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Monday, August 14, 2023

विषय- पेड़

विषय- पेड़


: लावणी छंद

मिलथे पुरवाई सुग्घर के, फर मिलथे आनी बानी।

जेकर नीचे जुड़ छइँहा मा, मिल जाथे मीठा पानी।।


पेड़ लगावव भैया ए तो,  माँ धरती के गहना हे।

रुखराई ले हे खुशहाली, पेंड़ जतन बर कहना हे।।


बिना पेड़ पौधा के कैसे, बंजर जैसे ये दिखथे।

महँगाई मा मँहगा होके, देख फटाफट का बिकथे।।


आज जमाना बदलत हावय, मौसम घलो बदलगे हे।

पेंड़ लगा घर बन सुख पाहीं, तहाँ प्रदूषण टलगे हे  ।।


कतका संसो सांस बसे हे, तन मन ला हर्षा ले चल। 

सोंचे भर ले का हो जाही, पेड़ बचा तब बँचही कल ।।


अश्वनी रहँगिया

कबीरधाम


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: छप्पय छन्द

*पेंड़*


चलव लगाबो पेंड़,बने धरती हरियाही।

लेबो सुघ्घर साँस,तभे जिनगी बच पाही।

सुख के पाबो छाँव,संग फुरहुर पुरवाही।

पेड़ बचाही जान,खुशी जन-जन मा छाही।

एक पेंड़ होथे सुनौ,सौ-सौ पूत समान जी।

रक्षा करबो रोज हम,मिलके रखबो ध्यान जी।।


डी.पी.लहरे'मौज'

कवर्धा छत्तीसगढ़


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: गीत( विष्णुपद छंद)


पेड़ लगाबो, पेड़ लगाबो, जुरमिल आज चलौ।

ये भुइँया ल सँवारे खातिर, करबो काज चलौ।।


- बाग-बगीचा, जंगलझाड़ी, उजड़े देख इहाँ।

जीव-जंतु अउ पशु पक्षी बर, नइये आज ठिहाँ।


जेन उजारे खोज मारबो, अइसन बाज चलौ

ये भुइँया ल.....


-पर्यावरण प्रदूषित होंगे, चिंता कोन करे।

शुद्ध हवा बिन जीव-जंतु अउ, मनखे रोज मरे।


धरती के श्रृंगार पेड़ हे, करबो साज चलौ।

ये भुइँया ल.....


-प्राणदायिनी हे रुखराई, जतन इँखर करबो।

पेड़ लगाके हरियर-हरियर, गाँव-शहर करबो।


पेड़ लगा जें रक्षा करथे, करबो नाज चलौ।

ये भुइँया ल......


ज्ञानु

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पर्यावरण - मत्तगयन्द सवैया


पेड़ कटावत जंगल के अब चातर होवत कोन बचाही।

जीव जिनावर जाय कहाँ इँखरो सुख सोचव जी छिन जाही।।

बाँध सुखावत नीर बिना विपदा अब देखव दौड़त आही।

चेत करौ अब पेड़ लगावव ये भुइयाँ तब तो हरियाही।।


शुद्ध हवा बिन पेड़ कहाँ अब दूषित होवत जावत हावै।

साँस इहाँ महँगा कस लागय देखव लोग बिसावत हावै।।

देख अगास धुआँ सब डाहर जाहर रूप उड़ावत हावै।

सूरज देव घलो अब तो धमका बहुते बरसावत हावै।।


बाढ़त हे गरमी अब तो नदिया-नरवा-रुख आज सुखावै।

का दिन बादर आय हवै अब सूरज देव जरावत हावै।।

नीर बिना तड़पै सब जीव बता कइसे अब प्राण बचावै।

हे भगवान करौ बरसा सब जीव इहाँ हिरदे जुड़वावै।।


छंद रचना-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)


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: हरिगीतिका छन्द


अब्बड़ अकन संदेश देवत पेड़ अउ ये छाँव हा। 

जानव इही कस हे ददा दाई अपन घर गाँव हा। 

एखर तरी निर्मल मया, सब जीव मन के आसरा। 

जग ला लुटावंय पेड़ मन , लेवय नहीं कोनो करा।। 


फल फूल डारा पान मन सब जीव बर वरदान हे। 

ये पेड़ छइयाँ के बिना भुइयां लगय शमशान हे। 

हरियर घना हरदम रहय, इंखर सरेखा ला करव । 

उपकार इंखर मानके जिनगी अपन सुख से भरव।। 



चाँटी चिरैया टेटका चिटरा सबो के घर इहाँ । 

कतको किसम के जीव मन सद्भाव से रहिथें जिहाँ।। 

एके मया ममता रखे  सब जीव अउ संसार बर। 

 जइसे लुटाये प्रेम धन दाई ददा परिवार बर।



आशा देशमुख

एनटीपीसी कोरबा


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 *कुण्डलियॉं छंद*


देवत हे संदेस बड़, रुख राई के छॉंव।

पर हित खातिर मॅंय जियॅंव, काम पोठ के आ‌ँव।।

काम पोठ के आ‌ँव, फूरहुर हवा मोर हे।

ठण्डा सुग्घर छाॅंव, फूल फर सबो तोर हे।।

रहिथे कतको जीव, अपन निज जीनगी खेवत।

खुशी इही हे मोर, रोज के रहिथॅंव देतव।। 


सौ ठन पुत कस मॅंय हवॅंव, कहिथे सबझिन लोग।

प्रकृति शुद्ध अउ पोठ कर, दूर करॅंव नित रोग।।

दूर करॅंव नित रोग, काम दवई के आके।

रख लव तुम संजोय, गॉंव घर तीर लगाके।।

आथॅंव काम समूल, शांति सुख बॉंटत धन-धन।

कहिथे सबझिन लोग, हवॅंव पुत कस सौ ठन।।



मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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            *पेड़ लगावा* (सखी छंद)


पेड़ लगा छइहाँ पाँही, चलत बटोही सुरताँहीं। 

रेंगत रेंगत थक जाथें, पेड़ तरी सुख सब पाथें। 


काटे ले हम का पाबो, पेड़ लगा के फर खाबो। 

जुरमिल के पेड़ लगाबो, भुइयाँ ल फेर समराबो। 


पेड़ जगा भुइयाँ खाली, लगा बचाये बर जाली। 

करबो ओखर रखवारी, मिल जुल के पारी पारी। 


तीपत हे धरती माता, रुख-रुखवा ओखर छाता। 

पेड़ जगा कोरी कोरी, फर होही बोरी बोरी। 


जंगल जामे रुख-राई,काटव झन एला भाई। 

एखर ले बरसा होथे, पोखर नदिया भर जाथे। 


एसों झन भूला जाबे,तँय पीपर पेड़ लगाबे। 

गाँव सिवाना सँगवारी, पीपर करथे रखवारी। 


            - वसन्ती वर्मा, बिलासपुर

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