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Saturday, August 5, 2023

जनम दिन विशेष-गुरुदेव श्री निगम जी


 

 छत्तीसगढ़ी साहित्य मा छंद के बढ़वार बर सरलग बूता करइया, छत्तीसगढ़ भर के कई कलमकार ला छंद के छ के माध्यम ले छंद लिखे अउ लिखाये बर प्रेरित करइया, परम् पूज्य गुरुदेव श्री निगम जी ला जनम दिन के बहुत बहुत बधाई,,


कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बेरा मा मैं मोर के, कहिके तैं अउ तोर।

भाँखा के सम्मान बर, चले सबे ला जोर।

चले सबे ला जोर, गुरू जी अरुण निगम हा।

भरत हवय तब रोज, छंद के गागर कम हा।।

छंद के छ हा ताय, छंद सीखे के डेरा।

जुरमिल महिनत होय, मोर मैं के ये बेरा।


जुरियाये छोटे बड़े, गुरू शिष्य कहिलाय।

छंद के छ के क्लास हा, छंदकार सिरजाय।

छंदकार सिरजाय, राज भर मा कतको झन।

सीखे रोज सिखाय, लगाके सबझन तनमन।

गुरू निगम के सोंच, आज बढ़ चढ़ के धाये।

साहित पोठ बनायँ, सबे साधक जुरियाये।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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मनोज वर्मा: 

हर दिन पा के शुभ कृपा, सुघर छंद परिवार।

महके चारों ओर मा, छत्तीसगढ़ी सार।।

छत्तीसगढ़ी सार, कल्प रुख आप हमर बर।

गढ़े छंद परिवार, अमर बोली ला शुभ कर।।

हवै बधाई पोठ, निगम जी पावन गुरुवर।

जियव हजारों साल, कहे नित हमरो मन हर।।

 मनोज वर्मा

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आशा देशमुख: गुरु चालीसा


दोहा


करत हवँव गुरु वंदना, चरणन माथ नँवाय ।।

भाव भक्ति मन मा धरे , श्रद्धा फूल चढ़ाय।।


सदा रहय गुरु के कृपा,अतकी विनती मोर।

अंतस रहय अँजोर अउ,भागे अवगुण चोर।।


चौपाई 


गुरु ब्रह्मा अउ विष्णु महेशा। गुरु हे पहिली पूर्ण अशेषा।।

बरन बरन हे गुरु के वंदन।आखर आखर बनथे चंदन।।


 गुरु ला जानव सुरुज समाना।  गुरु आवय जी ज्ञान खजाना।।

गुरु जइसे नइहे उपकारी।गुरु के महिमा सब ले भारी।।


गुरु सउँहत भगवान कहाये। गुण अवगुण के भेद बताये।।

सात समुंदर बनही स्याही।गुरु गुण बर कमती पड़ जाही।।


गुरु के बल ला ईश्वर  जाने। तीन लोक  महिमा पहिचाने।।

गुरुवर सुरुज तमस हर लेथे। उजियारा जग मा भर देथे।।


जब जब छायअमावस कारी। गुरु पूनम  लावय उजियारी।।

गुरु पूनम के अबड़ बधाई।माथ नँवा लव बहिनी भाई।।


शिष्य विवेकानंद कहाये।परमहंस के मान बढ़ाये।।

द्रोण शिष्य हें पांडव कौरव ।अर्जुन बनगे गुरु के गौरव।।


त्याग तपस्या मिहनत पूजा।गुरु ले बढ़के नइहे दूजा।।

वेद ग्रंथ हे गुरु के बानी।पंडित मुल्ला ग्रंथी ज्ञानी।।


ज्ञान खजाना जेन लुटाए।जतका बाँटय बाढ़त जाए।।

गुरु के वचन परम हितकारी।मिट जाथे मन के बीमारी।।


जेखर बल मा हे इंद्रासन।बलि प्रहलाद करे हें शासन।।

ये जग गुरु बिन ज्ञान न पाये।गुरु गाथा हर युग हे गाये।।


सत्य पुरुष गुरु घासी बाबा। गुरु हे काशी गुरु हे काबा।।

 देवै ताल कबीरा साखी।

 उड़ जावय  मन भ्रम के पाखी।।


गुरु के जेन कृपा ला पाथे। पथरा तक पारस बन जाथे।।

माटी हा बन जावय गगरी। बूँद घलो हा लहुटय सगरी।।


महतारी पहली गुरु होथे । लइका ला संस्कार सिखोथे।।

देवय जे अँचरा के छइयाँ।दूसर हावय धरती मइयाँ।।


जाति धरम से ऊपर हावय।डूबत ला गुरु पार लगावय।।

आदि अनादिक अगम अनन्ता।जाप करयँ ऋषि मुनि अउ संता।।


गुरु के महिमा कतिक बखानौं।    ज्योति रूप के काया जानौं।।

बम्हरी तक बन जाथे चंदन। घेरी बेरी पउँरी वंदन।।


हाड़ माँस माटी के लोंदी।बानी पाके बोले कोंदी।।

पथरा के बदले हे सूरत। गढ़थे छिनी हथौड़ी  मूरत।।


भुइयाँ पानी पवन अकाशा।कण कण में विज्ञान प्रकाशा।।

समय घलो बड़ देथे शिक्षा।रतन मुकुट तक माँगे भिक्षा।।


अमर हवैं रैदास कबीरा। निर्गुण सगुण  बसावय मीरा।।

सातों सुर मन कंठ बिराजे। तानसेन के सुर धुन बाजे।।


कण कण मा गुरु तत्व समाये।सबो जिनिस कुछु बात सिखाये।।

गोठ करत हे सूपा चन्नी।कचरा ला छाने हे छन्नी।।


गुरु के दर हा सच्चा दर हे। मुड़ी कटाये नाम अमर हे।।

एकलव्य के दान अँगूठा। अइसन हे गुरु भक्ति अनूठा।।


श्रद्धा से गुरु पूजा करलव। ज्ञान बुद्धि से झोली भरलव।

जे निश्छल गुरु शरण म जावै।।अष्ट सिद्धि नवनिधि जस पावै।।


गुरु चालीसा जे पढ़े,ओखर जागे भाग।

दुख दारिद अज्ञानता ,ले लेथे बैराग।।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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अहिलेश्वर

अरुण निगम हे नाँव, मोर प्रियवर गुरुवर के।

नस-नस मा साहित्य, मिले पुरखा ले घर के।

पेड़ बरोबर भाव, कृपाफल सब ला मिलथे।

पाथें जे सानिध्य, उँखर जिनगी मन खिलथे।

छत्तीसगढ़ी छंद बर, बनगे बरगद कस तना।

गुरु के कृपा प्रसाद ले, होत छंद के साधना।

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ज्ञानू

कलम चलत हे किरपा जेखर, मिले छंद के ज्ञान।

बड़का साहितकार छंदविद, नइ कर सकँव बखान।।


धन्य धन्य हे भाग हमर जी, अइसन गुरु हे साथ।

संग खड़े दुख सुख मा रहिथे, धरे हाथ मा हाथ।।


बात बात मा गोठ सियानी, सदा दिखाथे राह।

भेदभाव नइ जानय सिरतो, देथे नेक सलाह।।


सत साहित के ये छइहाँ मा, जीव जुड़ावँय मोर।

अपन शरण गुरु सदा राखहू, अतके मोर निहोर।।


जन्मदिवस मा इही कामना, रहव स्वस्थ खुशहाल।

फलन फुलन सानिध्य आपके, जियव बछर सौ साल।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी कवर्धा

साधक- सत्र-3

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कुंडली छंद 


बोली मीठा हे सुघर,सुंदर सरल स्वभाव।

अरुण निगम जी नाम हे,कतका महिमा गाव।

कतका महिमा गाव,छंद के ज्ञानी जानौ।

बनना हवय सुजान,बात गुरुवर के मानौ।

छंदकार मशहूर,साथ चेला के टोली।

सादर हे परनाम,इँखर अमरित हे बोली।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

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 दीपक निषाद, बनसांकरा:

 पूज्य निगम गुरुदेव के, कतका करँव बखान। 

साहित के संसार मा, लाए नवा बिहान। ।

जुन्ना छंद परंपरा, ला फिर से सिरजाँय। 

तरी जिंकर आसीस के, सब साधक जुरियाँय। ।

भरँय खजाना छंद के, धर के छंद विधान। 

करत हवँय सरलग सबो, साहित ला धनवान। ।

गुरुवर के नित पैलगी, लागँव मँय करजोर। 

जिंकर दया अउ स्नेह के, हावय ओर न छोर। ।

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गुरु अरुण निगम हे, ज्ञान अगम हे, परमारथ मा ,मगन रहै।

जग बर उपकारी ,सम व्यवहारी, गिरे परे बर ,रतन रहै।।

गुरु ज्योत प्रकाशा,भाव अकाशा,शब्द शब्द मा ,ज्ञान भरै।

रहिके संसारी ,मोह सँहारी,अहम द्वेष के ,गरब क्षरै।।

आशा देशमुख

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1 comment:

  1. आप मन के मया मोर बर जीये के ऊर्जा आय। आप सबके आभार।

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