Followers

Wednesday, August 9, 2023

विश्व आदिवासी दिवस विशेष






 विश्व आदिवासी दिवस विशेष


विश्व आदिवासी दिवस, नौ अगस्त बुधवार।

जय सेवा जोहार हो, जय सेवा जोहार।।


जल जंगल हे जीव अस, जिनगी असन जमीन।

सब-झन हन बिन तीन के, दुखियारा अउ दीन।।


इस्कुल विद्यालय खुलिस, लइकन पढ़िन लिखीन।

अफसर नेता मंतरी, धन-धन भाग बनीन।।


धन्यवाद यू एन ओ, अभिनन्दन आभार।

जय सेवा जोहार हो, जय सेवा जोहार।।


मन डरथे अँधियार ले, तोर रहय के मोर।

पर ये डर भय भागथे, भेट-भेट के भोर।।


बूँद-बूँद अँधियार ला, लेवय सुरुज बटोर।

चहकय चिरई संग मा, नित जिनगी घर खोर।।


भेजत हन भलमनशुभा, कर लेहव स्वीकार।

जय सेवा जोहार हो, जय सेवा जोहार।।


-सुखदेव सिंह "अहिलेश्वर"

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

दोहा

विश्व आदिवासी दिवस, चलव मनाबो आज।

पाये हक अधिकार बर, मिल करबो कुछ काज।।


जल जंगल से झन रहै, इमन कभू अब दूर।

कोई  दुश्मन झन करय, जीये  बर मजबूर।।


बेटा गुण्डाधुर इँहा, भरिस जोर ललकार।

वीर नरायण हा बनिस, माटी के रखवार।।


धान कटोरा के चलौ, करबो जी गुनगान।

भरे रहै छत्तीसगढ़, सदा धन्य अउ धान।।


एक  दिवस  मा का भला, कर  पाबो  सम्मान।

विश्व पटल मा मिल चलौ, दिलवाबो पहिचान।।

इंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *हम आदिवासी(सरसी छंद)*


हमी आदिवासी अन भइया,

                        हम जंगल रखवार।

करमा, सुआ, ददरिया गाथन,

                       रेला   के   बौछार।।


बघवा, भलुआ संग रहइया,

                       संग धनुष अउ बान।

कंद मूल कोदो-कुटकी के,

                       हमी खवइया आन।।

बरछी भाला हमरे गहना,

                         जीव जंतु परिवार।

हमी आदिवासी अन भइया............


वीर नरायण, बिरसा मुंडा,

                         गुण्डाधुर पहिचान।

रानी दुर्गावती जनम लिन,

                         देशहित बलिदान।।

आदि पुरुष हम बन के वासी,

                          जल जंगल संसार।

हमी आदिवासी अन भइया..............


संकट आज दिखत हे भारी,

                          आगू आही कौन।

हमर धर्म परिवर्तन होवत,

                        देखत मनखे मौन।।

आज बचावव हमर संस्कृति,

                          पारत हन गोहार।

हमी आदिवासी अन भइया.............



रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 आदि काल के वासी हम अन, नाम आदिवासी हे।

सुघर हमर संस्कृति पावन, जग हर जेकर दासी हे।।


रुख राई बन नदियां नरुवा, परबत संग मितानी।

पात पात अउ डाल डाल हर, कहिथे हमर कहानी।।

बघवा भलवा संगी साथी, नता सुघर कासी हे।

आदि काल के वासी हम अन, नाम आदिवासी हे।।


चिरई चुरगुन जीव जंतु हर, समझे हमरो भाखा।

इखरे बीच हमर पूर्वज रहि, अपन बढ़ाइन शाखा।

सुख दुख मीत मितानी जंगल, ले बारहमासी हे।

आदि काल के वासी हम अन, नाम आदिवासी हे।।


रेलो करमा दमकच सरहुल, गौर मांदरी पाटा।

ढांढ़ल सैला गेड़ी गोचा, नाच सुघर निज बांटा।।

कंद मूल शुभ मोर भाग हे, मन मा बड़ हाॅंसी हे।

आदि काल के वासी हम अन, नाम आदिवासी हे।।


धन दौलत नइ चाही मोला, जंगल मोर खजाना।

हवा पात रुख भौंरा तितली, संग गात मन गाना।।

दूर कपट छल रहिथे सब दिन, छूए न उदासी हे।

आदि काल के वासी हम अन, नाम आदिवासी हे।।

सुघर हमर संस्कृति पावन, जग हर जेकर दासी हे......



मनोज कुमार वर्मा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: विश्व आदिवासी दिवस के हार्दिक शुभकामना💐


जल जमीन जंगलझाड़ी के, मीत मितान तही।

कला सभ्यता संस्कृति के अउ, अस पहिचान तही।।


पेड़ पहाड़ पठार डोंगरी, के रखवार तही।

ये भुइँया अउ खेतीबारी, के आधार तही।।


मया तुँहर बोलीभाखा ले, जस मदरस बरसै।

देख तुँहर भोलापन ला बड़, मन मयूर हरसै।।


करमा सुआ ददरिया सुग्घर, का गम्मत कहना।

लेना देना नइ कखरो ले, मस्त मगन रहना।।


अपन हाथ ला फइलाना नइ, आवय रास कभू।

रहिथव मिहनत अपन भरोसा, भूख पियास कभू।।


करे दिखावा कुछु नइ जानव, निच्चट हव सिधवा।

तभे तुँहर हक ला लूटत हे, कतको बन गिधवा।।


काँप जथे बड़ देख जिया हा, उजड़त जंगल हे।

बढ़य प्रदूषण अउ जिनगी ले, दुरिहाँ मंगल हे।।


ज्ञानु

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

आदिवासी दिवस पर मोर रचना


हमन आदिवासी आवन गा, जंगल झाड़ी हमर मकान। 

डारा - डारा पाना - पाना, इहि मन आवंय हमर मितान।। 


किसम - किसम के जीव जनावर, का भालू का हाथी शेर। 

अपन प्राण के रक्षा खातिर, कर देथन ये मन ला ढेर।। 


जंगल के जिनगी ला भैया, पढ़के जाने चातर राज।

काटत हवंय हमर जंगल ला, गिरत हवय अब दुख के गाज।। 


जतका कंदमूल फल मेवा, सब आवंय जंगल के देन। 

लूट डरिन हमला दुनिया हा, सिधवा बनके सुते रहेंन।। 


आदि काल से मनखे मन के, होये हमरे  ले शुरुवात। 

नदिया नरवा जंगल झाड़ी, इंखर से करथन हम बात।।


माँग - झांग के नइ खावन हम, कर्मठ जिनगी हे पहिचान। 

अपन सुरक्षा खातिर रखथन, भाला तरकस तीर कमान।। 


असली भारत ला देखे बर, आवंय दुनिया हमरे तीर। 

हावन हमीं प्रजा अउ राजा, हमरे भीतर बसे फकीर।। 



आशा देशमुख

एनटीपीसी कोरबा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


विश्व आदिवासी दिवस की ढेरों बधाइयाँ


मैं रहवया जंगल के- आल्हा छन्द


झरथे झरना झरझर झरझर, पुरवाही मा नाचय पात।

हवै कटाकट डिही डोंगरी, कटथे जिंहा मोर दिन रात।


डारा पाना काँदा कूसा, हरे मोर मेवा मिष्ठान।

जंगल झाड़ी ठिहा ठिकाना, लगथे मोला सरग समान।


कोसा लासा मधुरस चाही, नइ चाही मोला धन सोन।

तेंदू मउहा चार चिरौंजी, संगी मोर साल सइगोन।


मोर बाट ला रोक सके नइ, झरना झिरिया नदी पहाड़।

सुरुज लुकाथे बन नव जाथे, खड़े रथौं सब दिन मैं ठाड़।


घर के बाहिर हाथी घूमय, बघवा भलवा बड़ गुर्राय।

चोंच उलाये चील सोचथे, लगे काखरो मोला हाय।


छोट मोट दुख मा घबराके, जाय मोर नइ जिवरा काँप।

रोज भेंट होथे बघवा ले, कभू संग सुत जाथे साँप।।


काल देख के भागे दुरिहा, मोर हाथ के तीर कमान।

झुँझकुर झाड़ी ऊँच पहाड़ी, रथे रात दिन एक समान।


रेंग सके नइ कोनो मनखे, उहाँ घलो मैं देथौं भाग।

आलस अउ जर डर जर जाथे, हवै मोर भीतर बड़ आग।


बदन गठीला तन हे करिया, चढ़ जाथौं मैं झट ले झाड़।

सोन उपजाथौं महिनत करके, पथरा के छाती ला फाड़।


घपटे हे अँधियारी घर मा, सुरुज घलो नइ आवय तीर।

देख मोर अइसन जिनगी ला, थरथर काँपे कतको वीर।


शहर नगर के शोर शराबा, नइ जानौं मोटर अउ कार।

माटी ले जुड़ जिनगी जीथौं, जल जंगल के बन रखवार।


आँधी पानी बघवा भलवा, देख डरौं नइ बिखहर साँप।

मोर जिया हा तभे काँपथे, जब होथे जंगल के नाँप।


पथरा कस ठाहिल हे छाती, पुरवा पानी कस हे चाल।

मोर उजाड़ों झन घर बन ला, झन फेकव जंगल मा जाल।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


3 comments:

  1. सुग्घर संकलन। जय जोहार🙏

    ReplyDelete
  2. कम रचना लेकिन बड़ सुग्घर संकलन
    बहुत बहुत बधाई हो गुरु जी

    ReplyDelete