(21अगस्त- विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस विशेष)
सरसी छंद गीत- *सियान*
होथे धरखन सियान घर के, जइसे कांड़ मँयार।
सुख मा दुख मा थेगा बनके, जोड़ रखय परिवार।।
जिनगी के सुख सार बतावय, करय सियानी गोठ।
कहय सिखौना बात धरे ले, होथे मन हा पोठ।।
दूर रखय झगरा झंझट ले, बाँटय मया दुलार।
होथे धरखन सियान घर के, जइसे कांड़ मँयार।।
बिना सियान धियान नहीं जी, कहिथें दुनिया लोग।
दिये बिना आदर सियान ला, बिरथा हे तप जोग।।
पार करय डुबती नइया ला, बन के जी पतवार।।
होथे धरखन सियान घर के, जइसे कांड़ मँयार।।
देव समान सियान हवय जी, पबरित उंखर पाँव।
देवय सुख पुरवाई सब ला, बन पीपर बर छाँव।।
सुसकय झन जी कभू बुढ़ापा, नैनन आँसू ढार।
होथे धरखन सियान घर के, जइसे कांड मँयार।।
कर्म धर्म संस्कार सिखावय, रीति नीति के बात।
फेर बहू बेटा बेटी मन, सब ला हे बिसरात।।
गजानंद कर सियान सेवा, देबे कर्ज उतार।
होथे धरखन सियान घर के, जइसे कांड मँयार।।
इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)21/08/2023
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बरवै छन्द गीत - सियान (२१/०८/२०२३)
घर के मुड़का - पटिया , हमर सियान ।
थामें रखथे घर ला , घर के जान ।।
करलव सेवा मिलही , आशीर्वाद ।
पल भर मा हो जाही , घर आबाद ।।
दुख सहिके सुख देथे , हवय महान ।
घर के मुड़का - पटिया , हमर सियान ।।
घर के चिन्ता करथे , ओहा रोज ।
कोन कहाॅं कइसे हे , लेथे खोज ।।
चीज़ खॅंगे नइ पावय , देथे लान ।
घर के मुड़का - पटिया , हमर सियान ।।
धरम - करम नेकी के , सुन लव बात ।
कभू - तीर नइ आवय , बइरी घात ।।
पूजा करलव निशदिन , देव समान ।
घर के मुड़का - पटिया , हमर सियान ।।
बिन सियान के सुन्ना , घर - परिवार ।
नइ पावय लइका मन , मया - दुलार ।।
पूरा कइसे होही , शिक्षा ज्ञान ।
घर के मुड़का - पटिया , हमर सियान ।।
✍️ओम प्रकाश पात्रे "ओम "🙏
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गीत--सियान मन
ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।
जनम देवइया जतन करइया, भुइयाँ के भगवान मन।
पेड़ पात पानी पुरवा ला, जस के तस सौपिन हम ला।
रखिन बचा के सरी चीज ला,खुद उपभोग करिन कम ला।
लागा, पागा धर नइ करिन, सपना खातिर सुजान मन।
ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।
चिपके रिहिन हावयँ सबदिन, मानवता के गारा मा।
दया मया ला बाँटत फिरिन, गाँव गली घर पारा मा।
लाँघन नइ गिस जिंखर ठिहा ले,जानवर ना इंसान मन।
ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।
सही गलत अउ पाप पुण्य के, लहराइन सबदिन झंडा।
छोड़दिन बैरी ला बदी देके, नइ देखाइन आँखी डंडा।।
अंतर मन ला आनन्द देवयँ, जिंखर सुर अउ तान मन।
ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।
परम्परा अउ संस्कृति के, सौदा करिन नही कभ्भू।
देखावा अउ चकाचौंध बर, लड़िन मरिन नही कभ्भू।
चद्दर देख लमाइन हें पग, उड़िन मनुष नइ महान मन।
ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।
नता रिस्ता ला हाँस निभाइन,पीठ चढ़ाइन नाती ला।
कथा कहानी न्याय सुनाइन, लिखिन पढ़िन पाती ला।।
नवा समय मा नोहर होही, जुन्ना गुण अउ ज्ञान मन।
ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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