: "राष्ट्रीय हथकरघा दिवस" के शुभकामना..
(National Handloom Day)
फगुवा-फगनी के गोठ : कवित्त
(जनकवि कोदूराम "दलित")
(1)
मोर एक बात तँय सुन वो नोनी के दाई
स्वदेशी खादी भण्डार आज महूँ जाहूँ वो
तोर बर मोर बर, नोनी बाबू सबो बर
शुद्ध खादी आन्ध्र-हैद्राबाद के बिसाहूँ वो।
तीस रूपिया सैकड़ा, छूट अब देत हवैं
सौ रूपिया के खादी, सत्तर मा लाहूँ वो
दे दे मोला रूपिया मैं जाहूँ परोसी के संग
सुग्घर खटाऊ खादी, लान के दिखाहूँ वो।।
(2)
दसेरा देवारी के तिहार बार आत हवै
जाव हो बाबू के ददा, खादी ले के लाहू हो
मोर बर लहँगा पोलखा अउ नोनी बर
तीन ठन सुन्दर फराक बनवाहूँ हो।
बाबू बर पइजामा कमीज टोपी अउ पेन्ट
बण्डी कुरता अपन बर सिलवाहू हो
धोती लगुरा अँगोछा पंछा उरमार झोला
ओढ़े बिछाए के सबो कपड़ा बिसाहू हो।।
*रचनाकार - जनकवि कोदूराम "दलित"*
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[8/7, 10:40 AM] jeetendra verma खैरझिटिया: हथकरघा के बेरा-सार छंद
सबे काम ला झट टारे बर, हे मशीन सब डेरा।
अइसन मा अब काय लहुटही, हथकरघा के बेरा।।
मुसर बाहना ढेंकी जाँता, सिललोढ़ा खलबत्ता।
आरा रेंदा गिरमिट सुंबा, हाथ भुलागे नत्ता।।
कोन गाँथथे माची खटिया, कोन आँटथे ढेरा।
अइसन मा अब काय लहुटही, हथकरघा के बेरा।।
अपन हाथ मा सूत कात के, पहिरिन गाँधी खादी।
मिला हाथ ले हाथ सुराजी, लड़भिड़ लिन आजादी।।
सबें हाथ अब ठलहा होगे, होवै तेरा मेरा।
अइसन मा अब काय लहुटही, हथकरघा के बेरा।।
अपन हाथ हे जगन्नाथ कहि, खुदे करैं सब बूता।
उहू दुसर के अब मुँह ताकें, पहिरे चश्मा जूता।।
नवा नवा तकनीक हबरगे, बदलै बसन बसेरा।
अइसन मा अब काय लहुटही, हथकरघा के बेरा।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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राष्ट्रीय हथकरघा दिवस विशेष-
07/08/2023
लावणी छंद गीत- *हथकरघा*
हथकरघा अपना के गाँधी, फुँकिस बिगुल आजादी बर।
छोड़ विदेशी कोट लँगोटी, पेरिस चरखा खादी बर।।
पहिनें खादी पयजामा अउ, खादी के टोपी कुरता।
लाल बाल अउ पाल भगत के, आथे हम ला अब सुरता।।
बोलिन चीज विदेशी त्यागव, रहम न हो उन्मादी बर।
हथकरघा अपना के गाँधी, फुँकिस बिगुल आजादी बर।।
आज जमाना मशीनरी के, मनखे बनगे सुख भोगी।
पेरत नइहें जाँगर पर तो पेरत घर ला बन रोगी।।
हथकरघा निक काम बबा बर, नाना-नानी दादी बर।
हथकरघा अपना के गाँधी, फुँकिस बिगुल आजादी बर।।
बना पोलिखा सूत कात के, बेचव कोसा के साड़ी।
कंबल स्वेटर शाल बना लौ, सीट कवर मोटर गाड़ी।
पहल करव अभियान चलावव, हथकरघा बुनियादी बर।
हथकरघा अपना के गाँधी, फुँकिस बिगुल आजादी बर।।
इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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आशा देशमुख: हाथकरघा दिवस मा मोर रचना
आल्हा छन्द मा गीत
आवव हथकरघा ला जाँनव, ये अब्बड़ मिहनत के काम।
एखर से कतको मन पांवय, रोजी - रोटी बढ़िया दाम।।
पुरखा मन से सुने हवन जी, हथकरघा के बड़ इतिहास।
खादी, सूती, रेशम, मलमल, ये कपड़ा मन होथें खास।
आंदोलन के रूप धरिस ये, जब भारत हा रहिस गुलाम।
येखर से कतको मन पांवय, रोजी रोटी बढ़िया दाम।।
अलग अलग ये प्रांत नगर मा, हथकरघा के हे उद्योग।
पर अब के पीढ़ी ला देखव, फैशन के लग गेहे रोग।।
चिरहा - फटहा ब्रांड बने हे , नइहे कोनो रोक लगाम।
येखर ले कतको मन पावंय, रोजी रोटी बढ़िया दाम।।
बउरत हावंय हमर जिनिस ला,आज विदेशी अउ अंग्रेज।
सूप बनाके पीयत हावंय, कहिथन हमन जेन ला पेज।।
बुनकर उर्फ हाथकरघा हा, अबड़ कमावत हावय नाम।
येखर ले कतको मन पावंय, रोजी - रोटी बढ़िया दाम।।
हैंडलूम हे सबले ऊपर , उठत हवय बुनकर समुदाय।
ये कपड़ा के माँग अबड़ हे, देश - विदेश ह घलो बिसाय।।
शुद्ध जिनिस हा सहे सबो ला, सरदी पानी जाड़ा घाम।
येखर ले कतको मन पावंय, रोजी - रोटी बढ़िया दाम।।
आशा देशमुख
एनटीपीसी कोरबा
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[8/7, 5:05 PM] : राष्ट्रीय हथकरघा दिवस विशेष-
07/08/2023
कुण्डलिया छंद
हथकरघा के ओनहा,मन ला बने सुहाय।
खादी जेखर नाम हे,तन ला बने फभाय।।
तन ला बने फभाय,शुध्द ये सूती कपड़ा।
ठंडा बर अनुकूल,गरम बर नोहय लफड़ा।।
पहिरे एला जेन,कहे मन एला परघा।
बने लगे इंसान, जेन भावय हथकरघा।।
खादी हर सस्ता बिकय,टीकउ एला मान।
पहिनइया सज्जन लगे,बड़ सियान सूजान।।
बड़ सियान सूजान,कहूँ हा नेता काहय।
मिलय बहुत सम्मान,भले नेता झन राहय।।
यदि कोनो इंसान,होय बर होही शादी।
चचही वोहा खूब,पहिर लेवय वो खादी।।
संतोष कुमार साहू
जामगांव(फिंगेश्वर)
जिला-गरियाबंद(छ.ग.)
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👏🌹रोला-छंद🌹👏
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हथकरघा उद्योग
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हथकरघा उद्योग, निशानी हे स्वादेशी |
हावय एक उपाय, छोड़ जी माल विदेशी |
खादी के पहिनाव, बढ़ाथे शोभा तन के |
बुनकर मन हरषाय, बिकय जब कपड़ा हन के ||
हाल हवय बदहाल, आज आँखी भर देखव |
आगे चिरहा जींस, बात ला तनिक सरेखव |
खस्ता हाल कुटीर, जाम होगे हे चरखा |
स्वारथ के सरकार, निहारय करखा-करखा ||
लगे भँइस के मोह, गाय ला दुइही काला |
लगे विदेशी रोग, इहाँ लग जाये ताला ||
करही कोन हियाव, सुनय नइ नेता मंत्री |
इँखर पेट मा दाँत, जान सुन बनथें कंत्री ||
कमलेश प्रसाद शर्माबाबू
कटंगी-गंडई
जिला केसीजी
छत्तीसगढ़
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सरसी छन्द- सुखदेव सिंह 'अहिलेश्वर'
हथकरघा
हथकरघा ला सुरता कर के, होथे गरब-गुमान।
मिलत रहय सरलग सम्हलत ले, सरकारी अनुदान।
एक जमाना रहिस देश भर, हथकरघे के गोठ।
देशभक्त मन देश-राज बर, निर्णय लेवयँ पोठ।
खादी पहिने कोरी-खइखा, मनखे पातर-मोठ।
आजादी बर आवयँ-जावयँ, रोज कचहरी-कोठ।
समय-समय मा देश सउँरथे, खादी के परिधान।
मिलत रहय सरलग सम्हलत ले, सरकारी अनुदान।
हथकरघा सुमता ला आँटय, जइसे पोनी सूत।
टोर सकय झन ये सुमता ला, पड़रा-पड़रा भूत।
सुमता टोरे के कइयो ठन, करनी अउ करतूत।
टुटिस न सुमता हाय! टूट गें, लाखों वीर-सपूत।
हथकरघा झन होवन पावय, अनचिन्हार बिरान।
मिलत रहय सरलग सम्हलत ले, सरकारी अनुदान।
आज जमाना हे मशीन के, हरय खुशी के बात।
पर मजदूर घलो ला चाही, सब्जी-रोटी-भात।
दुनिया भर के कपड़ा मन ले, सजगे हाट-बजार।
खुलय दुकान बजार-हाट मा, खादी के दू चार।
ग्राहक पा हाँसय मुस्कावय, खादी कपड़ा-थान।
मिलत रहय सरलग सम्हलत ले, सरकारी अनुदान।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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सरसी छंद गीत -"खादी"
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खादी हमर देश भारत के, बनगे हे पहिचान।
सूत कात के गाँधी बाबा, देइस येला मान।।
हमर देस ले भेजे विदेश, अंगरेज सरकार।
करे सफाई मशीन थोरिक, दाम बढ़े भरमार।।
करिन त्याग विदेशी ओनहा, उकर करिन हिनमान।
खादी हमर देश भारत के, बनगे हे पहिचान।।
सूती कपड़ा बड़ गुणकारी, पहिरे येला लोग।
सरद गरम दूनों मौसम मा, होथे ये उपयोग।।
सोख पसीना ला तन के ये, जुड़ के देथे दान।
खादी हमर देश भारत के, बनगे हे पहिचान।।
लोगन के रोजगार राहय जी, खादी के व्यवसाय।
पालन करे परिवार मन के, जीनिस घला बिसाय।
पहिरइया के सँउख बाढ़ गे, चेत बिलम गे आन।
खादी हमर देश भारत के, बनगे हे पहिचान।।
अपनावव जी फेर इही ला, पा जहू रोजगार।
लाज बचावव हथकरघा के, पहिनावा हे सार।।
नवा जनम ये पा जाही जी, देवव येला मान।
खादी हमर देश भारत के, बनगे हे पहिचान।।
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द्रोपती साहू "सरसिज"
महासमुन्द छत्तीसगढ़
पिन-493445
Email; dropdisahu75@gmail.com
सुग्घर संग्रहण
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर हथकरघा के विषय मे अपन अपन रचना लिखे हावय छंद परिवार के साधक भाई बहिनी मन सबो झनला बहुतबहुत बधाई हो मोर डहर ले 🍀🙏🏻🍀👌🏽🍀
ReplyDeleteसुग्घर संकलन
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