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Tuesday, October 15, 2024

कुण्डलिया छंद

 कुण्डलिया छंद 


जरही भारत देश मा, रावन के प्रतिरूप। 

असली रावन घूमथे, बदल-बदल के रूप।। 

बदल-बदल के रूप, हरन करथे नारी के। 

मूड़ मुड़ाही कोन , उही अत्याचारी के।। 

कहत शिशिर सच बात, दाग मा अचरा भरही।

जनम धरत हर साल , फेर का रावन जरही।। 


ज्ञानी हे लंकेश हा , गुण अवगुण भरपूर। 

अभिमानी के छाँव मा, मानवता हे दूर।। 

मानवता हे दूर, काम करथे मनमानी। 

अंतस कपटी चाल,  चलत हे भीतर घानी ।। 

कहत शिशिर सच बात, लोग बइठे अग्यानी। 

कहिथे सब बइमान, भले हो कतको ज्ञानी।। 


सुमित्रा शिशिर

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