पहिचान।

आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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ज्ञानू कवि: विष्णुप्रद छंद


गली-गली मा खुलगे हावय, आज दुकान इहाँ।

कोन असल हे कोन नकल हे, तँय पहिचान इहाँ।


भाग नाम के पाछू झन तँय, काम बने करले।

करत करम चुपचाप रहा तँय, गाँठ बाँध धरले।


करत चापलूसी कतको हे, अब पहिचान मिलै।

बिना काम के सोचत रहिथे, अब सम्मान मिलै।


तँय मोला अउ मंय तोला के, चलथे खेल इहाँ।

चोर-चोर मौसेरा भाई, होवय मेल इहाँ।


पाये बर सम्मान इहाँ अउ, तलुवा चाँटत हे।

कतको अउ निस्वार्थ अपन के, ज्ञान ल बाँटत हे।


जगह बना ले पर के हिरदै, अपने भाग जगा।

कागज पतरी के पाछू मा, झन तँय दौड़ लगा।


ज्ञानु

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रोला छंद - दिलीप कुमार वर्मा 

सम्मान 


पाये का सम्मान, बहुत के इतरावत हस। 

अरकट्टा हे चाल, भाव भारी खावत हस। 

उड़ियाये आगास, पाँव धरती नइ माढ़े। 

सब ला बौना जान, अपन रकसा जस बाढ़े। 


नइ जानत हे तेन, बजावत राहयं ताली। 

हम जानन हर राज, तभे तो देथन गाली

करम करत हम पोठ, खाक अब तक छानत हन। 

कइसन पावय मान, आजकल सब जानत हन।


हावस तिकड़म बाज, गजब के हवस जुगाड़ू। 

नाक रगड़थस रोज, लगावत रहिथस झाड़ू। 

चमचा जयसन काम, दाम तक देके पाये। 

ये कइसन सम्मान, जेन बर तैं इतराये।   


अइसन के नइ चाह, तुही ला मिलय बधाई। 

होय तोर सम्मान, मोर बर कचरा भाई। 

आज नही ता काल, कभी तो दिन ओ आही। 

मिहनत कस ला खोज, सही सम्मान दिलाही।


दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छ ग

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उल्लाला छन्द - सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"


                      = सम्मान =


स्वाद मधुर मधुरस असन, अलंकरण सम्मान के।

कुछ मन पाइन थोरकन, कुछ मन पाइन तान के।।


तरह-तरह के आज कल, बँटत हवय सम्मान हर।

वाट्स-एप अउ फेसबुक, नजर मार सन्ज्ञान बर।।


सरकारी सम्मान के, बड़का हावय नाँव हर।

परगट हे पाथे उही, जेखर लगथे दाँव हर।।


विज्ञापन हल्ला अतिक, होवत हे सम्मान के।

दिख जाही आँखी बिना, सुना जही बिन कान के।।


साँपर के सम्मान हर, साँपरिहा कर जात हे।

कोन-जनी ए रीत के, कोन करे शुरुआत हे।।


महिना मा सम्मान के, पाती बीस-पचास ठन।

बन्धु, पवइया पात हे, भले होय विश्वास झन।।


बिरथा सरलग दउँडना, लालच मा सम्मान के।

दउँड़ ओतके हे सहीं, हो जय दरस बिहान के।।


जे तुँहला सम्मान दय, तुम उँहला सम्मान दव।

सम्मानित के हे कहन, रीत ल चलते जान दव।।


तोर मंच मा ओ पढ़य, पढ़ तँय ओखर मंच मा।

समय गवानाँ व्यर्थ हे, कवि छल कपट प्रपंच मा।


चाय मँझनिया साँझ के, चाहे रहय बिहान के।

चापलूस के चाय मा, चाह छुपे सम्मान के।।


कलम थाम्हही जेन हर, पाये बर सम्मान ला।

पा जाही सम्मान पर, नइ पाही गुण ज्ञान ला।


चित्त रखे सम्मान मा, कहाँ सिरजही पोठ हो।

कविवर आपन आपके, करत रहव मन मोठ हो।।


रोटी खा कपड़ा पहिन, द्वारे अपन मकान के।

ठाढ़े हे हर आदमी, स्वागत मा सम्मान के।।


रचना-‌ सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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सरसी छन्द

 विषय  _सम्मान


जाँनव अब सम्मान घलो के, होथे दू ठन रूप। 

एक दिखे बरसाती नाला, दूसर तपती  धूप।। 1


हाँका परगे सब समूह मा, होही जी सम्मान। 

रचना भेजव, रचना भेजव, कवि लेखक गुनवान। 2


पूरा पानी कस रेला मा, उमडें रचनाकार। 

रचना मा तो धार नहीं हे, बोहे धारे धार।। 3


पइसा मा सम्मान बिकत हें,बनगे हे व्यापार। 

भूल भुलैया हावय संगी, ये मीना बाजार।। 4



मुड़ धरके बड़ रोवत होहीं, तुलसी मीरा सूर। 

अतिक हमू मन होगे हावन,सस्ता अउ मजबूर।।5


मँय हा सबले ऊँचा हावंव, नइ बोले आकाश। 

ओखर पँवरी मा बइठे हे, हिमराजा कैलाश।। 6


आगी मा तपके सोना हा, पाये कुंदन  नाम। 

कतको राजा आय गए हें, कोन बने हें राम।। 7


प्रकृति धरे जब सूपा चन्नी, दाना राखय पोठ। 

युग नायक सब ज्ञानी ध्यानी, हें अभेद सब कोठ।। 8


दूध वंश के दही घलो हे, इही वंश के घीव। 

 एक चले हे चार दिनन बस, अउ एक चिरंजीव।। 


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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 हरिगीतिका छंद

*विषय-सम्मान*


बेटी घलो संतान होथे,राख ले *सम्मान गा।*

झन मार एला कोख मा तँय,लेत काबर जान गा।

लछमी कहाही तोर बेटी,लेन दे अवतार जी।

पढ़ लिख जगाही नाँव सुग्घर,लेगही भवपार जी।।1


बेटी कहाँ कमजोर होथे,देखले संसार ला।

अँचरा म सुख के छाँव देथे,देश अउ घर द्वार ला।

ए फूल जइसे महमहाथे,जोड़थे परवार ला।

अनमोल हीरा ताय बेटी,तारथे ससुरार ला।।2


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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रोला-छंद 

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1-

पाये बर सम्मान, विधाता मरे ल परही |

जीते जी अब कोन, आँकलन तोरे करही ||

हवय कलम मा धार, रात दिन टेंवत रहिबे |

लिखत रहा चुपचाप, कभू तैं कुछ मत कहिबे ||

2-

राजनीति के भेंट, चढ़त हे कहिबे काला |

राष्ट्र पति ईनाम, घलो मा गड़बड़ झाला ||

जे मन वजनीदार, उही मन पाथे येला |

बड़का साहितकार, आज माटी कस ढेला ||



कमलेश प्रसाद शरमाबाबू

कटंगी-गंडई 

जिला-केसीजी

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: विषय - सम्मान (गीतिका छंद)


2122 2122, 2122 212


पाय बर सम्मान ला सब, देख भागत हे इहाँ।

का लिखे हे भाग्य मा, ये कोन जानत हे इहाँ।


लड़ झगड़ के आदमी मन,लेय बर सम्मान ला।

फूँक देथे लाख रुपया, कर दिखावा जान ला।।


आज कल धंधा बने हे, खोज मनखे लात हे।

पाय पइसा जेब भरथे, तब कहूँ गुन गात हे।।


भूल जाथे आदमी सब, बेच के ईमान ला।

वाहवाही लूट लेथे, छोड़ के पहिचान ला।।


सोच ताकत हे कलम मा,खुद करौ विश्वास जी।

एक दिन पूरा तुँहर सब, होय सपना आस जी।।


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 इंद्राणी साहू: *विषय-सम्मान*

*विधा-कुण्डलिया*

~~~~~

करथे सुग्घर काम जे, वो पाथे सम्मान।

सेवा कर सब जीव के, बन जाथे गुन खान।

बन जाथे गुन खान, सबो के मितवा बनके।

देथे मया दुलार, रहय नइ वो हर तनके।

करके गुरतुर गोठ, घाव ला मन के भरथे।

हरथे सब के कष्ट, छाँव सुख के वो करथे।।


      *इन्द्राणी साहू "साँची"*

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: मुक्तामणि छन्द गीत

विषय-सम्मान

अंग्रेजी तुकांत

झोंकँय बस सम्मान ला,लेवँय फोटो शेसन।

आजकाल के कवि इहाँ,मारँय ले ले फेशन।।


सच्ची मा साहित्य के,नइ राहय कुछ मेटर।

कइसे मानी आज हम,इन ला सबसे बेटर।।

कहाँ पढ़ावँय गा कभू,सुमता के इन लेशन।

झोंकँय बस सम्मान ला,लेवँय फोटो शेसन।।


सत्य लिखइया के इहाँ,नइ हे भाई पावर।

चाटुकार कवि मंच मा,बोलय आठो आवर।।

ठलहा नाम कमाय के,होगे हावय पेशन।

झोंकँय बस सम्मान ला,लेवँय फोटो शेसन।।


बिना धार के हे कलम,नइ हे संगी फेयर।

तभ्भो मिलथे मंच मा,इनला हरदम चेयर।।

दउँड़े-दउँड़े जाँय जी,पाके इन्फर्मेशन।

झोंकँय बस सम्मान ला,लेवँय फोटो शेसन।


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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: "सम्मान" गीतिका छंद


मान  पाबे  तँय  तभे जी, दे तहूँ  सम्मान  ला।

आसरा करबे कहूँ ले, कर उकर गुणगान ला।।


काम तोरे  देख के सब, सोरियावत आ जही।

बाढ़ही  सम्मान संगी, नाम यश युग युग रही।।


चार दिन  के  चाँदनी ये, झूठ के सम्मान हा।

थोरके मे  मिल जथे गा, दाम  मा दे दान हा।।


देख के दिल दुख जथे अब, का कबे बेकार हे।

छूट  जाथे  नाम  ओकर, जेन  हा  हकदार हे।।


मोल पानी के बिकत हे, चौंक मा सम्मान हा।

बैठ देखे  लाज पावत, लोक  मा भगवान हा।।


देश खातिर हाँस के दे, वीर सँउहत जान ला।

नाम हो जाथे अमर जी, पा असल सम्मान ला।।


द्रोपती साहू "सरसिज"

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घनाक्षरी

मत कोनों लाहो लेवौ,मुड़ पीरा झन देवौ, 

तभे झट ले होथे जी, समस्या निदान हा। 

छोड़व बैर भाव ला, मेट डरव घाव ला, 

बात इही ला गुनव, मिटही अज्ञान हा। 

बोली आचार विचार, नेक रखौ व्यवहार, 

देख ताक राह धरौ, बाढ़ही जी शान हा। 

होथौ काबर अधीर, हवय धीर  मा खीर, 

सत राह मा चले ले, मिलथे सम्मान हा। 

विजेंद्र वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

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: सम्मान-हरिगीतिका छन्द


सम्मान बर सम्मान ला गिरवी धरौ जी झन कभू।

कागत धरे पाथर धरे रेंगव अकड़ जड़ बन कभू।।

माँगे मिले ता का बता वो लेखनी के शान हे।

जब बस जबे सबके जिया मा ता असल सम्मान हे।।


जूता घिंसे बूता करत तब ले कई पिछुवात हें।

ता चाँट जूता एक दल सम्मान पा अँटियात हें।।

पइसा पहुँच मा नाम पागे काम के नइहे पता।

जेहर असल हकदार हे थकहार घूमत हे बता।।


तुलसी कबीरा सूर मीरा का भला पाये हवै।

लालच जबर बन जर बड़े नव बेर मा छाये हवै।।

ये आज के सम्मान मा छोटे बड़े सब हें रमे।

नभ मा उड़त हावैं कई कोई धरा मा हें जमे।।


साहित्य साहस खेल सेवा खोज होवै या कला।

विद्वान के होवै परख मेडल फभे उँखरें गला।।

जे योग्य हें ते पाय ता सम्मान के सम्मान हे।

पइसा पहुँच बल मा मिले सम्मान ता अपमान हे।।


उपजे सुजानिक देख के सम्मान अइसन भाव ए।

अकड़े जुटा सम्मान पाती फोकटे वो ताव ए।।

सम्मान नोहे सील्ड मेडल धन रतन ईनाम ए।

बूता बताये एक हा ता एक साधे काम ए।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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 सरसी छन्द गीत- सम्मान (१९/०१/२०२३)


ये दुनिया मा ग़र पाना हे, तोला जी सम्मान । 

करले नेकी धरम-करम ला, हे मानुष गुणवान ।।


शिक्षा के तॅंय जोत जला दे, होवय  जग मा शोर । 

ॲंधियारी ला दूर भगा दे, कर दे फिटिक ॲंजोर ।।


सोये मन के भाग जगा दे, ले ले दे ले ज्ञान ।

करले नेकी धरम-करम ला, हे मानुष गुणवान ।।


सोंच समझ मन विचार कर ले, कर ले निशदिन काम ।

समय परे हे खाली रहिबे, तब करबे आराम ।।


बइठे-बइठे समय गवाॅं झन, होही बड़ नुकसान ।

करले नेकी धरम-करम ला, हे मानुष गुणवान ।।


नव युग आगे कलम उठा ले, लिख दे नव इतिहास ।

लइका ला तॅंय पढ़ा- लिखा दे, करही दुख के नाश ।।


आन बान अउ शान देश के, बनही वीर जवान ।

करले नेकी धरम-करम ला, हे मानुष गुणवान।।


✍️ ओम प्रकाश पात्रे "ओम "🙏

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 डी पी लहरे: प्रदीप छन्द गीत..


जे साहित के सा नइ जाने,वो पावय सम्मान ला।

आसमान ला छूवत हावय,का कहिबे जी शान ला


जोकड़ बनगे हावय भाई,जघा-जघा मा छाय हे।

हँसी-ठिठोली दाँत निपोरी,श्रोता ला भरमाय हे।।

देखव बेचत हावय संगी,कविकुल के पहिचान ला।

जे साहित के सा नइ जाने,वो पावय सम्मान ला।


नाम कमाये के चक्कर मा,छपथे जी अखबार मा।

सरहा लेख लिखइया सिरतो,जगमग हे संसार मा।

आज गिरावत हावय नीचा,साहित के उत्थान ला।

जे साहित के सा नइ जाने,वो पावय सम्मान ला।।


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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 कुंडलिया छंद 


विषय-सम्मान 


करले सुग्घर काम तँय, पाबे गा सम्मान। 

गुरु के चरणन शीश धर, मिलही तोला ज्ञान। 

मिलही तोला ज्ञान,गीत बड़ सुग्घर गाबे। 

पूजा कर पितु मातु,,घरे मा देव मनाबे।

जिनगी हे दिन चार, मया ले झोली भरले।

बाँट के मया दुलार, काम तँय सुग्घर करले।।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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 घनाक्षरी - दिलीप कुमार वर्मा 

सम्मान 

करम ल पूजा मान, काम बस करे चल, 

मान सम्मान के जी, आस झन राखबे। 

आज नही काली हाेही, पूजा सजे थाली होही, 

तोरो तो दिवाली होही, साफ मन राखबे। 

मिहनत टले नही, काम चोर फले नही, 

चापलूसी चले नही, साँच धन राखबे।

घुरुवा के दिन आथे, तपे ते खरा कहाथे, 

साँच सदा जीत जाथे, ओ वचन राखबे।  


दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छ ग

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: सम्मान- कुण्डलिया छंद


करथे लोगन मन इहाँ, जुगत लगा पहचान। 

तलवा चटई के बुता, पाये बर सम्मान। 

पाये बर सम्मान, जेन हर करे हुजूरी। 

बेंच अपन ईमान, आस करथे वो पूरी। 

हावय जे विद्वान, सोच थर्रा के मरथे। 

परख चतुर क़े आज, कहाँ कोनों हा करथे।।


संगीता वर्मा

भिलाई(छग)

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: कुंडलिया छंद 


विषय-सम्मान 


करले सुग्घर काम तँय, पाबे गा सम्मान। 

गुरु के चरणन शीश धर, मिलही तोला ज्ञान। 

मिलही तोला ज्ञान,गीत बड़ सुग्घर गाबे। 

पूजा कर पितु मातु,,घरे मा देव मनाबे।

जिनगी हे दिन चार, मया ले झोली भरले।

बाँटत मया दुलार, काम तँय सुग्घर करले।।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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: *सरसी छंद*

*विषय-सम्मान*


अपन कला ला बेचत हावय, थोरिक नइ हे लाज।

होड़ मचे हे मान पाय बर, सब्बो कोती आज। 


मान खरीदे बर पैसा मा, जावत हें बाजार।

होशियार सब बनत हवें गा, देखत हे संसार।।

सब मनखे मन बढ़ा चढ़ा के, अपन बतावत काज।

होड़ मचे हे मान पाय बर, सब्बो कोती आज। 


काम-धाम मा रंग-ढंग नइ, पावत हे सम्मान।

बने कला इज्जत नइ हें, जावत इँखर जान।।

नवसिखिया मन के मुड़ मा, सजत हवे अब ताज।

होड़ मचे हे मान पाय बर, सब्बो कोती आज ।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली जिला कोरबा*

*सत्र 14*

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: छप्पय छंद

सम्मान

पाथे वो सम्मान, मेहनत जे हा करथे।

छोड़े माया लोभ, उही हा आगे बढथे।।

झूठ लबारी त्याग, नेक रास्ता अपनाये।

मिलय मान सम्मान, खरा सोना बन जाये।।

मार हथौड़ी के सहे, वो पखरा बढ़ काम के।

देखा सीखी जे करय, रइ जाथे बस नाँव के।।


राज साहू

 समोदा

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: सार छंद दिलीप कुमार वर्मा 

सम्मान 


परम वीर या शौर्य चक्र हो, या हो पद्म विभूषण। 

पावत हे सम्मान उही मन, जेमन जीतत हे रण।


लेखन हो या हो समाज बर, या हो खेल खिलाड़ी। 

ओ मन ला सम्मान मिलत हे, जेमन रहे अगाड़ी। 


जन सेवा बर काम करत चल, तहू मान ला पाबे। 

पर आशा जादा झन रखबे, नइ ते बड़ पछताबे।  


आज नही ता काली मिलही, काल नही ता परसो। 

कतको अइसन करम करइया, तरसत रहिगे  बरसों।


महा पुरुष कुछ अइसे होइन, जे मन रतन कहाइन। 

सकल उमर भर काम करिन अउ, मरणासन मा पाइन। 


शासन के सम्मान परोसे, मान उही झन जानव।  

घर समाज मा नित जे मिलथे, मान उही सच मानव। 


करत रहव सम्मान सबों के, मान तभे सब पाहू। 

बड़का अउ छोटे मन खातिर, संस्कार अपनाहू। 


रचनाकार दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छ ग

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घनाक्षरी

 *सम्मान* 


पाये बर सनमान, बेंचत हवेै ईमान|

ललचाहा लालच मा, कतको सनाय हें|

चापलूसी बड़ करैं, मट मट घलो करैं|

कउड़ी के ना काम के, नाक ला

लमाय हें||


अइसनो का मान पाथें, जग मा हँसी कराथें|

कदए ना काठी तेमन, पहुँच लगाय हें|

बात मा पिटाई होगे, मुँह के लुकाई होगे|

सीट धरे बैठे हावें, मुकुट खपाय हें||


तन मा सरम चाही, कारज करम गाही|

अइसने पवइया मन, नियत गड़ाय हें||

उँखरे हे पागा भारी, गाँव गली लागा सारी|

लँगटा निंगोट वाले, मंडल कहाय हें||


अश्वनी कोसरे

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दोहा गीत दिलीप कुमार वर्मा 

सम्मान 


झन मरबे सम्मान बर, बस कागज ये जान। 

अगर करम बढ़िया रही, मिल जाही सम्मान। 


लगन लगाये नइ हवस, उपर छवा हे काम। 

मन मा राखे आस तैं, महूँ कमाहूँ नाम। 

अइसन मा नइ मिल सकय, सुन बाबू दे कान।

अगर करम बढ़िया रही, मिल जाही सम्मान। 


सोंचत हस उड़ियाय बर, खुला देख आकाश। 

बिना पाँख कइसे बने, सपना होही नाश। 

पग पग सीढ़ी चढ़ कका, मंजिल तब आसान। 

करय साधना जेन मन, ओ पावय सम्मान। 


देख दुसर के नाम ला, काबर तैं अकुलाय। 

मिहनत तैं देखे नहीं, मन ही मन खिसियाय। 

काय करे ओ काम हे, तेला पहिली जान। 

तहूँ गला हाड़ा अपन, फिर मिलही सम्मान।


रचनाकार दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छ ग

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 दोहा छंद


सुघर करम सम्मान हे,बाकी सब बेकार।

मानुष जिनगी सार हे,करौ सबो साकार।।


रुके काज पूरा करे,हरे उही इंसान।

बिपत परे मा नइ डिगे,अलग रखै पहिचान।।


राजेन्द्र कुमार निर्मलकर

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सम्मान(कुंडलिया)


पाए  बर  सम्मान  तो,  काकर  नइए  चाह।

दू  आखर  ए  वाह के,    बढ़वाथे   उच्छाह।।

बढ़वाथे   उच्छाह,  मेहनत   जमके  करथे।

रहिथे जी परवाह, पाय बिन बिकट हदरथे।।

बिना  कलम  के  दास, बने  जँउहर  रेंगाए।

'कांत' तभे  सम्मान, कभू तँय हर नइ पाए।।


सूर्यकान्त गुप्ता

सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

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*विषय - सम्मान*( छप्पय छंद) 

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मन मा रख विश्वास, मेहनत जे करथे जी।

जग मा वो इतिहास, अमरता के गढ़थे जी।।

पाथे बड़ सम्मान, करम के पाछू भइया ।

गाथे जस के गीत, गगन-धरती पुरवइया ।।

परमारथ के काज ला,करथे करतब जान के।

पाथे जी आशीष ला, सउँहे वो भगवान के ।।


-------- मोहन लाल वर्मा 

       (छंद साधक सत्र -3)

ग्रामअल्दा,तिल्दा,रायपुर(छ.ग.)

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 आशा देशमुख: हरिगीतिका छन्द


सम्मान


सम्मान तो बस भाव हे, समझव न येला चीज गा। 

मिहनत समय दोनों लगय, ये सत करम के बीज गा।। 

कुछ कोचिया मन स्वार्थ मा , धंधा बनालिन हें भले। 

लेकिन असल सम्मान हा, हर काल युग युग तक चले।।


अब तो उधारी लाय कस, होगे हवय सम्मान हा। 

लेना चुकाना बन गए, चारण सहीं गुणगान हा। 

फइले हवय हर क्षेत्र मा, ये मान उलझे जाल मा। 

पानी लिखत हे नाम अउ, मन ला भरम चिरकाल मा।  



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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*सरसी छंद*

*विषय-सम्मान*


अपन कला ला बेचत हावय, थोरिक नइ हे लाज।

होड़ मचे हे मान पाय बर, सब्बो कोती आज। 


मान खरीदे बर पैसा मा, जावत हें बाजार।

होशियार सब बनत हवें गा, देखत हे संसार।।

सब मनखे मन बढ़ा चढ़ा के, अपन बतावत काज।

होड़ मचे हे मान पाय बर, सब्बो कोती आज। 


काम-धाम मा रंग-ढंग नइ, पावत हे सम्मान।

बने कला के इज्जत नइ अब, इँखर जात हे जान।।

नवसिखिया मन के मुड़ मा, सजत हवे अब ताज।

होड़ मचे हे मान पाय बर, सब्बो कोती आज ।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली जिला कोरबा*

*सत्र 14*

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छंद- दोहा

विषय -सम्मान

साधिका- शुचि 'भवि'

स्थान- भिलाई, छत्तीसगढ़


योग्य मनुष ला नइ मिलय, इहाँ 'भवि' सम्मान।

दुम जेकर जतका हिलय, ओखर ओतक मान।।


तुमर अपन सम्मान हे, देखव तुमरे हाथ।

अभिमानी ला नइ मिलय , कोनो के भी साथ।।


बूता 'भवि' अइसन रहय, जेमा मिलही मान।

कुकुर बरोबर झन करव, पाए बर सम्मान।।


एक्के दिन मा नइ बँधय, 'भवि' ओखर सम्मान।

देव तुल्य गुरु मन सदा, नित दिन देवव मान।।


सबो चीज ला दे सकय, 'भवि' इहाँ पर दान।

कोनो ला नइ दे मगर , अपन आत्म सम्मान।।

शुचि

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: छंद- दोहा

रचनाकार-डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर  छग. 


सम्मान


बने कर्म सम्मान हर ,लेखा -जोखा रूप । 

स्वाभिमान राखव सदा, बन हूँ मन मा भूप।। 


मात-पिता सेवा करव, दव सियान ल मान। 

विनम्रता अनमोल गुण, आन बढ़य सम्मान।। 


शिक्षा ज्ञानी ले मिलय,साधव साधक ज्ञान। 

धर्म-अर्थ-मोक्ष चुनो, धर आत्म-सम्मान ।। 


भावभीनी अहं घातक हवे, क्षमाशीलता आन। 

बोल मधुर बोलव सदा, करय सबो सम्मान।। 


मिलय समाजिक मान तव, मन बाढय संतोष। 

बदलत हावय रूप अब,मोल  देत परितोष।। 


धर्म -कर्म हर क्षेत्र मा, निर्धारित सम्मान। 

जिनगी बर अनमोल हे, गौरव पंथ महान।। 

 

छंद-कला परिवार मिल,गुनय सुघर संलाप। 

साधक गुरु नित साधना, सम्मानित घर भाँप ।। 


छंदकार- डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छग

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 दीपक निषाद, बनसांकरा: विषय-- *सम्मान*


हरिगीतिका छंद 


सम्मान खातिर आदमी करथे उदिम सरलग अबड़।

अवसर मुताबिक तन जथे सकला जथे जइसे रबड़। ।

सम्मान हा सिर मा चघय कतकोन के बनके नशा। 

सम्मान के लालच बिगाड़य आदमी मन के दशा। ।


सम्मान के भूखा सबो रहिथे जगत के रीत जी। 

कतको सुनावय मान खातिर चापलूसी गीत जी।।

गदहा ल बोलय बाप रगड़य नाक कतको द्वार मा।

बस मान जइसे भी मिलय थोड़ा-बहुत संसार मा।।


लेकिन यहू सच ए टिकय नइ कभू झूठा मान हा।

 कोनो ल फोकट मा कभू नइ मिलय सत सम्मान हा।।

सम्मान ला कोनो बिसाये नइ सकय बाजार ले। 

सम्मान मिलथे आदमी ला काम ले व्यवहार ले। ।


दीपक निषाद--लाटा (भिंभौरी)-बेमेतरा

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: दोहा छंद

लिखैया - शशि साहू कोरबा छग


गुरू ज्ञान धन देत हे, सदा करव सम्मान। 

गुरू कृपा बिसराव झन,जब तक घट मे प्रान।। 


पाये बर सम्मान हे,सबला दे तँय मान। 

बोलत वचन विचार के,तज के सब अभिमान। 


चार घड़ी के जिन्दगी,रखबे झन अनबोल।

तार साँस के टूटही, अउ दुनिया ले गोल।।


सब घट बइठे राम हे,वोला दे तँय मान। 

हाथ जोर जोहार ले,ये सतगुन ला जान।। 


हाँसत भाखा बोल ले, चिटिक लगे नइ दाम

सबला साहेब बंदगी,सबला जय श्री राम।। 


छंद साधिका- शशि साहू 

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*सम्मान---- दोहा छंद*


सत  के  रद्दा  मा  चलव,  कहे सदा सत ज्ञान ।

कारज सब अइसे करव, खुद मिलही सम्मान ।।


आजकाल सम्मान हा,  बिकत हवय बाजार ।

औने- पौने  दाम  मा,  ले  आवँय  घर  द्वार ।।


सबो बनावत हे इहाँ,  बिसा-बिसा पहिचान ।

होड़ लगे हे आज गा,  पाए  बर  सम्मान ।।


जे मन देवय मान जी, लहुट मिलय सम्मान ।

सार बात  हावय इही,  हे  मुरूख  इंसान ।।


नकली-चकली शान बर, होवत  हे  बैपार ।

मान  कभू  पाए  नहीं,  जाए  धारे  धार ।।


*मुकेश उइके "मयारू"*

ग्राम- चेपा, पाली, जिला- कोरबा(छ.ग.)

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शक्ति छन्द

122--122--122--12


हदय मा बसे जे  मया खोज ले।

बला तीर मोला दया खोज ले।। 


बिसाके मिलत आज सम्मान जी। 

बियापत हवय मन दशा खोज ले।। 


निहारौ न दरपन चलव मोह तज।

उही रूप जुन्ना मजा खोज ले।। 


हँसी अउ ठिठोली मिलाके नयन। 

बहै  प्रेम  धारा  नता  खोज  ले।। 


कहाँ  ओ लुकागे मया डार के। 

गिरै धार आँसू सजा खोज ले।। 


न सम्मान पावै सहीं आदमी। 

दिखावा कथन के पता खोज ले।। 


शिशिर के नजर मा सबो एक हे। 

कहानी लिखे बर लता खोज ले।। 


सुमित्रा शिशिर

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: सार छंद दिलीप कुमार वर्मा 

सम्मान 


बेंचत हँव सम्मान खरीदव, आके बीच बजरिया। 

लटकावव दीवार रहय झन, घर हर निच्चट परिया। 


बड़े-बड़े मोमेंटो ले लव, सुग्घर नाम छपा के। 

जइसन चाही तइसन फोटो, चिपकावव खिंचवा के। 

अड़बड़ सस्ता बेंचत हावंव, आके तुहर नगरिया। 

लटकावव दीवार रहय झन, घर हर निच्चट परिया। 


कुछ बड़का कुछ छोटे हावय, कुछ हे गजब निराला। 

हर तपका आ नाम कमालव, पाँव परे बिन छाला।  

चमचम झमझम चमकत हावय, जैसे सजे सुंदरिया।

बेंचत हँव सम्मान खरीदव, आके बीच बजरिया। 


मिले प्रशस्तिपत्र इहां हे, पाव किलो ले जावव। 

चना फुटेना जइसन कीमत, आवव जल्दी आवव। 

बड़ दुरिहा ले आए हावंव, मैं हर तुहर दुवरिया। 

बेंचत हँव सम्मान खरीदव, आके बीच बजरिया।


रचनाकार दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छ ग

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3 comments:

  1. जबरदस्त संकलन हार्दिक बधाई शुभकामनाएं

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  2. पठनीय रचनाओं का संग्रहण

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