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Saturday, May 31, 2025

नवतप्पा के घाम-सरसी छंद

 नवतप्पा के घाम-सरसी छंद


अल्थी कल्थी भूंजत हावै, नवतप्पा के घाम।

आकुल ब्याकुल जिनगी होगे, का बिहना का शाम।।


आग लगे हे घर के भीतर, बाहिर ला दे छोड़।

सोच समझ नइ पावत हे मन, उसलत नइहे गोंड़।।

चले झांझ झोला बड़ भारी, थमगे बूता काम।

अल्थी कल्थी भूंजत हावै, नवतप्पा के घाम।।


पक्का हावै ठिहा ठिकाना, पक्का गली दुवार।

सड़क साँप कस फुस्कारत हे, खाके अपने गार।।

तरिया नदिया नरवा पटगे, कटगे पेड़ तमाम।

अल्थी कल्थी भूंजत हावै, नवतप्पा के घाम।।


बदल डरे हन रूप प्रकृति के, कहिके हमन विकास।

आफत बाढ़त जावत हे अब, होय चैन सुख नास।।

पानी बिना बुझावत हावै, जीव जंतु के नाम।

अल्थी कल्थी भूंजत हावै, नवतप्पा के घाम।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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