छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के हार्दिक बधाई।
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एक नवम्बर हे बड़ पावन, कातिक चलौ नहाबो जी।
राज बनिस छत्तीसगढ़ संगी, आवव खुशी मनाबो जी।।
धान कटोरा छलकत हाबय,छाये हाबय हरियाली।
इंद्रधनुष के रंग सहीं जी, बगरे हाबय खुशहाली।।
महानदी के निरमल पानी,गावत सुवा ददरिया हे।
अरपा पैरी सोंढुर हसदो, देवत टेही बढ़िया हे।।
घन जंगल बस्तर के हरियर,तीरथगढ़ देखौ झरना।
दंतेश्वरी मातु के दरशन, करलव भइया हे तरना।।
हे गिरौद शिवरीनारायण, राजिम सिरपुर खल्लारी।
तुरतुरिया मल्हार इहाँ हें, जिंकर महिमा हे भारी।।
कौशिल्या माता के मइके, भाँचा राम कहाये हे।
बालमिकी जी इहें रहिस जे, रामायण सिरजाये हे।।
तिज तिहार अउ नेंग जोग हा,नइये कहूँ इहाँ जइसे।
आथे परब छेरछेरा तब, धान दान देथँन कइसे।।
बना ठेठरी खुरमी चीला,फागुन खूब मनाथन जी।
फरा बरा संँग गुलगुल भजिया, बाटँ बाँट के खाथन जी।।
गिल्ली डंडा भौंरा बाँटी,रेस टीप जग जाहिर हे।
फुगड़ी पित्तुल खुड़वा खो खो,खेले लइका माहिर हे।।
टोंड़ा ककनी गर के सूँता, खिनवा फुल्ली करधन हे।
छत्तीसगढ़हिन महतारी के, सुंदर तन उज्जर मन हे।।
सुमता के रसता मा चलथें, सबो इहाँ के रहवासी।
सिधवा जाँगर पेर कमइयाँ, खा लेथें चटनी बासी।।
अत्याचारी संग लड़े बर,हाबय लोहा कस छाती।
अउ मितवा बर लिखथे रहिथन, दया मया के नित पाती।।
आवव संगी छत्तीसगढ़ ला, मिलजुल सरग बनाबो जी।
एक नवम्बर हे बड़ पावन,आज तिहार मनाबो जी।।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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महतारी छत्तीसगढ़, हमर गरब अभिमान।
छत्तीसगढ़ी गोठ हा, दया मया पहिचान।।
दया मया पहिचान, रखे हें छत्तीसगढ़िया।
धान मुकुट मुड़ तोर, फबत हे सुग्घर बढ़िया।।
खेत खार खलिहान, हवय महकत फुलवारी।
वंदन हे कर जोर, मयारू ओ महतारी।।
सपना पुरखा के सँजो, छत्तीसगढ़ गढ़ राज।
काम मिले हर हाथ ला, आवय नवा सुराज।।
आवय नवा सुराज, मिटे दुख के अँधियारी।
गावँय सुमता गीत, साथ मिल नर अउ नारी।।
भाखा के सम्मान, मान लौ सब झन अपना।
पूरा कर लौ आज, हमर पुरखा के सपना।।
इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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*छत्तीसगढ़ी दाई* (16/13)
छत्तीसगढ़ी भाषा सुग्घर,
दाई तोर दुलार हे ।
गुरतुर बोली मँदरस जइसन,
बरसत मया फुहार हे।
आवव संगी भाई जुरमिल,
गुन माटी के गाव जी।
बनके सबो किसान नँगरिहा,
अन्न सोन उपजाव जी।।
करमा-सुआ-ददरिया सुग्घर,
गली-गली गोहार हे।
गुरतुर बोली मँदरस................
बगरत हावै चारों कोती,
दाई के ईमान हा ।
एखर सेती बाढ़त हावै,
दुनिया मा पहिचान हा।।
महतारी भाखा मा सुन लौ,
जम्मों ला जोहार हे।
गुरतुर बोली मँदरस...............
गंगा कस पबरित भाखा हे,
एखर गुन गायेंव मँय।
ननपन ले सुन-सुन के भइया,
ज्ञान ज्योति पायेंव मँय।।
मान मिलत सम्मान मिलत हे,
जग मा कृपा तुम्हार हे।
गुरतुर बोली मँदरस................
रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
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सरसी छंद गीत---- छत्तीसगढ़ महतारी
देखव छत्तीसगढ़ बने ले, मिलिस नवा पहिचान ।
महतारी के मान बढ़े हे, सुनले मोर मितान ।।
किसम-किसम के लोक गीत हे, रोज मया बगराय ।
करमा-पंथी सुवा-ददरिया, सबके मन ला भाय ।।
एकर महिमा हावय भारी, कइसे करँव बखान ।
महतारी के मान बढ़े हे, सुनले मोर मितान ।।
धनहा-डोली टिकरा टाँगर, धान पान लहराय ।
होत बिहिनिया चिरई-चिरगुन, गीत मया के गाय ।।
बोली भाखा मीठ इहाँ के, मीत मयारू जान ।
महतारी के मान बढ़े हे, सुनले मोर मितान ।।
आनी-बानी जुरमिल जम्मों, मानँय तीज तिहार ।
होली-अक्ती परब हरेली, हावय तीजा सार ।
लोहा-टीना चूना-पखरा, एकर भरे खदान
महतारी के मान बढ़े हे, सुनले मोर मितान ।।
अंगाकर अउ गुरहा बजिया, सुनके टपकय लार ।
बोहावत हे महानदी अउ, अरपा पैरी धार ।
चंदन कस माटी हे एकर, पाये जी बरदान ।
महतारी के मान बढ़े है, सुनले मोर मितान ।।
मुकेश उइके "मयारू"
ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा( छ.ग.)
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सार छंद
महिमा तोरे महिमा गावँव, छत्तीसगढ़ महतारी।
मँय आरती उतारौं दाई, धरे सोनहा थारी।
मया पिरीत मा सबले आगू,तोरे बेटी बेटा।
दुश्मन बर आगी बन जाथें,परही कनो सपेटा।
जुरमिल सबो तिहार मनाथन,होरी अउ देवारी।
मँय आरती उतारँव दाई, धरे सोनहा थारी।।
सुवा ददरिया पंथी नाचा,सबके मन ला मोहे।
राउत नाचा साजू पहिरे,पंख मयूरा सोहे।
छत्तीसगढ़ी बोली भाखा,लागे जस महतारी।
मँय आरती उतारँव दाई, धरे सोनहा थारी।।
हरियर लुगरा पहिरे दाई, कनिहा करधन सोहे।
माथे मुकुट धान के बाली,मन किसान के मोहे।
पाँव आलता बिछिया चुटकी,रुनझुन बाजे पैरी।
मँय आरती उतारँव दाई, धरे सोनहा थारी।।
महानदी अउ सोंढू पैरी, तोरे चरण पखारे।
छत्तीसगढ़ी बेटा तोरे, पैंया लाग गुहारे।
दया मया बरसावत रहिबे,माता पालन हारी।
मँय आरती उतारँव दाई, धरे सोनहा थारी।।
कतका तोरे महिमा गावँव, छत्तीसगढ़ महतारी।
मँय आरती उतारँव दाई धरे सोनहा थारी।
केवरा यदु"मीरा"राजिम
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